झूठे दिखावे से जिन्दगी नहीं चलती – अर्चना खण्डेलवाल

सुना है तेरी देवरानी ने नई कार ले ली है? और मिठाई भी नहीं खिलाई, सुलोचना ने पड़ोसन रजनी को कुरेदने की कोशिश की।

रजनी ने  हंसी हंसते हुए हामी भरी, मिठाई तू  मेरी देवरानी से मांग आखिर तू उसकी भी तो पड़ोसन है।

ये सुनते ही सुलोचना झेंप गई क्योंकि रजनी और उसकी देवरानी तारा के बीच में सुलोचना का घर था, उसका दोनों ही घरों में आना-जाना था।

हां, मैं उसके घर गई तो थी, पर दरवाजा बाहर से बंद था, शायद वो हमेशा की तरह क्लब में गई होगी, ये जो तारा है, कभी घर में मिलती भी नहीं है, कभी सिनेमाघर, कभी मॉल में शॉपिंग तो कभी क्लब या ब्यूटी पार्लर, पता नहीं घर पर खाना बनाती भी है या नहीं ? मैंने तो इसे घर में देखा ही नहीं, अभी बच्चे भी नहीं है तो मौज कर रही है, वैसे शादी को चार साल हो गये है, मौज ही करती रहेगी या बच्चे भी करेगी, आखिर इतना पैसा कहां से बरस रहा है? सुलोचना ने सवाल रजनी पर छोड़ दिया।

सुलोचना तू भी बड़ी इधर की उधर करती है, अब उसका घर उसकी कार, उसकी जिंदगी, बच्चे करें या ना करें, मुझे क्या है? वैसे भी वो मुझसे अब बोलती नहीं है, तू भी अपने काम से काम रख, ये कहकर रजनी अंदर चली गई।

बाहर वो सुलोचना को तो सुना आई, लेकिन अंदर आकर वो रोने लगी, लोकेश उसके देवर को उसने बचपन से मां की तरह पाला, उसे पढ़ाया लिखाया और शादी होकर जैसे ही तारा आई, वो तुरन्त अलग हो गई, कुछ महीने किराये के घर में रही, फिर उसने अपना घर बना लिया। अब लोकेश तो कभी-कभी आ जाता है, लेकिन तारा ना तो बोलती है ना ही उसके घर आती है।

रजनी की सास अपने छोटे बेटे की जिम्मेदारी उस पर छोड़ गई थी, ससुर जी पहले से ही नहीं थे।

रजनी और उसके पति सुरेश ने लोकेश को अपने बच्चों के साथ बच्चे की तरह पाला, लेकिन जब से तारा घर में आई थी, उसके रहन-सहन और बातों ने रजनी और सुरेश को काफी परेशान कर दिया।

मैं तुम्हारे भाई और भाभी के साथ नहीं रह सकती हूं, वे दोनों कितने ओल्ड फैशन है, भाभी के रहने का तरीका भी गंवारू है, ये कभी पार्लर भी नहीं जाती है, बाहर के लोगों के बीच इनकी कोई इज्जत नहीं है, समाज में अपना एक रूतबा होना चाहिए, मैं ऐसे इन लोगों के साथ में नहीं रह सकती, मुझे मेरा अलग घर चाहिए, ये घर छोटा भी है , तुम तो इतनी अच्छी नौकरी करते हो, फिर इनके साथ रहने की कोई जरूरत नहीं है, तारा ने अपना फैसला सुना दिया।

उस दिन रजनी भी बोल पड़ी, अरमान मेरे भी बड़े थे, लेकिन मुझे सासू मां लोकेश की जिम्मेदारी दे गई थी, फिर मेरे अपने बच्चे हो गए, साथ ही तेरे भैया की छोटी सी दुकान के सहारे हमने घर खर्च चलाया, लोकेश को इंजीनियरिंग की पढ़ाई करवाई, पार्लर जाने का समय नहीं मिला, पर रसोई घर में जाकर समय पर सबको उनकी पसंद का खाना बनाकर जरूर खिलाया है, लोकेश को हर महीने घर का नाश्ता बनाकर भेजा था, आज ये अपने पैरों पर खड़ा है तो सुरेश और मेरी हम दोनों की मेहनत है।

आपने कौनसा अहसान किया है? आपका जितना भी खर्च हुआ, लोकेश वो वापस दे देंगे, लेकिन मुझे यहां छोटे से घर में नहीं रहना है, तारा ने जिद की और किराये के घर में रहने चली थी, एक साल के भीतर उसने रजनी के आस-पास ही चार मंजिला घर बनवा लिया, ताकि अपने ठाठ-बाट रजनी और बाकी पड़ोसी को दिखा सकें, घर में सारा नया सामान ले लिया और नई कार भी तुरंत ले ली, तारा आस-पास सब जगह अपनी चीजों और पति की तरक्की का दिखावा करने लगी, धीरे-धीरे उसने क्लब जाना शुरू कर दिया, वहां सिगरेट और मदिरा की बुरी लत लगा ली, वो वहां पर जुआ भी खेलने लगी।

तारा अपना अधिकतर समय बाहर बिताने लगी, वो घर पर खाना भी नहीं बनाती थी, रोज-रोज बाहर के खाना खाने से लोकेश की तबीयत खराब रहने लगी।

रजनी तबीयत पूछने गई तो उसने अपने देवर को समझाया, घर पर खाना बनाने वाली रख लो, इस तरह बाहर के खाने  से जिन्दगी नहीं चलती है, समाज और क्लब में लोगों को दिखाने के लिए तुम अनाप-शनाप पैसा खर्च कर रहे हो, तुम्हारी सेहत भी खराब हो रही है, घर में तुम दोनों जनें हो, दोनों ही यहां नहीं रहते और शादी के चार साल हो गए, अब तो अपना घर भी बसा लो, इस तरह दिखावा कब तक करोगे? कहीं तो थमना होगा।

तारा ने उस दिन भी रजनी को बहुत सुनाया, आप भी चाहती हो मैं आपकी तरह रसोई में ही रहूं, अरे!! जब खाना बाहर मिलता है तो मैं घर पर क्यूं बनाऊं? 

घर पर खाना बनाने वाली लगाऊं भी तो क्यों लगाऊं?

उसके लिए सामान भी तो लाना पड़ेगा, मैं ऐसे ही खुश हूं, मुझे झंझट नहीं पालने है, आजकल बाहर खाने और पीने का फैशन है, देर रात जागने और मस्ती करने वाले ही मॉर्डन कहलाते हैं।

रजनी उसके घर से चली गई,और दोबारा वहां पर

ना जाने की कसम खा ली।

कुछ दिनों बाद एक रात को तारा का रोते हुए फोन आया कि लोकेश को हार्ट अटैक आया है, आप जल्दी से आ जाइये, सुरेश और रजनी दौड़े, एंबुलेंस के आने से पहले ही लोकेश सोफे पर निढाल पड़ा था, अनियमित दिनचर्या और  गलत खान-पान और झूठे दिखावे की जिन्दगी के लिए, लिए गए भारी कर्ज ने लोकेश की जान ले ली, अपने बच्चे समान देवर की मौत देखकर रजनी के पैरों से जमीन सरक गई, बड़ी मुश्किल से उसने खुद को संभाला, तारा को संभाला।

तारा बिलखने लगी, सब मेरी गलती है, मैंने कभी लोकेश को सुख नहीं दिया, हमेशा अपनी मनमानी की, ईएमआई पर घर और महंगी कार ले ली,  इधर पिछले महीने ही लोकेश की नौकरी चली गई और वो ईएमआई ना भर पायें, जो भी सेविंग थी, वो मैंने क्लब में उड़ा दी, मैंने खुद अपना घर बसने नहीं दिया, पति को सुख नहीं दिया, बच्चे भी नहीं किये।

तारा, इस तरह लोगों को दिखाने के लिए तुमने अपना घर उजाड़ दिया, इस तरह झूठे दिखावे से तुम कुछ दिनों तो जी सकते हो, लेकिन हमेशा जिन्दगी नहीं चलती है, रजनी ने समझाया।

तारा बिलखती रही, फिर अचानक उठी और तीन मंजिला से छलांग लगा दी, तुरन्त उसके प्राण निकल गए।

रजनी और सुरेश भौंचक्के रह गए जाते वक्त मां ने लोकेश की जिम्मेदारी दी थी वो दोनों चाहकर भी उसे जीवित ना रख पाये।

धन्यवाद 

लेखिका 

अर्चना खण्डेलवाल

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