क्या जाहिल औरत हो ? कौन दूध में इस तरह उँगली डालकर चेक करता है कि गर्म है या ठंडा ? हज़ार बार कहा है कि मेरे बच्चों के मामले में ये गँवारपन मत दिखाया करो ।
नहीं जी …. मेरे हाथ एकदम साफ़ है । अभी रोटी बनाकर हाथ धोने के बाद ही चौके से निकली हूँ और आटा भी तो इन्हीं हाथों से साना था ।
जो कह रहा हूँ उसे मत समझना….. बहस करना तो तुम्हारा पुराना शौक़ है । ले जाओ इस दूध को ….अब अनिरुद्ध इसे नहीं पियेगा …… पता नहीं, क्या सीखकर आई हो अपने घर से? हमेशा गँवार ही रहोगी ।
पापा…. प्लीज़, कुछ मत कहें मम्मी को, आप शायद भूल रहे हैं कि #ये गंवार औरत मेरी माँ है । , अनिरुद्ध ने तड़पकर कहा ।
इतना कहकर अनिरुद्ध वहाँ से उठकर अपने कमरे में चला गया । वह बचपन से ही पापा का ऐसा रवैया माँ के साथ देखता आया था पर अब जबसे वह नौकरी करने लगा था तो उसे दुख होता था यह देखकर कि मम्मी परिवार के हर सदस्य के लिए जी जान से लगी रहती हैं और बदले में उन्हें इज़्ज़त तक नहीं मिलती । जब वह छोटा था तो अक्सर अपनी बहन से पूछता था—-
अन्नू दीदी! मम्मी कितनी अच्छी है । सबके लिए खाना बनाती है, सबके कपड़े धोती है, दादी- दादा की देखभाल करती है । हम दोनों की पढ़ाई का ध्यान रखती है फिर भी पापा को कोई न कोई शिकायत ही रहती है , बताओ ना क्यूँ?
मुझे क्या पता ? चल दादी से पूछते हैं । मम्मी कहती हैं कि दादी को जीवन का बहुत तजुर्बा है ।
और दोनों भाई-बहन दादी से अपने प्रश्न का उत्तर जानने के लिए उनके पास पहुँच जाते थे । पहले तो दादी उन दोनों से अपना एक दो काम करवाती फिर चश्मे को नाक से ऊपर करके कहती —-
मरद जात ऐसी ही होती है लल्ला । और फिर तेरी माँ ही नहीं, सब औरतों को इस तरह की बातें सुननी पड़ती हैं । मैंने भी सुनी तेरे दादा से , और फिर ये कौन सा मन से कहते हैं? अरे , लाड़ में कहता है तेरा पापा तो …..
ला…..ड….. दोनों भाई- बहन का मुँह खुला का खुला रह जाता था । दादी, क्या अन्नू दीदी को भी उनका पति ऐसे ही लाड़ करेगा ?
इस प्रश्न पर दादी अक्सर फँस जाती थी और बात टालते हुए कहती थी—-
अरे , जा खेल ले । एक बात के पीछे पड़ जाता है । जब तू बड़ा हो जाएगा ना …. अपने आप तेरी माँ को डाँटना बंद कर देगा तेरा पापा ।
बस अनिरुद्ध के बाल मन ने यह बात स्वीकार कर ली थी कि उसके बड़ा होते ही पापा माँ को डाँटना बंद कर देंगे ।जब उसकी बड़ी बहन अनामिका की शादी हुई तो ससुराल से पहली बार आने पर अनिरुद्ध दौड़कर बहन के पास जाकर बोला —
अन्नू दीदी , क्या जीजाजी भी पापा की तरह लाड़ लड़ाते हैं?
हट पगला… बचपन की बात को पकड़े बैठा है । अरे वो तो दादी हमें बहकाने के लिए कह देती थी । अब तो तू बड़ा हो गया है, तुझे नहीं पता कि लाड़ और डाँट में फ़र्क़ होता है । तुम्हारे जीजाजी बहुत अच्छे शांत स्वभाव के हैं ।
हर घर का माहौल होता है । शायद जब शुरू- शुरू में शादी होने पर पापा ने मम्मी को इस तरह डाँटा होगा तो दादी ने उन्हें रोका-टोका ही नहीं और मम्मी ने भी विरोध प्रकट नहीं किया होगा , बस धीरे-धीरे पापा की आदत पकती चली गई और अब मम्मी के हर काम में नुकताचीनी करना , उन्हें नीचा दिखाना , अपनी हर बात को सही ठहराना ….. पापा ने अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझ लिया है ।
आप ठीक कह रही हो । मुझे इस घर का माहौल ठीक करना पड़ेगा ।
कर लेना बड़ा होकर ….. अभी तो दसवीं पास की है ।
पर उस दिन अनामिका की एक-एक बात अनिरुद्ध के दिल पर मानो लिखी गईं थीं । कुछ तो वह बचपन से ही गंभीर स्वभाव का था कुछ और हो गया । अब जब भी पापा उसकी मम्मी को किसी बात पर डाँटते या नीचा दिखाते तो वह कोई प्रतिक्रिया नहीं देता था । बस कुछ देर बाद माँ के पास जाता और कहता —
मम्मी! कुछ दिनों की बात है । मैं बड़ा हो रहा हूँ और इस घर का माहौल बदल दूँगा ।
आख़िर अनिरुद्ध का इंतज़ार ख़त्म हुआ और जब आई० आई० टी० , कानपुर से बी० टेक० करने के बाद उसका बहुत बढ़िया कंपनी में चयन हुआ तो घर आकर मम्मी के पैर छूते हुए अनिरुद्ध बोला—-
मम्मी, मैं बड़ा हो गया हूँ । आज के बाद कोई आपसे विशेष लाड़ नहीं दिखाएगा । दादी ! अपने बेटे को कह देना कि मेरी माँ के साथ लाड़ से नहीं, शालीनता से बात करें ।
उस समय अनिरुद्ध की बात पर किसी ने कुछ नहीं कहा बल्कि यह समझा कि माँ को मानसिक संबल देने के इरादे से कह रहा है ।
पर आज जब दूध चेक करने के उद्देश्य से मम्मी ने कप में उँगली डाल दी और पापा ने मम्मी को उल्टा सीधा कह दिया तो अनिरुद्ध सह नहीं सका । वह थोड़ी देर ड्राइंगरूम में जा बैठा । पानी पीने के बाद वह वापस मम्मी के पास रसोई में गया और उनका हाथ पकड़कर उस जगह लाया जहाँ दादा-दादी और पापा बैठे चाय पी रहे थे ।
दादी! अब मैं बड़ा हो गया हूँ । अपने बेटे को समझा दें कि मेरी माँ के साथ अपनी लाड़ वाली भाषा का प्रयोग बंद कर दें । मैं चाहता हूँ कि मेरे घर का माहौल भी ऐसा बन जाए जैसा अन्नू दीदी के घर का है । औरतों को मान- सम्मान देने वाला । मेरी मम्मी मेरी प्रेरणा हैं । अगर किसी ने इनके साथ ग़लत लहजे में बात की तो मैं उन्हें लेकर कहीं दूर चला जाऊँगा । दादी, अपने बेटे को कौन सी भाषा में समझाना है ये आपकी ड्यूटी है ।
शायद अनिरुद्ध की बेख़ौफ़ आवाज़ को सुनकर दादी के बिना कहे ही पापा समझ गए थे कि उनका बेटा वाक़ई इतना बड़ा हो गया है कि अब उसे फ़ैसला लेने में ज़्यादा देर नहीं लगेगी क्योंकि उसके बाद उन्होंने कभी भी मम्मी के साथ अपनी लाड़ वाली भाषा का प्रयोग नहीं किया ।
करुणा मलिक
# ये गँवार औरत मेरी माँ है