अरे करमजले! तू क्या कहीं का राजा- महाराजा है ? जो तेरी अय्याशी के बावजूद कोई अपनी लड़की देगा ….
तेरा बेटा हीरो है हीरो … मैं उस उल्टे तवे से शादी हरगिज़ नहीं करूँगा….. लड़कियों की….. नहीं-नहीं हीरोइनों की लाइन लगा दूँगा……
चुप रह बेशर्म! किसी ओर के सामने दिखा ये सब्ज़बाग़…..
नंदा जी जानती थी कि रोशन की असलियत जाने-पहचाने लोग तो जानते हैं, इसलिए उनके द्वारा तो रिश्ता कभी नहीं भेजा जाएगा । कुछ देर तक बेचैन रही पर माँ का दिल …. रोशन के भविष्य की चिंता सताने लगी और उन्होंने मैरिज ब्यूरो वाली को फ़ोन मिला दिया ।
हाँ कामिनी बोल रही हूँ , क्या लड़का दुबारा लड़की को देखना चाहता है ? कल तो उसने कहा था कि लड़की साँवली है… अब क्या हुआ ?
हाँ बहनजी…. दरअसल वो जल्दबाज़ी में….
जल्दबाज़ी? पता भी है… बोलने से पहले सोचा भी नहीं , वो तो अच्छा है कि अभी लड़की वालों का फ़ोन नहीं आया पर बहन ये तो बताओ, मैं उन्हें क्या कारण बताऊँगी दुबारा आने का …
माफ़ कीजिएगा बहनजी, आप इस बिगड़ी बात को सँभालिए । क्या कहना है…. आप ही सोचिए..
नंदा जी की सहेली की ननद कामिनी एक मैरिज ब्यूरो चलाती थी । जब नंदा जी के छोटे बेटे के लिए कोई रिश्ता नहीं आया तो चिंतित होकर , उन्होंने अपनी सहेली से ज़िक्र किया और उसी ने कामिनी जी का नंबर देकर बात करने के लिए कहा ।
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नंदा जी का छोटा बेटा रोशन दिखने में इतना आकर्षक था कि जो भी उसे एक बार देख लेता , बस देखता ही रह जाता । रोशन को ही नहीं, नंदा जी और उनके पति को यह यक़ीन था कि रोशन के लिए तो लड़कियों की लाइन लग जाएगी और उन्हें चुनाव करने में बड़ी मुश्किल हो जाएगी पर लाइन तो क्या, वे तो मुँह खोले इंतज़ार करते ही रह गए ।
दरअसल मन बहलाने और रिश्ता जोड़ने में ज़मीन -आसमान का अंतर होता है । कोई भी भले परिवार का व्यक्ति अपनी बेटी के लिए एक दिल फेंकूँ और जगह-जगह मुँह मारने वाले से संबंध जोड़ना नहीं चाहता । मोहल्ले में तो दबी ज़बान में यह भी कहा जाता था कि रोशन और उसकी भाभी के बीच भी अनैतिक संबंध है….. शायद इसीलिए नंदा जी उसका विवाह करने के लिए जी जान लगा रही थी …. ऊपर से रोशन को नेतागीरी का शौक़ था, कभी किसी विधायक के साथ, कभी किसी मंत्री के साथ । माता-पिता अपने बेटे की आदतों को भली प्रकार से जानते थे पर फिर भी एक उम्मीद थी कि शादी हो जाएगी…. बाल-बच्चा हो जाएगा और ये अपनी ज़िम्मेदारी को समझ लेगा ।
कामिनी जी अच्छी तरह जानती थी कि लड़की की माँ सौतेली है इसलिए उसे दुबारा लड़के को बुलाकर दिखाने में कोई ज़्यादा मुश्किल नहीं हुई । कामिनी इस बात का विश्वास दिला चुकी थी कि एक पैसा खर्च नहीं होगा ….. राज करेगी लड़की, बस खाते-पीते घर का लड़का थोड़ा राह से भटका है ।
सौतेली माँ ने भी पिता को समझाते हुए कहा——
कौड़ी तो तुम्हारे पास है नहीं, सोचते हो कि लड़की को धन्नासेठों के ब्याह दें ….अरे , अक़्ल से काम करे । क्या करना बिगड़े चाहे सुधरे । बच्चे हो जाएँगे…. फिर इसकी ही चलेगी ।
उधर नंदा जी ने भी लड़के को बहकाते फुसलाते हुए कहा —
तुझे कौन सा पार्टी में लेकर जाना है उसे , काला तवा हो या पूनम का चाँद । कम से कम रोटी पानी देने वाली तो आ जाएगी ।
बस हफ़्ते के अंदर ही मंदिर में फेरे डलवाकर घर ले आए । उसी दिन पग फेरे की रस्म अदा करवाई और फिर कभी मुड़कर मायके वालों ने देखा तक नहीं…. वैसे कहा भी जाता है कि माँ ना हो तो पिता पहले सौतेला हो जाता है ।
पर कृष्णा बचपन से ही संघर्षों का सामना करती आई थी । जब शादी के चार दिन बाद तक पति के दर्शन नहीं हुए तो सास से पूछ बैठी —-
माँ , आपका बेटा कहाँ है ? ये तो मुझे पता है कि मैं उन्हें पसंद नहीं पर अब तो जैसी भी हूँ, उनकी पत्नी हूँ । क्या आप एक बार उनसे मेरी मुलाक़ात करवा देंगी ।
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नंदा जी तो खुद परेशान थी । नई बहू का आत्म विश्वास देखकर उनकी आँखों में चमक सी आई , बात घुमाते हुए बोली—-
वो बहू … रोशन का दोस्त बड़ा बीमार है बस उसी की देखभाल के लिए अस्पताल में रूका है दरअसल वह बेचारा अकेला है ।
उसी समय पति और बड़े बेटे को उन जगहों पर भेजा, जहाँ रोशन मिल सकता था । ….ख़ैर किसी विधायक के फार्म हाउस में नशे की हालत में मिला । भाई और पिता सहारा देकर लाए और कृष्णा के कमरे में पहुँचाया । कृष्णा को इसी बात से तसल्ली मिली कि आख़िर सास-ससुर ने उसकी बात को सुना तो सही , मना कर देते या उल्टा- सीधा कहके चुप करा देते तो वह क्या कर लेती ?
अगले दिन सुबह पति के उठने से पहले ही वह नहा धोकर बड़ी सादगी से तैयार हो गई । रंग थोड़ा पक्का अवश्य था पर मैरून रंग की साड़ी, चूड़ियों से भरी कलाई , माथे पर छोटी सी बिंदी और सर पर टिके पल्लू में , वह ग़ज़ब की आकर्षक लग रही थी । जब रोशन की आँख खुली तो कृष्णा के तेजस्वी चेहरे को वह देखता ही रह गया । अपनी सफ़ाई देते हुए बोला—-
असल में जहाँ काम करता हूँ, उन्होंने एक ज़रूरी काम से दूसरे शहर भेज दिया था…..
कोई बात नहीं…. मैं जानती हूँ कि आप ने मुझे अपना जीवन साथी चुना है और आप मुझसे कभी झूठ नहीं बोलेंगे ….. चलिए तैयार हो जाइए ….. आज हमें मंदिर भी जाना है ।
हे भगवान! कहाँ फँस गया …. ऊँह … जीवनसाथी मैंने इसे चुना … ख़ैर…. नई चिड़िया है , दो-चार दिन उड़ने दो … फिर ऐसे पंख काटूँगा कि पता चल जाएगा ।
पर दो-चार दिन कहाँ…. रोशन तो दोपहर के भोजन के बाद ही भाभी के कमरे में जा पहुँचा । रसोई में केवल सास और कृष्णा थी , उसने हिम्मत करके पूछा—-
माँ, भाभी कहाँ है खाने के लिए बुला लाऊँ ? भैया तो रात को आते हैं ना। ?
तू खा ले , अपने आप खा लेगी । बर्तन साफ़ करने वाली शाम को आती है । तब तक तू भी आराम कर लेना अपने कमरे में ।
कृष्णा कमरे में जाकर लेट गई । पहले तो सोचा था कि रोशन यहीं होगा , फिर लगा कि शायद बाहर गया होगा पर जब काफ़ी देर तक वह नहीं आया तो वह सोच में पड़ गई क्योंकि सास-ससुर को उसने कमरे में जाते देखा, जेठ सुबह ही ऑफिस चले गए , जेठ के दोनों लड़के स्कूल से चार बजे तक आते थे और जेठानी……. कहीं जेठानी और रोशन….. छिः क्या सोच रही हूँ पर उसने कई बार इस तरह की बातें सुनी है…. तो क्या ऐसा सचमुच होता है ।
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सोचते-सोचते आँख लग गई । जब आँख खुली तो रोशन उसकी बराबर में लेटा था——
अरे आप कहाँ थे , पता ही नहीं चला और आँख लग गई…….
रोशन ने उसे अपनी ओर खींचकर उसे विवाहिता बना दिया । नई शादी हुई है….. शायद नंदा जी ने भी यही सोचकर शाम की चाय काम वाली के हाथों वहीं भिजवा दी
रोशन तो आज़ाद पंछी था । ठीक तीन दिन बाद ही उसके लिए घर में टिकना मुश्किल हो गया ।
विवाह के पंद्रह दिन में कृष्णा अच्छी तरह समझ गई कि मामला बड़ा पेचीदा है , बाहर की तो बात ही जाने दो , घर में भी …. हाय राम ! आख़िर माँ देखकर भी क्यों अनदेखा कर रही है, क्यों बड़ी बहू को कुछ कहती नहीं….. इसका मतलब कि केवल सौतेली माँ ही उसके दुखों का कारण नहीं थी और भी न जाने कितने इम्तिहान देने हैं ….
माँ , एक बात पूछूँ ?
क्या-क्या पूछेगी और मैं क्या-क्या बताऊँगी…. पर पूछ ले … मुझे पता है कि एक औरत होकर मैंने दूसरी औरत के बारे में नहीं सोचा पर उस माँ के दिल का क्या करूँ…. जिसे पता है कि उसके बच्चे को कोई एक रोटी भी नहीं देगा । ये तो चार दिन की जवानी है…. फिर मारा-मारा फिरेगा ।
माँ , मैं घर के बाहर की नहीं बल्कि घर के अंदर की बातकर रही हूँ…..
तो तू समझ गई, ये जवानी सबसे ना संभलती बहू , यही तो फ़र्क़ है जानवर और आदमी में , इसी धरती पर पतिव्रता भी हैं और इसी धरती पर वेश्याएँ भी । पर मैं किसे कहूँ , जब मेरी ही औलाद मेरे वश में नहीं । मेरा रोशन पहले बड़ा सीधा था , जबसे बड़े का ब्याह हुआ, घर की तक़दीर फूट गई ….. रोहित को तो यही पता है कि लोग तो कहानियाँ गढ़ते हैं…. कहीं से एक बार कुछ सुन लिया होगा, मैंने ही यक़ीन दिलाया कि लोग बात बनाते हैं, उस दिन भी बोला था—-
माँ , अगर इस बात में जरा सी भी सच्चाई होती तो या तो खुद मर जाता या इसे मार देता …..
शादी के तीन महीने बाद ही पता चला कि कृष्णा के पाँव भारी हैं । खबर मिलते ही रोशन तो बिफर उठा——
बच्चा ! ये क्या आफ़त आ गई, माँ, मैंने कह दिया कि इसे किसी अस्पताल में ले जाओ , मुझे बच्चा- वच्चा नहीं चाहिए ।
पर मुझे चाहिए और मेरे बच्चे के लिए आप कुछ मत करना।
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तीन महीने के बाद अल्ट्रासाउंड करने पर पता चला कि कृष्णा जुड़वां बच्चों को जन्म देगी । इन दिनों में रोशन जितनी मानसिक परेशानियाँ दे सकता था, उसने दीं पर कृष्णा उतनी ही मज़बूती के साथ खुद को आगे बढ़ाती रही ।
निश्चित समय पर कृष्णा ने दो फूल सी नाज़ुक और दूध सी उज्ज्वल बेटियों को जन्म दिया । डिलीवरी के समय सास उसके साथ थी । रोशन तो अपनी बेटियों को देखने तक नहीं आया । हाँ, जेठ के साथ जेठानी ज़रूर आई पर आँखें चुराती नज़र आई ।
कृष्णा की दोनों बेटियों को बाप का रंग- रूप मिला था । जो देखता , गोदी में उठाए बिना न रहता । ऋद्धि-सिद्धि छह महीने की हो चुकी थी पर रोशन ने उनकी तरफ़ आँख उठाकर भी नहीं देखा । एक दिन नंदा जी धूप में बैठी बच्चियों के साथ खेल रही थी कि तभी रोशन वहाँ आया और बच्चियों की तरफ़ पीठ करके बैठ गया । तभी नंदा जी बोली –
बोलो , पा…पा…पा….पा….
और सचमुच प…प…..प…. की आवाज़ आई पर रोशन जस का तस अपने स्थान पर जमा रहा ।
अगले दिन बच्चियाँ बेड पर आराम से सो रही थी और कृष्णा पास ही बैठी कपड़ों की मरम्मत कर रही थी । इतने में बच्चियाँ रोने लगी । कृष्णा दूध पिलाने लगी तो अचानक उसने देखा कि रोशन तिरछी निगाहों से उन्हें देखने की कोशिश कर रहा है पर जैसे ही उसकी नज़र कृष्णा पर पड़ी उसने तुरंत आँखें फेर ली ।
आज कृष्णा की बेटियों का अन्नप्राशन था । इस पूजा में शामिल होने के लिए रोशन केवल इस शर्त पर घर में रूका था कि वो हवन में नहीं बैठेगा , इसलिए नंदा जी ने बड़े बेटे और बहू से हवन में बैठने को कहा । तभी पड़ोस की एक महिला ने मज़ाक़ में कहा —-
अरे रोहित बेटा , तुझे पता है कि जो बच्चियों को गोद में लेकर बैठेगा , बच्चियों पर उनका ही प्रभाव पड़ेगा और इस जमाने में तेरे जैसे सीधे लोगों का कहाँ गुज़ारा ?
तभी रोशन तेज़ी से प्रसाद बनाती माँ के पास जाकर बोला —
माँ, हवन में पापा के साथ आप बैठो , भैया तो ठीक है पर भा..भी.. मैं नहीं चाहता कि मेरी बच्चियों पर उनका प्रभाव पड़े..
मेरी बच्चियाँ ? तुम्हारी कौन सी बच्चियाँ …..
धीरे बोल कृष्णा….. बाहर लोग बैठे हैं … मैं तेरे हाथ जोड़ती हूँ
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ये क्या कह रही है माँ ! मेरी बेटियाँ बिना बाप की नहीं, माँ चुप रहने से काम नहीं चलेगा । जैसा वातावरण होगा , बच्चों पर वैसा ही प्रभाव पड़ेगा । कल को अंश और वंश भी चाचा और माँ की देखादेखी…….. देखो रोशन, आज या तो तुम मेरे साथ हवन में बैठोगे या भैया के साथ उनकी पत्नी , आज ही तुम्हें फ़ैसला करना है ।
नंदा जी और उनके पति ने देखा कि रोशन कृष्णा से कह रहा था—-
कृष्णा, केवल हवन के समय मेरी ऋद्धि- सिद्धि को अपनी गोद में लेना , मैं नहीं चाहता कि मेरा रत्ती भर प्रभाव भी इन पर पड़े ।
जब हवन के बाद रोशन और कृष्णा माँ-पापा का आशीर्वाद लेने आए तो वे बोले—-
हम बहुत भाग्यशाली हैं जो हमें ऐसी बहू मिली ।
जिसने दलदल में फँसे हमारे बेटे को बाहर निकालकर उसे जीवनदान दिया है ।
करुणा मलिक
हम बहुत भाग्यशाली हैं जो हमें ऐसी बहू मिली