किस्मत भाग -7 अंजु गुप्ता ‘अक्षरा : Moral Stories in Hindi

सच में वो बिलकुल फ़िल्मी सीन ही था। सुमि अभी भी चांदनी फिल्म की हीरोइन की तरह शरमा रही थी। उसने चुपचाप अपने बाल कान के पीछे सरकाए और नज़रें झुका लीं। विकास के चेहरे पर एक अलग ही शरारती मुस्कान थी, जिसे सिर्फ सुमि ही समझ सकती थी।

इधर कशिश भीतर ही भीतर जल रही थी — न जाने क्या बात है इस सुमि में जो सारे इसी के पीछे भागते हैं। वरना कहाँ यह और कहाँ ये स्मार्ट लड़का ?   

पर प्रकटतः सबके सामने बोली – “मान गए सुमि! तुमने तो पूरे कॉन्फिडेंस के साथ मैदान मार लिया।”

“मुझे तो लगता था तुम घबरा के रो ही न दो और फिर हमेशा की तरह इस हीरो को तुम्हें बचाने के लिए मैदान में कूदना पड़े ।” कह उसने विपुल की तरफ देखा।
विपुल अभी भी गुस्से से सुमि को घूर रहा था।

पर इसी बीच विकास का दोस्त, समीर, बड़ी मासूमियत से सिर खुजलाते हुए बोला—
“भाई ! मान लिया मैं शर्त हार गया, इसलिए आज का बिल मैं दे दूँगा। लेकिन पहले एक बात साफ़ करो,…”

विकास के “हाँ ” बोलते वो फिर से शुरू हो गया, “कॉलेज में न जाने कितनी लड़कियाँ तुझ मरती हैं, पर तूने कभी तरफ नज़र उठाकर भी नहीं देखा। “
“पर इस लड़की को तूने सिर्फ शर्त जीतने के लिए … न, मैं मान ही नहीं सकता।”
“ये वही है न? वही लड़की… जिसके लिए तू न जाने कब से पागल है?”

विकास (थोड़ा चिढ़ते हुए) — “चल, इधर से हट।”
वो सुमि के लिए कोई प्रॉब्लम नहीं चाहता था। पर समीर का दिमाग जासूसी करने के मूड में था।

समीर ने ताली बजाकर कहा —
“भाई, यह तो साफ़ है… अगर प्रपोज़ करेगा तो अपनी सुमि को ही।”
“मतलब यह प्यारी सी लड़की… मेरी सुमि भाभी है?”

विकास ने समीर को घूरा, जिनमें गुस्सा कम पर अपनापन ज़्यादा था और हँस पड़ा।

फिर, एक पल के लिए सब कुछ थम गया। विकास ने धीरे से सुमि का हाथ अपने हाथ में ले लिया।
उनकी उंगलियाँ आपस में मिल गईं, और हल्की-सी गर्माहट ने दोनों के दिलों में मीठी-सी गुदगुदी भर दी।
मुस्कानें बिना शब्दों के सब कुछ कह रही थीं।

सबकी आँखें फैल गईं। कशिश ने मुँह पर हाथ रख लिया।
अनु और बाकी दोस्तों ने एक-दूसरे की ओर देखा, जैसे अचानक पूरी फिल्म का क्लाइमेक्स उनके सामने खुल गया हो।

समीर ने ज़ोर से सीटी बजाई—
“ओहो! मतलब यहाँ तो पूरी फिल्म पहले से चल रही थी… और हमें टिकट तक नहीं मिला?”

सभी दोस्त ठहाके मारकर हँस पड़े।

सुमि शर्म से लाल हो गई। उसने धीरे से विकास को कुहनी मारी—
“तुम्हें न, बस ड्रामे करना ही आता है ?”

विकास झुककर उसके कान में फुसफुसाया—
“अब और कितनी देर तक छुपाते? कभी न कभी तो सबको पता चलना ही था।”

सुमि ने नज़रें झुका लीं, लेकिन उसके होंठों पर हल्की मुस्कान थी। दोस्तों की हँसी, समीर की शरारतें और विकास का पज़ेसिव प्यार—सब मिलकर उस शाम को यादगार बना रहे थे।

फिर, विकास ने हल्की मुस्कान के साथ सुमि की ओर देखा और बोला—
“चलो, अब मुझे विपुल से मिलवाओ।”

सुमि चौंकी। उसे याद आया कि जब-जब वह विपुल का नाम लेती थी, विकास के मन में हल्की जलन उठती थी। एक बार तो उसने इसी वजह से उस पर गुस्सा भी किया था।

लेकिन आज, उसी विपुल के सामने सुमि का हाथ थामे खड़ा होना… विकास को गर्व और खुशी दे रहा था। दिल के किसी कोने में हल्की जलन अब भी बाकी थी—शायद लड़के ऐसे ही होते हैं।

धीरे से अपना हाथ छुड़ाकर सुमि ने अपने सभी दोस्तों का एक-एक कर इंट्रोडक्शन करवाया।

जब विपुल की बारी आई, तो विकास ने हाथ मिलाते हुए मुस्कराकर कहा—
“थैंक्स यार… सुमि की हमेशा मदद करने के लिए।
भले ही हम पहली बार मिल रहे हैं, लेकिन सुमि से तेरे किस्से रोज़ सुनता हूँ।”

विपुल ने हल्की मुस्कान के साथ सिर हिलाया। अब वो बिल्कुल सामान्य था। आखिर सुमि ने उससे कभी कोई वादा तो नहीं किया था।

विकास ने उस पल गहराई से महसूस किया कि उसके दिल की पुरानी जलन अब खुद-ब-खुद मिट रही थी। शायद यही हाल विपुल का भी था।

कुल मिलाकर आज की शाम कोई भूलने वाला नहीं था।
चूँकि देर हो रही थी, इसलिए एक-एक कर सबने अलविदा कहना शुरू कर दिया।

तभी, विदा लेते वक्त वीना ने धीरे से मुस्कुराकर कहा—
“बाय, जिज्जू!” और सुमि को घूरते हुए बोली , “तेरी खबर तो मैं कॉलेज में लूँगी, मुझसे छुपाया … अपनी बेस्ट फ्रेंड से। “

सुमि ने उसे घूरा, तो वीना हँसते-हँसते भाग गई।

उसकी बात सुन, विकास मुस्कराया। फिर थोड़ा गंभीर होते हुए सुमि से बोला —
“तुमने हमारे बारे में सुमन को कुछ बताया या नहीं!”

सुमि ने “न” में ज़बाब दिया।
बस ये ख्याल दोनों के चेहरों का रंग उड़ा गया था।
सुमन, जो सुमि की सबसे क्लोज़ दोस्त थी, अगर उसे किसी और से यह बात पता चली तो? पर कौन बताए,
कैसे बताएँ—यही सोचकर दोनों की हालत ख़राब हो रही थी।

सुमि एक और बात को लेकर थोड़ी बेचैन थी। उसे हमेशा लगता कि सुमन के दिल में विकास के लिए कुछ भावनाएँ हैं। यही सोचकर वह उलझी रहती—क्या उसे इस बारे में विकास से बात करनी चाहिए या नहीं?

अचानक चलते-चलते विकास मुस्कुराया—
“तुम्हें एक राज़ बताऊँ? आशीष… सुमन को पसंद करता है।”

सुमि तुरंत ठिठक गई— “क्या? तुम्हें किसने बताया? आशीष ने?  वो एक साथ बहुत सारे प्रश्न कर बैठी।

विकास के हामी भरते ही, आँखें नचाते हुए बोली— “मतलब तुम लड़के हमारे दोस्त थे या हम पर ही आशिकी झाड़ रहे थे?”

विकास हँस पड़ा—
“पागल! समझ ले, घर की अमानत घर में ही रह गई।”
फिर खुद ही अपनी बात पर खुलकर हँस दिया।

सुमि ने उसे गुस्से से देखा, पर उसके होंठों पर मुस्कान थी — जैसे अचानक उसके दिल से कोई भारी बोझ उतर गया हो।

थोड़ी दूर जाकर उन्हें बस मिल गई। आधे घंटे का सफ़र कब हँसी–मज़ाक और नोकझोंक में बीत गया, दोनों को खुद भी पता न चला।

जब वे कॉलोनी पहुँचे, तो रात की ख़ामोशी और पीली लाइटों के बीच दोनों साथ-साथ चल रहे थे।

गेट के पास सुमि रुकी तो विकास ने हल्की मुस्कान के साथ कहा—
“जल्दी जाओ सुमि… वरना दिल तो कह रहा है तुम्हें अंदर भेजने की जगह बस अपनी बाँहों में रोक लूँ।”

सुमि उसकी बात सुनकर झेंप गई। आँखें झुका कर बोली—
“तुम्हें तो हमेशा से आदत है न… मुझे चिढ़ाने की। बचपन में भी और अब भी।”

विकास धीरे से मुस्कराया और गंभीर स्वर में बोला—
“फर्क बस इतना है सुमि… बचपन में तुझे हँसाने के लिए चिढ़ाता था, और अब तुझे अपने पास रखने के लिए।”

सुमि का चेहरा लाल हो उठा। 

विकास हँस पड़ा, लेकिन उसकी आँखों में वो अनकही मोहब्बत झलक रही थी, जो शब्दों से कहीं ज़्यादा कह रही थी।

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अंजु गुप्ता ‘अक्षरा’

क्रमशः

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