रुपाली बिल्कुल जड़वत सी हो गयी, मानो शरीर की अंदरूनी ताकत समाप्त हो गयी जैसे ही उसने अपने छब्बीस वर्षीय बेटे के मुँह से सुना कि शादी तो मैं जरूर करूँगा , आपके कहने का मुझ पर कोई फर्क न होगा । आप शादी के बारे में कहती हैं दुनिया की सबसे खराब चीज है पर मैं नहीं मानता
।कोई भी वर या वधु एकतरफा कभी खराब नहीं होता । आपकी शादी इसलिए नहीं चली क्योंकि आप पापा को लेकर कभी अच्छा नहीं सोचती थीं, हर वक़्त उनके विरुद्ध रहती थीं । पापा को बिल्कुल पसन्द नहीं था आपके सहकर्मी का घर आना जाना लेकिन आप ऑफिस से आने के बाद पापा को
समय न देकर घण्टों अपने सहकर्मी को समय देती थीं । पापा के घरवालों को वो इज्जत और सम्मान नहीं देती थीं जिनके वो हकदार थे । सिर्फ इसलिए आपने किया क्योंकि दादाजी किसान थे ? जब सब पता था तो आपको प्रेम विवाह ही नहीं करना था । हर वक़्त सिर्फ मायके के लिए सोचना, मायके के लिए जीना और पापा पर आरोप लगाना कि वो आपकी सुनते नहीं ।
एक साँस में वैभव अपनी माँ रुपाली को उनकी करतूतों से अवगत करा रहा था । अब रुपाली को लगा जैसे वो चक्कर खाकर गिर जाएगी, शरीर मानो शक्ति विहीन सा लग रहा था । वह चुपचाप अपने लिए ब्लैक कॉफी बनाने किचन में चली गयी । कॉफी का एक घूँट पीते ही उसने वैभव से कहा…” देख
लो बेटा ! मुझे कोई आपत्ति नहीं है , तुम्हें मन है शादी करने का तो बेशक करो लेकिन ये भी तो सोचो मैं अकेले कहाँ जाऊँगी , तुम्हारे अलावा मेरा कोई नहीं है । तुम्हारी जॉब तो इतने अच्छे पैकेज वाली है, तुम जिस दिन जॉइन कर लोगे पैसों की बरसात होगी, जब तुम्हारे पास पैसे होंगे तुम्हें और किसी
चीज की जरूरत नहीं होगी । “कमाल है माँ ! आप और पापा ने भी तो अथाह पैसे कमाए लेकिन खुल के दिल से कहिए क्या आपको पापा की कमी का एहसास नहीं होता ? आज भी आपकी सोच में बदलाव नहीं है । पैसा बहुत कुछ है लेकिन सब कुछ नहीं । ज़िन्दगी में पैसों के साथ प्यार और रिश्तों
का भी होना बहुत जरूरी है । जिन मायके वालों से आपने रिश्ते निभाए जिनके ऊपर अपना कमाई खर्च किया उनलोगों ने ही आपको # साजिश करके पापा से अलग कर दिया । वो चाहते तो आपके और पापा के बीच समझौता भी करवा सकते थे ।
जी भर के आज वैभव का गुबार मां के सामने फूट रहा था । थोड़ी सी लंबी साँस खींचते हुए उसने फिर माँ से पूछा..हर बार आप सिर्फ पापा को दोष देती हैं मम्मी ! आप शायद नहीं याद करती होंगी लेकिन मुझे अच्छे से याद है बारह वर्ष का था मैं, जब आप और पापा अलग हुए थे । अगर आप सही
थीं और पापा गलत तो आपने सबके बहकावे में आकर अपना रिश्ता बर्बाद क्यों किया ? आप भी तो बिल्कुल खुदगर्ज बन गईं । ये भी नहीं सोचा कि एक ही बेटा है, तो इसके लिए अपना आन त्याग दूँ ? पापा की यही गलती थी ना कि वो किसान के बेटे थे, तो ये तो आपको प्रेम करने से पहले सोचना था ।
आपको क्या लगा कि आप पापा को बोलेंगी मेरे लिए अपना परिवार छोड़ दो तो वो छोड़ देंगे ? जब पापा ने अपना परिवार नहीं छोड़ा तो आप मुझसे कैसे उम्मीद करती हैं कि मैं आपके साथ हमेशा के लिए बिना शादी किए रह जाऊं ?
ये तो बिल्कुल नहीं होगा मम्मी ! मैं शादी करूँगा श्रुति से और जरूर करूँगा । और हम आपके साथ वैसे भी नहीं रहेंगे । आपकी आँखों पर आन की पट्टी लगी हुई है । नहीं चाहिए आपका महल और नहीं चाहिए आपकी दौलत । मैं अलग घर ले कर रह लूँगा पर मुझे वो पुरानी , जी जलाने वाली यादें नहीं चाहिए ।
अभी बात खत्म करके ही वैभव फोन देखने लगा था कि दरवाजे पर घण्टी बजी । वैभव ने दरवाजा खोला तो देखा श्रुति फूलों का गुलदस्ता और मिठाई की पैकेट लेकर खड़ी थी । थोड़ी देर के लिए वह खो गया । श्रुति ने वैभव को हिलाते हुए कहा…”अंदर आने कहोगे या बाहर ही रहूँ ? और बोलते हुए
वह अंदर आ गयी । वैभव ने सरला बाई को चाय के लिए बोला और ड्राइंग रूम में श्रुति के साथ बैठ गया । थोड़ी ही देर में सरला ढेर सारे स्नैक्स और चाय के साथ हाजिर थी । अभी स्नैक्स का एक निवाला ही श्रुति ने मुँह में डाला था कि वैभव का मीटिंग कॉल आ गया और वो बाहर जाकर बातें करने
लगा । तभी रुपाली आयी और श्रुति के बगल में बैठ गयी । श्रुति ने थोड़ा हैरान होते हुए नमस्ते आंटी किया तो रुपाली ने पूछा…”बहुत चर्चे सुने हैं तुम्हारे, वैभव के मुँह से । ऐसा क्या जादू कर दिया जो हर वक़्त तुम्हारी बातें करता है । श्रुति ने हँसते हुए कहा…”कुछ खास तो नहीं आंटी ! बस एक दूसरे को स्कूल टाइम से ही पसंद करते हैं ।
तंज कसते हुए फिर से रुपाली बोली…”सोच लो, वैभव मुझसे दूर होकर तुम्हारे साथ रहेगा ।तुम्हें शायद मालूम हो ।कैसे तालमेल बिठाओगी ? मेरे साथ से तो उसे परहेज ही है, तुम्हें किसी तरह की समस्या नहीं होगी ।अच्छी लाइफ है तुम्हारी ।
श्रुति पानी का घूँट ही अभी मुँह में भरी थी कि उसके आँख सजल हो गए । रुपाली ने उसकी पीठ पर हाथ फेरते हुए कहा..,क्या हो गया तुम्हें ? किसी की याद आ गयी क्या ?
पानी का घूँट सिसकने से अंदर जा चुका था । श्रुति ने कहा…”बचपन में ही मम्मी – पापा दुर्घटना में चल बसे । उनका साथ और प्यार तो नहीं मिला । चाचा – चाची ने मुझे लाकर पाला आंटी ! पर आज भी उनके प्यार की मोहताज हूँ । जब प्यार किया था तो ये नहीं सोचा, पूछा था वैभव से की आप लोग
साथ हैं या तलाकशुदा पर जब पता चला तो मैंने दिल पर पत्थर रख लिया । पहली बार रुपाली को जैसे अपने किए गलती का एहसास हो रहा था । पहली बार उसकी आँखें अपने पति वीरेन को याद
करके नम थीं और वो पुराने दिन में खो गयी जब उसके घरवालों ने उन दोनों के बीच छोटी छोटी बातों की चिंगारी बनाकर ज्वाला भड़का दी थी और आखिरकार रिश्तों को जला चुकी थी ।
वैभव का कॉल खत्म हो गया था और वो सॉरी कहकर श्रुति के पास बैठता उससे पहले सामने चल रहा दृश्य उसे अपनी ओर खींच लिया और वो चुपचाप दीवार की ओट में होने वाली सास और बहू की भावुक कर देने वाली बातें ध्यान से सुन रहा था ।
श्रुति ने अपनी आँखों को पोछते हुए रुपाली के आँसू भी पोछकर कहा…”मैं चाहती हूं आप और अंकल जी दोनो मिलकर साथ मे मेरा स्वागत करें जब इस घर की दहलीज पर कदम रखूं तब ।
“ये नहीं हो सकता श्रुति ! समझो बात को, हमारे बीच सम्बन्ध खत्म हो गया । वो मुझे दोषी समझते हैं और मैं उन्हें । मैं बहुत बुरी हूँ माना, पर उन्होंने मुझसे अलग होने के बाद एक महीने तक काम की जरूरी बातें की और तब से दुबारा कॉल नहीं किया । मुझे हिम्मत नहीं अब उनके पास जाने की ।
“आपको कुछ नहीं करना है आंटी ! मैं आपके साथ चलूँगी और वैभव को भी ले जाऊँगी । मुझे पता है वो पुराने वाले घर में हैं जो होलसेल दुकान के पास है । अब वैभव से रहा नहीं जा रहा था । उसने सामने से आकर श्रुति से कहा..”मम्मी का मन नहीं है, तुम बेकार की ज़िद कर रही हो । अवाक
होकर रुपाली वैभव का मुँह देख रही थी । फिर श्रुति ने बोला…”तुम स्थिति नहीं समझ रहे हो । दुःख दोनो तरफ है लेकिन ये लोग छिपाने में लगे हैं । कोई कुछ न सोचें मेरी बात पर बस मुझे एक मौका चाहिए अंकल को मनाने का , मुझे लगता है कि सब ठीक होगा ।
मैं सिर्फ खुदगर्ज अपने लिए हो रही हूँ कि इतना छोटा सा परिवार है, वो तो मुझे पूरा मिले । दो दिन बाद रविवार को मिलने की योजना बन गयी ।
नियत समय पर श्रुति अपनी गाड़ी लेकर आई और वैभव ,रुपाली साथ मे बैठ गए ।घर याद था । लगभग चार घण्टे पहुँचने में लगे । पुराना घर तो था ही, देख रेख के अभाव में ज्यादा जर्जर प्रतीत हो रहा था । श्रुति ने आगे बढ़कर घण्टी बजाया तो एक काफी उम्रदराज महिला ने दरवाजा खोलते हुए
पूछा…”किन्हें ढूँढ रहे हैं ? रुपाली और वैभव प्रश्नचिन्ह से एक दूसरे को देखने लगे । तभी श्रुति ने फोटो दिखाते हुए कहा…”वीरेन भटनागर जी को ढूँढ रहे हैं । महिला ने रास्ता दिखाते हुए अंदर आने को कहा । रुपाली ने अपने चचेरे ससुर को याद करके पूछा यहाँ हरि जी और उनकी पत्नी सुमित्रा जी
रहती थीं, वो लोग नहीं हैं क्या ? ये तो उनका घर था । महिला ने कहा मेरा नाम मालती है और मैं यहाँ नौ साल से साहब के देखभाल के लिए रह रही हूँ । वो लोग नहीं रहे उसके बाद से मैं काम पर लगी हूँ ।
थोड़ी देर बाद सब अंदर कमरे की तरफ ही जाने वाले थे कि व्हील चेयर पर “मालती आवाज़ लगाते हुए एक युवक दिखे ।बाल – दाढ़ी सफेद , आधा से ज्यादा बाल उड़े हुए ।आवाज़ तो रुपाली पहचान गयी थी वीरेन की, लेकिन वह व्हीलचेयर पर देखकर हतप्रभ रह गयी । दौड़कर वो वीरेन के पास
जाकर लिपट गयी और खूब तेज़ से विलाप करने लगी । वीरेन ने हाथ उठाते हुए धीरे से कहा…”रुपाली ! तुमने आने में बहुत देर कर दी । देखो न तुमसे अलग हुए अभी एक महीने से ऊपर ही हुए थे कि गाड़ी से बहुत तेज दुर्घटना हुई और छह-आठ महीने के लिए बेड रेस्ट हो गया । थोड़ा ठीक हुआ ऑफिस जाने लगा तो एक एक करके मम्मी – पापा की मृत्यु ने मुझे तोड़ दिया । और मेरी
बहन सरोज दीदी भी हृदय की मरीज हो गईं । और अब पाँच – छः सालों से लकवा पीड़ित हो गया हूँ । पूरी तरह से ताकत नहीं मिलती शरीर को । सिसकी भरे आवाज़ में वीरेन की बातों में शिकायत थी और वो बारी – बारी से कभी श्रुति तो कभी वैभव को देखते । बातों में वीरेन के अभी भी वही अपनापन था । कुछ नहीं भूले थे वो । न रुपाली का चेहरा न उसकी आवाज़ ।
अब श्रुति और वैभव ने जाकर चरण स्पर्श किये और गले लगकर रोता हुआ वैभव बोला…पापा ! उसके आगे रुंधे गले से एक स्वर नहीं निकला । खूब देर तक वैभव और वीरेन एक दूसरे में चिपके रहे ।
खुद से अलग करते हुए वीरेन ने कहा…”रुपाली ! अब भी रहने आई हो या सिर्फ बची हुई शिकायतों की पोटली बनाकर उलाहना देने आयी हो । श्रुति की तरफ नज़र उठाते हुए वीरेन ने पूछा…”ये कौन है ? रुपाली ने सजल नयनों से मुस्कुराते हुए कहा…”ये आपकी होने वाली बहू है । सच कहूँ तो आज इसी की वजह से यहाँ हूँ ।
रुपाली ने वीरेन के गले मे फिर से अपनी बाहें डालते हुए कहा…”चलिए जी ! अपने सुंदरता और शान के लोभ में मैं सब कुछ भूल गयी थी । अब हम एक साथ रहेंगे । आपको लेकर जाऊँगी और सारे शिकवे शिकायतें इसी चौखट के भीतर छोड़ जाऊँगी । आधी ज़िन्दगी तो हम दोनों ने मिलकर बर्बाद
कर ली और आधी ज़िन्दगी वैभव की भी मेरी गलती की वजह से बर्बाद हो गयी । पर हम अब अपने बेटे के लिए बाकी की ज़िंदगी को अच्छे से जिएंगे और बहू का दिल खोलकर स्वागत करेंगे । वीरेन ने भी हाँ में सिर हिलाते हुए रुपाली की पीठ थपथपाई ।
छः महीने बाद…
शादी के खुबसूरत जोड़े में सजी श्रुति वैभव के साथ उसकी दहलीज पर खड़ी बहुत प्यारी लग रही थी । नज़र का टीका लगाकर रुपाली और वीरेन ने रिश्तेदारों के साथ मिलकर भव्य स्वागत किया । अंदर
आकर जैसे ही चरण स्पर्श के लिए वीरेन ने कहा…”मेरा आशीर्वाद हमेशा तुम दोनों के साथ है । आज तुम्हारी वजह से ही अपने घर की खुशियाँ देख रहा हूँ । सचमुच तुम मेरे घर की रौनक बनकर आयी हो ।
मौलिक , स्वरचित
अर्चना सिंह
#साजिश