“लो भागवान ! आ गए ट्रांसफर के आर्डर। चलो अब दिल्ली चलने की तैयारी कर लो।” सुमि के पिता जी घर में घुसते ही बोले।
“वाह ! क्या बात है । कब तक चलना है ?” सुमि की मां खुश हो कर बोली ।
जहाँ घर के सभी लोग दिल्ली जाने के नाम से खुश हो गए थे, नवमी कक्षा में पढ़ने वाली सुमि फिर से नए स्कूल, नए दोस्त बनाने के नाम से ही डर गयी थी । यह नहीं था कि सुमि पढ़ाई में अच्छी नहीं थी। दरअसल, हमेशा कक्षा में प्रथम आने वाली सुमि, एक सीधी-साधी सी अपने में ही गुम रहने वाली लड़की थी।
उसके घर में माता पिता के अलावा उसके दो बड़े भाई थे । घर के बाकी सदस्यों की अपेक्षा सुमि का रंग कुछ दबा सा था, इसलिए जाने अनजाने ही वह हीनग्रंथि से भर गयी थी और उसे नए लोगों से मिलने में झिझक होती थी ।
खैर, जाना तो था ही, जल्दी ही वो लोग दिल्ली शिफ्ट हो गए । घर के पास के ही स्कूल में उसका दाखिला भी हो गया था। आसपड़ोस के बहुत से बच्चे भी उसी स्कूल में पढ़ते थे। बचपन की मासूमियत कहो, खेलकूद और पढ़ाई में अव्वल होना या सुमि का दोस्ताना व्यवहार, जल्दी ही सुमि उन सबकी जान बन गयी । शाम का एक बड़ा हिस्सा दोस्तों के साथ गुजरने लगा ।
देखते ही देखते तीन साल निकल गए । और इन तीन सालों में उन सबकी दोस्ती में भी पक्की होती गई । सब अच्छे घरों के थे, इसलिए बढ़ती उम्र के साथ- साथ सभी का ध्यान अपनी पढ़ाई पर केंद्रित हो गया था । एक दूसरे की मदद करना और “हमेशा एक दूसरे की मदद के लिए तैयार रहना” यही उनके ग्रुप का “मोटो” था।
बारहवीं में पढ़ने वाले इस ग्रुप के सभी दोस्त किशोरावस्था से गुजर रहे थे । यह नहीं था कि उनके मन में एक दूसरे को लेकर कोई भावना न आई हों, पर कहीं दोस्ती न खो दें, यही सोच कर मन की बात मन तक ही रही और फिर … समय धीरे-धीरे अपनी चाल चलता रहा और अपना भविष्य बनाने के लिए सबने अपनी अपनी राह पकड़ ली ।
अनामिका ने मुंबई में माइक्रो बायोलॉजी में एडमिशन ले लिया तो सुमन ने साउथ दिल्ली के फैशन डिजाइनिंग इंस्टिट्यूट में। आशीष का आई आई टी कानपुर में बी – टेक में एडमिशन हो चुका था । विकास आईएएस अफसर बनाना चाहता था, इसलिए उंसने बीए में एडमिशन ले लिया था और अब द्वितीय वर्ष में पढाई के साथ -साथ शाम को आईएएस की कोचिंग क्लासेज भी ज्वाइन कर चुका था। सुमि ने भी दिल्ली यूनिवर्सिटी में बी कॉम में एडमिशन ले लिया था।
कॉलेज के गेट में कदम रखते ही सुमि का दिल और भी तेज़ी से धड़कने लगा। वह डरी भी हुई थी और उत्साहित भी । डर —नए माहौल में जाने का और उत्साह —नई जिंदगी में कदम रखने का। जैसा कि हर कॉलेज मे नये स्टूडेंट्स के साथ रैगिंग की जाती है, वैसे ही सुमि के कॉलेज में रैगिंग की जा रही थी। सीनियर स्टूडेंट्स ने नए लड़कियों और लड़कों को पकड़ रखा था । सुमि भी उसी ग्रुप में फंस चुकी थी और सच कहा जाए तो सुंदर सी तितलियों के ग्रुप में मासूम सुमि पर सीनियर्स की नज़र पड़ चुकी थी ।
सीनियर ग्रुप में से महेश नाम का लड़का, जो अपने दोस्तों में सबसे आगे चल रहा था, बड़े रौब से आगे आया। उसकी आंखों में अजीब-सा आत्मविश्वास और होंठों पर कुटिल मुस्कान थी।
वो सुमि के सामने खड़ा होकर बोला— “तो मैडम… नाम बताइए ज़रा? और ज़रा ऊँची आवाज़ में, ताकि पीछे खड़े सब लोग भी सुन लें। बोलो, क्या नाम है तुम्हारा, बेबी?”
उसका “बेबी” कहना सुनकर पूरी भीड़ में हल्की-सी खिलखिलाहट फैल गई। कुछ सीनियर्स सीटी बजाने लगे, तो कुछ ने इशारों में “ओहो!” कहकर माहौल और गर्म कर दिया।
सुमि ने सहमी नज़रों से इधर-उधर देखा। उसके गाल शर्म और डर से लाल हो चुके थे। धीरे से सिर झुकाकर, लगभग बुदबुदाते हुए कहा— “सुमि… सुमि गुप्ता।”
“जोर से बोलो न! ऐसे कैसे चलेगा?” महेश ने फिर टोका और अपनी आंखें चौड़ी करते हुए कहा—
“अच्छा… सुमि गुप्ता। बहुत प्यारा नाम है। तुम्हारी मासूमियत देखकर तो सच कहूँ, मन करता है कि बस तुम्हें देखता ही रहूँ… ।”
पीछे खड़े बाकी सीनियर्स ज़ोर से हंसने लगे। किसी ने कहा—“वाह भाई, आज तो महेश का दिल फिर से फिसल गया।”
महेश ने एक हाथ कमर पर रखकर, दूसरे हाथ की उंगली सुमि की तरफ़ इशारा करते हुए कहा—
“लेकिन… सिर्फ नाम बताने से काम नहीं चलेगा। हम लोग तो हमेशा नए जूनियर्स को कोई न कोई काम देते हैं। और तुम्हारे लिए तो बहुत आसान-सा काम है। तुम्हें बस… सबके सामने… एक छोटा-सा वाक्य बोलना है।”
सुमि की सांसें तेज़ होने लगीं। उसने घबराकर पूछा—“क..कैसा वाक्य?”
महेश ने आँख मारते हुए कहा— “कुछ मुश्किल नहीं है डियर। बस मुझे ज़रा प्यार से देखो और ऊँची आवाज़ में बोलो—‘I love you’। फिर देखना, आगे क्या-क्या करना है, वो मैं बाद में बताऊंगा।”
सुमि को काटो तो खून नहीं। “I love you” बोलना अपने आप में कोई बहुत मुश्किल बात नहीं थी, पर महेश की आंखों में चमकती कुटिलता और होंठों पर खेलती हुई मुस्कान ने उसके भीतर एक अजीब-सा डर भर दिया। उसे साफ़ समझ आ गया था कि यह सब महज़ मज़ाक भर नहीं है—रैगिंग के बहाने महेश कोई भी घटिया हरकत कर सकता है।
उसकी हथेलियाँ पसीने से भीगने लगीं। गला सूखता जा रहा था। घबराकर उसने इधर-उधर देखा, उम्मीद थी कि बाकी सीनियर्स में से कोई बीच-बचाव कर देगा, शायद उसे कोई दूसरा काम दे देंगे। लेकिन सभी के चेहरे पर या तो मौन था या बनावटी हंसी। सब जानते थे कि महेश इस ग्रुप का लीडर है और उसके सामने बोलने की हिम्मत किसी की नहीं थी।
महेश ने एक कदम और आगे बढ़ते हुए ज़रा ऊँची आवाज़ में कहा— “क्या हुआ? इतनी देर क्यों? चलो… शुरू हो जाओ! हम सब इंतज़ार कर रहे हैं।”
उसके लहज़े में आदेश भी था और धमकी भी।
सुमि का दिल जैसे ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा। उसे लगा अभी उसके गले से आवाज़ भी नहीं निकलेगी।
तभी अचानक पीछे से एक अलग-सी आवाज़ गूँजी— “सर… जल्दी कीजिए। क्लास का टाइम निकल रहा है।”
इतना सुनना ही था कि महेश चिल्ला कर बोला, “कौन बोला? जरा सामने तो आ ?”
तभी बेहद स्मार्ट और आँखों में चुलबुलाहट लिए एक लड़का सामने आ कर बोला – “जी सर, मैं बोला ।”
महेश – “चल साले, पहले नाम बता। “
वो लड़का – “जी विपुल नाम है मेरा”
महेश – तो चल, मेरे चरणों में अपना सर रखकर बोल “बड़े भाई! मुझे आर्शीवाद दीजिए कि मैं अपनी पढ़ाई अच्छी तरह कर सकूँ ।”
सबकी नजरें अब विपुल की तरफ उठ खड़ी हो गयीं थीं कि क्या मुसीबत मौल ले ली है इस लड़के ने। सुमि को न जाने विपुल बहुत जाना पहचाना लग रहा था। पर उसे याद नहीं आ रहा था कि उसने उसको कब और कहाँ देखा था ।
विपुल आगे बढ़ते हुए महेश के चरणों में झुकने की एक्टिंग करते हुए बहुत ही नाटकीय अंदाज में बोला, “बड़े भाई ! रिश्ता तो आपने गलत बांध दिया है, मैं तो जीजा हुआ ना । बाकि मुझे आपकी बहन सुमि पसंद है, आशीर्वाद देना कि मैं अपनी पढ़ाई अच्छे से कर सकूँ और फिर आपकी बहन का हाथ मांगने जल्दी ही आऊं।”
जैसे ही विपुल ने जीजा वाला डायलॉग बोला और सब हँस पड़े। महेश ने भी जब उसके शब्दों पर ध्यान दिया तो उसे समझ आ गया कि विपुल का क्या मतलब है । गुस्से से उसका चेहरा लाल हो गया । पर मैनेजमेंट के लोग उसी तरफ आ रहे थे, इसलिए रैगिंग करने वाली उनकी टीम को उधर से जाना पड़ा।
मौके का फायदा उठा कर विपुल भी दूसरे छात्रों के साथ अपनी क्लास की तरफ बढ़ गया ।
विपुल अभी अपनी कक्षा खोज ही रहा था कि पीछे से आवाज़ आई – “एक्सक्यूज़ मी”
“जी बोलिए” , वह पीछे मुड़ कर बोला ।
“यह रूम नंबर R017 कहां है ? आत्मविश्वास से लबालब वह लड़की बोली।
“क्या आप कॉमर्स स्टूडेंट हैं?” विपुल ने मुस्कुरा कर पूछा ।
“आपको कैसे पता?” हैरानी से वो लड़की बोली ।
“क्योंकि मैं भी कॉमर्स स्टूडेंट हूँ और R017 ही ढूंढ रहा हूँ” विपुल उसकी हैरानी दूर करते हुए बोला।
“तो फिर चलिए इकठ्ठे ही रूम-R017 ढूंढते हैं ।” शोख लड़की की आवाज़ और भी शोख़ हो गयी थी ।
अंजु गुप्ता ‘अक्षरा’
क्रमशः …….