एक लंबी लिस्ट – शिखा जैन : Moral Stories in Hindi

आज सुबह से ही सुधांशु जी के घर में  मेला सा लगा हुआ था।उनके बड़े भाई-भाभी, छोटे भाई, भाई की पत्नी रेखा, तीनो बेटियां, दामाद सभी एक महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा करने इकट्ठे हुए थे। चर्चा का विषय था-सुधांशु जी के इकलौते बेटे ध्रुव के लिए लड़की देखने जाने वालों की सूची तैयार करना और इस काम का जिम्मा उनकी बड़ी बेटी ने संभाल रखा था। सभी इस शादी के लिए, जो कि अभी तय भी नहीं हुई थी, बहुत ही उत्सुक थे और लिस्ट में पहले से पहले अपना नाम दर्ज कराना चाहते थे।

क्योंकि रिश्ता बड़ी भाभी के किसी परिचित ने बताया था इसलिए लड़की देखने जाने का तो उनका पहला हक बनता ही था और वैसे भी अब उनकी उम्र हो गई थी। क्या पता यह उनके जीवन की आखिरी शादी हो तो वह भला कोई भी मौका कहाँ छोड़ना चाहती थी ।और रेखा चाची के तो कोई लड़का था ही नहीं। सिर्फ 2 बेटियां थी। वह ध्रुव की शादी के सारे कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेना चाहती थी। क्योंकि ध्रुव बचपन से उनका लाडला रहा था। अब तीनों बहनों के बिना तो कोई काम होना ही नहीं था।और फिर बेटियां जाये और दामाद न जाये, ये तो हो ही नहीं सकता था । तो सभी के पास अपने अपने तर्क थे, कारण थे।

काफी देर के विचार विमर्श के बाद लिस्ट तैयार हुई जिसमें वहां मौजूद सभी लोगों के नाम थे। हालांकि लिस्ट लंबी हो गई थी लेकिन कोई भी ऐसा नाम नहीं था जो लिस्ट में से कटने के लिए तैयार हो। अब तक पंद्रह बड़े और चार-पांच बच्चों के नाम लिस्ट में दर्ज हो चुके थे।

सुधांशु जी , जो अब तक चुप बैठे थे, बोल पड़े

“लड़की देखने जा रहे हैं, न कि बारात लेकर”।

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सुधांशु जी को याद था कि किस तरह उनकी छोटी बेटी को देखने लड़के वालों के घर से 15-20 लोग आए थे और उनकी आवभगत के लिए काफी खर्चा करना पड़ा था।आखिर में वे रिश्ते के लिए मना करके चले गए थे। सभी को उस दिन बहुत बुरा लगा था। सुधांशु जी ने अपने दोनों भाईयों से कुछ बात की और फौरन दूसरे कमरे में गए और लड़की वालों को फोन मिलाया।

उसके बाद लिस्ट में से सुधांशु जी,उनकी पत्नी,उनके दोनों भाई और ध्रुव को छोड़कर बाकी सब के नाम कट चुके थे। चार दिन बाद सभी लोग सुधांशु जी के घर में फिर से किसी महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा करने इकट्ठे हुए। चर्चा का विषय था-ध्रुव की सगाई के फंक्शन के लिए जाने वालों की लिस्ट तैयार करना।और इस बार सबकी सहमति से एक नई और लम्बी लिस्ट तैयार की जा रही थी।

शिखा जैन

स्वरचित

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