कामवाली की माँ – रीतू गुप्ता :  Moral Stories in Hindi

भाभी घर का सारा काम हो गया है।अब मैं चलती हूँ ।

भाभी कल पूरा दिन नहीं रुक पाऊँगी, माँ को दिखाना है।

सुबह जल्दी आकर और सारे काम निपटा कर जल्दी ही घर के लिए निकल जाउगी,

बाद का आप देख लेना। 

अरे पूनम, कल तो मेरी किटी है, और मेरी सारी सहेलियों को तेरे हाथ के पकवान बहुत पसंद है। 

अच्छा कितना बजे जाना है डाॅक्टर के पास ।

भाभा ३ बजे बुलाया है।

तो ऐसा कर लंच बना कर चले जाना प्लीज।

कोई जबरदस्ती नहीं है, 

हां देख ले अगर तुझसे मैनेज हो जाये,

..ड्राइवर को बोल गाड़ी में छुड़वा दूंगी..डाॅक्टर के पास।

भाभी ठीक है , गाड़ी का रहने दो। भाभी मैं ऑटो बुक कर लुंगी।

आपने सिखाया न मुझे बुक करना ।

 हाँ …हां ठीक है।

चल कल मिलते है ।

….

अगले दिन …..

पूनम कहां चली तैयार होकर डॉ. के जाना है ना आज। 

हाँ माँ ..आप 1 बजे तक मेरा इंतज़ार करना।

मैं ना आ पायी तो ऑटो में भाभी के घर आ जाना।

आज भाभी की किटी है मैं दोपहर तक वहीं रुकेगी। 

फिर डाॅ. के पास चलेगें।

ठीक है बेटी ।

..

रावी का घर…

 किटी पार्ट में सब सहेलिया मिलती है। 

पुनम सब को पकौडे, इडली नूडल्स और जूस सर्व करती है वो भी सलीके से।

 रावी तू लकी है, जो तुझे पूनम जैसी मेड मिली है, हर काम में परफेक्ट ।

खाना तो इतना लजीज बनाती है की पूछो मत ।

उपर से साफ-सुथरी । लगता ही नही मेड है।

सच कहें.. तेरे से जलन होती है ।

रावी- मेड नहीं छोटी बहन सी है मेरी। मुझे इस पर पुरा भरोसा है ।

सारा घर इसके भरोसे छोड जाती हूं। स्वभाव भी सरल । कोई फालतू बात नहीं, अपने काम से काम बस। 

सच में रावी बहुत लक्की है तू। पूनम नखरे भी नही करती, वर्ना ओर मेड्स तोबा तोबा .. इतने नाटक, पूछो मत ।

तभी पूनम टेबल पर बाकी नाश्ता रखने आती है। 

दी मैं भी लक्की हूँ । जिसे रावी भाभी जैसी मेमसाहब मिली , जिन्होंने मुझे लिखना पढ़ना सिखाया। नए ज़माने की चीजे सिखाई। हर मुश्किल में मेरे साथ खडी रहती है।

रावी .. पूनम खाना बन गया।

जी भाभी ।

ठीक है सर्व हम खुद कर लगे, तू जा। कहीं देर ना हो जाए तुझे ।

चाय भी मैं चढ़ा लेती हुँ। 

ठीक है भाभी, मैं अपना सामान लेकर निकलती हुं।

रावी रसोई में चाय बनाने जाती है,  

तब ही डोर-बेल बजती है ।

रावी अपनी दोस्त काव्या को दरवाजा खोलने के लिए बोलती है।

काव्या दरवाजा खोलती है…

साहमने सांवली सी, पीले प्रिंट वाली सस्ती सी साडी पहने एक ४५-४७ साल की औरत खड़ी होती है। जिसके बाल तेल से चूपड़े होते हैं । सीधी मांग निकाल बड़ा सा सिन्दूर भरा होता है । 

रावी – कौन है काव्या।

काव्या पता नहीं कोई गंवार सी औरत है। लगता है गलत घर आ गयी है ।

इतने में पूनम आ जाती है ।

माँ आप आ गयी।  

काव्या- पूनम, यह तेरी माँ है 

कहाँ तुम कहाँ यह गंवार ।

चुप कीजिये आप, 

वो मेरी माँ है, गंवार नहीं। 

जिसके हाथों के पकवान आपको अच्छे लगे न.. उसी की माँ ने सिखाए है ।

छोटे लोग हैं तो क्या .. हमारी भी इज़्ज़त है ।

रावी रसोई से बाहर आते हुए- 

काव्या कौन है दररवाजे पर …

तभी गेट पर पूनम की माँ को देख कर ..

अरे मांजी आप। ।

आइये अंदर आइए, बैठिए ।

कैसी तबियत है ..अब आपकी ।

अच्छी है बिटिया ।

पूनम पानी ला माँ जी के लिए।

हां भाभी लती हूँ ।

माँ जी चाय लोगे आप ।

नहीं बिटिया, डाॅक्टर के जाना है देर हो जाएगी।

पूनम पानी लाती है ।

पानी पीकर ..

ठीक है बिटिया.. चलते है,

खुश रहो हमेशा।

अपना ध्यान रखना माँ जी ।

 ठीक है बिटिया ।

उनके जाने के बाद ..

काव्या – यार यह गंवार औरत पूनम की माँ है और तू इसे इतना भाव क्यों दे रही थी ?

रावी – क्या कह रही हो तुम काव्या? 

माँ तो माँ होती है और फिर वो किसी की भी हो ।

उसके पहरावे से, रहन-सहन से किसी को परखना यह तो गलत है ना

और पूनम का और मेरा रिश्ता मेड-मालकिन वाला नहीं, बहनों वाला है ।

पूनम मेरे परिवार का इतना ख्याल रखती है तो क्या मैं भी उसके परिवार ख्याल न रखूं ।

वैसे मुझे तुमसे ऐसी हरकत की उम्मीद नहीं थी काव्या। 

काव्या- सॉरी यार, तू सही कह रही है माँ तो माँ होती है । किसी की भेष-भूषा से उसे नहीं परखना चाहिए। 

पूनम को भी सॉरी बोल दूगी मैं।

रावी- शाबाश! चल आ इसी बात पे चाय पिलाती हूँ ।

दोंनो मुसकरा कर अपने गैंग में शामिल हो जाती है।

रीतू गुप्ता 

स्वरचित

#यह गंवार औरत मेरी मां है

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