नोएडा जैसे चकाचौंध शहर में हॉस्टल में एडमिशन लेने के लिए जैसे ही कीर्ति पहुँची उसकी आँखें शहर की जगमगाहट देखकर चुंधिया गईं । अभी तो ट्रेन से आयी ही थी। पूरा सफर उसे तय करना बाकी ही था ।
अपने आप में वो बुदबुदा रही थी…”हाय ! बिल्कुल जन्नत है ये जगह, पापा ने इतने दिन से क्यों रोक रखा था, मैं तो संभाले नहीं सम्भल रही हूँ । मेरी सभी सहेलियों ने अपने मनमुताबिक ज़िन्दगी दो साल पहले से ही जीना शुरू कर दिया था, और मैं अब आयी हूँ बारहवीं के बाद ।
चलते चलते जैसे खो रही थी वो । तभी उसके पापा सोहम जी ने आवाज़ दिया…”कीर्ति ! क्या सोच रही हो ? जल्दी बैठो टैक्सी में ! कीर्ति ने फोन पर्स से निकालकर कुछ मेसेज किया और गाड़ी में बैठ गई । रास्ते मे बड़ी इमारतें, जगह – जगह पार्क, थिएटर, मॉल सब उसका मन लुभा रहे थे ।
हॉस्टल पहले से ही बुक था । कीर्ति ने अपनी सभी सहेलियों को बता दिया था । जैसे ही गाड़ी पैराडाइज हॉस्टल के बाहर लगी कीर्ति के चार – पाँच दोस्त भी उसका स्वागत करने आ गए । दोस्तों में दो लड़के विराज, मधुकर और तीन लड़कियाँ मेघा, सलोनी और सुजाता थीं ।
सोहम जी ने कीर्ति के दोस्तों का झुंड अचानक देखकर उसे तरेरने वाली नज़रों से देखा और बिना किसी से कुछ कहे आगे बढ़ने लगे । हॉस्टल के पास रुककर सब बातें करने लगे तो सोहम जी ने कहा…”पहले चलकर अपने काम निपटा लो, फिर याराना निभा लेना ।
दोस्तों के मुँह से एक आवाज़ नहीं निकली और वो सब उसी जगह रुककर कीर्ति के पापा का वापस लौटने का इंतज़ार करने लगे । सोहम जी ने एडमिशन की सभी जरूरी औपचारिकताएं निभाई और कीर्ति के कमरे में उसके साथ बैठकर समझाने लगे…”देख़ो बेटा !
ये सब जो तुम्हारे दोस्त दिख रहे हैं ना झुंड में, उनसे थोड़ा दूर ही रहना । तुम्हें पहले भी समझाया था और फिर समझा रहा हूँ कि और लोगों की तरह मेरे पास अथाह धन नहीं है, सोच – समझकर तुम खर्च करना । किसी के बहकावे में नहीं आना । उम्मीद है मेरा भरोसा नहीं तोड़ोगी तुम ।
बहुत ही साधारण परिवार है हमारा, ऊंच नीच बर्दाश्त करने की क्षमता नहीं मुझमें । तुम्हारे पढ़ाई के प्रति झुकाव देखकर मैंने तुम्हें यहाँ तक भेजने की हिम्मत की है ।
कीर्तिं ने समर्थन में सिर हिलाते हुए कहा…”जी पापा ! ध्यान रखूँगी । आप निश्चिंत रहिए । अब उसने पापा के चरण स्पर्श करते ही उन्हें विदा किया और फोन निकालकर अपने कमरे में वीडियो चैट में लग गयी । अगली सुबह इतवार थी ।
सबने रेस्टोरेंट में मिलने की योजना बनाई । कीर्ति ने भी बाजार के बहाने अपना रास्ता बना लिया । हॉस्टल में सुबह नाश्ता करके 11 बजे कीर्ति अपने मित्र मंडली के साथ निकल गयी । सब घूमते टहलते हुए शॉपिंग, चौपाटी फिर मूवी और आखिरी में डिनर करने बैठे ।
बड़ा शानदार सा रेस्टोरेंट , और चारों तरफ शराब की मनमोहक बोतलें, भाँति – भाँति के शराब, विभिन्न डिजाइन के लटकते हुए शानदार गिलास, चकाचौंध चारों ओर, अय्याशी की अलग ही कहानी कह रहे थे ।
कभी कीर्ति के चेहरे पर भय तो कभी आश्चर्य मिश्रित मुस्कान देखने को मिलती । कीर्ति के अलावा सब प्राइवेट घर मे रहते थे । वैसे तो कीर्ति कब से वापस लौटने के इंतज़ार में थी लेकिन सबने दबाव बनाते – बनाते उसे देर करा ही दिया ।
डिनर के समय भी कीर्ति ने थोड़ा विरोध किया कि हॉस्टल का गेट बंद होने से पहले मुझे पहुंचना है । लेकिन उसकी सहेलियां सलोनी, मेघा, सुजाता ने कीर्ति का आँख अपने हाथों से बंद करते हुए कहा…अभी तो पार्टी शुरू हुई है मैडम ! एक बड़ा सरप्राइज इंतज़ार कर रहा है |
तभी धीरे से सुजाता ने हाथ हटाया तो देखा मधुकर वेटर के साथ में शराब लिए खड़ा था । सब बिल्कुल सामान्य बर्ताव कर रहे थे लेकिन कीर्ति पहले तो शराब देखकर अवाक रह गयी फिर बहुत झिझक रही थी ।
शराब की गंध जब नजदीक से आई तो कीर्ति के अंदर उथल – पुथल होने लगी । बारी – बारी से वो अपने सभी दोस्तों के चेहरे के भाव पढ़ने में लगी थी । अब उसे ये ज़िन्दगी किसी फिल्मी दुनिया के चकाचौंध सी प्रतीत हो रही थी ।
खाना तो उसने मज़े से खा लिया लेकिन शराब की गंध से आखिरकार उसे उल्टी ही होने लग गयी । वो दौड़कर बेसिन गयी लेकिन फिर दो मिनट में वापस आयी तो विराज और मेघा ने उसकी पीठ थपथपाते हुए कहा..”दुनिया ज़माने की परवाह मत करो यार ! एक ही ज़िन्दगी मिली है मौज के लिए ।
कौन क्या कहेगा मत सोचो । # कुछ तो लोग कहेंगे । उन्हें उनके हाल पर छोड़ दो ।ज़िन्दगी ना मिलेगी दोबारा, झिझक हटाओ और खुल के जीयो ।
अब हम छोटे शहर से निकल चुके हैं । सबने दिलासा दिया, हम तो हर वीकेंड ऐसे ही बिंदास जीते हैं ।अब थोड़ी हिम्मत कीर्ति के अंदर जागी और उसने भी सबके साथ ड्रिंक कर लिया ।
थोड़ी ही देर में उसकी हालत खराब होने लगी । रास्ते भर वो गाड़ी में बैठकर उल्टी करती रही । माउथ फ्रेशनर उसे खिला दिया गया और उसका मुँह पानी से धुल दिया गया जब वो अपने हॉस्टल में उतरी ।
उसे बाहर ही रोका जा रहा था, उसकी संदेहास्पद स्थिति देखकर सबने हाथ पैर जोड़कर उसे अंदर भेजने को कहा । वार्डन मैडम ने कहा…”इसके पापा को फोन करते हैं , दो बार उनका फोन आया था । सब दोस्तों ने बहाना बना दिया कि पापा इसके दिल के मरीज हैं, ये सब कहना उचित नहीं, आगे से ध्यान रखा जाएगा ।
और वैसे भी…सलोनी के भैया की बहुत धाक थी उस शहर में । बहुत बिगड़ैल थी वो । सारा मामला एक फोन पर क्लियर हो गया । कीर्ति तो नशे में इतनी धुत थी अभी भी की उसे कोई होश खबर नहीं थी ।
अगले दिन जब वह सुबह उठने के बाद दिनचर्या से निश्चिंत होकर क्लास करने के लिए तैयार हो रही थी तो फोन में देखा घर से पाँच मिस्ड कॉलें थीं । उसके होश उड़ने लगे । उसने तुरंत फोन मिलाया…”पापा की रौबदार आवाज़ सुनकर उसके मुँह से आवाज़ नहीं निकल रही थी ।
बहुत हिम्मत के बाद उसने कहा..”बाजार में कुछ खरीदना था पापा ! फोन हैंग हो गया था इसलिए नहीं उठा पाई । सोहम जी ने पूछा…”यार दोस्तों के साथ मिलना जुलना तो नहीं हुआ ना ? बचकर ही रहना तुम्हारे दोस्त बहुत अय्याश किस्म के हैं । “हाँ पापा ! ध्यान रखूँगी कहकर उसने फोन काट दिया ।
ऐसे ही हर वीकेंड में वीडियो चैट चलते रहते और कभी मौका देखकर कीर्ति मिल भी आती दोस्तों से और समय पर हॉस्टल में भी हाजिर हो जाती । कीर्ति की हरकतें देखकर एक – दो बार वार्डन मैडम ने चेतावनी दी फिर भी कीर्ति बीच बीच में मनमानी कर लेती किसी बहाने से ।
एक दिन सोहम जी को वार्डन ने कॉल करके कीर्ति की हरकतें बताई । कीर्ति के पापा ने उसे फोन करके प्यार से समझाया फिर सख्ती से पेश आते हुए उसकी मम्मी मृदुला जी ने भी समझाया…”दूरी बना लो उन दोस्तों से, मुझे लगा पुराने दोस्त हैं अच्छा माहौल मिलेगा तभी मैंने पापा से ज़िद करके
तुम्हें भेजा था पर मुझे क्या पता था तुम उनलोगों के साथ रहकर बर्बाद होने के कगार पर आ जाओगी । अब भी वक़्त है सम्भल जाओ, आगे की ज़िंदगी और भविष्य सुरक्षित रखना है तो
! वरना पापा एक नहीं सुनेंगे और ये आखिरी चेतावनी है दुबारा कोई शिकायत आए तो हॉस्टल छुड़ा देंगे । उनलोगों के पास पैसों की कमी नहीं है, अपनी हैसियत देखकर रहो।
अब कीर्ति को ये बातें सुनकर चिढ़ हो रही थी। उसने झुंझलाते हुए कहा…”मम्मी ! पैसों के मामले में सबसे बेकार मैं हूँ सबको पता है । मेरे पैसे कोई खर्च नहीं कराता । ” बेटा ! अभी तक तो मुझे तुम में कोई खोट नहीं दिखता था ।
पर एक बात याद रखो, कोई भी रिश्ता हो दुनिया में कुछ भी फ्री नहीं होती, हर चीज की कीमत किसी न किसी रूप में चुकानी पड़ती है । तुम्हारे गलत चीजों में झुकाव की तरफ ये पहला कदम है जो तुम बहसबाजी पर उतर आई हो । “अब मम्मी की बातें कीर्ति को पकाऊ लग रही थीं, चुपचाप “हम्म बोलकर कीर्ति फोन रख दी ।
अब उसके अंदर दया – भाव प्रेम अपराधबोध कुछ नहीं महसूस हो रहा था । वार्डन को भी सख्त हिदायत दी गयी थी कीर्ति के आने – जाने पर नज़र रखने के लिए । गुस्सा तो उसे बहुत आती, लेकिन जितने टाइम के लिए वो जाती घर मे बताकर जाती । और इसी दौरान छोटी मुलाकातें दोस्तों के साथ कर लेती और समय से वापस आ जाती ।
लेकिन उसकी मनमर्जी में अब रुकावट बन रहा था मम्मी – पापा का फोन करना । पापा के गुस्से के कारण वो दोस्तों से मिलना तो छोड़ दी थी लेकिन शराब की लत , उसका चस्का इस क़दर हावी हो गया था कीर्ति पर की वह बाजार के बहाने जाकर शराब की छोटी बोतलें अपने साथ ले आती
और रात को सोने वक़्त पी लेती ।बगैर पिए उसे नींद नहीं आती थी । अब हर दिन का उसका रूटीन हो गया था । कई दिन नशा नहीं उतरता तो कितने क्लास भी बंक हो जाते । इसी बीच दो महीने में मम्मी पापा का भी आना हुआ
और जानकारी से पता चला थोड़ी देर के लिए ही कीर्ति निकलकर वापस आ जाती । दिन में अच्छी तरह दिनभर मम्मी पापा के साथ समय बिता लेती और रात की खुराक लेकर वो सो जाती ।
देखते देखते यूँ ही आठ महीने गुजर गए । एक दिन हॉस्टल से सोहम जी के पास फोन आया..”कीर्ति को हाई फीवर, उल्टी और सीने में दर्द है । पहले तो सबने समझा गैस होगा । लेकिन जब ठीक नहीं हुआ तो सोहम जी उसे अपने घर ले आए ।डॉक्टर ने सम्पूर्ण जाँच लिखा । जब रिपोर्ट आई तो सोहम जी और मृदुला जी एक दूसरे को आश्चर्य से देखते रह गए ।
जाँच में पता चला लीवर खराब हो रहा है । डॉक्टर ने कहा…”लम्बा इलाज चलेगा । अत्यधिक शराब सेवन से ये समस्या हुई है । पढ़ने वाली बच्ची कितना शराब पी जाती है ? आपलोग को पता नहीं। मृदुला जी और सोहम जी ने एक साथ कहा.. “डॉक्टर ! आप कैसी बातें कर रहे हैं।
आज तक हमारे घर मे शराब की बोतल नहीं देखी किसी ने । अब डॉक्टर ने रिपोर्ट्स को अच्छे से खंगाल कर बताया कि वजह साफ है ।
फिर कीर्ति से डॉक्टर ने पूछा तो वो हकलाने लगी । फिर एक सप्ताह की दवा खाने के बाद डॉक्टर ने एडमिट होने कहा । रास्ते भर आपस मे सोहम जी और मृदुला जी डॉक्टर की बातों कर चर्चा करते रहे और कीर्ति बिल्कुल मूक बन बैठी रही ।
घर पहुँचते ही मम्मी – पापा के गले लगकर दहाड़ें मार कर कीर्ति रोने लगी । उसने शुरू से आखिरी तक आप बीती सुनाई ।
मृदुला जी ने तैश में आकर कहा..मैं मधुकर, और सुजाता के घर जाकर उन्हें बताती हूँ बच्चों ने क्या किया है । सोहम जी ने गुस्से से चिल्लाते हुए कहा…”मृदुला ! हमे दुनिया को सुधारने की जरूरत नहीं होती अपने बच्चे को रोकना होता है ।
अब मृदुला जी ने कीर्ति के आँसू पोछते हुए कहा…”अब समझ आया बेटा ! “हांफते हुए कीर्ति ने कहा..”हाँ मम्मी ! दुनिया मे कुछ भी फ्री नहीं मिलता । मेरी पढ़ाई…मम्मी ! ये मैंने क्या कर लिया ।
एक सप्ताह बाद कीर्ति अस्पताल गई और एडमिट कराया गया । डॉक्टर ने आश्वासन देते हुए कहा..”छः से आठ महीने इलाज चलेंगे , फिर दवा परमानेंट चलेगा, ज्यादा दिन नहीं हुए इसलिए जल्दी ही ठीक होगा । कई लोगों को शराब हजम नहीं होती तो ऐसा होता है ।
डॉक्टर और मम्मी – पापा की आपसी वार्तालाप सुनने के बाद कीर्ति का मन ग्लानि से भर उठा । उसने जीवन भर शराब और उन घटिया दोस्तों से दूरी रखने की कसम खायी ।
अस्पताल के बिस्तर पर लेटते हुए मम्मी का हाथ चूमकर कीर्ति ने कहा…”अब कोई गलती नहीं होगी मम्मी ! मृदुला जी ने कीर्ति का माथा और हाथ चूमते हुए कहा…”ये ज़िन्दगी का सबक याद रखना बेटा ! ज़िन्दगी बार – बार मौके नहीं देती ।
एक साल बाद…
आज फिर से कीर्ति ठीक होकर अपने एडमिशन की तैयारी प्रभु से आशीर्वाद लेकर अपने ही शहर में करने जा रही थी ।
मौलिक, स्वरचित
अर्चना सिंह
# कुछ तो लोग कहेंगे