किसी की नज़र ना लगे । – करुणा मलिक : Moral Stories in Hindi

रावी , कल छोटी बहू के मम्मी- पापा आ रहे हैं, नाश्ते – पानी का अच्छे से इंतज़ाम करके रखना । 

माँजी , क्या मेघा से पूछ लूँ कि आँटी- अंकल को क्या पसंद है, उन्हीं की पसंद का बना लूँगी ।

अरे वो बड़े लोग हैं । उनकी पसंद के चक्कर में  सामान भी ख़राब कर देंगी , ऐसा कर , नए व्यंजनों में हाथ आज़माने की कोशिश रहने दे , जो बनाती है ना उसे ही बना लेना । 

तभी मेघा और चंदन की गाड़ी रुकने की आवाज़ आई । सास तुरंत उठी और बाहर बरामदे में जाकर गाड़ी से उतरती बहू से बोली——

मेघा बेटा ! तुम्हारे मम्मी- पापा वैसे ही मिलने आ रहे हैं या कोई काम निकल गया इधर का ….. ना ना मैं तो वैसे ही पूछ रही हूँ। आने को तो कभी भी आ सकते हैं पर वो बहुत व्यस्त रहते हैं ना , बस इसलिए पूछ रही हूँ । 

मम्मी- पापा ? कल और यहाँ ? पर मैं और चंदन तो आज रात की फ़्लाइट से अहमदाबाद जा रहे हैं, वहाँ जॉब फ़ेस्टिवल का आयोजन किया जा रहा है । मेरे पास तो कोई इन्फ़ॉर्मेशन नहीं है मम्मी- पापा के आने की । 

आज दोपहर ही तो उनका फ़ोन आया था । मुझे लगा कि तुमसे बात हो चुकी होगी …..

चलिए…. मैं थोड़ा फ़्रेश होकर बात करती हूँ मम्मी से । रावी दीदी…दीदी! अपने हाथ की चाय पिला दीजिए । उसके बाद मैं आपकी हेल्प के लिए आ जाऊँगी किचन में……

नहीं मेघा ,  तुम दफ़्तर से थककर आई हो , फिर फ़्लाइट से जाना है, आराम कर लो । 

मेघा ,  जाने से पहले दस- पंद्रह मिनट  निकालकर नैतिक का होमवर्क करवा देना । हिंदी तो मैं पढ़ा दूँगी पर ये साइंस – मैथ्स  मेरे बूते से बाहर है । पैकिंग की भी चिंता मत करना बस बताती जाना , मैं सूटकेस में जमाती जाऊँगी । अरे हाँ, एक बात तो बताओ कल आँटी – अंकल आएँगे या नहीं क्योंकि……..

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ओ…ओ…. थैंक्यू दीदी, आपने याद दिला दिया , फ़ोन करके पूछती हूँ । 

माँ जी! मम्मी से बात हो गई है । वो लोग कल आ रहे हैं , मैंने बताया भी कि मैं और चंदन तो नहीं होंगे पर उन्होंने कहा कि उनका प्रोग्राम पक्का है । ख़ैर….. देख लेना , मेरी तो समझ से बाहर है । नैतिक! आजा बेटा , साइंस का होमवर्क करवा देती हूँ, बाक़ी बाद में दीदी करवा देंगी । 

रेवती और मेघा दोनों देवरानी- जेठानी इस तरह घुलमिल कर रहती थी कि कभी-कभी तो उनकी सास उषादेवी भगवान के सामने हाथ जोड़कर विनती करती—-

हे भगवान जी ! हमारे घर को किसी की नज़र ना लगे । मेरी दोनों बहुओं में यूँ ही प्यार- प्रीत बनाए रखना । 

सचमुच जब दो साल पहले एक अमीर परिवार की बेटी मेघा को चंदन ने जीवनसाथी के रूप में पसंद कर लिया था तो पूरा परिवार सहम गया था । 

इतने बड़े बिज़नेसमैन की इकलौती बेटी, लगता है कि परिवार के टुकड़े होने का वक़्त आ गया । चंदन ने सभी को बहुत समझाया कि मेघा बहुत ही यथार्थ से जुड़ी लड़की है , कोई उन लोगों की सादगी देखकर कह नहीं सकता कि इतने बड़े बिज़नेसमैन हैं पर घरवालों ने चंदन की बातों पर विश्वास नहीं किया । बेटे की ज़िद के आगे झुकना पड़ा और मेघा ब्याह कर आ गई । 

शुरू के दो- तीन महीने तो चंदन के घरवालों ने सोचा कि नई-नई बात है  इसलिए मेघा अच्छी बनने  का ढोंग कर  रही है पर धीरे-धीरे अहसास होने लगा कि मेघा सच में बड़ी समझदार और परिवार के सदस्यों को साथ लेकर चलने वाली लड़की है । अपने घर में भले ही कोई काम न किया हो पर ससुराल में हमेशा अपनी भागीदारी देने का प्रयास करती थी। दोनों बहुओं ने बड़ी ही सुघडता और तालमेल का परिचय दिया था । 

पर आज उषादेवी चिंतित हो गई जब दोपहर के समय अचानक मेघा की मम्मी ने अपने आने की खबर दी । 

—- जाने क्या बात है रावी ? क्या तुझसे कुछ बताया मेघा ने ?

— नहीं माँजी, आप क्यों फ़िक्र करती हैं? हो सकता है कि इधर का कोई काम हो , और सोचा हो कि मिलना भी हो जाएगा । 

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पर रावी की बातों से उनका मन शांत नहीं हुआ । रात के खाने के बाद चंदन और मेघा तो चले गए और उषादेवी और उनके पति देर तक तरह-तरह की संभावनाएँ प्रकट करते रहे । 

अगले दिन सुबह ही रावी के पति अमृत माता-पिता के कमरे में जाकर बोले —-

ओह , मैं तो बताना ही भूल गया था कि आज ऑफिस के सभी कर्मचारियों के परिवार के मेल-मिलाप का दिन निश्चित किया गया है……

अमृत, क्या बात कर रहे हो ? चंदन के सास- ससुर आ रहे हैं । मेरे तो हाथ- पाँव पहले से ही फूले हुए हैं । बेटा , ये मेल- मिलाप का दिन अचानक कहाँ से आ गया ? मैं तो रावी को नहीं…..

माँजी, परिवार के सदस्यों के हिसाब से बुकिंग हो चुकी है, मैं अपने परिवार को लेकर नहीं गया तो बॉस नाराज़ हो जाएँगे । आज के बदलते समय में इस तरह की गतिविधियों को करना ज़रूरी हो गया है । 

हे मेरे भगवान जी  ! बेटा , रावी को उनके आने के बाद ले जाना। कम से कम खाने-पीने का बंदोबस्त…..

माँ जी , मेरी मजबूरी को समझें, मेरे हाथ में नहीं है….मैं खाने का आर्डर कर देता हूँ , बस डोंगों में डालकर रख देना । पुष्पा को रोक लेना , आपकी मदद कर देगी, कुछ पैसे  अतिरिक्त दे देंगे ।

चल ठीक है, अब चारा भी क्या है ? 

अमृत रावी और नैतिक को लेकर साढ़े आठ के क़रीब निकल गया क्योंकि ऑफिस की ओर से एक फार्म हाउस बुक था पूरे दिन के लिए और साढ़े नौ तक एंट्री थी । 

—- ये बच्चे भी ना , कितने लापरवाह होते हैं । बताओ, रावी तक को बताना भूल गया कि आज जाना है । एक बच्चे का बाप बन गया पर इसकी बेपरवाही नहीं गई ।

—- क्यों चिंता करती हो ? प्रकृति का नियम है कि पति-पत्नी में से एक लापरवाह और दूसरा ज़िम्मेदार होता है । ऐसा बहुत कम देखा गया है कि दोनों ही  एक टक्कर के हों । अब अपना और मेरा ही देख लो, तुम कितनी लापरवाह हो और मैं कितना……

हाँ-हाँ….उल्टा बोल रहे हो । हँस लो । तुम्हें मज़ाक़ सूझ रहा है और मेरी जान निकल रही है । इन मेहमानों को भी आज ही आना था । दस साल हो गए रावी को आए इस घर में , तब से रसोई की ज़िम्मेदारी छूट ही गई । 

उषादेवी अपने पति के साथ बातचीत में लगी थी कि तभी फ़ोन बज उठा ——

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हाँ , मास्टर जी ! कैसे हो? बड़े दिनों बाद फ़ोन किया है । सब ठीक हैं । बच्चे तो आज बाहर गए हैं । भई ! घर पे हम दोनों बूढ़े- बुढ़िया हैं , हा…हा….हा….. हाँ आ जाओ , दोपहर के खाने तक ? क्यों नहीं? चलो बाक़ी बातें मिलने पर करते हैं ।

—- अजी सुनती हो अमृत की माँ!

——सुन लिया , बस ये बता दो कि किसे न्योता दिया है दोपहर के भोजन पर ? 

—- भई , अमृत के सास-ससुर आ रहे हैं । अब बताओ, मैं कैसे मना करता। ?

—- अमृत को फ़ोन मिलाकर कहो कि दो आदमियों का खाना बढ़वा दे। 

ठीक साढ़े ग्यारह बजे गाड़ी रुकने की आवाज़ आई । उषादेवी और उनके पति ने सोचा कि मेघा के माता-पिता आ गए क्योंकि रावी के माता-पिता के पास तो गाड़ी नहीं थी पर बाहर निकलकर देखते हैं कि चारों समधी एक ही गाड़ी से उतर रहे हैं।

सरप्राइज़, सरप्राइज़! 

सब एक दूसरे की कुशलक्षेम पूछते अंदर आए । पुष्पा ने पहले पानी और फिर बढ़िया चाय बनाई । चारों ड्राइंगरूम में बैठे बातचीत में इतने मशगूल हो गए कि कब डेढ़ बज गया , उन्हें पता ही नहीं चला । वो तो पुष्पा के यह कहने पर कि खाना आ गया है सचमुच उन्हें भूख का अहसास हुआ । 

तभी दोनों समधिनें उठी और बैग से दो- दो कैसरोल निकालते हुए बोली—

हम भी दो-दो डिशेज बनाकर लाई हैं । 

अपने – अपने हमउम्रों का साथ पाकर उषादेवी और उनके पति बेहद प्रसन्न थे । इस समय ना तो मेघा के अमीर बिज़नेसमैन माता-पिता बीच में थे और ना ही रावी के मध्यम से भी साधारण माता-पिता, था तो केवल अपनापन और रिश्तों की ख़ुशबू ।

देखते ही देखते पाँच बज गए और अमृत तथा रावी घर के अंदर से आती कहकहों की आवाज़ को सुन कर अंदर आते ही बोले 

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—— तो बताइए , हमारी मेघा का आइडिया कैसा लगा ?

अच्छा तो ये तुम दोनों की योजना थी , तभी तो मैं सोचूँ कि अचानक चंदन और मेघा अहमदाबाद चल दिए, तुम्हारा कोई मेल- मिलाप निकल आया और समधियों ने आने का प्रोग्राम बना लिया?

—— बहनजी , दरअसल मुझे माफ़ कीजिए क्योंकि इन सबके पीछे मेरा दिमाग़ था , जब मेघा की बातों से अहसास हुआ कि केवल रूपयों- पैसों के कारण रिश्तों में दूरियाँ  बढ़ती नज़र आ रही है तो मैंने रावी बिटिया से उसके माता-पिता का फ़ोन नंबर लिया और उनसे बातचीत की । आज सुबह का नाश्ता हमने मास्टर जी के घर पर ही किया और उसके बाद सब दोपहर के खाने पर यहाँ आ धमके , आप सब वादा कीजिए कि दो- तीन महीने में हम एक बार अपने रिश्तों को ताजगी ज़रूर देंगे । 

—- क्यों नहीं, क्यों नहीं …. इसी बात पर रावी के हाथ की बढ़िया सी एक- एक कप चाय हो जाए । उसके बाद प्रस्थान, फिर से तरोताज़ा होने के लिए । 

सबके जाने के बाद उषादेवी ने हाथ जोड़कर विनती की —-

हे भगवान जी , हमारे रिश्तों को किसी की नज़र ना लगे । 

करुणा मलिक 

# रिश्तों में बढ़ती दूरियाँ

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