आंगन में धूप ने अपने पैर पसार लिए थे। ऐसे भी जाड़े की धूप तन और मन दोनों को ही बड़ी भली लगती है। सुधा जी अपनी छड़ी लेकर दीवार के सहारे से होते हुए आंगन में रखी सोफा पर आकर बैठ गई और अपने पैरों में हल्की-हल्की सरसों के तेल से खुद ही मालिश करने लगी।
सुधा जी को खुद तेल लगाते देखकर पोता बहू अंजलि आकर कहने लगी। दादी अम्मा आप रहने दीजिए। मेरी रसोई का काम निपटते ही मैं आपके पैरों में मालिश कर दूंगी । तब तक यह लीजिए, आप चाय पी लीजिए।
अंजलि की बात सुनते ही मैं प्यार से बोल उठी। अरे ऐसी कोई बात नहीं है बहू । अभी तो मेरे हाथ पैर चल रहे हैं। मैं तो ऐसे भी खाली ही बैठी रहती हूं अगर खुद के लिए थोड़ा इन हाथ पैरों को चला लूंगी तो हाथों की जकड़न थोड़ी तो खत्म होगी, वैसे भी तुम तो मुझे कुछ करने देती नहीं हो।
सच कहूं तो दिन भर बैठे-बैठे परेशान हो जाती हूं, मगर तुम इस बुढ़िया का लाड प्यार करना छोड़ो तब ना।
मेरी बात सुनकर अंजलि मुस्कुराती हुई बोल पड़ी। दादी अम्मा आपने तो जीवन भर अपनी जिम्मेदारी बहुत सुंदर तरीके से निभा ली। आज मम्मी जी होती, तो घर की रौनक अलग ही होती। मैंने तो उनको कभी देखा ही नहीं। हां उनका आशीर्वाद सब बना रहे।
मगर मैंने आपसे बहुत कुछ सीखा है । कभी-कभी मैं सोचने लगती हूं। आप अकेले इतना कुछ कैसे संभाल लेती थी। मैं तो शायद करते-करते बुढ़ापे की चादर ही न ओढ़ लूं।
पोता बहु अंजलि की बात सुनते ही मैं हंस पड़ी और कहने लगी। अरे ऐसा कुछ नहीं है बिटिया। जब इंसान पर जिम्मेदारी पड़ती है, तो इंसान सब कुछ करना सिख जाता है। हां यह बात अलग है, कोई थोड़ी जल्दी समझ लेता है, तो किसी को थोड़ी देर लग जाती है।
मगर तुम क्यों चिंता करती हो, मैं हूं ना तुम्हारे साथ। मेरे और अंजलि के बीच यह सब बातें चल ही रही थी कि अचानक पोती रिया कालेज से आ गई । वह हम दोनों को देखकर कहने लगी। भाभी जब तुम्हारी और दादी अम्मा के बीच की बातें सुनती हूं,तो मुझे ऐसा लगता है।
न जाने तुम किस जमाने में जी रही हो। आज भी तुम वही पुराने जमाने के जैसे बच्चों के सरसों का तेल लगाते हुए तनिक भी नहीं हिचकिचाती हो,और तो और खुद भी वही तेल लगा बैठती हो।
मैं तो इसकी बदबू ही सहन नहीं कर पाती हूं, क्योंकि आजकल बाजार में अनेक तरह के खुशबूदार तेल मिलने लगे हैं इसीलिए मैं तो जब भी बाजार जाती हूं एक नया तेल उठा लाती हूं । मेरी कॉलेज की सभी सहेलियां भी आए दिन नए नए उत्पादन को बाजार से लेकर आती है,तो मैं उनसे कैसे पीछे रह सकती हूं । रिया यहीं नहीं रुकी।
वह फिर कहने लगी । अंजलि भाभी दादी अम्मा की बात अलग है, मगर तुम तो नए जमाने की हो । तुम्हें आज भी यही सरसों के तेल की मालिश करना और बच्चों को घुट्टी पिलाना, घर की देसी दवा देना आदि पसंद है। अरे कुछ तो खुद को बदलो। ननद रिया की बात सुनते ही भाभी अंजलि बड़े सलीके से बोल उठी।
माफ करना दीदी। आप जो कह रही हैं। मैं उस बात से सहमत नहीं हूं,क्योंकि हम जमाने के साथ कितने भी बदल जाए, मगर संस्कार तो हमें अपने घरों से ही मिले सकते है।
जिस पर चलकर हम खुद को और आने वाली पीढ़ियों को तैयार कर सकते हैं,अगर हमारे घरों की पुरानी चीजें और पुरानी परंपराओं को हम छोड़ देंगे, तो फिर तो वो पुरानी सभ्यता यानी कि अतीत बन कर रह जाएगी।
मेरी बात सुनते ही दादी अम्मा भी रिया को समझाने लगी। देखो रिया बिटिया जमाने के साथ बदलना सही है मगर अपनी पुरानी चीजें, अपने घरों से मिले हुए संस्कारों से ही हमारी जिंदगी चल सकती है, क्योंकि जहां तक मैं समझती हूं।
बिटिया झूठे दिखावे से जिंदगी नहीं चलती। भारत हमारा ऋषि मुनियों का देश है । हमारे ऋषि मुनियों की ही देन है आयुर्वेद। जिससे प्रेरित होकर हम जो घुट्टी बच्चों के लिए तैयार करते हैं। उसमें आमतौर पर हमारे घर या उसके आसपास की ही प्राकृतिक चीजें होती है।
जो किसी प्रकार का नुकसान तो नहीं पहुंचाती बल्कि शिशु के बदन को स्वस्थ भी रखती है और बिटिया यह जो तुम रोज नए-नए उत्पादन लाती और लगाती हो। जिनमें अनेक तरह की खुशबू मिली हुई होती है।
सच कहूं तो वह हमारी त्वचा के लिए अच्छी नहीं होती, क्योंकि हमारे बदन की त्वचा रोज नई-नई चीजों को आखिर कितना सह पाएगी और आखिर एक दिन हमारे सामने किसी न किसी बीमारी के रूप में प्रकट हो जाती है। जिसे हम एलर्जी कहते हैं। मेरी बात सुनते ही रिया मुस्कुरा कर बोल पड़ी।
दादी अम्मा आप और अंजली भाभी बिल्कुल सही कह रही हैं। रोज नए उत्पादन को लगाना, सहेलियों की देखकर खुद की समझ को ना अपनाना, यह झूठे दिखावे की जिंदगी ही तो है। प्लीज मुझे माफ कर दीजिए और हां दीजिए वह तेल का कटोरा, मैं आपके मालिश कर देती हूं और पता है दादी अम्मा, आज मैं खुद के भी सरसों के तेल की मालिश और बालों में नारियल का तेल लगाने वाली हूं।
अब दूसरे बाजारू नए उत्पादनों की छुट्टी कहते हुए रिया मुस्कुराने लगी तो मैं और पोता बहु अंजलि भी मुस्कुराए बगैर कैसे रहते।
स्वरचित
सीमा सिंघी
गोलाघाट असम