आप बहू को खाने को नहीं देतीं

मैं सच बता रही हूं, कल रात रोहित भैया स्नेहा भाभी के लिए एक बड़ा पैकेट लेकर आए। लगता है उन्हें घर का खाना अच्छा नहीं लगता। मुझे पूरा यकीन है, कुछ खाने-पीने का ही सामान था। अब आज पड़ोस के लोग देखने वाले तो यही कहेंगे— “आप बहू को खाने को नहीं देतीं, इसलिए … Read more

मायके की पुकार

सुमन फोन उठाने के लिए जैसे ही भागी, तभी सास कविता देवी की ऊँची आवाज़ गूँजी—“फिर बज उठा तेरे फोन का घंटा! तेरी माँ और तेरे रिश्तेदारों को क्या चैन नहीं है? दिन में दस-दस बार फोन करते हैं। जैसे हमारे घर का सुख-चैन छीनकर ही दम लेंगे।” सुमन सकपका गई। शादी को बस एक … Read more

वसीयत का सच

“कैसी वसीयत बनाई पिताजी ने! ज़मीन, मकान, कुछ भी पूरी तरह से हमारा नहीं। हर चीज़ में मम्मी की हिस्सेदारी… जब तक वह ज़िंदा हैं, तब तक कुछ भी हमारा नहीं।” —बहू अंजली ने होंठ सिकोड़ते हुए कहा। “मैं भी यही सोच रहा हूँ। पेंशन तो वैसे ही उन्हें मिलती रहेगी। फिर भी पिताजी ने … Read more

रिश्तों की दरार

“बड़ी बहू! बड़ी बहू!… रुको ज़रा!” मोहल्ले की चाची हाँफती हुई प्रज्ञा के पास पहुँचीं।प्रज्ञा ने तुरंत पैर छूते हुए कहा—“क्या हुआ चाची जी? आप इतनी घबराई क्यों हैं? सब ठीक तो है?” चाची ने लंबी साँस ली और बोलीं—“अरे बड़ी बहू, हम तो ठीक हैं, लेकिन तुम्हारे घर में आज फिर झगड़ा हुआ है। … Read more

मायके का हक़ 

रश्मि फोन पर अपनी माँ से शिकायत भरे स्वर में बोली—“माँ, घर की सफ़ाई और काम करते-करते थक गई हूँ। कभी लगता है इस घर में मैं बस एक नौकरानी हूँ। मेरी थकान किसी को दिखाई ही नहीं देती। सोच रही हूँ कि कुछ दिन मायके आ जाऊँ। बच्चों को भी साथ ले आऊँगी। वहाँ … Read more

अहंकार

सुषमा जी तनीषा को समझाती रहतीं—“छोटी बहू, इतना अहंकार अच्छा नहीं है। अगर अपनी जेठानी को थोड़ा सा सम्मान दे दोगी तो कुछ बिगड़ेगा नहीं। मौका पड़ने पर रुपया-पैसा नहीं, व्यवहार काम आता है।” लेकिन तनीषा पर इन बातों का कोई असर नहीं पड़ता। उसे अपना बाहर जाकर कमाई करना और बड़े घर की बेटी … Read more

शिकायत

सुषमा अपने पति राकेश और बेटे के साथ सुबह नाश्ता कर रही थी। पराठे का एक टुकड़ा खाते ही उसने बुरा सा मुंह बनाकर अपने बेटे रोहित से कहा— “कितने बेस्वाद परांठे बनाए हैं तेरी पत्नी राधा ने! न इनमें नमक है, न मिर्च। मुझसे तो ऐसे परांठे बिल्कुल भी नहीं खाए जाते। पता नहीं … Read more

स्वार्थ

“बाबूजी, यह सब क्या है? आप ड्राइंग रूम में भी अपनी दवाइयां फैला देते हैं! आपका कमरा छोटा पड़ जाता है क्या? कभी कोई आए तो क्या कहेगा? किसी मेहमान के लिए बैठने की जगह तो छोड़ दीजिए!” — अपनी बहू की कर्कश आवाज़ सुनकर सुनील जी की तंद्रा टूटी तो वो घबराकर जल्दी-जल्दी अपनी … Read more

दिखावा

“मान गए जानकी तुम्हारी पसंद को बहुत सुंदर भी लाई हो  और  नौकरी वाली भी। अब तो मौज ही मौज है तुम्हारी। भले ही दहेज कम लाई हो, पर अपनी कमाई से घर भर देगी तुम्हारा।” “कैसी बातें कर रही हो रमा! हमारे घर में किस चीज़ की कमी है जो हम बहू के पैसों … Read more

इल्ज़ाम

“निशा… निशा… कहां हो?”“जी मम्मी जी, आई।”“तुमको गहने रखने के लिए दिए थे, रख दिए क्या?”“जी मम्मी जी, रख दिए।”“जरा ध्यान से रखना बेटा। घर मेहमानों से भरा है और तुमको तो पता है घर का माहौल कैसा है। यहां तो पैसे भी रखकर चोरी हो सकते हैं, और ये तो गहने हैं। अब तुम्हारी … Read more

error: Content is protected !!