सास और बहू में बनती नहीं थी। मर्यादा में जीने वाली सास को बहू का ज्यादा आधुनिकपना कम पसँद था
तो बहू को सास का बार-बार टोकना परेशान करता था।
एकदिन दोपहर बहू अकेली बैठी थी तो सास ने उसके पास आकर कहा-” बहू!
मैं जानती हूँ कि मेरा टोकना तुझे पसन्द नहीं। लेकिन एकबात आज अवश्य कहूँगी कि मैंने तुझे पूरी स्वतंत्रता दे रखी है
लेकिन स्वच्छंदता नहीं। तू पढी़ लिखी है अतः आज अपने मन में मंथन करना कि स्वतंत्रता और स्वच्छंदता में क्या अन्तर है।”
इतना कहकर सास चली गई।
बहू पढी़ लिखी समझदार थी लेकिन आधुनिकता एवं दिखावे के आवरण से ढँक चुकी थी।
रातभर सोचने के बाद दूसरे दिन सुबह बहू ने सास के पैर छूते हुए कहा- माँ! आप ठीक कह रही थी।
नारी का स्वतन्त्र होना मर्यादा भंग नहीं है लेकिन स्वच्छन्द होना विनाश का कारण हो सकता है।”
आज सास-बहू के मध्य की दीवार स्वतः ही ढह गई।
गिरिजाशंकर केजरीवाल।