जैसा करोगे वैसा ही तो फल मिलेगा – हेमलता गुप्ता

क्या बात है भाभी… बड़ी मुरझाई मुरझाई लग रही हो बेटे की शादी के बाद तो चेहरे की रौनक ही उड़ गई लगता है बहु रानी गरम-गरम रोटियां नहीं दे रही.? रिश्तेदारी की शादी में आई अपनी बड़ी ननद मधु की बात सुनकर सुशीला बोली…..

अरे काहे की गरम-गरम रोटी.. यहां तो अगर एक कप चाय भी मिल जाए तो नसीब है मेरा! दीदी आपको तो पता है रजत इकलौता बेटा है मेरा, कितने अरमानों से बेटी की चाहत करके नंदनी को अपनी बहू बनाकर लाई पर यह बेटी क्या बहू भी नहीं निकली! क्यों भाभी..

ऐसा क्या हो गया… मधु को अपनी भाभी की तकलीफ देखकर अंदर ही अंदर खुशी महसूस हो रही थी पर उसने उसे जाहिर नहीं होने दिया! तब सुशीला बोली… क्या बताऊं दीदी जब तक रजत घर पर रहता है तब तक तो खूब हस्ती मुस्कुराती है और मेरे साथ काम भी करवाती है,

9:00 बजे रजत जैसे ही ऑफिस के लिए निकलता है बस अपना खाना लेकर कमरे में जाकर बैठ जाती है पूरा दिन हो जाता है कमरे से बाहर नहीं आती, यह भी नहीं पूछती की मम्मी आपको किसी चीज की जरूरत तो नहीं है,

या आ जाओ हम दोनों साथ बैठकर खाना खा ले या कुछ नहीं तो टीवी साथ देख ले, पर पता नहीं कैसी रहती है, अगर कभी बुलाने जाऊं उसके कमरे में तो कहती है …मम्मी मुझे डिस्टर्ब मत किया कीजिए आपका खाना बना कर रख दिया है ना आप खा लेना,

और सो जाना! अब बताओ भला क्या कोई बहू से ऐसी उम्मीद करता है अब तो बल्कि अपने ही घर में पराई महसूस कर रही हूं! सुशीला की बात सुनकर मधु बोली भाभी यह तो कर्मों का चक्र है जो घूम फिर कर हमें इसी जन्म में मिल जाता है! सुशीला अनजान बनते हुए बोली….

मैं कुछ समझी नहीं! भाभी मम्मी भी तो अपनी बहू से दो घड़ी हंसने बोलने को तरस जाती थी आप भी तो उनके साथ ऐसा ही करती थी, अगर मम्मी हाल में बैठी होती तो आप कमरे में जाकर बैठ जाती और मम्मी अगर बाहर बैठ जाती तो आप छत पर चली जाती,

मम्मी ने भी तो आपको कितने लाड चाव से रखा था तब बदले में आपने क्या दिया उन्हें, उम्र भर तिरस्कार..? यहां तक की हम तीनों बहनों से भी आप कटी कटी सी रहती थी बस आपको घर में सिर्फ भैया से मतलब होता था हमने भी तो अपनी भाभी के लिए कितने अरमान सजाए थे!

मधु अपनी भाभी से कहना तो कुछ नहीं चाहती थी किंतु भावनाओं में शब्द अपने आप ही निकलते जा रहे थे! भाभी आपकी बहू तो खाना तो बना देती है आपने तो कभी मां के लिए लिए गरमा गरम रोटियां तो छोड़ो चाय भी नहीं बना कर पिलाई,

मां घर का इतना सारा काम करती थी उनकी कमर में दर्द रहता था और फिर भी बर्तनों को झुक कर साफ करती थी, खैर… आपको तो सब पता ही है आपको क्या याद दिलाना, अपना किया हुआ ही घूम फिर कर सूद समेत वापस आता है जैसा करोगे वैसा मिलना ही है

अपने “कर्मों का चक्र तो चलता ही रहता है”! मधु की बात सुनकर सुशीला सोचने पर मजबूर हो गई क्या वाकई में ऐसा होता है मैंने भी तो अपनी मां समान सास को ऐसे ही उपेक्षित रखा था तो भला मैं अपनी बहू से अपेक्षा कैसे रख सकती हूं? सही है भगवान की लाठी में आवाज नहीं होती लेकिन पडति जरूर है!

  हेमलता गुप्ता स्वरचित

   वाक्य प्रतियोगिता (कर्मों का चक्र तो चलता ही रहता है)

       #जैसा करोगे वैसा ही तो फल मिलेगा

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