कन्या-विदाई – विभा गुप्ता

महाअष्टमी के दिन कन्या-पूजन की खरीदारी के लिये रश्मि मार्केट के लिए निकली तो उसे याद आया कि  कंजिकाओं को विदाई में क्या उपहार दे, इसके बारे में तो तो सोचा ही नहीं।फिर उसे याद आया कि उसकी सहेली नीतू भी कंजिकाओं को बुला रही है, उसका घर रास्ते में ही तो है, उसी से पूछती चली जाती हूँ।

      नीतू कंजिकाओं के लिए उपहार पैक कर रही थी, अचानक रश्मि को अपने घर देखकर उसने आश्चर्य-से पूछ लिया,” अचानक यहाँ कैसे?”  

       ” वो..मैं..पर तू इतनी सारी काॅपियों और पेन का क्या कर रही है..दुकान खोल रही है क्या?” हँसते हुए रश्मि ने पूछा तो नीतू बोली,” अरे नहीं..कल महाअष्टमी है ना..कन्याओं को न्योता दिया है तो उन्हीं के लिये ये उपहार है।” 

    ” खिलौने वगैरह देती..काॅपी-पेन?” 

     ” आज की लड़कियों को खिलौने की नहीं, शिक्षा की ज़रूरत है।काॅपी-पेन देखकर ही तो वो पढ़ने-लिखने के लिए प्रेरित होंगी और उनके माता-पिता की भी आँखें खुलेंगी।सही कह रही हूँ ना मैं..।”

      ” हाँ..ऐसा तो मैंने सोचा ही नहीं था।” रश्मि समझ गई कि उसे क्या करना है।अगले दिन उसने कंजिकाओं की पूजा की, उन्हें प्रेमपूर्वक भोजन कराया और जब वो जाने लगी तो सभी के हाथ में चाॅकलेट,

पैसे के साथ-साथ एक काॅपी और पेंसिल-रबर, कटर( पेंसिल छीलने वाला) का एक किट भी दिया जिसे देखकर सभी ने मुस्कुराते हुए उसे’थैंक यू आंटी’ कहा तो उसे लगा जैसे माँ दुर्गा उसे आशीर्वाद दे रहीं हैं। 

                               विभा गुप्ता 

                           स्वरचित, बैंगलुरु

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