“मेरे पापा मेरा वो गुरुर हैं, जो आप तो क्या कोई भी नहीं तोड़ सकता। उन्होंने अपनी ज़िंदगी में ढेर सारा पैसा नहीं कमाया लेकिन मान-सम्मान बहुत कमाया। जो इंसान ज़िंदगी भर सर उठाकर चला है, उन्हें मैं अपनी वजह से आपके सामने सर झुकने नहीं दूंगी। मेरे पापा बगैर किसी गलती के आप लोगों से माफ़ी माँगने नहीं आएंगे, फिर भले ही आपको रिश्ता चलाना हो या न चलाना हो।”
नीलिमा ने दो टूक शब्दों में अपने ससुराल वालों के सामने अपना फैसला सुना दिया।
“तो तुम अपने बाप के लिए हमसे ज़ुबान लड़ाओगी?”
शांति देवी जी दाँत पीसते हुए बोलीं।
“बाप नहीं, पापा… सम्मान से नाम लीजिए। बेटी के पिता ही तो क्या, इज़्ज़त उतार कर रख दें? मत भूलिए आपके यहाँ भी बेटी है और कल को आप भी जब उन्हें ब्याहने जाएँगी, तब ‘लड़की वाले’ ही कहलाएँगी। और जब आपका अपमान होगा, तब आपको समझ आएगा कि आपने जो किया है, वह आपको सूद समेत वापस मिल रहा है।
मेरे पापा ने हम लोगों की तरह भीख नहीं माँगी। जो बेटी की शादी तक ढंग से नहीं कर पाए, ऐसा मत कहिए। उन्होंने तो अपनी हैसियत भर बहुत अच्छे इंतज़ाम किए थे। अब बारिश हो गई और सारे इंतज़ाम गड़बड़ा गए। उसमें भी मेरे पापा का क्या दोष है? कौन-सा पिता चाहेगा कि बेटी की शादी में कुछ गड़बड़ हो और उसे ज़िंदगी भर सुनना पड़े! बेटी की शादी कारवां हर पिता को होता है।
हमने तो खाना चखा भी नहीं, और सारे रिश्तेदार कह रहे थे कि खाना खराब हो गया, बदबू आ रही थी। किसी ने खाया ही नहीं, सब खाना फेंक दिया। कितनी बेइज़्ज़ती हुई हमारी। इससे अच्छा तो हम बारात लेकर ही नहीं जाते।
आपने सिर्फ अपने रिश्तेदारों की बातें सुनीं, जो हमेशा से आपसे जलते थे। इसलिए उन्होंने शादी में हर चीज़ में नुक़्ताचीनी निकाली, यहाँ तक कि मुझे भी नहीं छोड़ा। जी भरकर आपको भड़काया और आप उनकी बातों में आकर अपनी ही बहू और उसके मायके पक्ष का अपमान किए जा रही हैं।
आप ख़ुद ही सोचिए कि भरे जाड़े में जनवरी के महीने में कहीं खाना खराब होगा, बदबू देगा? हाँ, आपके रिश्तेदारों ने खाना फेंक कर मेरे पिता का अपमान ज़रूर किया। एक पिता अपनी ज़िंदगी भर की कमाई बेटी की शादी में लगा देता है, लेकिन लड़के वालों के लिए उसकी कोई क़दर नहीं।”
कहते हुए नीलिमा भावुक हो गई।
दरअसल, नीलिमा की शादी वाले दिन ज़ोरदार बारिश हो गई। उसके पिता ने सारी व्यवस्थाएँ बहुत अच्छी की थीं, लेकिन बारिश ने सब अस्त-व्यस्त कर दिया। रिश्तेदार तो कमियाँ निकालने के लिए बैठे ही रहते हैं। उस समय किसी ने बात को सँभाला नहीं, बल्कि हर कोई ससुर जी और सासु माँ को भड़काने में लगा रहा और हर रिश्तेदार ने नीलिमा के पिता की बेइज़्ज़ती की। वे बेचारे बेटी के लिए चुपचाप सर झुकाए, हाथ जोड़कर सबकी अपमानजनक बातें सुनते रहे कि अगर उस समय कुछ बोल दिए तो ज़िंदगी भर उनकी बेटी को सुनना पड़ेगा।
बात वहीं पर खत्म नहीं हुई। बारात घर आ गई तो नीलिमा के ताऊ-ससुर इस बात पर अड़ गए कि बहू के पिता ने हम सबका अपमान किया है, उन्हें घर बुलाओ और हम सबसे माफ़ी माँगें। उसी बात को लेकर शांति जी अपने समधी कैलाश जी को फ़ोन करने जा रही थीं कि नीलिमा ने उन्हें रोक लिया।
उनके बीच बातचीत चल ही रही थी कि नीलिमा के ससुर जी के परम मित्र विजय जी परिवार सहित घर आ गए और आते ही सबसे पहले सासु माँ से बोले—
“अरे भाभी, हमने आज तक किसी शादी में इतने बढ़िया इंतज़ाम नहीं देखे और ना ही इतना बढ़िया खाना खाया। मज़ा आ गया शादी में। आपके समधी जी ने सारी व्यवस्थाएँ बहुत बढ़िया की थीं। सबसे बढ़कर उन्होंने अपनी इतनी संस्कारी बेटी हमें दे दी, जो हम पराए लोगों को भी अपनों जितना ही मान-सम्मान और प्यार देती है। हमें तो आपकी समधन जी का आभार प्रकट करना चाहिए।”
“विजय भैया, आपको हमारे यहाँ की शादी में कोई कमी नहीं लगी? यहाँ तो हमारा हर रिश्तेदार कमियाँ ही कमियाँ गिना रहा है। ऐसा लग रहा है कि वहाँ कुछ अच्छा हुआ ही नहीं।”
शांति देवी विजय जी की बातें सुनकर थोड़ा नरम पड़ते हुए बोलीं।
“भाभी, अपने रिश्तेदारों की तो बात मत करिए। मैंने अपनी आँखों से देखा कि किस तरह से इन लोगों ने हर अच्छी चीज़ में भी कमी निकालकर समधी जी का अपमान किया। आप कैसे भूल गईं कि आपके ये रिश्तेदार आपकी खुशियों से खुश नहीं होते, बल्कि उन्हें बर्बाद करने आते हैं। आपने भी उनकी बातें मानकर बहुत बड़ी ग़लती की है। आपने भी सुना होगा—कानों सुनी पर नहीं, आँखों देखी बात पर विश्वास करो।”
विजय जी की बातें सुनकर नीलिमा को बहुत अच्छा लगा कि चलो किसी इंसान को तो उसके पिता में कुछ अच्छा भी दिखाई दिया, वरना यहाँ लोगों ने उनकी बुराई करने का ही ठेका ले लिया था।
उसके ससुराल वाले भी अपनी बातों पर शर्मिंदा हुए और उससे बोले—
“अब तुम्हारे पिता यहाँ माफ़ी माँगने नहीं आएंगे, बल्कि हम लोग उनके घर चलेंगे माफ़ी माँगने। विजय चाचा, आप भी हमारे साथ पूरा परिवार लेकर चलिएगा। आज आपने एक पिता की मान-मर्यादा की रक्षा की है। आज से आप मेरे लिए इस घर के हर रिश्ते से ऊपर हैं, जिन्होंने सच का साथ दिया। घर के बाकी रिश्तेदारों की तरह मुँह से झूठ नहीं बोला।”
नीलिमा ने विजय जी से हाथ जोड़कर विनती की।“अरे बेटा, हम तो तैयार बैठे हैं। आखिर एक बार फिर से अपने समधी की बेमिसाल मेहमान-नवाज़ी का आनंद उठाना है।”
विजय जी हँसते हुए बोले।