भाभी, प्लीज़ माँ से बात करो ना कुमुद के बारे में ।
तुम तो जानते ही हो माँ का स्वभाव समीर …. एक तो अनाथ ऊपर से गरीब , …. माँ बिल्कुल भी नहीं मानेंगी ।
भाभी, आपका ही सहारा है…. करो ना कुछ । भैया को तो बताओ….. फिर माँ से भी बात करने की प्लानिंग करेंगे ।
अच्छा….ऐसा क्यों नहीं करते कि चुपचाप कोर्ट में शादी कर लो …फिर मैं किसी के पचड़े में पड़ना भी नहीं चाहती ।
नहीं…भाभी… कुमुद इसके लिए कभी नहीं मानेगी । और ऊपर से , ये पानीपत वाली आँटी रोज़ माँ को फ़ोन करके अपनी किसी जानने वाली के रिश्ते की बात करती है
समीर अपनी भाभी रश्मि से अपने साथ कार्य करने वाली कुमुद के बारे में बात कर रहा था । कुमुद एक अनाथ लड़की थी जिसे उसके चाचा ने पाला था, जो स्वयं भी अविवाहित थे क्योंकि बचपन से बीमार रहते थे । पढ़ाई पूरी करने के बाद कुमुद की कंपनी में नौकरी लगी तो चाचाजी उसकी ओर से आश्वस्त हो गए । अक्सर वे कहते—
कुमुद बेटा ! अब तेरी तरफ़ से निश्चिंत हूँ । तुम अपने पैरों पर खड़ी हो गई । जीवन साथी चुनने की समझ तुममें आ गई है । बस यही सोचकर डरता था कि कहीं भाई-भाभी की ज़िम्मेदारी अधूरी ना रह जाए ।
इससे पहले कि कुमुद चाचाजी को समीर के बारे में कुछ बताती वे एक रात कुमुद को अकेली छोड़कर स्वर्ग सिधार गए। उसके बाद समीर ने अपनी नैतिक ज़िम्मेदारी समझते हुए स्वयं ही कुमुद से विवाह की बात की ।
समीर ने सोचा कि शायद भाभी उसकी मदद करेगी पर रश्मि को किसी की मदद करना पचड़े में पड़ना लगता था । वह हमेशा कहती — मुझे क्या लेना- देना… मैं क्यों किसी के पचड़े में पड़ूँ….
अपने मायके पहुँचने पर रश्मि ने समीर और कुमुद का ज़िक्र छेड़ते हुए अपनी मम्मी से कहा— देखो तो इस समीर को …. खुद के लिए लड़की पसंद कर बैठा ….. अब मेरी मदद माँग रहा है….. उँह… मुझे क्या पड़ी है बीच में पड़ने की …. मैं तो नहीं बात करती माँ से ….. मेरे से पूछ के प्यार किया था क्या…
अरे बेटा…. क्या हो जाएगा अगर तुम्हारी वजह से शादी हो गई । अनाथ है बेचारी… फिर अगर लड़की अच्छी है तो हर्ज क्या है? पता नहीं क्यों जली- फूँकी रहती हो … परिवार में एक-दूसरे की मदद तो करनी चाहिए । बचपन से समझाती आ रही हूँ पर तुम्हारी आदत नहीं बदली …. पता नहीं किस पर गई है…
मैंने तो यह सोचकर ज़िक्र कर दिया था कि आप मेरा साथ दोगी पर आप तो मुझे ही कहने लगी…. लोग तो अपनी बेटी……
चाहे बेटी ग़लत बात कहे …. तुम तो चाहती हो कि हाँ में हाँ मिलाती रहूँ । बेवक़ूफ़ी की भी ….कभी भी मायके से राज़ी-ख़ुशी नहीं जाती…. जब आएगी, कहासुनी करके ही जाएगी…. धन्य है तुम्हारी सास … जो तुम्हें बर्दाश्त करती है ।
मम्मी ! आप मेरी असली माँ भी हो या …….
ना …. मैं तो तेरी सौतेली माँ हूँ । सच्ची रश्मि , कभी-कभी डर लगता है कि तेरी ये बिना मतलब की बातें तेरे लिए मुश्किल खड़ी ना कर दे ? अरे … किसी की मदद कर देने में क्या पचड़ा होगा ? बाहर वालों की तो क्या , तू तो घरवालों की भी मदद करना पचड़ा समझती है ।
इस तरह रश्मि की मम्मी उसे समझाती पर उसके कानों पर जूँ तक न रेंगती और वह ससुराल लौट आती ।
रश्मि के आने के बाद समीर ने कई बार उसे माँ से बात करने के लिए कहा पर वह टाल-मटोल करती रही । थकहार के समीर एक दिन खुद ही माँ को मंदिर ले गया , जहाँ उसने कुमुद को भी बुला लिया । कुमुद से बात करके तथा बिना लागलपेट के सच्चाई जानकर माँ ने आसानी से दोनों के रिश्ते को रज़ामंदी दे दी ।
जब माँ ने बड़े बेटे- बहू को समीर और कुमुद के बारे में बताया तो रश्मि की आँखें फटी की फटी रह गईं । उसने तो सोचा भी नहीं था कि मामला इतनी आसानी से तय हो जाएगा । उसने तुरंत अपनी मम्मी को फ़ोन करके कहा—-
बताओ मम्मी…. मुझे एँवे ही पचड़े में घसीट रहा था समीर …. मैं…..
तो तुमने क्या सोचा कि तुम किसी की मदद नहीं करोगी तो दुनिया के काम रूक जाएँगे…..
ओह ….. आपसे तो बात करनी ही बेकार है मम्मी !
इतना कहकर रश्मि ने फ़ोन काट दिया । शादी के दो साल बाद सास और देवर ही नहीं, रश्मि का पति भी उसकी आदत को अच्छी तरह समझ चुके थे । कई बार तो वह अपने पति को भी कह देती—-
देख लो भई नीरज ….. मैं तुम्हारे घरवालों के पचड़े में नहीं पड़ती….. मुझे क्या लेना-देना किसी से …..
सब कुछ कह देती हो …… हाँ, कहीं ज़रा सी हैल्प की बात आती है तो तुम्हें किसी से कोई लेना- देना नहीं…..
देवर की शादी में तो यह सबको पूरी तरह स्पष्ट हो गया कि रश्मि कोई भी ज़िम्मेदारी लेना नहीं चाहती , जैसे वह घर की बहू नहीं, कोई अजनबी है ।
मेंहदी की रात कनाडा से आई मामी ने रश्मि से कहा—-
रश्मि…. तुम्हारे मायकेवाले नहीं आए ? फ़ोन करके पूछ तो लो बेटा ।
मैं क्यों पूछूँ…. जिसकी शादी है , वो पूछ ले अपने आप…. मैं किसी के पचड़े में नहीं पड़ती…. मुझे क्या…..
तभी सास की कड़कती आवाज़ सुनकर रश्मि अंदर तक हिल गई——
चुप…. बिल्कुल…. जो एक भी शब्द मुँह से निकाला…. मैं किसी के पचड़े में नहीं पड़ती- मैं किसी के पचड़े में नहीं पड़ती….. सुन..सुनकर कान पक गए हैं । जब तुम अपने ही घर के पचड़े में नहीं पड़ती तो यहाँ क्या कर रही हो….. चली जाओ …. वो तो अच्छा हुआ कि तुम्हारी मम्मी ने मुझे बता दिया, तुम्हारी आदत के बारे में….. और तुम्हारा ध्यान रखने को कहा … वरना मेहमानों से भरे घर में बेइज़्ज़ती करने में कोई कसर नहीं छोड़ी …… चल , खड़ी हो और जो मामी ने कहा वो पूछ ….
जी , अभी फ़ोन करके पूछती हूँ , रश्मि मिमियाते हुए बोली ।
करुणा मलिक