शोभा , अमित की पत्नी बनकर शर्मा परिवार में आई , आते ही उसे पहला नाम
मिला "बहु "।शर्मा परिवार में सास (नीना), ससुर (दीपक ), देवर (अंशुल), कुल
मिलकर छः सदस्य ही थे। शोभा के आते ही घर की सारी ज़िम्मेदारी उसके
ऊपर डाल दी गई। सास नीना का मन होता तो मदद करवा देती नहीं तो सारा
दिन या तो फ़ोन या मित्र मंडली के साथ व्यस्त रहती। ससुर दीपक जी उसकी
थोड़ी बहुत मदद कर दिया करते थे। दो साल बाद शोभा के बेटा हुआ रेयांश।
उसे ज्यादात्तर ससुर जी अपने पास ही रखते जिससे उसकी मदद हो जाती थी।
सबअच्छा चल रहा था , फिर भी उसके मन में वर्किंग महिलाओं को देखकर एक
हूक उठती थी, काश वो ऐसे काम पर जा पाती , अपने लिए पैसे कमा पाती।
पैसों की कोई कमी नहीं थी पर फिर भी मन में कुछ खाली -खाली सा लगता।
एक दो बार उसने सासुमां से कहा भी कि उसे छोटे बच्चों को पढ़ाने का शौक है,
क्या वो स्कूल ज्वाइन कर सकती है ? पर सास नीना ने एक झटके से मना कर
दिया। कहा : बहु बाहर कमाने जाएगी तो लोग क्या कहेंगे बहु की कमाई से घर
चलता है इनका ? इस समाज में इज्जत है हमारी वो नहीं गवानी। बेचारी
अपना सा मुँह लेकर रह गयी।
कुछ साल बाद देवर अंशुल की शादी हुई। मोनिका उसी के दफ़्तर में काम करती
थी। लव मैरिज हुई थी दोनों की। मोनिका बहुत सुलझी हुई और हंसमुख
स्वभाव की थी।शोभा से उसकी अच्छी पटती थी। यूँ तो मोनिका सुबह जल्दी
निकल जाती और शाम को भी थोड़ा लेट आती पर शोभा के साथ जितना हो
सके उतनी हेल्प करवाती।
मोनिका के आते ही शोभा को अब नया नाम मिल गया था "बड़ी बहु" I मोनिका
ने एक दो बार शोभा से जॉब करने को भी कहा तो शोभा ने उसे सास की सुनाई
सारी बातें बता दी। सुनकर मोनिका को बहुत दुःख हुआ एक ही घर में दो
इंसानो के बीच इतना भेदभाव कोई कैसे कर सकता है।
एक शाम जब मोनिका ऑफिस से घर आयी , घर में सास ने कोहराम मचाया
हुआ था। उनके चिल्लाने की आवाजें घर से बाहर तक आ रही थीं। मोनिका ने
देखा एक तरफ शोभा अपराधियों की तरह खड़ी है , उसके सिर और बाजु से
खून निकल रहा है। और दूसरी तरफ़ कांच का डिनर सेट चूर -चूर हुआ पड़ा है।
पूछने पर पता चला कि शोभा सेट उतारने के लिए स्टूल पर चढ़ी हुई थी।
जैसे ही सेट लेकर नीचे उतरने लगी रेयांश से खेलते -खेलते स्टूल को धक्का लग
गया , जिससे शोभा का बैलेंस बिगड़ गया। कांच का सेट तो टूटा ही पर शोभा
को भी चोट लग गयी थी। पर सास को तो सेट की पड़ी थी। इतना महँगा सेट
तोड़ कर रख दिया। काम की न काज की दुश्मन अनाज की। बाहर कमाने जाती
तो पता चलता की पैसों की क्या क़ीमत होती है। कमाने का तो पता नहीं पर
बर्बाद करना अच्छे से आता है।हर रोज कुछ न कुछ नुक्सान करती रहती है,
सासुमां लगातार बोले जा रही थी। मोनिका ने शोभा की तरफ़ देखा , उसकी
आँखों से झर-झर आंसू बह रहे थे। तन की तकलीफ से ज्यादा भारी मन की
संवेदना थी। मोनिका ने कहा , मांजी आपको सेट की पड़ी है , ये देखिये दीदी
को कितना खून बह रहा है , बजाय दवाई लगाने के आप उन्हें डांटे जा रही हैं।
तो क्या करूँ , पूजा करूँ इसकी सास और जोर से चिल्लाते हुए बोली। मोनिका
ने सास को अनदेखा कर शोभा को अंदर ले गयी। अंदर जाते ही शोभा
मोनिका के गले लगकर फूट -फूट कर रोने लगी। मेरी कोई गलती नहीं थी
मोनिका , वो तो रेयांश की वजह से बैलेंस बिगड़ गया। कोई बात नहीं दीदी
आप आराम कीजिये , मैं सब देख लूंगी। मोनिका उसे दवाई देकर रसोई का
काम निपटाने लगी। काम करते -करते उसके ज़ेहन में बार-बार सासुमां की ही
बातें घूम रही थीं। फिर मन ही मन उसने कुछ तय किया। कुछ दिन बाद
रविवार को मोनिका की सहकर्मी जो की उनकी ही कॉलोनी में रहती थी, अपने
बेटे को लेकर उनके घर लंच पर आयी। बातों -बातों में उसने अपने बेटे की
पढ़ाई की प्रॉब्लम बताई। वर्किंग होने की वजह से वो अपने बच्चे को टाइम नहीं
दे पाती थीं। इतना सुनते ही मोनिका एकदम से बोली , मेरी शोभा दीदी इसे
भी रेयांश के साथ पढ़ा दिया करेंगी। वैसे भी दोनों की क्लास और स्कूल एक ही
है तो दिक्कत भी नहीं होगी। है ना मांजी , मोनिका ने सास की तरफ़ देखते हुए
कहा। तो सास ने भी मेहमान के सामने असमंजस में ही सही हामी भर दी।
शोभा भी ने भी हाँ कर दी।
शोभा बहुत मन से उस लड़के को पढ़ाती। नए -नए टिप्स देती जिससे कुछ ही
दिनों में वो इंटेलीजेंट बच्चों में गिना जाने लगा। कॉलोनी में ये बात बहुत तेजी से
फैली। अब तो बहुत से बच्चे टूशन आने लगे काम बढ़ता देख मोनिका ने घर पर
काम वाली रख ली। सास ने एक दो बार कहा भी ये सब नहीं चलेगा पर
मोनिका हौसला बनकर साथ खड़ी रही। आज शोभा के टूशन सेंटर की ओपनिंग
है , शोभा ने रिबन काटने के लिए मोनिका को आगे किया और कहा आज
तुम्हारी वज़ह से मैं अपने सपने को जी रही हूँ , नहीं तो बस इस घर की इज्जत
ओढ़े ही बैठी रहती। फिर सास की तरफ मुड़कर कहा : घर की बड़ी बहु अगर
कमाने लगे तो परिवार की इज्जत को दाग नहीं लगता मांजी , बल्कि उस घर की
खुशियां, रौनक और प्रतिष्ठा और बढ़ जाती है। हमारी कमाई से बेशक घर ना
चले पर थोड़ी -बहुत बचत हो ही जाती है। छोटी -छोटी ख्वाहिशों के लिए
किसी की तरफ़ देखना नहीं पड़ता। मांजी ने भी बहु के सिर पर हाथ फेरकर
कहा : माफ़ करना , मुझे लगा था तुम कमाने जाओगी तो मुझे घर का सारा काम
करना पड़ेगा। इसलिए तेरे पैरों में इज्जत की बेड़ियाँ बांध रखी थी। पर मुझे ये
पता नहीं था की मेरी बहु इतनी अच्छी अध्यापिका बन जाएगी। अब तो मैं भी
तुम्हें बड़ी बहु नहीं , मैडम जी बुलाऊंगी , क्यों सही है ना। सास नीना की ये
बात सुनकर वहां सभी लोग ठहाके लगाकर हंस पड़े।
कहानी प्रतियोगिता : बड़ी बहु :घर की इज्जत
समिता बड़ियाल