दिखावटी जिंदगी – लतिका पल्लवी : Moral Stories in Hindi

अमित, सुनो ऑफिस जाने के पहले मुझे हज़ार रुपए देकर जाना,निभा नें अमित से रोटी बनाते हुए रसोई घर से कहा। हजार रुपए क्या करोगी,महीना का आखरी सप्ताह है,पैसे कहाँ है इतने मेरे पास?अमित के इतना कहते ही निभा रोटी बनाना छोड़कर ड्राइंग हॉल मे आकर बोलने लगी। मेरे लिए

तुम्हारे पास पैसे रहते ही कब है? तुम्हारे घर मे मुझे एक एक चीज को तरस कर जीवन काटना पड़ता है। कभी आज तक ऐसा हुआ ही नहीं है कि मै पैसे माँगु और तुम ख़ुशी ख़ुशी से दो।और भी बहुत कुछ उसने अमित को सुना दिया।सुबह ही सुबह घर मे क्लेश शुरू ना हो जाए इस डर से अमित

नेंकहा ठीक है चिल्लाओ मत पैसो का इंतजाम कर दूंगा।निभा खुश होकर फिर से रोटी बनाने चली गईं।उसे इस बात से कोई मतलब नहीं था कि उसकी ख़ुशी की क़ीमत अमित कैसे चुकाएगा।निभा के लिए यह एकदम मामूली बात थी।उसे जो चाहिए वह चाहिए, अमित कहा से लाएगा इससे उसको

कोई मतलब नहीं था।अमित बैक मे क्लर्क है पर निभा नें दोस्ती बैंक के बड़े पदों पर आसिन कर्मचारियों की पत्नियों से कर ली है। कॉलोनी मे सभी पदों के लोगो को क्वाटर मिला है।निभा पढ़ी लिखी और देखने मे बहुत ही सुंदर है। बहुत ऑफिसर की पत्नियां जो कम पढ़ी लिखी है वे निभा की

धाराप्रवाह अंग्रेजी बोलने से काफ़ी प्रभावित थी। बस इसीलिए उन्होंने निभा से दोस्ती कर रखी है।वे कही भी जाती है तो निभा को साथ लेकर जाती है ।बाहर निभा बहुत ही अच्छे तरीके से और अंग्रेजी मे बात करती है तो उन्हें अच्छा लगता है और वे सोचती है कि बाहर मे कौन जानता है कि यह क्लर्क की

पत्नी है।इसलिए अपना स्टेण्डर्ड बढ़ाने के लिए इसे साथ ले लेती है।उन्हें इसकी दोस्ती से कुछ फायदा हुआ या नहीं यह तो बात की बात है। पर इस दोस्ती से निभा मे झूठे दिखावे की गंदी आदत जरूर पड़ गईं और अब इसका खामियाजा अमित को भुगतनी पड़ रही थी।आज सभी महिलाओ नें सावन

महोत्सव के लिए हरी साड़ी लेने के लिए बाजार जाने का प्रोग्राम बनाया था। इसीलिए निभा को एक हजार रूपये की जरूरत थी। अफसरों की पत्नियों से होड़ लेने मे निभा यह भूल गईं थी कि वह एक क्लर्क की पत्नी है और अमित और अफसरों के वेतन मे काफ़ी अंतर है।वह अब सिर्फ झूठे दिखावे मे

जी रही थी। अमित की परिस्थितियों से उसे कुछ मतलब नहीं था।अमित नें जैसे तैसे कर के उसे हजार रुपये दे दिए,पर ना तो यह निभा की पहली माँग थी और ना ही आखिरी।अब यह प्रायः होने लगा।अमित घर की शांति के नाम पर उसके जायज नजायज सभी माँगो को पूरा करता गया और

निभा की माँग भी समयानुसार बढ़ती गईं। उसने कभी ध्यान ही नहीं दिया कि उसके इस जिद्द का अमित पर क्या असर पड़ रहा है या वह पैसे कहाँ से ला रहा है। स्टील के बर्तन की जगह शीशा या क्राकरी लाने कि जिद्द तो कभी कूलर की जगह एयर कंडीशन लाना,यह सब उसने अफसरों की

पत्नियों के देखा देखी करके अपनी जिद्द पूरी करवाई। अमित आखिर यह दबाव कितने दिनों तक सहता? अत्यधिक दबाव से उसका बी पी हाई रहने लगा।पर निभा घूमने फिरने मे यह भी भूल गईं थी कि उसका एक पति बच्चा और घर है।वह अब ना तो समय पर खाना बनाती ना बच्चे को स्कूल भेजती

और ना अमित के लिए लंच बनाती क्योंकि उसने अब एक नया जिद्द पकड़ा था कि उसके घर भी खाना बनाने वाली और चौका बर्तन वाली होनी चाहिए क्योंकि सभी के घर पर है।अभी तक तो अमित कही ना कही से इंतजाम कर के उसके जिद्द को पूरा कर दे रहा था क्योंकि उसमे एकबार ही पैसे

खर्च करने होते थे पर काम वाली का वेतन तो हरेक माह देना होगा जो कि अमित के बजट मे नहीं हो सकता था।अपने इस जिद्द को पूरा करवाने के लिए निभा रोज़ घर मे कलह कर कर थी।अमित इससे पूरी तरह थक गया था।घर मे एक पल की भी शांति नहीं थी।आखिर वह इस दबाव को नहीं सहन

कर  पाया।    नौकरानी को लेकर निभा और अमित मे बहस हो रही थी। अमित उसे अपने घर की परिस्थिति समझाना चाह रहा था लेकिन निभा कुछ समझने को तैयार ही नहीं थी। उसे तो बस अपनी सहेलियों के ग्रुप मे दिखाना था कि वह भी कोई उनसे कम नहीं है।तभी अत्यधिक दबाव से अमित बेहोश हो गया जब उसे डॉक्टर के पास ले जाया गया तो डॉक्टर नें  कहाँ कि इनको माइनर हार्ट

अटैक आया है।अब तो निभा के हाथ पाँव फूलने लगा। उसे समझ नहीं आया कि अब क्या करे तो उसने अपनी सहेलियों को फोन किया पर एक तो वे सब इतनी पढ़ी लिखी थी नहीं कि कुछ करती दूसरी बात की अफसरों की पत्नियां एक क्लर्क के पति के साथ भला क्यों ख़डी होती?अमित के साथ

काम करने वाले कुछ लोग अस्पताल मिलने आए और सहायता करने का भी आश्वासन दिया पर निभा नें अपने को काबिल दिखानें के चक्कर मे किसी भी क्लर्क की पत्नी से दोस्ती नहीं की थी।इसलिए आज उसके पास इस विपदा की घड़ी मे ढाढ़स बढ़ाने वाला कोई नहीं था।साथ ही उसके दिखावे के

चक्कर मे अमित का बैंक बेलेंस भी जीरो था और नहीं तो कुछ हद तक उसके उपर कर्ज भी चढ़ा था। आज अमित उसके दिखावे के लिए की गईं अत्यधिक खर्च के कारण अस्पताल मे पड़ा था।निभा को पैसे रुपए की कुछ जानकारी नहीं थी। उसने अपने ससुराल मे फोन किया तो उसके ससुर जी नें

ऑनलाइन अस्पताल का बिल भरा,जिससे अमित का इलाज शुरू हो गया।फिर उसके सास ससुर आए और उन्होंने ही अस्पताल के और दवाईयो के सारे बिल चुकाए। घर आकर जब उन्होंने देखा कि घर का पूरा कायाकल्प ही हो गया है तब वे समझ गए कि अमित प्रायः उनसे पैसे क्यों मांगता था और उसे हार्ट अटैक क्यों आया। उन्होंने निभा को समझाते हुए कहा कि बहू झूठे दिखावे से जिंदगी

नहींचलती है।हमें उतनी ही खर्च करनी चाहिए जितनी हमारी आमदनी हो।नहीं तो कमाने वाला इसी तरह जिन्दगी और मौत के बीच पीस जाता है। तुमने बहुत बड़ी गलती की है पर ईश्वर का धन्यवाद करो की आज भी उसकी कृपा से अमित हमारे साथ है।यही हमारे लिए बहुत बड़ी ख़ुशी है, पर आगे से इस कहावत को याद रखना “तेते पाँव पसारिए,जेती लम्बी सौर ” 

वाक्य — झूठे दिखावे से जिंदगी नहीं चलती

Latika Pallawi लतिका पल्लवी

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