ज़रूरत – करुणा मलिक

आदेश जी ने एक आर्मी ऑफ़िसर के पद से रिटायर होने के पहले अपनी पत्नी चित्रा के साथ अपने पैतृक गाँव में ही तीन बेडरूम का छोटा सा घर बनवा लिया था । आज रिटायरमेंट के बाद अपने उसी घर का गृहप्रवेश और रिटायरमेंट पार्टी साथ-साथ ही यह सोचकर रखी थी कि दो- दो बार आने का समय भला किसके पास है । उनके अपने दोनों बच्चे ही नहीं आ पाएँगे तो दूसरों से क्या शिकवा करेंगे?

वैसे रिटायर तो दो महीने पहले हो चुके थे पर घर का थोड़ा काम बचा था और गृहप्रवेश का मुहूर्त भी बाद का निकला था इसलिए तब तक वे दोनों बड़े भाई के परिवार के साथ ही रहे थे । एक ही आँगन था इसलिए ज़्यादा परेशानी नहीं हुई थी मकान पूरा करवाने में । आदेश जी के बड़े भाई अनिल जी अपनी पत्नी और दो बेटों के साथ वहीं रहते थे । आदेश जी ने आर्मी ज्वाइन कर ली थी और हमेशा परिवार के साथ बाहर ही रहे इसलिए उनके बेटे को पुश्तैनी कारोबार में कोई दिलचस्पी ही नहीं थी । वह इंजीनियरिंग के बाद मुंबई में ही नौकरी करने लगा । बेटी की शादी हो चुकी थी और वह भी अपने घर गृहस्थी में व्यस्त थी ।

चित्रा ने इस बार महसूस किया कि जब से रिटायर होकर आएँ हैं, जेठानी की दोनों बहुएँ मालिनी और दीपा उतनी खुश दिखाई नहीं दे रही थी जितनी पहले होती थी । चित्रा ने एक दो बार पूछने की कोशिश की पर उन्हें कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला । चित्रा ने जेठानी से भी पूछा —

भाभी! घर में सब कुछ ठीक है ना ? मालिनी और दीपा कुछ उखड़ी- उखड़ी सी लग रही है ।

सब कुछ ठीक है । अब इनकी भी ज़िम्मेदारियाँ बढ़ रही हैं । बच्चे बड़े हो रहे हैं, हमारे भी चार काम इनको करने पड़ते हैं । पहले वाली बेफ़िक्री ख़त्म हो रही है । तुम चिंता मत करो , समय के साथ सब ठीक हो जाएगा । अच्छा…. ये बताओ गौरव और बहू कितने दिन पहले आ जाएँगे पूजा से ?

पता नहीं भाभी, कहाँ टाइम है बच्चों के पास ? दो दिन पहले आ जाएँ तो उतना ही काफ़ी है ।

इतना कहकर चित्रा किसी काम से अपने घर जाने के लिए आँगन की तरफ़ मुड़ी कि रसोई की खिड़की के पास से गुजरते समय उन्हें दीपा की आवाज़ सुनाई पड़ी—

चाची के बेटे के पास तो टाइम नहीं और हम ख़ाली बैठे हैं यहाँ । बताओ हम अपने सास- ससुर को निभाएँगे बुढ़ापे में या इनको ?

यह सुनकर चित्रा हक्की- बक्की रह गई । जो बात ये दोनों बहू सोच रही थी, उनके तो दिल में भी दूर- दूर तक ऐसा ख़्याल नहीं आया था । बुरा तो बहुत लगा पर वे चुपचाप चली गई ।चित्रा ने आदेश जी से भी इसका ज़िक्र नहीं किया ।

पूजा के दो दिन पहले ही बेटा- बहू , बेटी- दामाद , जेठ की दोनों बेटियों के परिवार, और दूसरे करीबी रिश्तेदार आ गए क्योंकि हवन के दो दिन पहले शनिवार और इतवार की छुट्टी के कारण सबको रहने का मौक़ा मिल गया था । चित्रा और आदेश जी ने दीपा और मालिनी के मायके वालों को भी उसी तरह निमंत्रण दिया था जैसे अपनी बहू के मायके वालों को । मेहमानों की गहमागहमी को देखकर चित्रा ने आदेश जी से कहकर दो दिन पहले ही चाय- खाना इत्यादि के लिए हलवाई का इंतज़ाम कर दिया था ताकि सब रसोई से फ़्री रहकर आपस में मिले- जुलें ।

आदेश जी और चित्रा ने सबका खुले दिल से मान- सत्कार किया और जाते समय भी बढ़िया विदाई दी । पूरे एक हफ़्ते के बाद घर ख़ाली हो गया । घर को व्यवस्थित करने में जुटी चित्रा को अकेली काम करती देख अनिल जी ने अपनी पत्नी से कहा —शिक्षा , दीपा या मालिनी से कहो कि अपनी चाची के साथ लगकर काम करवा दें । ये तो ठीक नहीं कि बहुओं के होते ये सब अकेली कर रही है।

चित्रा जेठ को मना करना चाहती थी पर चाहते हुए भी उसने कुछ नहीं कहा क्योंकि जेठ के सामने उसने कभी मुँह खोला ही नहीं था ।

दिन गुजरते जा रहे थे ।यहाँ पहुँच कर चित्रा और आदेश जी ने यह नियम बना लिया था कि सुबह की चाय वे चारों घर के छोटे से बगीचे में बैठकर पीते थे । घंटा भर बैठते , बातचीत करते और फिर दिनचर्या शुरू करते थे । एक दिन चित्रा को अपनी सास के बालों में तेल लगाती देख मालिनी दीपा से बोली—

सीख लें कुछ चाची से , कल मेरे सिर में मालिश कर देना ।

ना भाभी, मुझसे ऐसा दिखावा नहीं होता । अपने तो जो अंदर है वो ही बाहर दिखाई देता है ।

शिक्षा और चित्रा दोनों ही बहुओं के कटाक्ष को समझ रही थी । चित्रा ने सोचा कि शायद जेठानी इस बात का जवाब देंगी पर उन्होंने तो लाचार नज़रों से चित्रा की ओर देखकर नज़रें झुका लीं । चित्रा कहने को तो बहुत कुछ कह सकती थी पर उन्होंने उस समय केवल इतना ही कहा —-

मालिनी , मैं लगा दूँगी तुम्हारे बालों में तेल । महीने में एक आध बार लगा लेना चाहिए ।

शाम को खाना खाते समय चित्रा ने आदेश जी से इस बात का ज़िक्र किया तो आदेश जी बोले—-

चित्रा! जब साथ रहते हैं तो दो बर्तन खटकने स्वाभाविक है पर तुम्हें बस इतना ध्यान रखना है कि ये मेरे बड़े भाई- भाभी नहीं, मेरे माता-पिता हैं ।

उसके बाद चित्रा ने सोच लिया कि अब पति को इस तरह की कोई बात नहीं बताएगी क्योंकि उनका भी ब्लड- प्रेशर हाई रहता है, माइनर अटैक भी हो चुका था,? बिना मतलब का स्ट्रेस होगा । बस वे बेटी गुंजन के साथ बात करके दिल हल्का कर लेती थी ।

होली से तक़रीबन दो हफ़्ते पहले की बात थी कि एक दिन मालिनी चित्रा के पास आकर बोली—-

चाची! कल होली का नेग लेकर भाई- भाभी और बच्चे आएँगे । मेरी मिक्सी चलते- चलते बंद हो गई…. दही भल्ले बनाने के लिए दाल पीस रही थी , आपकी मिक्सी कहाँ रखी है ?

मिक्सी तो ये रही …. ऐसा करो दाल यहीं पकड़ा दो ….. मैं पीस दूँगी तुम कुछ ओर कर लो । वैसे भी ख़ाली हूँ मैं ।

शायद उस दिन सचमुच मालिनी बहुत व्यस्त थी । चाची सास की बात सुनकर वह चुपचाप दाल पकड़ाकर चली गई । दाल पीसने के बाद चित्रा ने सोचा कि बड़े बनाकर तल भी देती हूँ, मालिनी का काम हल्का हो जाएगा ।

जब चित्रा तले बड़ो को पकड़ाने गई तो खुश होने की बजाय मालिनी बोली —हाय ! आपने तो मेरे ऊपर अहसान चढ़ा दिया । अब कल दोपहर का खाना यहीं खाना आप दोनों ।

यह सुनकर चित्रा के दिल को गहरी ठेस पहुँची । दोनों बहुओं के मन में कितनी तेर-मेर है । अपनों के साथ रहने के लिए वे लोग यहाँ आए थे । अगर आदेश जी को इन बातों का पता लगे तो उनको कितनी तकलीफ़ पहुँचेगी ।

ख़ैर अगले दिन मेहमानों के आने पर अनिल जी ने आदेश जी और चित्रा को आवाज़ देकर बुला लिया । चाय पीते- पीते आदेश जी ने महसूस किया कि मालिनी का भाई हर बात को घुमाफिरा कर इस तरह से पेश करने की कोशिश कर रहा था कि जैसे रिटायर होने के बाद उन्हें यहाँ न आकर अपने बेटे के पास रहना चाहिए था । आदेश जी ने सोचा कि मौक़ा अच्छा है मालिनी के भाई- भाभी के साथ-साथ भतीजों और उनकी पत्नियों को भी यह बताना कि यहाँ घर बनाकर रहने का उनका असली मक़सद क्या था । वे मालिनी के भाई से बोले —-

बरखुरदार , जब मैंने अपने गाँव में घर बनाने का फ़ैसला किया था तो मेरे कई दोस्तों ने कहा था कि आप अपने बेटे के पास क्यों नहीं रहते पर मैंने साफ़ लफ़्ज़ों में कह दिया था कि अब मैं अपने बड़े भाई- भाभी के साथ रहूँगा । माता-पिता तो याद नहीं, बस माँ शब्द सुनते ही भाभी का चेहरा याद आता था । दस साल का था जब से भाभी ने ही सँभाला था । भैया ने छोटी सी दुकान भी सँभाली , मुझे भी, अपने बच्चों को भी और नाते- रिश्तेदारी को भी । मैं हमेशा यही प्रार्थना करता था कि भगवान भाई- भाभी के साथ रहने का मौक़ा जरुर देना ।

पता नहीं…. कितना साथ है अब तो ? एक माइनर अटैक आ भी चुका है…..

आदेश जी के इतना कहते ही शिक्षा तुरंत बोली —-

क्या बोलता रहता है आदेश…. चुप कर । भगवान करे, तुझे मेरी भी उम्र लग जाए ।कहने के लिए तू देवर है पर है तो मेरा बड़ा बेटा ।

बस इसी प्रेम का क़र्ज़दार हूँ इसलिए यहाँ खिंचा चला आया । अब कोई कुछ भी समझे , कभी ईश्वर का हुक्म होगा तो बेटे के पास चले जाएँगे ।

क्यों चले जाएँगे? आप कहीं नहीं जाएँगे चाचाजी । जिस तरह आज भी आपको माँ-बाबूजी के आशीर्वाद और प्यार की ज़रूरत है उसी तरह उनके बाद हमें आपकी और चाचीजी की ज़रूरत रहेगी । अनिल जी के दोनों बेटे एकसाथ बोले।

पर आदेश, तुम्हें ये सब कहने की ज़रूरत क्या आन पड़ी कि तुम रिटायरमेंट के बाद यहाँ रहने क्यूँ आए ? शिक्षा! घर में कुछ चल रहा था क्या ? काफ़ी दिनों से मैं भी कुछ भ्रम की स्थिति में था पर तुमने कुछ कभी बताया ही नहीं । अनिल जी ने कहा ।

चित्रा की जेठानी, जो पिछले कुछ सालों से बहुओं से दबने सी लगी थी अचानक आत्मविश्वास के साथ बोली—

सब ठीक है और अगर थोड़ा बहुत होगा भी तो मैं और चित्रा सँभाल लेंगे । आप दोनों भाई चिंता ना करें ।

बड़ी बहू मालिनी जो चुपचाप खड़ी थी और अक्सर अपने मायके वालों के सामने चाचा ससुर और चाची सास की बातों का रोना रोती रहती थी, वह बोली —

पिताजी, असल में चोर मेरे मन में था । मुझे ऐसा लगता था कि चाचाजी के बुढ़ापे में हमें ही उनकी ज़िम्मेदारी उठानी पड़ेगी क्योंकि उनका बेटा तो बाहर रहता है । दीपा के मन में भी मैंने ही यह बात डाली थी । मुझे माफ़ कर दीजिए ।

चलो तुमने गलती मान ली तो ठीक है । वैसे तुम्हारी जानकारी के लिए बता दूँ बहू …. कि इस सारी ज़मीन जायदाद मकान में आदेश बराबर का हिस्सेदार हैं । वो चाहता तो इसी घर में रह सकता था परंतु उसने अपने तीन कमरे अलग ही बना लिए । शिक्षा! मेरे जीते जी आगे से ऐसा कभी ना हो कि बहू के मायके वाले हमारे घर के मामलों में आज की तरह दख़लंदाज़ी करें वरना मुझसे बुरा कोई नहीं होगा । इतना सुनते ही मालिनी के भाई ने खड़े होते हुए अपनी पत्नी को चलने का इशारा किया क्योंकि वह अच्छी तरह जानता था कि अनिल जी को अगर एक बार ग़ुस्सा आ गया तो उसे झेलना भारी पड़ जाएगा ।

भाई को जाते देख मालिनी ने जल्दी से शगुन के तौर पर आधा किलो मिठाई का डिब्बा चित्रा को पकड़ाया । चित्रा ने मालिनी के भाई से कहा —

तुम लोग होली का नेग लेकर आए थे, तो ख़ाली हाथ कैसे जा सकते हो । और हाँ संजय , कब किसको किसके सहारे की ज़रूरत पड़ जाए , कोई नहीं जानता । ये भी कहीं लिखा हुआ नहीं है कि हमेशा पहले बूढ़े ही इस संसार से जाते हैं । तुम मालिनी के बड़े भाई हो , तुम्हें तो उसे समझाना चाहिए । मैं माना कि दुनिया में चारों तरफ़ स्वार्थ है पर हर एक को स्वार्थी नहीं समझना चाहिए ।

अपने देवर- देवरानी का साथ पाकर शिक्षा का सोया आत्मविश्वास भी जाग गया था । वह चित्रा के साथ आकर खड़ी हुई थी कि मालिनी के भाई- भाभी सिर झुकाकर घर से बाहर निकल गए थे ।

लेखिका : करुणा मलिक

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