रिचा एक प्रतिष्ठित परिवार की संस्कारी लड़की थी संयुक्त परिवार में पली-बढ़ी, बड़े भाइयों के सानिध्य में सुरक्षित ,अपनी भाभी से मित्रवत व्यवहार रखने वाली रिचा का जीवन बहुत आराम से व्यतीत हो रहा था ।वह पढ़ाई कर रही थी और संयुक्त परिवार में रहने का भरपूर आनंद उठा रही थी।
अचानक रिचा के जीवन में एक नए रिश्ते ने दस्तक दी यह बात उन दिनों की है जब अपने मन से विवाह करने की बात को बहुत बड़ा समझा जाता था, लेकिन रिया की तो दुनिया ही बदल चुकी थी….. उसका नाम मनीष था… दिखने में साधारण ,पर व्यक्तित्व आकर्षक.. उसका परिश्रमी आचरण और
सब के प्रति सम्मान पूर्वक व्यवहार रिचा को भा गया था। उसके सामने आते ही रिचा को एक अजीब सी आकर्षण की अनुभूति होती थीःः मनीष रिचा के पिता के मित्र का बेटा था तो रिचा के यहाँ आना जाना लगा रहता था। जाने कब बातों बातों में रिया उसकी तरफ आकर्षित होती चली गई ,उसको
खुद ही पता ना चला पर वह कहते हैं ना.. कि चिराग तले अंधेरा.. रिचा का बदला हुआ स्वभाव और हर वक्त बस एक ही गीत गुनगुनाते रहना “जिंदगी और कुछ भी नहीं तेरी मेरी कहानी है”…… इन बातों ने उसको एक शक के दायरे में लाकर खड़ा कर दिया था, और सबसे पहले शक के गवाह बने उसकी मां और भाभी। रिचा का अपनी भाभी से अच्छा तालमेल था, उसने अपने दिल की बात भाभी
से कहीं और उनसे दबी जबान में याचना की कि उसके रिश्ते को मंजिल तक पहुंचाने में उसकी मदद करें। उसकी भाभी खुद चाहती थी कि रिचा को उसके सपनों की मंजिल मिले पर क्योंकि वह घर की बहू थी तो खुद ही परिणाम से डर रही थीं। डरते डरते उन्होंने अपने पति से बात की तो घर में मानो भूचाल सा आ गया था ,सब का व्यवहार रिचा के प्रति कठोर हो गया था, अब रिचा पहले की तरह
उन्मुक्त नहीं रहती थी ,वह डरी डरी सहमी सहमी सी रहने लगी थी, पर उसने अपनी राह नहीं बदली ।वह अपनी जिंदगी मनीष के साथ बिताने का स्वप्न बुनकर तैयार कर चुकी थी, जिसमें किसी और के लिए कोई जगह नहीं थी।
रिचा के तीन भाई और थे जो काफी परंपरा वादी और पुराने विचारों के थे और वह तीनों इस रिश्ते के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं थे, एक पल के लिए तो रिचा मानो टूट सी गई पर फिर उसने अपने आप को समेटा और उठ कर खड़ी हुई, अपने नए जीवन की कल्पना को साकार करने। उसकी भाभी ने उसका पूरा सहयोग किया । उन्होंने पहले अपने पति फिर अपनी सास को समझाया, जब वह दोनों
मान गए तो रिचा को कुछ उम्मीद दिखाई पड़ी, फिर उसकी भाभी और मां ने मिलकर परिवार के और सदस्यों को भी मना लिया। रिचा और मनीष का विवाह हो गया । मनीष अपने माता पिता की इकलौती संतान था तो सास-ससुर से भी रिचा को बहुत प्रेम और स्नेह मिला। पर कहते हैं ना कि
असल जिंदगी पिक्चर की कहानी की तरह नहीं होती, उसमें बहुत उतार-चढ़ाव भी आते हैं।
कुछ महीने तो सब ठीक-ठाक चलता रहा फिर रिचा के जीवन में आने लगी आर्थिक परेशानियां ,मनीष का व्यवसाय पहले से काफी कम हो गया था, वह दिन रात मेहनत करता था पर किस्मत
उसका साथ नहीं दे रही थी, पर रिचा ने कभी मनीष का हौसला कम नहीं होने दिया, वह कठिन समय में एक दूसरे के पूरक बने रहे । क्योंकि प्रेम विवाह हुआ था इसलिए मायके वालों ने ज्यादा सहयोग नहीं किया अब जो कुछ भी था वह रिचा के हाथों में था। रिचा के सास ससुर ने हर संभव सहयोग
किया । असली समस्या तो तब शुरू हुई जब कुछ समय के बाद रिचा की सास बीमार रहने लगी ,तो उनकी बीमारी में भी काफी पैसा खर्च होता था, परिवार को चलाने में बहुत मुश्किलें आ रही थी, सबने मिलकर संघर्ष किया पर असफल रहे, रिचा पर जान छिड़कने वाली उसकी सास यह दुनिया छोड़कर जा चुकी थी। उधर मनीष अपने काम को जमाने की कोशिश में लगे हुए थे ।
अपनी मां की मृत्यु से मनीष बहुत टूट से गए थे लेकिन अब उन्हें अपने पिता को संभालना था जो लगातार कमजोर होते जा रहे थे । रिचा बहुत धैर्य के साथ अपने परिवार को संभाल रही थी। रिचा ने अपने प्रेम की हर मर्यादा निभाई जब कभी मायके जाती तो मुस्कुराते हुए जाती, कोई उसकी हंसी के पीछे छुपे हुए कष्ट को समझ नहीं पाता था, उसने अपनी कोई पीड़ा कोई व्यथा अपने माता-पिता से तक ना कहीं ।
पत्नी की मौत से टूटे हुए मनीष के पिता अपने आप को संभाल नहीं पा रहे थे, एक दिन क्रूर काल ने उनको भी मनीष से छीन लिया । हार्ट अटैक से मनीष के पिता की मृत्यु हो गई अब मनीष बिल्कुल अकेले पड़ गए थे ।
रिया इस कठिन समय मे मनीष की परछाई बन कर उसके साथ खड़ी रही।धीरे धीरे रिचा का परिवार बढ़ा।रिया अपने जीवन के उतार-चढ़ाव के साथ सामंजस्य बिठाने की कोशिश करती रही, उसने जीवन की चुनौतियों को स्वीकार करना और उनके साथ जीना सीख लिया था ।अब उसकी दुनिया
सिर्फ मनीष और उसके बच्चे थे जिन्हें देखकर वह जिंदा थी । मनीष हंसता तो रिचा हंसती, मनीष दुखी होता तो रिया उसकी ताकत बन जाती । धीरे धीरे बच्चे बड़े होने लगे पर रिया के जीवन के आर्थिक संकट कम होने का नाम नहीं ले रहे थे,वह अपनी समस्याओं से जूझते हुए मनीष को संभालते हुए अपने बच्चों को अच्छे संस्कार देते हुए जीवन में आगे बढ़ती जा रही थी । क्योंकि उसके बच्चे अभाव में पले बढ़े थे इसलिए बेहद संस्कारी और समझदार थे।पैसे की कमी होने के बाद भी
रिचा और मनीष ने पूरी कोशिश की थी कि वह अपने बच्चों की हर संभव जरूरत को पूरा कर सकें। उनके बच्चे भी अपने माता पिता की स्थिति से भली-भांति अवगत थे इसलिए उन बच्चों ने भी संतुष्टि का समावेश अपने आचरण में अच्छी तरह कर लिया था । तारीफ की बात यह है की जीवन के बहुत सारे वर्ष संघर्ष और कष्ट में बीतने के बावजूद रिचा और मनीष का प्रेम उसी तरह जीवित था जैसे वह पहली बार मिले हो , उन्होंने इतने वर्षों बाद भी अपने प्रेम को उसी ताजगी के साथ जीवंत कर रखा
था। रिचा ने हर कदम पर मनीष का पूरा सहयोग किया। व्यवसाय में उधारी की वजह से स्थिति इतनी खराब हो गई के बहुत बार उन्हें दैनिक जरूरतों के बारे में भी सोचना पड़ता था। कई बार खाना कम पड़ जाता तो अपने बच्चों को खिला कर दोनों भूखे सो जाते थे पर रिया ने उतने ही प्यार के साथ मनीष को संभाला और जिंदगी के प्रति ऊर्जावान बनाए रखा , यह अलग बात है कि अकेले में वह खूब रोती थी और भगवान से अपनी पीड़ा साझा करती थी।
रिचा की भगवान में गहरी आस्था थी। समय अपनी गति से चल रहा था अब रिचा की बड़ी बेटी शादी के लिए तैयार थी और उनके साथ आर्थिक समस्या भी कंधे से कंधा मिलाकर चल रही थी । बेटी की अच्छी शादी के लिए मनीष ने अपने गांव की जमीन बेच दी इसके साथ ही रिचा ने अपनी जिंदगी के अनुभव के आधार पर दोनों बेटियों को आत्मनिर्भर बनाया था उसकी दोनों बेटियां नौकरी पेशा थी और आने वाली नई पीढ़ी के लिए ज्ञान की सीढ़ी बनकर तैयार थी। मनीष ने कठिन परिश्रम से बेटी की धूमधाम से शादी की और खुशी-खुशी विदा किया
रिचा ने भी आर्थिक रूप से कमजोर होते हुए भी अपनी बेटी के हर सुख सुविधा का ध्यान रखा और वह हर चीज उसको देने का प्रयास किया जो उसके लिए जरूरी था। भगवान के आशीर्वाद से रिचा और मनीष का बड़ा दामाद बहुत अच्छा और संस्कारी था अब वह दोनों अपनी एक जिम्मेदारी से मुक्त हो गए थे।
रिचा और मनीष की दूसरी बेटी भी शादी के लिए तैयार थी मनीष भी अथक परिश्रम करके दूसरी बेटी के शादी के इंतजाम में लगे हुए थे । इस बीच में मनीष ने कई व्यवसाय बदले मगर अफसोस वह किसी भी काम में सफल नहीं हो पाए और इस बार भी आर्थिक संकट उनके साथ उनका हमकदम बना हुआ था । अब इस बार दूसरी बेटी की शादी के लिए रिचा और मनीष ने अपना घर बेचने का
फैसला किया जिसमें वह रह रहे थे …रिचा अंदर से बहुत दुखी थी क्योंकि इस घर से उसकी बहुत यादें जुड़ी थी यही वह घर था जिसमें वह ब्याह कर आई थी और उसने हजारों सपने बुने थे मनीष के साथ… …पर इस वक्त उन दोनों के पास कोई और रास्ता भी तो नहीं था , तो मजबूरी में उन्होंने अपना घर बेच दिया और एक बहुत अच्छे परिवार में बेटी का ब्याह किया । अपनी तरफ से रिचा और मनीष ने इस बार भी कोई कसर नहीं छोड़ी थी और सफल रहे ।। ईश्वर की कृपा से उनका दूसरा दामाद भी बहुत अच्छा था और अब वह अपनी दूसरी जिम्मेदारी से भी मुक्त हो चुके थे ..
पर अब भी एक संघर्ष उनके सामने और बाकी था अपने बेटे का करियर पर यहां भी रिचा और मनीष ने हार नहीं मानी रिचा ने अपनी सबसे बड़ी धरोहर- अपनी शादी के गहने गिरवी रख दिए थे बेटे की जिंदगी को सार्थक बनाने के लिए…. रिचा का भगवान पर अटूट विश्वास था तो उसने अपना यह संघर्ष भी भगवान के चरणों में अर्पित कर दिया था । एक दूसरे को सहारा देते हुए अपने प्यार को सहेजे हुए नए झंझावातों से निपटने को तैयार थे दोनों….।
मनीष के अथक परिश्रम और रिचा के बेहिसाब त्याग और धैर्य के सामने संकट के बादल धूमिल पड़ने लगे थे उनके बेटे को एक अच्छी नौकरी मिल गई । अब यहां से शुरुआत थी रिचा और मनीष के जीवन में कुछ खुशियों के आगमन की…….। अब बेटा कमाने लगा था उसने पिता के बहुत से अधूरे काम पूरे किए । अब रिचा और मनीष को चिंता थी अपने कर्तव्यों से मुक्त होने की.. ईश्वर की कृपा से
उनके बेटे का विवाह भी उचित समय पर अच्छे परिवार की लड़की से संपन्न हुआ । अब रिचा एक सुंदर और शिक्षित लड़की की सास बन चुकी थी और लगभग अपने संघर्षों से मुक्त हो रही थी ,अब वो जीना चाहती थी सिर्फ अपने लिए और मनीष के लिए..। जीवन के बहुत से स्वर्णिम पल उतार-चढ़ाव से निपटने के चक्कर में कहीं खो गए थे ,वह दोनों उन पलों को फिर से ढूंढ कर जीना चाहते थे, उन पलों का सुखद एहसास करना चाहते थे।
रिचा और मनीष बहुत खुश थे अपने तीनों बच्चों को खुश देख कर और अपने बच्चों के बच्चों के साथ बचपन को फिर से जी कर ।आज उनके सब बच्चे अपने अपने परिवार में खुश है सब रिचा और मनीष के पास आते जाते रहते हैं और उनका पूरा ख्याल रखते हैं। उनके बच्चे यह भूले नहीं है की उनकी खुशहाल जिंदगी के पीछे उनके माता-पिता का बेहिसाब त्याग है । रिचा की भगवान के प्रति आस्था रंग लाई आज रिचा बिना किसी तनाव के मनीष के पास बैठी चाय की चुस्कियां लेते हुए मुस्कुराते हुए गुनगुना रही है -” जिंदगी और कुछ भी नहीं तेरी मेरी कहानी है….” ईश्वर करें उनकी खुशियों को किसी की नजर ना लगे….।।।।
ज़िंदगी और कुछ भी नहीं , तेरी मेरी कहानी है……
सिन्नी पाण्डेय