मालती का पति एक फ़ैक्ट्री में फोरमैन था।वो अपने पति और बेटे के साथ किराये के छोटे-से घर में बहुत खुश थी।उसके आसपास के घरों में भी फ़ैक्ट्री के ही वर्कर्स के परिवार रहते थें लेकिन उनका आर्थिक स्तर मालती से बहुत अच्छा था।उनके ठाठ-बाट देखकर उसका दस साल का मनु
हमेशा उससे प्रश्न करता,” माँ..दीपक- राघव के पिता भी तो मेरे पिता के साथ ही काम करते हैं तो फिर उनके घर में इतनी अच्छी-अच्छी चीज़ें क्यों है और हमारे घर में नहीं।” तब वो उसे समझाती कि बेटा, तुम्हारे पिता ईमानदार है और ईमानदारी ही सबसे बड़ा धन है।
एक शाम मनु खेलने गया लेकिन तुरन्त रोता हुआ वापस आ गया।मालती के पूछने पर वो बोला,” दीपक मुझे अपने साथ नहीं खेला रहा था और मेरे कपड़ों की हँसी भी उड़ा रहा था।मैंने उसकी माँ से कहा तो आँटी भी मुझे धक्का मारते हुए बोली कि अपने जैसे फटीचर दोस्तों के साथ जाकर खेल..।”
कहते हुए उसने अपना सिर झुका लिया।तब मालती ने उसे समझाया,” वो नहीं खेलाते हैं तो कोई बात नहीं।इसके लिए तुम्हें अपनी #आँखें नीची करने की कोई आवश्यकता नहीं है।तुम बस मन लगाकर पढ़ाई करो…अच्छे अंक लाकर प्रथम अंक प्राप्त करो और अपने स्कूल का नाम रोशन करो।
माँ की बात मानकर मनु जी-जान लगाकर पढ़ाई करने लगा।दसवीं कक्षा की बोर्ड-परीक्षा में उसने 98.5% अंक लाकर अपने जिले में प्रथम स्थान प्राप्त किया।उधर दीपक के पिता फ़ैक्ट्री के काम में गड़बड़ी करते हुए पकड़े गये और उनके रिश्वत लेने की पोल भी खुल गई।दीपक भी बोर्ड
-परीक्षा में नकल करता हुआ पकड़ा गया। अगले दिन अखबार के मुखपृष्ठ पर मनु की तस्वीर छपी थी जिसके गले में फूलों की मालाएँ थीं और ऊपर बड़े-बड़े अक्षरों में उसकी प्रशंसा लिखी गई थी।उसके साथ ही, दीपक के पिता की तस्वीर भी छपी थी जिनके हाथों में हथकड़ी लगी हुई थी।नीचे
लिखा हुआ था, बाप रिश्वत लेते और बेटा परीक्षा में नकल करते पकड़े गए।मुहल्ले वालों ने मनु और उसके माता-पिता का शानदार स्वागत किया और दीपक की माँ का हमेशा के लिए #आँखें नीची हो गई।
विभा गुप्ता
# आँखें नीची होना स्वरचित, बैंगलुरु
# मुहावरा प्रतियोगिता