रात का पूरा वक़्त सुमि के लिए किसी सपने जैसा बीता था। पिछली शाम की हर एक बात उसके दिल के कोने-कोने में गूंज रही थी। विकास का — “आई लव यू” कह उसे बाहों में भर लेना… बार-बार उसकी धड़कनों को तेज़ कर देता था ।
नींद तो जैसे उसकी आँखों से कोसों दूर थी। तकिये पर सिर रखे वह बार-बार करवटें बदलती रही। आँखें मूँदती तो वही नज़ारा सामने आ जाता—विकास की आँखों की गहराई, उसकी बाहों की मजबूती, उसकी आवाज़ का कंपन और माथे पर चुंबन ।
सुमि डाइनिंग टेबल पर बैठी चुपचाप चाय की चुस्कियाँ ले रही थी। बार-बार उसकी नज़र दरवाज़े की तरफ़ चली जाती—जैसे किसी का इंतज़ार हो।
माँ ने रसोई से झांककर मुस्कुराते हुए कहा— “क्या बात है, सुमि? कोई आने वाला है क्या?”
सुमि झेंपकर बोली— “नहीं माँ, बस ऐसे ही।”
माँ ने हलवे की कड़छी चलाते हुए कहा— “कल आशीष की मम्मी मिली थीं। कह रही थीं, काफ़ी खुश है वो अपने कॉलेज में… लेकिन घर की याद बहुत सताती है उसे। शायद अगले हफ़्ते आ भी जाए। और हाँ, तुम्हारी अनामिका की मम्मी से कोई बात हुई? कैसी है वो?”
“बस उन्हीं के घर जाने की सोच रही थी। ” बाहर जाने का बहाना मिल चुका था उसे।
सुमि ने जैसे ही बाहर कदम रखा, सामने से अनामिका की मम्मी आती दिखीं और अनामिका की ख़ोज ख़बर के लिए बाहर जाने का बहाना भी फुस्स हो गया।
वो पलटकर वापिस आ गई। दरवाज़ा बंद करते ही उसकी बेचैनी और बढ़ गई थी। काश! आंटी की जगह विकास दिख जाता… और उसे देखकर यह बेचैन दिल थोड़ा ठहर जाता।
दिन जैसे-तैसे बीतता रहा। किताबें खोलीं तो शब्द धुंधले लगे, टीवी चलाया तो आवाज़ें अजनबी सी लगीं। हर घड़ी घड़ी सुई की तरह चुभ रही थी। लेकिन जैसे ही शाम ढलने लगी, उसका दिल और जोर से धड़कने लगा। अब तो सिर्फ एक ही ख्याल था—वो था पार्क, और वहाँ उसका इंतज़ार करता विकास…
अलमारी खोलकर उसने कपड़े उलटे पुलटे। सुंदर सी पीली सलवार-कुर्ती चुनी। बालों को आधा खुला छोड़ दिया। हल्का-सा काजल लगाया।
आईने में खुद को देखकर उसे पहली बार लगा जैसे वह सच में बदल रही है। खुद-ब-खुद मुस्कुरा दी।
शाम का वक़्त था, हल्की-सी हवा चल रही थी। जैसे ही वह अंदर दाखिल हुई, उसकी नज़र सबसे पहले विकास पर पड़ी। वह एक बेंच पर बैठा उसका इंतज़ार कर रहा था। सफेद शर्ट और नीली जीन्स में हमेशा की तरह बेहद सधा हुआ और आत्मविश्वासी। सुमि का दिल एक पल को जैसे रुक-सा गया।
विकास ने उठकर मुस्कुराते हुए कहा— “अरे वाह, मिस गुप्ता! आज तो आप पूरे पांच मिनट लेट हो गईं। आज तो बड़ी तैयार शैयार हो कर आई हैं , कोई खास बात है क्या ?”
सुमि ने सिर झुका लिया। होंठों पर हल्की मुस्कान थी पर आवाज़ नहीं निकली।
विकास ने चुटकी लेते हुए कहा— “लगता है कल नींद नहीं आई ?”
सुमि के गाल और भी लाल हो गए। उसने बस धीरे से सिर हिलाकर ‘ना’ कर दिया, पर आँखें झुकी रह गईं। उसे खुद समझ नहीं आ रहा था कि कल तक जो लड़का उससे बेहद तमीज़ और सहजता से बात करता था, एक ही दिन में उसके बात करने का तरीका इतना बदल कैसे गया है। कल रात की बातें, अब भी उसके कानों में गूंज रही थीं—“आई लव यू”… और उसके बाद विकास का उसे अपने सीने से लगाना।
आज वही विकास उसकी आँखों में देखकर मुस्कुरा रहा था, जैसे बरसों से उसकी धड़कनों की भाषा समझता हो।
सुमि को हैरानी हो रही थी—“ये वही विकास है, जिसके सामने मैं मज़ाक भी कर लेती थी, जिस पर गुस्सा भी निकाल देती थी… फिर आज मैं हर शब्द बोलने से पहले क्यों झिझक रही हूँ? क्यों मेरे होंठ बार-बार थरथराने लगते हैं? क्यों आँखें मिलाने से पहले दिल इतनी तेज़ी से धड़कने लगता है?”
उसका मासूम मन पहली बार उस अनजाने जादू को महसूस कर रहा था, जहाँ दोस्ती और प्यार की सरहदें धीरे-धीरे मिटने लगती हैं। दोनों पार्क की पगडंडी पर साथ-साथ चलने लगे।
उसने आँखों में नटखटपन भरते हुए कहा — “तो मैडम, कल की रात कैसी रही? सपनों में गुज़री या आराम से?”
सुमि ने चौंककर उसकी ओर देखा। विकास के चेहरे पर शरारत थी।
अपनी बालों की लट कान के पीछे सरकाते हुए सुमि धीरे से बोली—“बस… नींद नहीं आई।”
विकास ने नकली हैरानी जताते हुए हल्के से सीटी बजाई— “ओहो! मतलब मेरी वजह से? अच्छा है… किसी को तो याद रहा मैं।”
सुमि ने होंठ काटे, हँसी दबाई और बोली— “ज़्यादा उड़ो मत… वजह कोई और भी हो सकती है।”
विकास ने आँखें चौड़ी कर नाटकिया अंदाज़ में कहा— “मतलब! मैं रातभर जागता रहा, और तुम किसी और के बारे में सोच रही थीं?”
सुमि ने तुरंत घूरकर देखा— “अरे… ऐसी बात नहीं है।”
विकास उसके पास आकर हँसते हुए बोला— “फिर एक काम करो, कल तो तुमने सिर्फ आँखों से हाँ बोली थी… आज उसे लफ्ज़ों में बोल दो।”
“जानती हो सुमि… अगर मैंने पहले ही अपना दिल खोल दिया होता, तो शायद हम उतने ही क़रीब आ गए होते,
जितने कि कल अचानक वो कुछ पलों में आ गए थे… फर्क बस इतना होता कि तब पास आने का बहाना इत्तेफ़ाक़ नहीं, तुम्हारी ज़िद होती… और मैं वैसे ही मुस्कुराते हुए हार मान लेता।” विकास शरारत से मुस्कुराने लगा।
सुमि ने उसे कनखियों से देखा।
कुछ देर दोनों चुप रहे। बस दिलों की धड़कनें और हवा की सरसराहट उनके बीच बातचीत कर रही थीं।
यकायक विकास ने हँसते हुए कहा— “तो अब ये पक्का हो गया कि मिस गुप्ता, कि अगर तुम्हारी । बी कॉम की लैंग्वेज में बोलूं तो अब ऑफिशियली मेरी पार्टनर हो । कोई और तुम्हें क्लेम नहीं कर सकता।”
सुमि बोली — “यह मिस गुप्ता क्या लगा रखा है? सुमि क्यों नहीं बोल रहे आज?”
विकास के होंठों पर हल्की मुस्कान थी और उसने धीमे स्वर में कहा — “तो क्या… अभी से मिसेज़ विकास गर्ग बोलना ठीक लगेगा?”
सुमि जैसे ठिठक गई। उसके दिल से मीठी-सी गुदगुदी उठी, पर आँखों में हया की परछाईं तैर आई। उसने होंठ भींचे और झेंपते हुए बोली— “तुम बहुत गंदे हो…! मैं घर जा रही हूँ।”
असल में उसका मन भागने का नहीं था… बस अपने भीतर की बेचैनी और खुशी को छिपाने का था। वो चाह रही थी कि विकास उसके मन की हलचल न पढ़ पाए।
वह जैसे ही खड़ी हुई, सामने सुमन नज़र आई।
“क्या बात है, कोई सीरियस मीटिंग चल रही थी क्या? मुझे देखते ही चुप्पी क्यों साध ली तुम दोनों ने?”
सुमि एकदम सकपका गई और जल्दी से बोली— “अरे… ऐसी कोई बात नहीं है।”
सुमन ने उसकी हालत भांप ली और हल्की मुस्कान दबाते हुए जिज्ञासु स्वर में बोली— “विकास, कल तुम सुमि से कुछ बहुत ज़रूरी बात करने वाले थे न? इतनी क्या सीक्रेट बात थी?”
विकास ने मुस्कुराते हुए पहले सुमन की ओर देखा, फिर सुमि की ओर एक शरारती नज़र डाली और धीमे से कहा— “वो तो… बेहतर होगा कि तुम अपनी बेस्ट फ्रेंड से ही पूछ लो।”
सुमन ठिठक गई। उसके होंठों पर हंसी थी, लेकिन मन के भीतर हल्की टीस उठी—“तो मतलब सचमुच कुछ खास है इनके बीच… और मैं ही बेखबर हूँ।”
वो चाहकर भी विकास से नज़रें हटा नहीं पा रही थी। विकास की आँखों में छिपी चमक अब साफ़ सुमि की ओर झुक चुकी थी। यह देख सुमन का दिल एक पल को भारी हो गया।
विकास और सुमि, दोनों ही हल्के से असहज हो गए थे । दोनों के चेहरों पर झेंप थी, जैसे कोई राज़ छुपाना चाह रहे हों। आखिरकार तीनों बचपन से दोस्त थे।
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अंजु गुप्ता ‘अक्षरा’
क्रमशः