दिल का रिश्ता – करुणा मलिक : Moral Stories in Hindi

तुम क्यों भाई साहब के पास बैठी रहती हो ?  शायद माँ को अच्छा नहीं लगता, आज फिर से तुम्हें समझाने के लिए कह रही थी । 

मैंने ऐसी कौन सी गलती कर दी जिसमें समझाने की ज़रूरत पड़ गई ? अरे , दोपहर को खाना खाने के बाद भाई साहब लॉन में बैठते हैं तो मैं भी उनके पास बैठ जाती हूँ । माँ सो जाती है तो बस …..

देखो जाह्नवी, ऐसा किया करो कि तुम भी सो ज़ाया करो या अपने कमरे में बैठकर कोई मूवी देख लिया करो ।

नहीं अनमोल, पहली बात तो मुझे दिन में सोने की आदत नहीं और दूसरी बात कि अगर मैं भाई साहब के पास बैठ जाती हूँ तो  इसमें बुरा क्या है ? भले ही रिश्ते में वे जेठ लगते हैं पर मेरे चाचा के हमउम्र होने के साथ उनके बहुत अच्छे दोस्त भी हैं और  शादी से पहले मैं उनको चाचा ही कहती थी । और हम दोनों बहनों ने अनिल चाचा और भाई साहब में कभी फ़र्क़ भी नहीं किया था । काफ़ी  बड़े होने पर ही  हमें यह बात समझ में आई थी कि वो हमारे चाचा के दोस्त हैं । तुम्हें तो मैं केवल साल भर से जानती हूँ पर उनकी गोद में खेलकर बड़ी हुई हूँ ।

पहले की बात छोड़ो । अब रिश्ता बदल गया है इसलिए एक जेठ और बहू में जिस मर्यादा का पालन होना चाहिए, प्लीज़ उसे बनाकर रखो ।

जाह्नवी समझ गई कि अनमोल का इशारा किस तरफ़ है पर उस समय वह चुप रही क्योंकि अनमोल ऑफिस जाने के लिए तैयार हो रहा था । 

अनमोल और आनंद भाई साहब में बीस साल का अंतर था । आनंद भाई साहब के  बारह – तेरह साल बाद  बड़ी ननद का जन्म हुआ था, फिर छोटी  ननद और सबसे छोटे अनमोल । 

अनिल चाचा और आनंद भाई साहब की दोस्ती की मिसाल दी जाती थी । दोनों की मुलाक़ात पढ़ाई के दौरान उस समय हुई जब छात्रावास में एक ही कमरे में रहने का मौक़ा मिला था । एक ही शहर का , एक से विचार  होने के कारण  बहुत जल्दी घनिष्ठता  बढ़ गई । कुछ ही दिनों में दोनों दो शरीर एक जान बन गए ।

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पर इतना होने के बावजूद भी आनंद भाई साहब कभी अनिल को अपने घर नहीं लाए शायद कहीं न कहीं अपने से बहुत छोटे भाई- बहनों के कारण उनके मन में कोई कुंठा थी या कुछ ओर  लेकिन अनिल के घर का वे अभिन्न अंग बन  गए थे । अनिल के माता-पिता आनंद भाई साहब को अपने बेटे का दर्जा देते थे । यहाँ तक कि  हर छोटे-बड़े काम में उनसे भी विचार- विमर्श किया जाता था । 

अनिल चाचा की शादी एक दक्षिण भारतीय लड़की से मुंबई में ही हुई थी इसलिए आनंद भाई साहब के घरवालों को निमंत्रण देने का प्रश्न ही नहीं आया । इधर आनंद भाई साहब की शादी पुश्तैनी गाँव में की गई जिसमें केवल अनिल चाचा ही सम्मिलित हुए । धीरे-धीरे अनिल चाचा के बड़े भाई यानि जाह्नवी के पिता  अजीत और आनंद भाई साहब क़रीब हो गए क्योंकि अनिल चाचा बैंगलोर में रहने लगे और छोटे भाई का स्थान आनंद भाई साहब ने ले लिया । 

धीरे-धीरे वक़्त गुज़रता गया । आनंद भाई साहब की पत्नी संतान न होने के कारण मानसिक रूप से बीमार रहने लगीं और एक दिन सीढ़ियों से ऐसी गिरी कि वह आनंद भाई साहब को अकेला छोड़कर चली गई । इधर आनंद भाई साहब अपने छोटे भाई- बहनों में संतान सुख तलाश लिया ।

अनिल चाचा की दोनों भतीजियाँ जाह्नवी और जानकी भी विवाह योग्य हो गई थी । जानकी के विवाह के बाद जाह्नवी के लिए लड़का देखते- देखते पिता तो क्या रिश्तेदारों की भी कमर टूट गई क्योंकि जाह्नवी मांगलिक थी और उसकी माँ बिना कुंडली मिलाए विवाह करने के लिए हरगिज़ तैयार नहीं थी । उधर अनमोल भी मांगलिक था और उसकी माँ भी बड़ी बहू की असमय मृत्यु के बाद अनमोल के विवाह को लेकर बहुत सचेत हो गई थी । 

एक दिन आनंद भाई साहब और अनिल चाचा के बीच बातचीत हुई और अगले ही दिन आनंद भाई साहब जाह्नवी के पिता के पास जाकर बोले——

भाई साहब, जो बात कहने जा रहा हूँ शायद आपको अजीब लगे क्योंकि आज मैं अपनी भतीजी और अपने छोटे भाई के विवाह की बात कर रहा हूँ पर शायद भगवान की यही मर्ज़ी है । रिश्ता तो बड़े भाई का अवश्य है पर अनमोल बिल्कुल मेरे बच्चे जैसा है और जाह्नवी तो मेरी गोद में खेलकर ही बड़ी हुई है । आप और भाभी सोच लीजिए, अगर आपको एतराज़ न हो तो  आप इस रिश्ते के बारे में सोच सकते हैं ।

जाह्नवी के पिता ने अनमोल के बारे में पूरा पता किया । सब कुछ उम्मीदों से बढ़कर पाया पर फिर भी यह बात उनके गले से नीचे नहीं उतर रही थी कि अपने छोटे भाई समान आनंद के छोटे भाई से जाह्नवी का विवाह?

कई दिनों के चिंतन- मनन के बाद उन्होंने अनिल चाचा के माध्यम से जाह्नवी का रिश्ता अनमोल के साथ तय कर दिया ।आनंद भाई साहब ने अपनी तरफ़ से इस नए रिश्ते को बहुत सामान्य रखने की कोशिश की——

अनमोल, जिस तरह तुम मेरे दिल के टुकड़े हो उसी तरह जाह्नवी भी मेरी बेटी है । ख़बरदार, अगर तुमने कभी मेरी बेटी का दिल दुखाया तो ।

शादी हो गई और जाह्नवी नए घर में आ गई । पर विवाह के अगले ही दिन सुबह जब  उसने कहा—-

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अनमोल! आनंद चाचा कहाँ है? पापा उन्हें फ़ोन कर रहे हैं पर आउट ऑफ रेंज आ रहा है । 

बहू , ये क्या तरीक़ा है बड़े जेठ के बारे में इस तरह बोलने का । ठीक है वो तुम्हारे चाचा का दोस्त है पर है तो अनमोल का बड़ा भाई । तमीज़ से बात करना सीखो ।

सॉरी …. वो आदत बनी है ना । थोड़ा टाइम लगेगा ।

जाह्नवी को सास के कहने का तरीक़ा बुरा भी लगा पर जब उसकी मम्मी ने कहा—-

हाँ बेटा, तुम्हारी सास ठीक कह रही है । तुम आनंद को भाई साहब कहने की आदत डालो । 

पर मम्मी, आनंद चाचा ने ही तो कहा था कि उनका और मेरा रिश्ता पहले वाला रहेगा । 

हाँ, ये आनंद ने कहा था पर उनकी माँ ने नहीं । इसलिए बेकार की बातों में मत उलझो और नए रिश्ते को स्वीकार कर लो । चाचा कहो या भाई साहब, क्या फ़र्क़ पड़ता है ।

धीरे-धीरे जाह्नवी ने आदत डालनी शुरू कर दी । पर अनमोल की माँ को उसके और आनंद भाई साहब के बोलने बैठने पर भी एतराज़ होने लगा और वे अनमोल पर किसी न किसी बात को लेकर दबाव बनाने लगी कि अपनी पत्नी को जेठ और बहू की मर्यादा समझाए ।

आज भी वही बात हुई । जाह्नवी ने मन ही मन निश्चय किया कि मम्मी- पापा  को  परेशानी बताने या मन में घुटते रहने से समस्या हल नहीं हो पाएगी, उसे ही अपने परिवार के साथ बैठकर इसका समाधान खोजना पड़ेगा ।

उसी दिन रात के खाने के बाद वह अनमोल के साथ  ड्राइंगरूम में पहुँची जहाँ आनंद भाई साहब और सास बैठी टेलीविजन देख रही थी—-

माँ, आज मैं आप सबके सामने अनमोल की शिकायत करने आई हूँ ।

में…री….. अरे ! मैंने क्या किया? ऑफिस से आने के बाद मेरी तो तुमसे बात भी नहीं हुई ।

अनमोल! ये क्या सुन रहा हूँ? तुमने मेरी बेटी को क्या कहा ? माँ, आपके होते हुए इसने अपनी पत्नी का दिल दुखाया? माँ, मैंने अजीत भाई की परेशानी को देखते हुए अनमोल का रिश्ता जाह्नवी के साथ करवाया था वरना इन दोनों बहनों में तो मुझे अपनी बेटियाँ नज़र आती हैं । अगर भगवान मुझे औलाद देता तो आज मेरी बेटी जाह्नवी की उम्र की होती । मेरे लिए खून के रिश्ते की तरह दिल का रिश्ता भी बहुत महत्वपूर्ण है ।

 और जाह्नवी सुनो , बेटा ! मुझे पहले की तरह चाचा ही कहा करो क्योंकि भाई साहब कहने वाला तो अनमोल है ही पर चाचा कहने वाली मेरी जाह्नवी  भाई साहब कहकर दूर चली गई थी ।

ठीक है बहू , अगर आनंद को चाचा कहलवाने में सुख – शांति मिलती है तो अपने पुराने रिश्ते को ही निभा । तुम दोनों के सिवाय है भी क्या इसके पास ?  

अनमोल कभी माँ को तो कभी जाह्नवी को देख रहा था । 

करुणा मलिक

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