कठोर कदम – करुणा मलिक

मम्मी! कितनी देर से फ़ोन कर रही हूँ , कहाँ थी ? 

अरे , वो संध्या को मायके जाना पड़ गया तो बस , तुम्हारे पापा के लिए रोटियाँ सेंक रही थी । ये पीछे से कैसी आवाज़ आ रही है, कहीं गई हुई है क्या ?

मम्मी, मैं ट्रेन में हूँ और घर आ रही हूँ । रात ग्यारह बजे तक पहुँचूँगी । मयंक को लेने भेज देना और हाँ…. पता नहीं, उसका फ़ोन नहीं लग रहा है?

अचानक ? इस समय चली ? सब ठीक तो है? तेरे साथ कौन है? 

मेरे साथ कोई नहीं है और अगर सब ठीक होता तो मैं भला इस ग़ैर टाइम क्यों चलती ? बस अब फ़ोन मत करना , मैं खुद मैसेज करती रहूँगी मयंक को …. उसको कहना , फ़ोन चैक करता रहे ।

मंजरी ने अपनी मम्मी देविका से धीमे स्वर में कहा ।

बेटी की बात सुनते ही देविका का मन काँप उठा ।उसने मन ही मन भगवान से प्रार्थना करते हुए कहा —

हे भगवान! मेरे मन की आशंका को झूठा कर देना । मेरी बच्ची का जीवन नष्ट होने से बचा लेना । कहने के लिए आदमी ने कितनी भी तरक़्क़ी कर ली हो पर अपना घर बिगड़ जाने पर कोई औरत की इज़्ज़त नहीं करता ।

मयंक ! कहीं सचमुच मंजरी ने कोई कठोर कदम तो नहीं उठा लिया? बेटा , फ़ोन चैक करते रहना । बिना रिज़र्वेशन के ट्रेन में सफ़र खुद में एक जंग जीतना है और अकेली , रात का सफ़र…

मम्मी, आपके इसी डर के कारण मंजरी सालों से नरक का जीवन काटने को मजबूर रही । अगर उसने अकेली चलने के लिए कदम उठाया है तो उसके पैरों में बेड़ियाँ हरगिज़ मत डालना और ना ही डराना ।

मुझे तो तेरी बातों से लग रहा है कि तुझे पूरी बात का पता है….कहीं तूने ही तो नहीं उकसाया उसे , इस तरह का फ़ैसला लेने के लिए ? 

मम्मी! यहाँ बैठो , मेरे पास …. और ध्यान से सुनो । कब तक मंजरी को समाज और दुनिया के नाम से डरा-डराकर वहाँ रहने का दबाव बनाती रहोगी? छह साल हो गए, और छह दिन भी वह खुश नहीं रही । 

तो अपनी बहन की जिंदगी में आग लगाने वाला तू ही है ।

आपको जो समझना है, समझ लीजिए पर अब मंजरी कोई समझौता नहीं करेगी । आप जाकर सो जाओ , मैं ठीक समय पर स्टेशन पहुँच जाऊँगा । 

इतना कहकर मयंक वहाँ से उठकर चला गया । वह जानता था कि अगर वह मम्मी के पास बैठा रहा तो वे कुछ न कुछ कहती रहेगी और बेकार में माँ- बेटे के बीच तकरार हो जाएगी ।

देविका ने एक गहरी साँस ली और सीधे जाकर पलंग पर लेट गई । उन्हें चुपचाप लेटी देखकर उनके पति बोले —

क्या बात है, इस तरह चुपचाप आकर लेट गई? आज अपना मनपसंद सीरियल नहीं देखोगी? 

पर देविका का ध्यान तो कहीं ओर ही था । 

कितनी खुश थी वह जब उसकी ननद की बेटी  सुमन ने फ़ोन पर कहा था—

मामी , मंजरी तो मेरी छोटी बहन है और अपने ही साथ लेकर जाऊँगी । आपको कोई एतराज़ तो नहीं होगा ना ? 

एतराज़ क्यों होगा ? ले जा …. इससे अच्छी बात क्या होगी कि दोनों बहनें साथ-साथ रहेंगी । 

देविका मन ही मन गदगद हो उठी । अपने  पूरे इलाक़े में नाम था सुमन की ससुराल वालों का । धन- दौलत , नाम , यश क्या नहीं था ? देविका ने सोचा था कि सुमन अपने देवर के रिश्ते की बात कर रही है पर उसे तब धक्का तब लगा जब अगले ही दिन सुमन अपने सास- ससुर , पति और दो ननदों के साथ जीप में बैठकर पहुँच गई । एक जीप में चार लठैत और फलों तथा मिठाइयों के बड़े- बड़े टोकरे थे । 

अचानक दो जीपों और मेहमानों को देखकर देविका का परिवार हैरान रह गया था । उसने सुमन से कहा था—-

आने से पहले बता तो देती । मैं तो समझी यूँ ही मज़ाक़ कर रही है तू ।

ऐसी बातें भी कोई मज़ाक़ में करता है, मामी ? जब मैंने माँ- पिताजी को बताया कि मामी ने हाँ कर दी है तो ये बोले कि आज ही चलो । शुभ काम में देर नहीं करनी चाहिए । वैसे भी देखाभाली तो करनी नहीं थी , देर भी क्यों करते ? 

पर सुमन ! तेरा देवर तो आया नहीं, आजकल बिना लड़के को दिखाए शादी- ब्याह नहीं करनी चाहिए । और हमने भी उसे कभी शादी के लिहाज़ से नहीं देखा । ऐसा कर , बुला ले उसे … वो तो यहीं पास के शहर में ही तो रहता है ना । लड़का लड़की भी एक दूसरे को देख लेंगे और हम भी मिल लेंगे । चाय- पानी पीयोगे तब तक वो पहुँच जाएगा … एक घंटा लगता है बस । 

आपको कोई ग़लतफ़हमी है मामी , मैंने तो मंजरी को अपने साथ ले जाने की बात इसलिए कही थी ताकि वो अपनी बहन की कमी को पूरा कर दें । मेरे देवर के लिए तो एक  से एक रिश्ते आ रहे हैं । बड़ा वकील है वो ।

इतना सुनते ही देविका आकाश से सीधे धरती पर आ गिरी ।

क्या…. ऐसा हरगिज़ नहीं होगा । तू अपनी बहन को अपनी सौत बनाकर ले जाना चाहती है, तेरे बच्चे नहीं हुए तो….

धीरे बोलो मामी , कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता । वैसे भी मंजरी के लिए सालों से रिश्ता ढूँढ रहे हो आप लोग पर आज तक तो मिला नहीं…. मुझसे केवल साल भर छोटी है । इसे कोई परेशानी नहीं होगी । मैं गारंटी लेती हूँ । जब तक ये लोग चाय पी रहे हैं, मामा के साथ सलाह मशविरा कर लो । दिन फिर जाएँगे तुम्हारे । मंजरी की वजह से महिमा और मयंक की भी उम्र निकली जा रही है ।

पहले तो पति- पत्नी का मन नहीं था पर कहीं न कहीं मन में लालच आ ही गया कि बच्चा हो जाने के बाद पति पूरी तरह से मंजरी के क़ाबू में रहेगा । 

बस उन्होंने हामी भर ली थी और दस दिनों के बाद ब्याह भी कर दिया । ईश्वर की दया से ठीक दस महीने बाद ही मंजरी ने एक बेटी को जन्म दिया तथा बेटी के जन्म के साल भर बाद ही बेटा हो गया था । कहाँ तो माता-पिता ने यह सोचकर मंजरी का रिश्ता किया था कि घर में वंश बढ़ाने की वजह से मंजरी की तूती बोलेगी पर हुआ इसका उल्टा….. दो बच्चे होते ही मंजरी के पति ने उससे बात करनी तो दूर उसकी शक्ल देखनी भी बंद कर दी । 

जब तक बच्चे माँ का दूध पीते रहे तब तक उन्हें उसके नज़दीक आने दिया गया । उसके बाद तो मंजरी अपने ही बच्चों को गले लगाने से तड़प गई । वह रोती – तड़पती , माँ- बाप से शिकायत करती तो उल्टे उसे ही नसीहत मिलती —-

अरे ! पालने दें उन्हें । बच्चे तो तेरे ही कहलाएँगे । फिर ये कौन सा अमर होकर आए हैं । नहीं बोलता पति तो मार गोली , तेरे दो बच्चे हो गए । तू मज़े से खा- पी …. तेरे ओढ़ने- पहनने पर कोई रोकटोक तो है नहीं ।

अब मंजरी कैसे समझाए कि एक औरत को पति के प्यार की भी ज़रूरत होती है । पर माँ ने तो जैसे आँखों और कानों पर पट्टी बांध दी थी । बस एक ही बात कहती थी—-

पता भी है…. पति का घर छोड़कर आने वाली लड़कियों को दुनिया किस नज़र से देखती है । मेरी समझ में यह नहीं आता कि तुझे किस चीज़ की कमी है? अरे बेचारी सुमन , औलाद की तरसी हुई है । 

धीरे-धीरे भाई मयंक ने बहन के मन की इस पीड़ा को महसूस किया । उसने कई बार दबी ज़बान से सुमन को भी कहा –

सुमन दीदी! आपने तो मंजरी के खुश रहने की गारंटी ली थी पर वो तो खुश नहीं हैं । क्या उसकी हैसियत केवल बच्चे पैदा करने तक थी । जीजा जी को उसकी फ़िक्र करनी चाहिए ।

अरे मयंक…. तुम्हें कोई ग़लतफ़हमी है । तेरे जीजाजी तो पहले से ही कम बोलते हैं । उन्होंने मुझे कह रखा है कि मंजरी को किसी बात की परेशानी नहीं होनी चाहिए । बता क्या करुँ… अलमारी कपड़ों-गहनों से भरी पड़ी है । पर्स रुपयों से भरा रहता है । और बता क्या करुँ? 

अब ज़्यादा क्या कहूँ, आप सोचकर देखें कि जिस तरह का व्यवहार जीजाजी उसके साथ करते हैं, क्या आप अपने साथ सहन कर लेती ? 

देख, मेरे साथ तो मुक़ाबला मत कर । उसे तो दुखी रहने का शौक़ है । 

एक बात मत भूलिए….. जिस तरह आपने जीजाजी की शादी करवाई है ना वो ग़ैर क़ानूनी है पर विवाह के सबूत हैं इसलिए उन्हें जेल में भी सड़ना पड़ सकता है…..

इतना कहना था कि सुमन नागिन की तरह फुसकार उठी थी।

चल निकल यहाँ से, सौंप दूँगी मैं अपना पति तेरी बहन को । बड़ा आया समझाने वाला । अगर दुबारा यहाँ आया ना तो दुनिया को पता भी नहीं चलेगा कि कहाँ गया तू ?

उस दिन तो मयंक घर आ गया पर उसने भाँप लिया कि सुमन की सोची समझी चाल है और मंजरी को ना तो वहाँ मान मिलेगा और ना ही न्याय इसलिए अब जब भी मंजरी का फ़ोन आता वह उससे यही कहता कि अपने दिल से पूछो कि वह क्या चाहता है, मैं तुम्हारे साथ हूँ । और जब चार दिन पहले हुई बातचीत में मंजरी ने कहा—

भाई , अब मैं यहाँ नहीं रहना चाहती ….इस ज़िल्लत की ज़िंदगी से तो मौत अच्छी है ।

चुप मंजरी ….. जीवन की समाप्ति का अधिकार केवल ईश्वर को है । जब आना हो , आ जाना तेरा भाई तेरे साथ है पर कायरों की तरह बात मत करना ।

और हमेशा के लिए मंजरी अपने घर वापस आ गई । शुरु में तो देविका ने बहुत समझाया…. वापस लौटने का दबाव बनाया पर बेटी और बेटे की ज़िद के आगे उन्हें झुकना ही पड़ा । हैरानी की बात तो ये हुई कि अपने घर से पूरी जानकारी मिलने पर मंजरी का देवर  खुद बच्चों की कस्टडी लेने का केस दर्ज करने के सिलसिले में उससे मिलने उनके घर आया । 

बहुत ग़लत हुआ है मंजरी भाभी के साथ पर मैं क्या करता ? मैंने तो भाई को दूसरी शादी के लिए मना किया था पर यहाँ सुमन भाभी और मंजरी भाभी के माता-पिता की सारी गलती है । मैं केस लड़ूँगा और हर हाल में बच्चे दिलवा कर रहूँगा । 

क़रीब एक साल केस चला और अंत में मंजरी के देवर के अथक प्रयासों से मंजरी को अपने दोनों बच्चे मिल गए । साथ ही उनके पिता को  मंजरी और बच्चों का पूरा खर्चा देने का भी कोर्ट ने आदेश दिया ।

अपने दोनों बच्चों के साथ घर लौटती मंजरी की आँखें पानी से भरी थी क्योंकि अपने बच्चों को कलेजे से लगाकर उसके अतृप्त- आहत मन को ठंडक मिली थी ।

लेखिका : करुणा मलिक

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