अन्ततः दांत के डॉक्टर के पास मुझे जाना ही पड़ा .. बकरे की मां कब तक खैर मनाती..!डेंटिस्ट के यहां से घर वापिस आकर बैठा ही था कि पड़ोसी श्यामलाल टपक पड़े।पत्नी से बर्फ लेकर दांत की सिंकाई के लिए तत्पर होता मैं असमय आए श्यामलाल को देख चिढ़ गया।आ गया घाव पे नमक छिड़कने।
अरे सुकांत भाई आपको आते देखा तो मुझसे रहा नहीं गया।तुरत आपका हाल चाल लेने आ गया।बहुत दर्द हो रहा होगा आपको आते ही सवाल दाग दिया।
अब दांत उखड़वाएंगे तो फूल तो बरसेंगे नहीं दर्द ही होगा कहने की सोच ही रहा था कि श्यामलाल मेरे करीब आकर बैठ गए।
ओहो देखिए तो आपका गाल कितना सूज गया है जैसे उस तरफ गोलगप्पा दबा हो मुझे देख मजे लेने लगे।
एक तो वैसे ही दर्द और कष्ट से मै बेहाल था और श्यामलाल था कि आग में तेल डालने जैसी बकवास किए जा रहा था।मारे गुस्से के मैने उसकी तरफ से मुंह घुमा लिया।
सुकांत भाई आप तो नाराज हो गए मेरी बातें आपको अच्छी नहीं लग रही।क्या करूं भाई मेरे दांत तो इतने मजबूत हैं कि अभी भी चने कटकटा के खा लेता हूं जबकि उमर में आपसे एक महीना बड़ा ही होऊंगा मेरी पत्नी की तरफ देख शान बघारी।
हां पता नहीं इनके दांत इतने कमजोर कैसे हो गए पत्नी ने भी अवसर मिलते ही # आग में तेल डाल दिया।
मेरा तो तन मन सुलग उठा।अब तो मै उठ कर वहां से चल पड़ा।
अरे अरे भाई आप बैठिए बुरा मत मानिए। असल में मेरा तो कभी कोई दांत टूटा नहीं ना ही दांत की कोई समस्या आई तो सोचा आपसे पूछ आऊं कितनी तकलीफ होती है ।सच में दांत टूटना बहुत कष्टकारी होता है ऐसा लग रहा है कहते हुए वह फिर से ठीक मेरे सामने आ गए।
अबकी मैने आव देखा ना ताव घुमा के एक जोरदार मुक्का उनके मुंह में लगा दिया।
जब तक वो सम्भल पाते उनके सामने के दो दांत टूट कर हाथ में आ गए थे।
हाय राम क्यों मारा मुझे दर्द से वह बिलबिला उठे।
बस यही समझाने के लिए कि दांत का दर्द ऐसा ही होता है जैसा अब आपको महसूस हो रहा है सारी भड़ास उन पर निकाल मैं मन ही मन हंसता वहां से निकल गया था।
लघुकथा#
लतिका श्रीवास्तव
आग में तेल डालना/ मुहावरा आधारित लघुकथा