किस्मत भाग -3 अंजु गुप्ता ‘अक्षरा’ – Moral Stories in Hindi

अभी तक हमने पढ़ा कि सुमि ने कॉलेज में एडमिशन ले लिया है और अपने दोस्तों के साथ वो अपनी दिन भर की दिनचर्या शेयर करती है और उसका दोस्त विकास उसे सोच समझ कर नए दोस्त बनाने की सलाह देता है। अब आगे …

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कॉलेज का दूसरा दिन था। सुबह की क्लास के बाद लंच ब्रेक में कॉरिडोर में हल्की-हल्की चहल-पहल थी।

सुमि अपने दोस्तों के साथ कैन्टीन की तरफ जा रही थी। तभी पीछे से आवाज़ आई – “ओ हो… ये तो वही मासूम जूनियर है, जिसे कल इसके हीरो ने बचाया था।”

सुमि ने पीछे मुड़कर देखा—महेश के ग्रुप के दो सीनियर खड़े थे।

“क्या बात है जूनियर! आज अकेली घूम रही हो, किधर है तुम्हारा हीरो?” पहले सीनियर ने कहा।

तभी उन्होंने विपुल सामने से आता नज़र आया। तो दूसरे सीनियर ने हंसते हुए कहा—”अरे यह हीरो…  फिर से आ गया हीरोइन को बचाने! चलो, आज इनका इंटरव्यू लेते हैं। “

हाथ जेब में, चेहरे पर वही बेपरवाह मुस्कान लेकिन आंखों में हल्की सी चेतावनी लिए, विपुल ने आराम से कहा— “हीरो का काम ही हीरोइन को बचाना होता है। और हाँ… इंटरव्यू तो हो जाएगा, लेकिन ध्यान रखना… रैगिंग के चक्कर में किसी का एडमिशन कैंसल न हो जाए।”

बात का मतलब समझते ही दोनों सीनियर जल्दी-जल्दी बोले—”अरे यार, मज़ाक कर रहे थे बस!” और वहां से खिसक लिए।

सुमि के “थैंक्यू” बोलने पर विपुल मुस्कुराते हुए बोला —“मुझे क्यों लगने लगा है कि मैं तुम्हारा पर्सनल बॉडीगार्ड हूँ।”

तभी पीछे से तंज भरी आवाज़ आई—“और बन तो रहे ही हो!”

दोनों ने मुड़कर देखा—कशिश थी, हाथ में पर्स, बालों को झटकते हुए एकदम फिल्मी अंदाज़ में खड़ी। उसकी एंट्री ऐसी थी जैसे पूरे कॉरिडोर की नज़रें उसी पर टिक जाएँ और उसकी नज़र … उसकी नज़र सीधी विपुल पर थी, जैसे सुमि वहां मौजूद ही न हो।

विपुल ने हल्की मुस्कान दी—“हाय कशिश… तुम यहां?” फिर उसके लाल रंग की ड्रेस को देख शरारत से बोला, “अरे कशिश! आज तो लग रहा है कॉलेज में ट्यूलिप गार्डन खिल गया।”

कशिश हंसकर—“फ्लॉवर तो खिले रहेंगे, बस माली सही होना चाहिए… और माली हीरो टाइप हो तो क्या बात!”

सुमि चुपचाप खड़ी थी। उसके होंठों पर बनावटी मुस्कान थी, पर दिल में चुभन सी महसूस हो रही थी। उसे लग रहा था कशिश की बातें सिर्फ मज़ाक नहीं, बल्कि सीधा इशारा हैं।

कशिश ने आगे बढ़कर फिर तंज कसा— “वैसे विपुल, एक दिन मुझे भी बचा लेना… ताकि मैं भी सबको कह सकूँ—‘मेरा हीरो सिर्फ मुझे ही देखता है’। वैसे भी…” (सुमि की तरफ देख आँखें सिकोड़ते हुए) “किसी एक को ही यह अधिकार क्यों मिले?”

विपुल ने मज़ाक में आंख मार दी—“सोच लीजिए मैडम, हीरो के पास हीरोइन की लिस्ट लंबी है… नंबर लगवाना पड़ेगा।”

कशिश खिलखिलाई—”मुझे तो स्पेशल परमिशन अपने आप ही मिल जाएगी।”

इन बातों से असहज सी सुमि —“चलती हूँ, क्लास का टाइम हो रहा है…” कह वहां से हट गई।

जैसे ही विपुल जाने को हुआ, “अरे, क्लास तो रोज़ होती है, पर हीरो से मिलना रोज़ कहाँ होता है?” कह कशिश ने उसे रोक लिया।

शाम को रोज़ की तरह जब सुमन और सुमि पार्क में मिलीं, तो सुमन ने छेड़ते हुए पूछा— “तो मैडम, तो क्या आज फिर हीरो ने बचा लिया? 

सुमि ने हंसकर कहा—“तू भी ना… पर सीरियसली, जब भी सीनियर सामने आ जाते हैं, ये लड़का पता नहीं कहाँ से बचाने आ जाता है। ”

सुमन ने आँखें नचाईं— “अरे वाह! मतलब अब तूने उसकी हरकतों पर गौर करना शुरू कर दिया है कि कब, कहाँ, कैसे आता है?”

“हीरोइनें अक्सर ऐसे ही छोटी छोटी बातों को भी याद रखती हैं।” कहते हुए जोर से खिलखिला उठी।

सुमि ने शर्माते हुए उसके बाजू पर हल्की-सी चपत लगाई— “चुप कर, ऐसा कुछ नहीं है। बस… वो मदद कर देता है इसलिए याद रह जाता है।”

सुमन शरारत से हँसते हुए बोली— “हम्म्म… वो मदद करता है, और तू शरमा जाती है। वैसे एक बात तो बता कहीं वो “शर्मा” तो नहीं है।”

 “हाँ ! वो शर्मा ही है । विपुल शर्मा ” सुमि का इतना कहना ही था कि दोनों सहेलियाँ ज़ोर से हँस पड़ीं।

उस हँसी में उनकी दोस्ती की गर्माहट और दिनभर की थकान का सारा बोझ उतर गया था ।

सुमि ने अभी सुमन को कोई नया किस्सा सुनाना ही शुरू किया था कि तभी सामने से विकास आता हुआ दिखाई दिया। 

सुमन के दिल में हल्की-सी टीस उठी। उसने सोचा—किस्मत कितनी मेहरबान है सुमि पर। एक ओर नया हीरो, जो सबके बीच चमकता है, और दूसरी ओर पुराना साथी, जो चुपचाप उसकी हर बात में उसका साया बना खड़ा है। सचमुच, सुमि किस्मतवाली थी—उसकी परवाह करने वाले दोनों ही तरह के लोग उसके आसपास मौजूद थे।

इधर कॉलेज के दिन अब अपनी असली रफ़्तार पकड़ने लगे थे। पहले हफ़्तों की झिझक अब धीमे-धीमे गायब हो रही थी, और क्लास में हँसी–मज़ाक का शोर बढ़ने लगा था।

सुमि, वीणा, प्रियांश, विपुल, सेजल और मेहुल का ग्रुप एकदम घुलमिल गया था। सुमि और वीणा का स्वभाव काफी मिलता था, इसलिए जल्दी ही उनकी गहरी दोस्ती हो गई।

उधर, लड़कों के ग्रुप में विपुल और प्रियांश की दोस्ती सबसे चर्चित थी। कशिश ने भी अब विपुल पर ध्यान देना शुरू कर दिया। थोड़ी थोड़ी देर बाद सीट बदलकर उसके पास आना, बातों में तारीफ़ के तीर चलाना —ये सब उसकी रोज़ की हरकतें बन गईं।

एक दिन यह ग्रुप कैंटीन में बैठा था।

वीणा: “अरे प्रियांश, वो असाइनमेंट तो तूने अब तक दिया ही नहीं। पक्का मुझे जानबूझकर परेशान कर रहा है।”

प्रियांश (मुस्कुराते हुए): “क्या करूं, तू परेशान होती है तो बहुत क्यूट लगती है।”

बाकी सब “ओहो…” करते हुए छेड़ने लगे। वीणा ने आंखें घुमाईं, लेकिन गालों का गुलाबीपन छिपा न सकी।

मेहुल: “चलो, अब तुम दोनों भी कब तक बहाना बनोगे? वैसे ही सेजल और मैं तो आधिकारिक रूप से साथ हैं। और हाँ! यह बात कैंटीन से लेकर पूरे कॉलेज को पता होनी चाहिए।” कहकर फ़िल्मी स्टाइल में उसने सेजल की तरफ हाथ बढ़ाया।

थोड़ी हिचकिचाहट के साथ सेजल ने अपना हाथ मेहुल के हाथ में दे दिया। सब लोग “पार्टी दे मेहुल!” बोल-बोलकर चिल्लाने लगे।

तभी सुमि ने अपने टिफ़िन में पराठे–आचार निकला, तो कशिश ने तंज कसा— “सुमी, तुम तो बिल्कुल old fashioned हो! देखो ना, ये सलवार-कुर्ता और ये लंबी चोटी… ज़रा कॉलेज में रहते-रहते मॉडर्न भी बनो!”

सुमि को बात चुभ गए, इससे पहले वो कुछ कहती, विपुल हँसते हुए बोला —”Old fashioned नहीं, क्लासिक। और वैसे भी, स्टाइल अपने कम्फ़र्ट से बनता है, ट्रेंड से नहीं।”

विपुल की बात सुनकर पूरा ग्रुप एक-दूसरे को देखते हुए “इधर भी कुछ तो है” के इशारे करने लगा । मेहुल ने धीरे से प्रियांश से पूछा , “यार, तू तो विपुल का बेस्ट फ्रेंड है, इसके मन में क्या है ?”

प्रियांश: “समझ तो मैं भी रहा हूँ, लेकिन ये कहता है ‘बस दोस्त है’। वैसे देख लेना, एक दिन मानेगा ज़रूर।”

इधर घर पर भी, सुमन और विकास को भी इस बदलते समीकरण का अहसास होने लगा था। पहले सुमि उनसे उनकी बातें भी पूछती थी, पर अब ज़्यादातर बातें “विपुल ने ये कहा” या “विपुल ने ऐसे मदद की” पर खत्म होती थीं।

“आजकल तो तुम्हें बस उसी के बारे में बातें करनी आती हैं… कॉलेज में और कुछ होता ही नहीं क्या ?” विकास की आवाज़ में थोड़ी कड़वाहट था।

सुमि ने उसकी तरफ़ देखा, थोड़ा हैरान और थोड़ा खिन्न हो उसे समझाने की कोशिश करते हुए बोली, “ऐसा नहीं है, विकास, बस वो क्लासमेट है और हरदम मदद करता है।”

लेकिन विकास का चेहरा बता रहा था कि उसे ये तर्क ज़्यादा रास नहीं आया। उसे लग रहा था कि —कॉलेज की मस्ती के बीच दोस्ती की लकीरें और भावनाओं के रंग धीरे-धीरे गहरे होने लगे थे। और सुमन … चुपचाप बदलते हुए समीकरण में विकास की प्रतिक्रिया को समझने की कोशिश कर रही थी।

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अंजु गुप्ता ‘अक्षरा’

क्रमशः

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