किस्मत भाग -4 अंजु गुप्ता ‘अक्षरा : Moral Stories in Hindi

कॉलेज का वातावरण अब पूरी तरह रंग पकड़ने लगा था। विद्यार्थियों ने अपनी-अपनी मंडलियाँ बना ली थीं—कहीं हँसी-ठिठोली के साथ चाय की चुस्कियाँ, कहीं किताबों के बीच गहरी बहसें, और कहीं क्लासरूम में सवालों-जवाबों की आवाज़ें।

इसी दौरान एक दिन क्लास में घोषणा हुई – “स्टूडेंट्स! हमें इस क्लास का प्रतिनिधित्व करने के लिए दो क्लास रिप्रेज़ेन्टेटिव चुनने हैं। ये स्टूडेंट्स क्लास की ओर से फैकल्टी तक अपनी राय पहुँचाएंगे और अनुशासन बनाए रखने में मदद करेंगे।”

यह सुनकर क्लास में उत्सुकता की लहर दौड़ गई। बहुत से छात्रों ने अपना नाम आगे कर दिया। गुपचुप राजनीति भी चल रही थी कि कौन किसे वोट देगा। नतीजे वही थे जिसकी पहले से उम्मीद थी— सबसे ज़्यादा वोट कशिश और विपुल को मिले थे।

क्लास तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।

विपुल ने सहजता से हाथ बढ़ाकर कशिश से हाथ मिलाया । कशिश की मुस्कान में एक अजीब सी चमक थी। उसके मन के भीतर जैसे आतिशबाज़ी फूट रही थी। यही तो चाहती थी वो—हर रोज़ विपुल से मिलने-बैठने का बहाना।

इसी दौरान कॉमर्स विभाग की तरफ़ से घोषणा हुई कि सभी छात्रों को ग्रुप प्रोजेक्ट देना है। चार–चार छात्रों की टीम बनानी थी। 

वीणा, प्रियांश और विपुल तो पहले से ही एक टीम थे, सबको यही उम्मीद थी कि कशिश, क्लास प्रतिनिधि बनने के बाद, सीधे विपुल के ग्रुप में शामिल होगी। लेकिन वीणा और सुमि अच्छे दोस्त थे। यानी ग्रुप बना—विपुल, प्रियांश, वीणा और सुमि का ।

अपने आप को उनके ग्रुप का हिस्सा न बना देख, कशिश के चेहरे का रंग उतर गया। उसके चेहरे पर नकली मुस्कान तो थी, पर आँखों में मायूसी साफ़ थी। पर उसे लेने के लिए बहुत सारे दूसरे स्टूडेंट्स तैयार थे।

इधर लाख कोशिश करने के बावजूद वीणा प्रियांश की तरफ़ खिंची जा रही थी। उनकी नोंकझोंक की वजह से सुमि और विपुल को ही सारे प्रोजेक्ट का भार संभालना पड़ रहा था। विपुल भी बार – बार अपने मन की बात सुमि तक पहुँचाने की कोशिश करता रहता था, पर सुमि अक्सर बात पलट देती । 

आख़िरकार वो दिन भी आ गया जब सभी ग्रुप्स को प्रेज़ेंटेशन देना था। ज्यादातर सभी ग्रुप्स ने अच्छा प्रदर्शन किया था, कुछ एक छात्र घबरा भी गए थे, पर साथियों की हौंसला अफजाई से उनकी हिम्मत भी बढ़ गयी थी। वीणा, प्रियांश, सुमि और विपुल का प्रोजेक्ट बेस्ट प्रोजेक्ट चुना गया था और उनकी टीम “परफेक्ट टीम” कहलाई।

इधर क्लास रिप्रेजेन्टेटिव बनने के बाद कशिश, विपुल के करीब आने की कोशिश कर रही थी, मगर विपुल के लिए कशिश सिर्फ़ क्लास-फेलो थी। 

“तुम बहुत सीरियस रहते हो पढ़ाई में। थोड़ा मस्ती भी किया करो। और अब तो प्रोजेक्ट भी ख़त्म हो गया है।” वह विपुल से बोली। 

विपुल हँसकर बोला — “अरे, मस्ती तो क्लास में ही बहुत हो जाती है। इसलिए जीवन में थोड़ा सीरियस होना भी ज़रूरी है।”

इधर एक शाम सुमन और सुमि दोनों सहेलियाँ पार्क में बैठे बातें कर रहीं थीं। दोनों ओर कतार में लगे ऊँचे-ऊँचे पेड़ धीरे-धीरे हवा में झूम रहे थे। पार्क लगभग खाली ही था।

सुमि के मन की शांति भंग करती सुमन बोली, “एक बात बताऊँ — “मुझे लगता था विकास तुझे पसंद करता है। “

सुमि ने चौंककर पूछा— “क्या? तुझे कैसे पता?” वह सुमन की ऐसी ब्रेकिंग न्यूज़ पर हैरान थी। “क्या उसने तुझे कुछ कहा? कुछ रुक कर उसने पूछा।

सुमन के इंकार करने पर सुमि ने धीरे से कहा — “फिर तूँ यह कैसे कह सकती है? बल्कि वो तो आजकल मुझसे चिढ़ा बैठा है। देखा नहीं कितने गुस्से से बात करता है। “

“मुझे लगता है कि वो तेरे से इसलिए नाराज है क्योंकि तू… तू आजकल कहीं और उलझ रही है।” सुमि को समझ नहीं आरहा था कि सुमन उसे बता रही है, मन टटोल रही है या कुछ समझाना चाहती है।

सुमि ने घबरा कर कहा— “नहीं-नहीं! ऐसा कुछ नहीं है … … मेरे मन में न तो विकास और न ही विपुल के लिए कुछ है।”

सुमन ने उसका हाथ थाम लिया। “काश तू खुद समझ पाती। मुझे लगता है दोनों के साथ, तेरी दोस्ती  दोस्ती से थोड़ी आगे बढ़ रही है । अपने मन को टटोल कि तुझे क्या चाहिए।”

शायद सुमन सही थी।

सुमि खुद अपनी फीलिंग्स समझ नहीं पा रही थी। विकास उसे भी अच्छा लगता था — पर अभी तक विकास ने खुल कर उसने कुछ भी न कहा था, और कॉलेज में विपुल के साथ हर बार हीरो – हीरोइन वाली सिचुएशन बन जाती थी । पर फिर भी उसके साथ वो ज़्यादा कम्फ़र्टेबल फ़ील नहीं करती थी ।

अभी सुमि मन ही मन यह बातें सोच ही रही थी कि सामने से विकास आता दिखा ।  

यह  देख सुमन यकायक उठ खड़ी हुई—“मैं चलती हूँ, सुमि… देर हो रही है।”

इससे पहले सुमि कुछ कहती,  “मुझसे तुमसे कोई ज़रूरी बात करनी है, थोड़ी देर बैठोगी?” विकास बोल उठा ।            उसकी नज़रें गहरी थीं, जैसे आज किसी ठोस इरादे के साथ आया हो।  

सुमन वहाँ से निकल चुकी थी। 

वो सुमि …” विकास ने कहना शुरू ही किया था कि अचानक इंद्र आ धमका।

“वाह! वाह! क्या सीन है…” उसने लंबा खींचकर कहा। “तन्हा सा पार्क, शाम का वक्त और अकेली लड़की – अकेला लड़का  … कुछ ज़्यादा ही खास नहीं हो रहा क्या?”

सुमि झेंपकर वहां से जाने लगी, पर विकास ने उसे रोका और सीधा इंद्र की तरफ़ देखा — “इंद्र, अपनी ज़ुबान संभाल। बहुत हो गई तेरी फालतू बातें।”

इंद्र हँसा, मगर उसकी हँसी में चुनौती थी। “और तू कौन होता है मुझे रोकने वाला? क्या रिश्ता है तेरा इससे, जो हर बार इसके लिए पंगे लेता फिरता है? ”

विकास की आँखों में आग उतर आई और वो इंद्र के ठीक सामने खड़ा हो गया — “रिश्तों का हिसाब किताब तुझ जैसे लोगों की समझ से बाहर है।”

इंद्र सुमि की तरफ़ बढ़ा । उसी पल विकास ने सुमि का हाथ कसकर पकड़ कर झटके से अपनी ओर खींच लिया। यह इतना अचानक हुआ कि सुमि संतुलन खो बैठी और सीधे विकास के सीने से आ लगी।

उसका चेहरा विकास के कंधे पर टिक गया था। इतनी नज़दीक कि वह उसकी धड़कनों की तेज़ रफ़्तार साफ़-साफ़ सुन पा रही थी।

“अगर गलती से भी सुमि के क़रीब फटकने की कोशिश भी की, तो तेरा बुरा हाल होगा। समझा?”

इंद्र के चेहरे पर पसीना छलक आया। वो जनता था कि विकास ब्लैक बेल्ट होल्डर है।

“ठीक है… ठीक है… तू इतना ताव मत खा। मैं जा रहा हूँ।” हकलाते हुए उसने नज़रें चुराईं और खिसक लिया।

अब पार्क में फिर वही शांति थी—बस हवा की सरसराहट और दो दिलों की तेज़ धड़कनें।

सुमि का दिल धड़क रहा था। वह काँप रही थी—ये डर था या विकास की इतनी नज़दीकी का असर, या कुछ और … वह खुद नहीं समझ पा रही थी।

विकास ने उसके चेहरे की तरफ़ देखा, उसकी आँखों में गहराई से झाँका। फिर हल्की मुस्कान के साथ बोला— “अब हटोगी भी या ऐसे ही चिपकी रहोगी?”

सुमि सकपका गई। उसके गाल और लाल हो गए।

उसने झट से हटने की कोशिश की, पर विकास ने धीरे से अपनी पकड़ मजबूत कर ली ।

“जानती हो, अगर पहले पता होता कि बाँहों में लेने से तू इतनी प्यारी लगने लगेगी… तो शायद बहुत पहले ही ऐसा कर लेता।”उसकी आवाज़ में शरारत थी ।

सुमि की साँसें अटक गईं थी और उसने नज़रें झुका लीं।

“सुमि…” विकास ने रुकते-रुकते कहा, उसकी आवाज़ में गहराई थी, कई बार चाहा था कह दूँ, मगर डर था… कहीं तूँ मना न कर दे , इसलिए अभी तक न बोला था।। पर आज… सुमि… मैं तुझसे प्यार करता हूँ। हाँ, यही सच है—I love you.”

सुमि का दिल इतनी ज़ोर से धड़क रहा था कि जैसे पूरी दुनिया सुन सकती हो। होंठ काँप रहे थे, पर कोई शब्द बाहर न आया।

विकास ने धीरे से उसके माथे को चूमा।

“बस… अब कुछ मत कह। तेरी ये मुस्कान ही मेरे लिए जवाब है।”

पार्क की चाँदनी, झूमते पेड़ और महकते फूल—उस पल उनकी धड़कनों का संगीत सुन रहे थे। दोस्ती की डोर अब प्यार में बदल चुकी थी।

आगे की कहानी पढ़ने के लिए लिंक पर क्लिक करे-

kismat-part-3-anju-gupta-akshara

अंजु गुप्ता ‘अक्षरा’ 

क्रमशः 

Leave a Comment

error: Content is protected !!