इधर सुमि और विपुल अपने अतीत और वर्तमान की उलझनों को सुलझा रहे थे, तो दूसरी तरफ़…
शाम के वक़्त पार्क की बेंच पर सुमन अकेली बैठी थी। पैरों से पत्तों को बार-बार ठेलते हुए जैसे वो अपने भीतर की बेचैनी को दूर करना चाह रही थी। उसकी उँगलियाँ अनजाने में बेंच के किनारे खुरच रही थीं। चेहरे पर हल्की-सी खीझ थी, लेकिन आँखों में एक अजीब-सी व्याकुलता भी थी।
थोड़ी देर में विकास वहाँ पहुँचा।
सुमन ने उसे देखते ही हल्की चिढ़ भरे स्वर में कहा— “आजकल कहाँ बिज़ी रहते हो तुम लोग?” उसकी आवाज़ में हल्की चिढ़ थी। “और सुन, उस दिन सुमि से कौन-सी इतनी ‘खास’ बात करनी थी कि मुझसे छुपा ली?”
“सुमन…” उसकी आवाज़ धीमी थी, पर उसमें एक बोझ साफ झलक रहा था। “मैं तुमसे एक बात सच में कहना चाहता हूँ। शायद सुनकर तुम चौंक जाओ।”
सुमन ने भौंहें सिकोड़कर उसकी ओर देखा – “अब इतना सस्पेंस मत बना, साफ-साफ बोल।”
विकास ने हिम्मत बटोरकर आगे कहा— “वो मैं सुमि … मेरा मतलब है मैं और सुमि … ” फिर थोड़ी देर आँखें बंद करके सिर नीचे झुका कर एक ही साँस में बोल उठा —
“मैं पहले ही सुमि से अपने दिल की बात कह चुका हूँ। मैं… उससे प्यार करता हूँ। और वो भी… मेरे लिए कुछ महसूस ऐसा ही महसूस करती है।”
सुमन की आँखों में साफ़ हैरानी तैर गई। विकास की फीलिंग्स के बारे में उसे कहीं न कहीं थोड़ा-सा अंदाज़ा तो था, लेकिन ये सब इतनी जल्दी और इतनी गहराई तक पहुँच जाएगा—उसने कभी सोचा भी नहीं था।
और सबसे बड़ी हैरानी तो इस बात की थी कि सुमि… उसकी सबसे करीबी दोस्त… इतनी छुपीरुस्तम निकलेगी!
विकास ने नजरें झुका लीं और धीरे-से सिर हिलाया। “उस दिन मैं उसे अपने मन की बात ही करने आया था।” थोड़ा हंस कर बोला “पर भला हो उस इंद्र का, उसने कुछ कहने का मौका ही नहीं दिया। इंद्र ने हद पार करने की कोशिश की और मुझे गुस्सा आ गया। उसी अफ़रा-तफ़री में सुमि एकदम मेरे करीब आ गई। शायद उसी लम्हे उसे भी समझ आ गया था कि मेरे जज़्बात क्या हैं।”
लग रहा था कि उस पल की मिठास विकास की आँखों की गहराई में झिलमिला उठी थी। वो फिर बोला, ““हाँ। हम चाहते थे कि सबसे पहले तुम्हें ही बताएं। लेकिन कैसे कहें… ये समझ ही नहीं आ रहा था।”
सुमन ने गहरी साँस लेकर खुद को सँभालने की कोशिश की। चेहरे पर शिकन थी, लेकिन आँखों में अपनापन भी।
वो होंठ भींचते हुए बोली—“मैं समझती हूँ… पर एक बात बताओ तो सही, वो आजकल है कहाँ? मिल गई न मुझे, तो छोड़ूँगी नहीं उसे!”
उसकी आवाज़ तुनकती हुई थी, पर लहजे में शिकायत से ज़्यादा अपनापन छिपा था कि कैसे उसने दोस्त होकर भी मुझसे इतनी बड़ी बात !
विकास ने हँसी दबाते हुए सुमन की ओर इशारा किया और बोला— “अच्छा अब तू ज्यादा मत चिढ़ और सुमि को छोड़ बक्श देना। … याद रख, वो अब मेरी नई–नई गर्लफ्रेंड बनी है… और गर्लफ्रेंड पर सबसे पहला हक़ बॉयफ्रेंड का होता है, समझी?”
उसने जानबूझकर आँखें चौड़ी करके ऐसे कहा, जैसे सच में बड़ा दावा कर रहा हो।
सुमन ने आँखें घुमाकर विकास को घूरा और मज़ाकिया सख़्ती से बोली—
“और ओ बेचैन आत्मा… कभी किताब खोलकर भी देख लिया कर! पढ़ाई भी ज़रूरी है, समझा? वैसे एक बात बता दूँ…”
उसका चेहरा शरारती मुस्कान से भर उठा।“तेरे राज़ अब मुझसे छुपे नहीं हैं। कल जब तुम दोनों देर से लौटे थे न… मैंने देख लिया था। तभी सब समझ गई थी।”
विकास हल्का-सा झेंपा, और बोला — “इंटेलिजेंट तो तू है ही… आखिर संगत का असर कहीं तो दिखना था!”
सुमन ने होंठ खोले और बोली— “तभी तो मैं…”
लेकिन अचानक ही उसकी आवाज़ थम गई। चेहरे पर हल्की मुस्कान अभी भी थी, मगर आँखों में एक अनजानी चुभन झलक गई। उसने जैसे ही खुद को संभाला, बात को वहीं अधूरा छोड़कर नज़रें फेर लीं।
उस पल माहौल एकदम बदल गया । रिश्तों की परिभाषा नई दिशा पकड़ चुकी थी—
अब इसमें सच्चा प्यार था, दोस्ती की गहरी मजबूती थी, और कुछ ऐसे अनकहे ख्याल… जो दिलों में तो थे, मगर ज़ुबान तक आना मुमकिन नहीं था।
थोड़ी देर बात करने के बाद वे लोग पार्क से वापिस आ गए।
सुमन के भीतर एक अजीब-सी हलचल थी। बाहर से उसने सहजता दिखा दी थी, पर रात को अकेले कमरे में बैठी तो मन बेकाबू हो उठा। हमेशा की तरह उसने डायरी लिखना शुरू किया।
आज अजीब लगा…
जब विकास ने कहा कि वो सुमि से प्यार करता है, तो दिल में हल्की-सी चुभन हुई।
शायद इसलिए… कि मैं हमेशा उसे अपने पास देखना चाहती थी।
लेकिन क्या ये सच में प्यार था? या सिर्फ उसकी मौजूदगी की आदत…?
वो आदत, कि हर बात सबसे पहले उसी से कहनी है, हर मुश्किल में उसके साथ खड़ा होना है।
मैं खुश हूँ कि मेरी दोस्त खुश है, सच में। पर न जाने क्यों… कहीं अंदर से जैसे एक खालीपन-सा महसूस हो रहा है।”
डायरी बंद करके उसने लंबी सांस ली।
“शायद यही प्यार और दोस्ती का फर्क होता है,” वह खुद से बुदबुदाई।
आज जाने क्यों उसे आशीष और अनामिका की याद आने लगी। काश! आशीष या अनामिका इधर होते जिनसे मैं अपने दिल की बात कर पाती। शायद वे मेरी बात समझते ।
चाह कर भी वह सुमि और विकास को अपने मन की पीड़ा नहीं बता सकती थी। ऐसा नहीं कि वो विकास से प्यार करती थी, पर एक नार्मल झुकाव तो था ही।
रात के सन्नाटे में डायरी के पन्ने तो बंद हो गए, पर सुमन के मन के सवाल अब भी खुले थे।
दूसरी तरफ़, उसी रात ज़िंदगी सुमि के लिए भी नए मोड़ बुन रही थी…
विपुल के घर से वापिस आते-आते उन लोगों को रात हो गयी थी, इसलिए सुमि विकास और सुमन से न मिल पाई।
आज उनको बताने के लिए उसके पास ढेरों बातें थीं , पर अफ़सोस, कल तक का इतंज़ार ज़रूरी था।
थोड़ी घबराहट विपुल ले कर भी थी, क्या विकास उसे सुन कर शंकित तो नहीं हो जायेगा। पिछले कुछ दिनों में वो जान चुकी थी उसके मामले में विकास की संवेदनशीलता हद से ज्यादा है।
ख़ैर, अभी तो उसे अगले दिन कॉलेज जाने की तैयारी करनी थी। मन में डर था कि कहीं दोस्त लोग विकास से जुड़ी बातें छेड़कर उसे परेशान न करें। मगर तसल्ली की बात यह थी कि अब विपुल उसके साथ था। यही भरोसा उसे भीतर से कुछ मज़बूत बना रहा था।
अगली सुबह सुमि कॉलेज पहुँची, तो सबकी नज़रें एक साथ उसी पर टिक गई। वीणा उसे न केवल दूसरों से बचाना चाहती थी बल्कि वो सुमि और विकास के बारे में सब कुछ जान भी लेना चाहती थी, इसीलिए वो उसको लगभग खींचती हुई दूसरी तरफ ले जाने लगी।
तभी सामने गेट से विपुल आता नज़र आया इसलिए चाहते न चाहते वीणा को रुकना पड़ा। वैसे, सुमि और विकास के बीच प्रोपोज़ करने वाली घटना के बाद किसी को उम्मीद न थी कि विपुल कॉलेज आएगा। बाकि लोग भी उधर ही आ गए थे।
विपुल ने सुमि की तरफ एक गिफ्ट पैक देते हुए कहा , “माँ ने भेजा है। “
सुमि ने बड़ी अदा से वो पैक अपने बैग में रख लिया।
सभी लोग हैरानी से उन्हें देख रहे थे। सुमि और विपुल एक-दूसरे की ओर देखकर हँस पड़े।
फिर विपुल ने सहजता से कहा— “इतना सस्पेंस मत बनाओ यार… सच तो ये है कि हम दोनों बचपन के दोस्त हैं।”
“क्या?” भीड़ से कई आवाज़ें एक साथ निकलीं।
पल भर को सबकी आँखों में आश्चर्य था। सब कुछ जानने के बाद वीणा शरारती अंदाज़ से बोली –
“मतलब, पूरी कहानी पलटने के बाद भी… हीरोइन तो तू ही निकली!”
वीणा ने हँसते हुए कहा।
“ऐसी हीरोइन… जिसे दूसरे कॉलेज का हीरो उड़ाकर ले गया।” , रिया ने जानबूझकर ताना मारते हुए विपुल की ओर देखा।
विपुल के चेहरे पर हल्की-सी मुस्कान थी, मगर उसकी आँखों में चोट साफ़ झलक रही थी।
वो चाहकर भी पलटकर कुछ नहीं बोला… बस गहरी साँस लेकर नज़रें झुका लीं।
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अंजु गुप्ता ‘अक्षरा’
क्रमशः