कैसे हो अपनों की पहचान? – रोनिता कुंडु 

हेलो पापा जी कैसे हो आप सब? मम्मी जी और अविनाश कैसे हैं? पूजा ने कहा 

अमित जी:   बहू! हम सब तो ठीक है, पर तुम ठीक तो हो ना? आज मेरा नंबर गलती से लग गया या कोई काम है?

पूजा:  ऐसा क्यों बोल रहे हैं पापा जी? भले ही आप लोगों से दूर रहते हैं, पर है तो एक ही परिवार के सदस्य ही! वह तो घर संभालने के चक्कर में इतनी व्यस्त रहती हूं कि आप लोगों को कॉल ही नहीं कर पाती।

अमित जी:  देखो बहू! जितना हम तुम्हें जानते हैं, उससे यह तो कह सकते हैं कि तुमने ऐसे ही तो फोन नहीं किया है, तो अब ज्यादा बातें ना घुमा कर, सीधे मुद्दे पर आओ।

पूजा: वह पापा जी, इनको पेट में ट्यूमर हो गया है, तो डॉक्टर ने कहा है तुरंत ही ऑपरेशन करवाना होगा और उसके लिए 10 से 15 लाख का खर्च आएगा। कुछ पैसों का तो हमने इंतजाम कर लिया है, तो इसलिए अगर बाकी का आप और अविनाश देख लेते तो? अब ऐसी मुसीबत के समय अपनों की ही तो याद आती है ना?

अमित जी:  अपने? कौन हम? बड़ी जल्दी अपनों की पहचान हो गई? पर तुम्हारे सामने वाला भी तो तुम्हें अपना मानना चाहिए ना? देखो बहू! मुझे तुम्हारी तरह चिकनी चुपड़ी बातें करना नहीं आता, इसलिए साफ शब्दों में कह देता हूं, मेरा कोई कमाई का ज़रिया तो है नहीं और जो थोड़े बहुत पैसे बचाएं थे, वह तुम्हारी सास की आंखों के ऑपरेशन में लग गए। अब तुम लोगों ने हमसे अपना पल्ला झाड़ लिया है, तो अपनी हालत खुद ही को संभालनी पड़ती है, तो ऐसे में मेरी तरफ से कोई मदद की आशा मत करना, रही बात अविनाश की, तो उसका फोन नंबर भी तो है ना तुम्हारे पास? बात कर लो! यह कहकर अमित जी फोन रख देते हैं

अब आप सब यह सोच रहे होंगे, कि ऐसा भी क्या हो गया कि एक पिता ने अपने बेटे की तबीयत के बारे में सुनकर भी ऐसा बर्ताव किया? तो चलिए आपको ले चलते हैं इस समय से थोड़ा पहले, अमित जी का एक छोटा सा परिवार जिसमें उनकी पत्नी आशा जी, दो बेटे विनय और अविनाश रहते थे। अमित जी एक प्राइवेट नौकरी करते थे और उसी से वह अपनी गृहस्ती की गाड़ी चलाते थे। दोनों बेटे पढ़ाई कर रहे थे।

ग्रेजुएशन के पहले ही विनय की रेलवे में नौकरी लग गई, तो सभी घर वालों को लगा की अब घर की माली हालत में सुधार होगा और अविनाश की पढ़ाई में भी विनय हाथ बटाएगा, पहले पहले विनय ने किया भी, उसने अमित जी को वालंटियर रिटायरमेंट लेने को कहा और घर की बागडोर अपने हाथों में ले ली। कुछ साल बीते और अविनाश ने विनय से एम बी ए पढ़ने की ख्वाहिश जाहिर की। विनय ने भी कहा, हां तेरा जो मन करता है वह पढ़ और अविनाश लग गया तैयारी में।

इसी दौरान विनय के लिए एक रिश्ता आता है। विनय की शादी की उम्र भी हो गई थी और अच्छी नौकरी भी थी, तो माता-पिता ने सोचा अब शादी की बात आगे बढ़ाई जाए। उन्होंने इस बारे में जब विनय को बताया, तब बिना कोई जवाब दिए विनय वहां से चला गया। माता-पिता को लगा शायद शरमा रहा होगा। इससे पहले वह इस बारे में दोबारा विनय से कुछ पूछते, एक शाम वह पूजा से सीधे शादी कर घर आ गया। पूरा परिवार हैरान और शब्द खड़ा था।

अमित जी:  यह सब क्या है बेटा?

विनय:  पापा! आप लोग मेरे लिए रिश्ता देख रहे थे और मैं इससे वादा कर चुका था, तो सोचा आप लोगों का काम आसान कर दूं!

अमित जी:  बेटा! तू हमसे एक बार पूछ तो लेता, हम इसके माता-पिता से मिलकर पूरे रीति-रिवाज़ से साथ तेरी शादी करवाते। तेरी खुशी में ही हमारी खुशी है। हम क्या तुझे मना करते हैं? पर ऐसे यूं अचानक? हमारे भी तो कुछ अरमान थे तेरी शादी को लेकर, जहां अमित जी इतना कुछ बोल रहे थे, वही आशा जी बिल्कुल चुपचाप आरती की थाल लाने चली गई।

विनय अरमान पूरे करने के लिए पैसे चाहिए होते हैं जो आप लोगों के पास नहीं है ऐसे में मेरी ही शादी में मेरी ही पैसे खर्च होता, उल्टा इसको यह दो, उसको वह दो, यह सारा झंझट मुझे नहीं चाहिए था, इसलिए सीधे शादी कर आया, अब आपलोग इसके स्वागत की तैयारी कीजिए।

आप बेटे ने जब इतना बड़ा फैसला खुद ही कर लिया है, तो माता-पिता इसे स्वीकारने के अलावा और कर भी क्या सकते थे? पर अमित और आशा जी ने इस बात का कोई मलाल नहीं रखा और पूजा को दिल से अपनाया, पर जैसे-जैसे थोड़ा समय बीता, पूजा को लगने लगा के उसके पति के पैसो पर पूरा परिवार ऐश कर रहा है और वह विनय को भड़काने लगी, बचत करने के लिए दबाव बनाने लगी जिससे विनय ने सबसे पहले अविनाश से कहा, अविनाश! तू कोई पार्ट टाइम नौकरी देख ले, अब मेरी भी शादी हो गई है, घर के खर्चों में बढ़ोतरी हुई है, ऐसे में तेरी पढ़ाई का भार अब मैं और उठा नहीं सकता। मम्मी पापा के दवाई का खर्च, घर का राशन पानी, इतना कुछ संभालते हुए अब मेरी हालत खराब हो रही है, तो तू अब अपना देख ले।

अमित जी:   यह तू इसे बीच सफर में कैसे छोड़ सकता है? वह अभी पढ़ाई करेगा या नौकरी? और मुझे तो तूने ही रिटायरमेंट लेने को कहा था और हम भी तुझ पर बोझ बन गए? वाह सुनकर अच्छा लगा। 

अविनाश:  पापा! भैया पर सच में पूरे घर की जिम्मेदारी है, आप चिंता मत कीजिए मैं भी कुछ करूंगा और फिर भैया का साथ दूंगा। 

विनय:   जब करेगा तब बताना! अभी से इतना उड़ने की ज़रूरत नहीं। और दोस्ती यारी छोड़कर, पढ़ाई और कमाई पर ध्यान दें।

कुछ दिनों तक तो अविनाश नौकरी ढूंढता रहा, पर जब उसे नहीं मिली, तो विनय उसे और भी खरी खोटी सुनाने लगा, इसी दौरान अमित जी की तबीयत खराब हो गई, उन्हें आनन-फानन में अस्पताल ले जाया गया। कई सारे जांच के बाद उन्हें हार्ट का ब्लॉकेज बताया गया। परिवार में चिंता का माहौल था। तीन दिनों तक उनकी प्राथमिक इलाज के बाद, उन्हें छोड़ा गया। अस्पताल का बिल लगभग 30 से ₹40000 हो गए थे इन दिनों, जिसको देने में विनय आना कहनी करने लगा। अंत में आशा जी पैसे लेकर आती है और कहती है, उन्होंने अपनी अंगूठी बेचकर यह पैसे लाए हैं, अब विनय एक किराए के मकान पर चला गया। दूर जाने के बाद अमित जी जो कभी उसे फोन करते। पूजा किसी न किसी बहाने से उनकी बात उनसे होने नहीं देती। 

इसी तरह एक साल बीत जाते हैं, इधर अविनाश भी जैसे तैसे एक नौकरी जुटाकर अपने माता-पिता के साथ गुजारा कर रहा था। आज इतने सालों बाद जब पूजा को पैसों की जरूरत पड़ी, तो उसे अपनों की याद आई, इसलिए अमित जी पूजा से ऐसे बर्ताव कर रहे थे खैर पूजा ने मजबूरन अविनाश को भी फोन किया, जिस पर अविनाश ने भी उसे मना कर दिया और कहा, आशा है की जिस तरह हम उस दौर से निकले थे, आप लोग भी निकल ही जाओगे।

पूजा अविनाश के इस बात से चिढ़ कर कहती है, तुम पापा जी की प्रॉपर्टी में रहते हो, उसमें तुम्हारे भैया का भी हिस्सा है। जरूरत पड़ी ना, तो कोर्ट भी चली जाऊंगी, फिर देखूंगी आप लोगों की अकड़? 

अविनाश:  जाइए भाभी जहां जाना है! आप दोनों से इससे ज्यादा उम्मीद भी क्या किया जा सकता है? पर आपकी जानकारी के लिए बता दूं, घर पापा के नाम पर है, अगर वह ही भैया को देना नहीं चाहेंगे तो कोर्ट भी क्या कर लेगा?

यह सुनकर पूजा गुस्से से फोन पटक देती है। उसके बाद वह विनय से कहती है, अपने परिवार की बहुत गाथा गाते थे ना? देखो उनकी असलियत? यह सुनकर भी आप इतने बीमार हो मुझे खरी खोटी सुना कर फोन काट दिया। 

विनय:  हां तो उनके लिए मैंने किया ही क्या है, जो वह मेरे लिए सोचेंगे? छोड़ो मेरे नसीब में जो होना है होगा, विनय और पूजा यह सब कह ही रहे होते हैं कि तभी अमित जी, आशा जी और अविनाश वहां आ जाते हैं। सब को एक साथ देखकर विनय और पूजा हैरान हो जाते हैं।

अविनाश:  भाभी! माफ कीजिएगा फोन पर ऐसी बात करने के लिए! पर क्या करें अपनों के दिए हुए दर्द जीने कहां देती है? आपने जब भैया की तबीयत के बारे में बताया, हम तो तभी यहां आना चाहते थे, पर हमने खुद को इसलिए रोका, ताकि आप लोगों को एक बार पुरानी बातें याद दिला सके, कि जो इंसान अपने परिवार को साथ लेकर नहीं चलता, उसे इसका पछतावा देर सवेरे ही सही होता ज़रूर है।

आशा जी:  बस कर अविनाश! अब जिस काम के लिए यहां आए हैं पहले वह तो कर ले! देख नहीं रहे मेरे बेटे की हालत और ज्यादा मुंह चलाने की जरूरत नहीं है? तेरे भैया ने तेरे या फिर हमारे लिए जितना किया है ना? वह तो तू सोच भी नहीं सकता! सारे भाई तो पहले करते हैं, फिर उसका बखान करते हैं, पर यह मेरा बेटा तो चुपचाप सारा कुछ करता गया, सबकी नजरों में गलत रहकर भी और अभी भी चुप है।

अविनाश और अमित जी दोनों हैरान होकर, आशा जी से पूछते हैं, क्या? ऐसा भी क्या किया है इसने?

पूजा भी हैरान खड़ी रहती है। 

तभी आशा जी कहती है, अविनाश! तूने तो अपने दोस्तों से कहा था ना कि जब तक मेरे भैया है, मुझे कमाने की क्या ज़रूरत और आपने भी तो यही सोचा था कि विनय जब तक हमारी देखभाल कर रहा है, अविनाश ऐश कर ले। यह आपकी कैसी सोच थी? विनय ने अपनी मेहनत से यह नौकरी हासिल की थी और हमारा सहारा बना था, पर इसका मतलब यह थोड़े ही ना कि उसको बस पैसों की मशीन ही समझ लिया जाए?

बेचारा चुपचाप सारी जिम्मेदारी निभा भी रहा था, पर अपने परिवार के एक सदस्य के साथ ऐसी ज्यादती मुझे गवारा नहीं थी, तभी मैंने सारी तरकीब लगाई और इसे यहां से दूर भेजा। अविनाश का पढ़ाई में साथ छोड़ने से लेकर, इसका यहां से दूर जाना यह सारी मेरी बनाई हुई ही तरकीब थी और यहां तक के पूजा से अचानक शादी करने का फैसली भी इसने मेरे ही कहने पर किया था। पर फिर भी आपके हॉस्पिटल का पूरा खर्च इसने ही दिया मुझे।

अविनाश को जब मैंने पैसे दिए, उसने पूछा कहां से आए? मैंने कहा, मैंने अपनी अंगूठी बेच कर दिए और वह मान भी गया। उसे तो यह तक पता नहीं के मेरे पास जेवर के नाम पर एक जोड़ी कान के, और एक मंगलसूत्र के अलावा और कुछ है भी नहीं। देखो इसके ऐसे काम से अविनाश तो जिम्मेदार बन गया, पर यह सबकी नज़रो में गिर गया। यहां तक के मेरे आंख के ऑपरेशन के लिए जब मैंने आपको पैसे दिए, आपने पूछा था मुझे, कहां से आए तो भी मैंने कहा था यह मेरे कुछ बचाए हुए पैसों में से है, पर वह पैसे भी इसने ही दिए थे।

पूजा तभी अचानक से विनय से कहती है, आपने उनके लिए इतना किया और मुझसे झूठ बोलते रहे? धोखा दिया आपने मुझे? 

विनय:   तो क्या तुम्हारे चक्कर में मैं अपने परिवार को भुला देता? मेरे पैसों पर जितना तुम्हारा हक है, उतना ही मेरे परिवार का है। उसके लिए मुझे तुम्हारी रजामंदी नहीं चाहिए, मैंने उनकी मदद की पर तुम्हारी ज़रूरत में तो कोई कमी नहीं की ना? तो तुम्हारा कोई हक नहीं बनता कि तुम मेरे माता-पिता पर किए गए खर्च के बारे में सवाल करो?

अमित जी और अविनाश निशब्दद खड़े थे, फिर अविनाश विनय के सीने से लिपटकर रोने लगता और कहता है, माफ कर दो भैया! आप मेरे राम भैया तो बन गए, पर मैं लक्ष्मण नहीं बन पाया। सच कहा आपने, आप अगर मुझे छोड़कर ना जाते तो, शायद मैं भी जिम्मेदार न बनता। अपनों की पहचान करना ना आया मुझे।

अमित जी:  माफ तो मुझे भी कर दो बेटा! पता नहीं जो सारी चीज़े तुम्हारी मां देख पाई, वह मैं क्यों नहीं देख पाया? 

अविनाश:   हां भैया! अब मैंने भी अपनी जिम्मेदारी समझ ली है, तो दोनों मिलकर घर संभालेंगे, आप हमारे साथ ही रहेंगे अब से। 

गंभीर माहौल बड़ा खुशनुमा हो गया। 

दोस्तों, यह कहानी आज की कड़वी सच्चाई को दर्शाती है, जो बेटा परिवार से अलग हो जाता है, या तो अकेले घर की जिम्मेदारी उठाकर थका हुआ होता है या फिर वह बस अपना स्वार्थ देखता है। पर जो चुपचाप अपनी जिम्मेदारी निभाता हैं, कभी-कभी उसे तो उसके माता-पिता तक भी बस इस्तेमाल की चीज़ समझ लेते हैं। और फिर वह बेटा भी बड़ा अकेला हो जाता है। यहां आशा जी का कार्य बड़ा सराहनीय था। उन्होंने बिना शोर शराबे के इस समस्या का समाधान निकाल लिया। किसी घर में अगर बेटी घर संभाल रही है, तो उसका परिवार उसकी शादी तक नहीं होने देता। क्योंकि सब बस अपना स्वार्थ देख रहे होते हैं। पर अगर परिवार में स्वार्थ ने अपनी जगह ले ली, तो हर एक इंसान का जीना दुभर हो जाएगा। आपकी क्या राय है इस बारे में? कमेंट में जरूर बताइएगा🙏🏻😊 

धन्यवाद 

रोनिता कुंडु 

#अपनों की पहचान

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