आज फिर नीता के ही दोनों बच्चे विनर घोषित किए गए हैं। स्कूल मैं फैंसी ड्रेस शो था। मीनल ने अपने बच्चों को फैंसी ड्रेस शो में बेटी को फूल और बेटे को खरगोश बनाया था और इसके लिए वह बाजार से काफी महंगी ड्रेस किराए पर लाई थी, इसके विपरीत नीता ने बेटे को किसान और बेटी को सफेद साड़ी पहनकर मदर टेरेसा बनाया था।
नीता और मीनल दोनों सरकारी क्वार्टर में आमने सामने रहते थे। दोनों के पति एक ही दफ्तर में हेड क्लर्क थे लेकिन दोनों के रहन-सहन में जमीन आसमान का फर्क था। जहां नीता और उसका परिवार बेहद शांत और साथ-साथ कैरम या कुछ और खेलता हुआ दिखता था वहीं मीनल और उसका परिवार उखड़ा उखड़ा सा ही रहता था। पिज़्ज़ा या बर्गर वाला उनके घर के बाहर अक्सर खड़ा देखा
जा सकता था। देर रात तक उनके घर से लड़ने या टीवी की आवाज आना निश्चित ही था।विनय के दफ्तर से आने के बाद नीता का पूरा परिवार बरामदे में बैठकर चाय नाश्ता साथ ही करता था वैसे ही कभी कभार मीनल और रुपेश भी शाम को बरामदे में ही बैठकर चाय पीने लगे थे लेकिन जहां नीता और विनय आराम से चाय पीते थे वहीं मीनल और रुपेश बहस करने के बाद ही तितर बितर होते थे।
आज जब मीनल ने नीता के घर का दरवाजा खुला देखकर उसके घर आकर नीता को उसकी एनिवर्सरी की बधाई दी और साथ में उसके दोनों बच्चों गुड्डू और मिनी के विनर होने की भी बधाई दी तो बातों ही बातों में मीनल ने अपनी व्यस्तताओं का रोना रोया। साथ ही यह भी बताया कि कैसे बच्चों के फैंसी ड्रेस प्रोग्राम के लिए वह पूरी मार्केट में घूम कर उनके लिए ड्रेस किराए पर लाई थी।
बातें करते हुए वह सिर्फ अपनी व्यस्तताओं का ही रोना रो रही थी क्योंकि उसने तो किटी पार्टी भी ज्वाइन कर रखी थी, इसके लिए फिर से हर महीने अपने कपड़ों इत्यादि के लिए तैयारी करनी होती थी। उसने नीता से पूछा कि तुम्हारा सब काम इतना व्यवस्थित और इतने आराम से कैसे हो जाता है?
तभी नीता जवाब दिया क्योंकि मुझे सब काम अपने और अपने परिवार के लिए करने होते हैं, झूठे दिखावे से जिंदगी नहीं चलती। मुझे बार-बार बाजार जाने की कोई जरूरत ही नहीं होती।
मतलब? मीनल ने पूछा तब
नीता ने जवाब दिया मतलब साफ है मीनल जी, आपके दिन की शुरुआत ही 8:00 बजे होती है। मैं ठीक 4:30 बजे उठ जाती हूं उसके बाद थोड़ा सा योगा ध्यान करके लगभग 6:00 तक मेरे घर का सारा खाना बनाने का भी काम खत्म हो जाता है और उसी समय तक मैं और विनय अपनी सुबह की चाय भी पी चुके होते हैं। क्योंकि हम जल्दी उठते हैं इस कारण बच्चों को भी जल्दी उठने की आदत है
जब तक आप उठती हैं तब तक बच्चों का भी खेलकूद और पढ़ाई का भी काफी काम निपट चुका होता है। विनय के आने से पहले ही मैं शाम का खाना भी बना लेती हूं और शाम की चाय के साथ के लिए भी कुछ बना लेती हूं इस तरह से विनय के आने के बाद मेरा पूरा समय विनय और बच्चों के
लिए ही होता है। यदि हमें कोई मार्केट का काम हो तो मैं विनय के साथ ही चली जाती हूं। फैंसी ड्रेस शो के लिए मुझे कुछ भी नहीं करना था घर में रखी हुई धोती और कुर्ता और सफेद साड़ी पहनकर ही मैं बच्चों को फैंसी ड्रेस शो के लिए भेज दिया था।
मीनल को याद आया कि बच्चों के फैंसी ड्रेस शो के लिए वह पूरी मार्केट में 2 दिन तक भटकती रही फिर कहीं जाकर वह ड्रेस मिली। बाहर घूमने के कारण जो थक गई थी तो वह खाना भी नहीं बना सकी इसलिए सब के लिए खाना भी बाहर से आया था।
तभी नीता ने आगे बोला दीदी आप लोग देर से सोते हो और इसलिए आप लोगों की रातें लंबी होती है लेकिन रात को कितनी ही लंबी कर लो उससे हमें फायदा क्या होगा दिन लंबा होता हो तो हमारा ब्रेकफास्ट जल्दी हो जाता है लंच बना हुआ होता है और हमको हर काम के लिए बहुत समय मिल जाता है। कई बार थकान होने पर मैं दोपहर में सो भी जाती हूं लेकिन शाम को 4:00 बजे ही खाना
इत्यादि बनाकर विनय के आने के बाद हम चाय नाश्ता करके 8:00 बजे तक अपना डिनर भी कर लेते हैं। कई बार तो आपके कमरे के तेज टीवी की आवाज से 12:00 बजे मेरी नींद खुलती है । एक बार तो जब आपका ऑनलाइन खाना आया था तब तक तो हमारी आधी नींद भी पूरी हो चुकी थी और उसने आपकी बजाए गलती से हमारे घर का दरवाजा खटखटा दिया था। हमारे पास में दिन में बहुत समय होता है अपने काम को व्यवस्थित करने और निपटाने के लिए। दूध, फल और सब्जी आदि
छोटे-मोटे सामान तो विनय दफ्तर जाने से पहले ही घर में लाकर रख देते हैं। आपके घर तो शायद सोने का कोई समय है ही नहीं। आप की व्यस्तताओं का और मेरे व्यवस्थित होने के पीछे एक ही कारण है कि आपकी रातें लंबी होती है और हमारे दिन। क्योंकि सारे काम दिन में ही होते हैं इसलिए हमारा दिन व्यवस्थित होता है वहीं टीवी के प्रोग्राम जो आप रात में देखते हैं मैं स्वेटर बुनते हुए या
सब्जी काटते हुए दिन में देख लेती हूं। ओह!!!!! तभी मीनल के कुकर की सीटी बजी और उसे याद आया उसने दूध भी तो गैस पर चढ़ा रखा है। ओ के कहते हुए मीनल ने फिर से नीता को बधाई दी और अपने घर चली गई। रसोई में जाते जाते वह कुछ सोच रही थी।
पाठक गण आपका क्या ख्याल है , जीवन में सच्ची खुशी महंगे सामान और दिखावे से नहीं मिलती अपितु अपने परिवार के साथ बैठकर मुस्कुराने से मिलती है। कृपया कमेंट्स द्वारा अपने विचार सूचित करें।
मधु वशिष्ठ, फरीदाबाद, हरियाणा