सुशीला लगभग 28 वर्ष की हो चुकी थी उसके लिए रिश्ते तो बहुत आ रहे थे लेकिन कहीं भी उसकी शादी सेट नहीं हो पा रही थी घर में बहुत टेंशन था मां बाप के पास ज्यादा पैसे नहीं थे मां सिलाई कढ़ाई करती थी और पिताजी छोटा-मोटा काम कर लेते थे लड़के वाले जो भी आते थे अच्छा खासा दहेज मांगते थे
मुश्किल से एक जगह रिश्ता पक्का हुआ घर बहुत अच्छा था सास ससुर और पति भी बहुत अच्छे थे लेकिन शादी के बाद सबका रूप बदल गया जब शादी हुई तब सुशीला बहुत खुश थी लेकिन जैसे ही सुशीला की शादी हो गई जब वह घर गई तो उसे बहुत सारी जिम्मेदारियां पकड़ा दी गई
घर में सभी लोगों के लिए खाना बनाना बर्तन झाड़ू पोछा सुशीला के ही जिम्मेदारी बन गया सुशील भी शांति से सब अपना काम जिम्मेदारी से कर लेती थी कभी भी शिकायत नहीं करती थी क्योंकि उसे पता था कि उसके मां-बाप के पास इतना पैसा नहीं है
जब भी सास ससुर आने देते थे कि तुम्हारी मायके से कुछ भी नहीं आ रहा है आया है तो सुशीला शांति से सुनकर रह जाती थी हर दिन उसे नया कुछ भी सुनने मिल जाता था लेकिन सुशीला ने कभी पलट कर जवाब नहीं दिया कुछ साल बाद छोटे देवर की शादी पक्की हो गई और घर में खुशियां ही खुशियां आ गई
क्योंकि जैसी बहू चाहिए थी वैसे मिल गई बहुत पैसे वाली बहू मिली जब देवर की शादी हुई और देवरानी घर आई सुशीला ने अपनी जिम्मेदारी से बिल्कुल भी पीछे नहीं आती सारा काम किया लेकिन उसे एक भी साड़ी या कपड़ा नहीं दिलाया गया उसे बस यही कह दिया गया कि तुम्हारे मायके से आएगा तो तुम पहन लेना तो सुशीला ने भी कहा कि मेरे पास जो पुरानी साड़ियां है
उसे ही पहन लूंगी पति ने भी ज्यादा ध्यान नहीं दिया सुशीला अपना फर्ज निभाती रही उसने कभी किसी पर उंगली उठाकर बात नहीं की वही जब देवरानी आई बड़े घर से थी उसका लेट उठना ना कोई काम करना ना ही हाथ बटाना उसने पहले ही कह दिया था मुझे खाना बनाना आता नहीं है और ना मैं सिखाने वाली हूं मेरे घर में तो कर नौकर लगे हुए थे
जब भी सुशीला अपनी देवरानी से कहती थी की सीख लो आगे क्या पता क्या होगा लेकिन देवरानी कभी भी हाथ नहीं बताती थी अपने कमरे से ज्यादा बाहर ही नहीं निकलती थी कोई भी रिश्तेदार आता था सुशीला ही उन्हें अटेंड करती थी एक दिन सुशीला की सास की बहुत तबीयत खराब हो गई
और सुशीला को अचानक मायके जाना पड़ गया तब सास ने छोटी बहू से कहा कि आज तुम खाना बना लो क्योंकि सुशीला मायके गई हुई है तब छोटी बहू ने कहा कि मां की मुझे तो कुछ बनाना आता ही नहीं है आप मार्केट से ही कुछ मंगा लीजिए तो हम सब का भी भला हो जाएगा
यह बात सुनकर सास को बहुत गुस्सा आया और उन्होंने तुरंत सुशील को बुलाया और कहां के आ जाओ घर पूरा रास्ते व्यस्त हो गया सुशीला ने भी हां मी भर दी और घर आ गई सबसे पहले सास ने सुशीला से माफी मांगी और कहा की मैं तुम्हारी कभी इज्जत नहीं की है लेकिन तुमने हम लोगों का हमेशा साथ दिया है।
हम लोगों को माफ कर दो तुमने अपना फर्ज हमेशा निभाया और कभी अपने फर्श से पीछे नहीं आती है मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ हमेशा रहेगा दोस्तों में इस कहानी के माध्यम से यही कहना चाहती हूं।
कि गरीब और अमीर से कुछ नहीं होता जहां हम रहते हैं वहां हमें इज्जत और सम्मान मिलना चाहिए।
विधि जैन