दिखावा

“मान गए जानकी तुम्हारी पसंद को बहुत सुंदर भी लाई हो  और  नौकरी वाली भी। अब तो मौज ही मौज है तुम्हारी। भले ही दहेज कम लाई हो, पर अपनी कमाई से घर भर देगी तुम्हारा।”

“कैसी बातें कर रही हो रमा! हमारे घर में किस चीज़ की कमी है जो हम बहू के पैसों पर नज़र रखें। कुछ भी करें, अपने पैसों का करें। माना बहू का मायका हल्का है, पर हमें क्या करना है?”

“अरे नाराज़ क्यों हो रही हो! मैंने तो ऐसे ही कह दिया।”
मुंह दिखाई की रस्म करने आई पड़ोसन रमा ने आखिर कम दहेज लाने पर कटाक्ष कर ही दिया और जानकी जी के मन में हलचल पैदा करके चली गई।


“देखो बहू, तुम तो जानती हो कि हमें कुछ नहीं चाहिए। पर आस-पड़ोस और रिश्तेदारों को भी देखना पड़ता है। कब क्या कह दें, किसी को रोक नहीं सकते। अगर सामान अच्छा आएगा तो उससे मायके की भी इज्ज़त है।”

नई-नवेली रेखा चुपचाप सुनती रही। कहने को बहुत कुछ था, पर उसने मन की परेशानी को सहते हुए चुप रहना उचित समझा।

जानकी जी ने इकलौते बेटे राहुल की शादी एक मध्यमवर्गीय परिवार में की थी। वजह यह थी कि उनका परिवार गाँव में रहता था और कोई भी शहर की लड़की गाँव में रहना पसंद नहीं करती। पति सुरेश जी और बेटे का अपना कारोबार था, पैसे की कोई कमी नहीं थी। लेकिन बहू के मायके से आए सामान का दिखावा करके अपनी शान ज़रूर दिखानी थी।

पहले ही दिन विदाई पर रेखा के मायके से खूब सामान आया, पर इतने में भी जानकी जी को तसल्ली नहीं हुई। आस-पड़ोस में रेखा के मायके से आए सामान के लिए उन्होंने बहुत बातें बनाई—
“हल्के घर से आई है न! इन्हें क्या पता कैसे सामान दिया जाता है। लोकल और ब्रांडेड चीज़ों का फर्क ये क्या जानें!”

अपने मायके की बुराई सुन रेखा का मन बहुत आहत हुआ, पर राहुल ने उसे विश्वास दिलाया—
“माँ से मैं खुद बात करूँगा।”


एक दिन राहुल ने साफ़ कहा—
“माँ, अच्छा लगता है क्या इस तरह आप अपने घर की इज्ज़त को बाहर उछाल रही हैं? क्या कमी थी सामान में? सब कुछ तो आपके कहे अनुसार दिया गया था। मम्मी-पापा ने अपनी हैसियत से बढ़कर दिया है।”

“चुप रह! तुझे दुनियादारी की समझ नहीं है।”
जानकी जी ने झिड़क दिया।

“माँ, अगर आपने रेखा के मन को ठेस पहुँचाकर कोई भी काम किया तो मैं रेखा को लेकर अलग हो जाऊँगा। आगे आपकी मर्ज़ी।”
राहुल ने कड़ा जवाब दिया।

“राहुल ठीक कह रहा है जानकी! किस दुनियादारी की तुम बात कर रही हो? अपने बच्चों की खुशी से बढ़कर कुछ नहीं होता। वक्त रहते संभल जाओ, वरना बहुत पछताओगी।”
सुरेश जी बोले।

उस वक्त जानकी जी ने रेखा से माफी मांग ली, पर दबी जुबान में अक्सर कुछ न कुछ कहती रहतीं।


कुछ महीनों बाद जानकी जी के भतीजे की शादी हो गई। उनकी बहू दहेज में घर भरकर सामान लाई थी। पहली दिवाली पर आए कीमती उपहारों ने जानकी जी की दुखती रग पर वार कर दिया। साल भर से दबा गुबार आखिर रेखा पर निकल ही गया—

“इसे कहते हैं ससुराल वालों की इज्ज़त करना। कुछ सीखो सुमित्रा की बहू के मायके वालों से! और एक तुम्हारे मायके वाले हैं, जो थोड़े-से सामान को भी ऐसा जताते हैं जैसे कुबेर का खज़ाना भेज दिया हो। तुम्हारे मायके वालों ने हमारी नाक कटवा दी हल्के घरवालों से!”


इतना सुनते ही रेखा का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया—

**“बस कीजिए माजी! आज तक आपने बहुत कह लिया, अब और नहीं। जब आपने शादी की थी, तब क्या आपको नहीं पता था कि हम मध्यमवर्गीय परिवार के हैं? हर अवसर पर मेरे माता-पिता भारी-भरकम सामान नहीं दे सकते। तब क्या आपकी आँखें बंद हो गई थीं? अगर अपनी शान इतनी ही प्यारी थी तो रिश्ता ही क्यों किया?

नाक कटवाई है तो आपने, मेरे मायके ने नहीं। बार-बार मेरा और मेरे मायके का अपमान करके मैं इस घर में और नहीं रह सकती!”**


“बहू, शांत हो जाओ। गुस्से में आकर ऐसा कोई कदम मत उठाओ जिससे और बदनामी हो।”
सुरेश जी ने बीच में टोकते हुए कहा।

“बाबूजी, मैं आपकी बहुत इज्ज़त करती हूँ। आज तक आपके कहने पर ही माजी की हर कड़वी बात सहती आई हूँ। लेकिन अब ऐसे माहौल में और नहीं रह सकती। माजी को मैंने माँ का दर्जा दिया, पर उन्होंने कभी मुझे बेटी माना ही नहीं। वरना आज ये सब नहीं होता। माजी का स्वभाव कभी नहीं बदलेगा।”

“रेखा ठीक कह रही है पिताजी। माँ को हमसे ज़्यादा समाज में दिखावा प्यारा है। और इसके लिए मैं अपनी गृहस्थी में आग नहीं लगा सकता। हम अलग होना नहीं चाहते थे, पर अब मजबूर हैं।”
राहुल ने दृढ़ स्वर में कहा।


बेटे के घर छोड़कर जाने के फैसले से माँ की ममता पर गहरा असर हुआ। जानकी जी की आँखों से आँसू बहने लगे।

“मुझे माफ़ कर दो रेखा, बहुत बड़ी गलती हो गई। पैसों के घमंड ने मेरी आँखों पर पट्टी बाँध दी थी। समाज में अपने रुतबे को ऊँचा उठाने के चक्कर में तुम्हारे मायके को नीचा दिखा दिया। गलती इंसान से ही होती है। आज के बाद कभी तुम्हारे मायके को हल्का नहीं कहूँगी। राहुल से अलग रहने की बात मैं सोच भी नहीं सकती। थोड़ा समय लगेगा आदत बदलने में, पर कोशिश करूँगी कि अब तुम्हारा दिल ना दुखे।”

यह कहते हुए जानकी जी रेखा के गले लग गईं।

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