झूठा जाल – ज्योति आहूजा :  Moral Stories in Hindi

सुबह की चाय के बाद नीलिमा रोज़मर्रा के कामों में लगी ही थी कि अचानक दरवाज़े की घंटी बजी। बाहर खड़े थे एक आदमी और एक औरत। उनके हाथों में कई बोतलें और पैकेट थे। चेहरे पर मुस्कान और आवाज़ में इतना भरोसा कि कोई भी तुरंत प्रभावित हो जाए।

“मैडम, ये देखिए नया फ्लोर क्लीनर। इससे घर चमक उठेगा।”

“ये टाइल क्लीनर है, पुराने दाग़-धब्बे भी मिटा देगा।”

“ये खास बोतल टाइलों की चमक लाने के लिए है, और ये वाला किचन के दाग़ उड़ा देगा।”

साथ ही बोले—“आज ऑफ़र भी है। एक बोतल लीजिए, दूसरी फ्री। आपके बजट में सब आ जाएगा।”

नीलिमा सोच में पड़ गई—“इतना सारा सामान, वो भी एक के साथ एक फ्री… इसमें घाटा ही क्या है? बचत ही तो होगी।” उन्होंने डेमो भी दिखाया। पुरानी टाइल पर डाला, रगड़ा और सचमुच दाग़ गायब। नीलिमा प्रभावित हो गई और उसने पैकेट ले लिया।

नीलिमा ने जैसे ही बाथरूम में उस बोतल को इस्तेमाल किया, कुछ ही सेकंड में उसकी हथेलियों में भयानक जलन उठी। लाल चकत्ते फैलते गए, त्वचा छिलने लगी।

उसने घबराकर हाथ धोए, पर राहत नहीं मिली। और सबसे बड़ी हैरानी यह थी कि जिन टाइलों को दाग़-धब्बों से चमकने का वादा किया गया था, वे बिल्कुल वैसी की वैसी रहीं—कोई फर्क ही नहीं पड़ा।

“हर्पिक में भी हल्की जलन होती है, लेकिन असर तो दिखता है। लाइज़ॉल में तो कभी जलन नहीं हुई,” उसने मन ही मन सोचा, “लेकिन इसमें तो सिर्फ़ जलन है और सफाई का नामोनिशान भी नहीं।”

उसे समझते देर न लगी—डेमो के लिए बोतल सही थी, पर उसके हाथ में थमाया गया सामान नकली और खतरनाक था। सामने सच दिखाना और पीछे झूठ बेचना—यही तो है आँखों में धूल झोंकना।

बचत का और सस्ते नक़ली सामान का झूठा जाल बिछा कर फाँस लिया गया है ।

शाम को उसने अपनी सहेलियों को बुलाकर पूरा किस्सा सुनाया और अपना हाथ दिखाया—“देखो, ये हाल है मेरा। इनके झाँसे में मत आना।

ये लोग सिर्फ़ दो नहीं हैं, पूरा गैंग है। अलग-अलग गली में अलग-अलग रूप लेकर घूमते हैं। कभी फ्लोर क्लीनर, कभी टाइल क्लीनर, कभी दाग़ मिटाने वाला, कभी चमक लाने वाला… पर असलियत यही है—सब नकली।”

सहेलियाँ चौंक उठीं।

“अरे नीलिमा! तेरा हाथ तो जल गया!”

“हाय राम! हमने तो कल ही सोचा था लेने का…”

“अब तो समझ आ गया, सस्ते के चक्कर में महँगा नुकसान हो जाता है।”

सबने मान लिया कि असली बचत वही है जो भरोसेमंद ब्रांड्स से हो—मॉल या अच्छे स्टोर से। वहाँ भले ऑफ़र न मिले, पर कम से कम हाथ न जलेंगे और भरोसा टूटेगा नहीं।

उस दिन नीलिमा का दर्द मोहल्ले की औरतों के लिए सबक बन गया—झूठी बचत का लालच सबसे बड़ा धोखा है।

ये कहानी जीवन की सच्चाई पर आधारित है ।

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ज्योति आहूजा 

#आँखो में धूल झोंकना

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