इल्ज़ाम

“निशा… निशा… कहां हो?”
“जी मम्मी जी, आई।”
“तुमको गहने रखने के लिए दिए थे, रख दिए क्या?”
“जी मम्मी जी, रख दिए।”
“जरा ध्यान से रखना बेटा। घर मेहमानों से भरा है और तुमको तो पता है घर का माहौल कैसा है। यहां तो पैसे भी रखकर चोरी हो सकते हैं, और ये तो गहने हैं। अब तुम्हारी ज़िम्मेदारी है शादी वाले दिन निकालकर रखने की और संभालकर ननद के बैग में रखने की, ताकि उसकी चीज़ें सही-सलामत उसके साथ उसकी ससुराल पहुंच जाएं।”
“जी मम्मी जी, आप बिल्कुल बेफ़िक्र हो जाइए। यह ज़िम्मेदारी मेरी है, आप फिक्र न करें।”

यहां बात निशा की ससुराल की हो रही है। निशा की ससुराल में पति के अलावा दादी सास, दादा ससुर, सास-ससुर, एक बड़े जेठ-जेठानी, एक देवर और इकलौती ननद की शादी होने वाली थी।

सास-बहू में बात हो रही थी कि तभी दादी सास की चिल्लाने की आवाज़ आई—
“अरे! किसने चुरा लिए पैसे? अभी यहीं रखे थे, अब नहीं दिख रहे। पार्लर वाली के लिए निकाले थे।”

“अरे दादी, यहीं कहीं रखे होंगे, घर से कहां चले जाएंगे।” बड़े जेठ ने कहा।
“नहीं बेटा, मैं देख चुकी हूं, यहां कहीं भी नहीं हैं।”
“अरे दादी, आप तो रखकर भी भूल जाती हैं, हो सकता है कहीं भूल गई हों। मम्मी से पूछकर देखिए।”

“क्या हुआ मम्मी, कितने पैसे थे?”
“बेटा, पूरे 8000 रुपये थे। अभी देने थे पार्लर वाली को। जरा मेरे साथ ढूंढो, और निशा को भी बुलाओ। वह भी जरा देख ले। बड़ी बहू कहां है, उससे भी पूछो, बहुत देर से नहीं दिख रही है।”

दादी सास बोलीं—
“अरे, अभी मैंने ही टेलर के पास भेजा था नेहा के कपड़े लाने। काफी देर से नहीं आई। तुम जरा फोन करके पता करो।”

निशा की सास बोलीं—
“जी मम्मी जी, फोन करती हूं।”
इतना कहकर निशा फोन करती है, लेकिन दो-तीन फोन करने के बाद भी उसकी जेठानी फोन नहीं उठाती।

घर में शोर मच गया। सब पैसे ढूंढ रहे थे। इतने में अचानक जेठानी आ गई।
निशा पूछती है—
“भाभी, आपको देर हो गई। सब ठीक तो है? आपने मेरा फोन भी नहीं उठाया था।”
जेठानी ने निशा को देखा और बोली—
“तुमको मेरी फिक्र करने की इतनी ज़रूरत नहीं है। टेलर के ही पास गई थी, वहां देर लगती ही है।” यह कहकर वह चली गई।

“इतनी देर कहां लग गई थी?” निशा के साथ में उसकी सास ने बड़ी बहू से पूछा।
“हां मम्मी जी, टेलर के यहां टाइम लगता है। आपको तो पता है। क्यों, क्या हो गया?”
“नहीं बेटा, पैसे नहीं मिल रहे हैं। दादी को लगता है कहीं रखकर भूल गई हैं। जरा तुम भी देख लेना।”

जेठानी मन ही मन सोच रही थी— “पैसे ही उठा पाई, चाबी मिली नहीं जो 12 गहने निकाल लेती, तब समझ में आता। निशा पर बहुत भरोसा है मम्मी जी को। आज टूट जाता… लेकिन चाबी मिली नहीं। देखते हैं, कब तक ये लोग झुठलाते रहेंगे।”

निशा सबके कपड़े अलमारी में जमा रही थी। जेठानी के कपड़े रखने आई तो एक छोटा सा पर्स ऊपर से नीचे गिरा।
“अरे, यह तो दादी का पर्स लगता है।”
निशा ने उठाकर देखा—
“हां, यह तो वाकई दादी का ही पर्स है।”

पर्स खोलकर देखा तो पूरे 8000 रुपये थे। यह देखकर निशा घबरा गई और सोचने लगी— “यह दादी का पर्स जेठानी की अलमारी में कैसे आया?”

निशा जाकर अपनी सास को अकेले में बताती है। सास भी घबरा जाती हैं—
“उसकी अलमारी से कैसे निकला?”

फिर वह जाकर दादी को दे देती हैं और बोलीं—
“मम्मी, आपका पर्स मिल गया।”
“कहां मिला बहू?”
सास सच छुपा नहीं पाईं और उनके मुंह से निकल गया—
“बड़ी बहू की अलमारी से निकला है।”

दादी ने कड़क आवाज़ में बड़ी बहू को बुलाया।
“यह क्या हरकत है बहू?”
बड़ी बहू बोली—
“मुझे नहीं पता यह मेरी अलमारी में कैसे आया। और किसको मिला?”
निशा बोली—
“मैं कपड़े रख रही थी तो अचानक ऊपर से गिरा।”
“तुम मुझ पर इल्ज़ाम लगा रही हो?”
“नहीं भाभी, इल्ज़ाम की बात नहीं है। जो सच है, मैंने वही कहा। आप गलत समझ रही हैं।”

“मैं बिल्कुल सही समझ रही हूं। जैसे तुमने मम्मी जी को अपने भरोसे में बांधा है, वैसे ही तुम मुझको दादी की निगाह में गलत साबित करना चाहती हो। तुम सब मुझको चोर बता रहे हो।”

इतना सुनकर बड़ी बहू चिल्लाई। तभी उसके पति आ गए और बोले—
“यह क्या हो रहा है? तुम बताओ अंजलि, क्या हुआ है?”

अंजलि बोली—
“यह निशा मुझको सबके सामने झूठा साबित करना चाह रही है। पता नहीं दादी का पर्स मेरी अलमारी में कैसे आया और यह सब मिलकर मुझ पर इल्ज़ाम लगा रहे हैं।”

“तो सवाल करना बनता है अंजलि— तुम्हारी अलमारी में कैसे आया? पिछले 2 घंटे से हम लोग सब ढूंढ रहे थे और तुम घर से गायब थी। बताओ सच क्या है।”

“आप भी मुझ पर इल्ज़ाम लगा रहे हैं? मैं तो मम्मी जी के कहने पर टेलर के यहां गई थी। मुझे क्या पता था यहां क्या हो रहा है।”

छोटा देवर बोला—
“भाभी, जो भी है सब सच बता दीजिए। क्योंकि छोटी भाभी झूठ नहीं बोलती।”

पति और देवर के गुस्से को देखकर अंजलि डर गई और बोली—
“यह निशा आप लोगों के दिमाग पर कुछ ज़्यादा ही चढ़ गई थी। पैसे चुराकर मैं इस पर इल्ज़ाम लगाती और इसको झूठा साबित करती, जिससे आप लोगों का भरोसा इस पर से टूट जाता। यह जब से शादी होकर आई है, इस घर की मालकिन समझती है खुद को। इसका यह घमंड मैं उतार देती।”

एक कोने में खड़ी निशा सब सुन रही थी और रो रही थी।
सास ने सिर पर हाथ रखा और बोलीं—
“बेटा, सच्चा कौन है, झूठा कौन है— सब सामने है।”

जेठ नज़रें नहीं मिला पा रहे थे। दादी बोलीं—
“अंजलि, तुम सब से माफ़ी मांगो। सबसे पहले निशा से। छोटी बहन जैसी है तुम्हारी देवरानी। तुम इतनी गिरी हुई सोच रखोगी, कभी सोचा भी नहीं था।”

निशा बोली—
“माफ़ी की ज़रूरत नहीं। वो बड़ी हैं मुझसे। बस तकलीफ़ इस बात की हुई कि मैंने आज तक इन्हें अपनी बड़ी दीदी समझा।”

दादी की आवाज़ आई—
“इसी वक्त माफ़ी मांगो अंजलि। और अगर ऐसा नहीं करोगी तो इस घर में तुम्हारे लिए कोई जगह नहीं है।”

अंजलि डर गई और घर छोड़ने के डर से जल्दी से निशा से माफी मांगी।
निशा ने माफ़ कर दिया और गले लगाकर बोली—
“भाभी, आप तो मेरी बड़ी बहन जैसी हैं।”

सास ने दोनों बहुओं को गले लगाया और बोलीं—
“गलती सही समय पर समझ आ जाए, वही सबसे अच्छी बात है। चलो, अब दोनों बहुएं मिलकर ननद की शादी की तैयारी करें।”

लेखक : अज्ञात

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