“आपने मेरे लिए क्या किया है?” बेटे रोहन के मुंह से ऐसे कठोर शब्द सुनकर सरिता की आंखों में आसूं आ गए।जिस बेटे को इतने नाजों से पाला अपनी रातों की नीद कुर्बान की वही आज उसकी परवरिश पे सवाल कर रहा था वो भी बहु प्रिया के सामने जिसने आते ही पूरी तरह से रोहन को अपने मोहजाल में बांध लिया था।
रोहन की बात सुनकर प्रिया के चेहरे पे तो जैसे विजय मुस्कान आ गई।आखिर वो यही तो चाहती थी कि रोहन अपनी माँ के मोह से निकलकर बस उसका ही होकर रह जाए और आज ये उसके जीत की शुरुआत थी।
दरअसल रोहन को एक दो दिन से थोड़ा बुखार थ प्रिया ने रात को उठकर उसे एक दो बार पानी दिया और उसका सर भी दबाया बस फिर क्या था रोहन तो जैसे उसका कायल हो गया…सुबह जब सरिता उसका हाल पूछने आई तो तंज कसते हुए बोला -“आप तो कल रात को घोड़े बेचकर सो रही थीं..अपको क्या पता कि मुझे सर और बदन में कितना दर्द हो रहा था..?प्रिया बेचारी रातभर मेरा सर दबाती रही…मुझे दवाई दी..तब जाकर मैं कहीं सो पाया..आपने मेरे लिए किया ही क्या है?”
रोहन ने ऐसा कहकर मानों सरिता की जिंदगी भर की मेहनत पे पानी फेर दिया…वो दुखी होते हुए बोली-“बेटा तुम्हारा दरवाजा बंद होता है इसलिए मुझे कैसे पता चलता कि तुम्हें रात में क्या तकलीफ हुई?”कहकर सरिता चुपचाप अपने कमरे चली गई और अतीत की यादों में खो गई..
रोहन जब हुआ था परिवार में बहुत खुशियां मनाई गईं क्योंकि उसके पति के बाद परिवार में कोई बेटा हुआ था।
सरिता के पति पर ऑफिस और परिवार की जिम्मेदारी थी थी सो रोहन की सारी जिम्मेदारी सरिता ने उठा रखी थी।
सारी सारी रात रोहन के लिए जागती..कभी उसे दूध पिलाती तो कभी उसका गीला बिस्तर साफ करती..क्योंकि उस समय डायपर तो होते नहीं थे जो बच्चे को पहनाकर सुला दो ।बेचारी पति को एक बार भी नहीं जगाती..उसे लगता दिनभर के थके हैं इन्हें नींद की ज्यादा जरूरत है।
सरिता रातभर बच्चे के साथ जागती फिर सुबह जल्दी उठकर घर के काम काज में लग जाती..उसको सांस लेने की भी फुर्सत नहीं मिलती फिर भी कभी उसने उफ्फ तक नहीं की।
रोहन जब बड़ा हो गया तब भी रात को उसे कोई प्राब्लम होती तो सरिता ही जागती।उसकी परीक्षा के समय भी जितनी देर वो जागता उसके साथ जागती..कभी उसे चाय बनाकर देती तो कभी उसका सर दबाती..!!
रोहन को इंजीनियर बनाने में सरिता की बहुत बड़ी भूमिका रही क्योंकि पति ने तो पैसा खर्च किया पर सरिता ने अपना दिन का चैन वी रातों की नींद कुर्बान की थी।
विधि का विधान भी देखो..जो जितना सहता है ईश्वर उसको उतना ही ज्यादा तकलीफ देता है..सरिता के पति उसे बीच मझधार में छोड़कर चले गए।
अब तो सरिता के लिए हर दिन चुनौती से भरा हुआ होता था क्योंकि उसका स्वास्थ भी ठीक नहीं रहता था और बेटे का विवाह भी करना था..उसे लगा था कि बहु आ जाएगी तो उसके जीवन में दुबारा खुशियां आ जाएंगी।
सरिता ने अपने दम पर बेटे का धूमधाम से विवाह किया।प्रिया बहु बनकर सरिता के घर आ गई।सरिता प्रिया को बेटी की तरह ही प्यार करती थी पर शायद प्रिया ने कभी सरिता को अपनी माँ नहीं समझा और रोहन का भी सरिता को तवज्जो देना उसे भाता नहीं था।उसे लगता बस रोहन पे सिर्फ उसका ही अधिकार है।प्रिया रोहन के पसंद का खाना बनाती और उसे उसके जन्मदिन पर कीमती तोहफे देती। वैसे पैसे रोहन से ही लेती थी पर ये कहकर,कि मैं अपनी सेविंग्स में से आपके लिए गिफ्ट लाईं हूं रोहन का दिल जीतने में कामयाब हो जाती।
रोहन धीरे धीरे प्रिया के मोहजाल में फंसता चला जा रहा था और सरिता से कहीं न कहीं मन से दूर होता जा रहा था..ये बात सरिता को समझ आ रही थी पर ये नहीं पता था कि बेटा इतना दूर चला जाएगा कि उसकी कुर्बानियों को भूल जाएगा और एक दिन ये कहेगा कि..आपने मेरे लिए किया ही क्या है?
गम में डूबी सरिता के लिए परिस्थितियों से समझौता करने के अलावा और कोई चारा नहीं बचा इसलिए उसने अपने आंसू पोछे और फिर किचन में सबके लिए नाश्ता बनाने चली गई।चाय नाश्ता लेकर रोहन के कमरे में गई तो वो बोला -“आप नाश्ता रखकर चली जाओ..हम बाद में खा लेंगे प्रिया बेचारी रातभर सोई नहीं उसे नींद पूरी करने दो।”
कल की आई पत्नी की इतनी चिंता..और जिस माँ ने अपनी नींद की कभी परवाह न करके उसे इतना बड़ा किया और काबिल बनाया उसके सारे प्रयासों को एक पल में नकार दिया…सच ही कहा है किसी ने जब अपना सिक्का ही खोटा हो तो और किसी से क्या शिकायत करना?सरिता बस यही सोचती हुई वापिस अपने कमरे में आ गई।
एक दिन सरिता ऐसे ही उदास सी बैठी थी,कि तभी उसके पति के ऑफिस के मित्र मिस्टर शर्मा का अचानक फोन आया कि वो शाम को उनके घर आ रहें हैं तो सरिता को बहुत खुशी हुई क्योंकि इतने समय बाद पति के मित्र उनके घर आ रहे थे।
संडे का दिन था रोहन भी घर पर ही था सरिता ने उसे बताया कि आज शाम को पापा के फ्रेंड आ रहें हैं तो वो भी खुश हुआ।
शाम को मिस्टर शर्मा अपनी पत्नी के साथ सरिता के घर आए।सरिता ने नेहा से उनका परिचय करवाया।चाय नाश्ते के साथ बातों का सिलसिला भी शुरू हो गया।बातों ही बातों में मिस्टर शर्मा रोहन से बोले -“बेटा,आज जो भी तुम हो वो अपनी मम्मा की वजह से हो।तुम्हारे पापा के ऊपर परिवार और ऑफिस की जिम्मेदारियां थीं..वो बेचारे तुम्हें समय नहीं दे पाते थे..ये तो भाभी जी की हिम्मत थी जिन्होंने घर परिवार संभालने के साथ साथ तुम्हारी परवरिश भी पूरी निष्ठा से की।जब भी मैं तुम्हारे घर आता तो भाभी जी के चेहरे पे हमेशा मुस्कुराहट देखता कभी इन्होंने उफ्फ तक नहीं की।ये सब करना इतना आसान नहीं होता।इनकी हमेशा कद्र करना कभी दुखी मत होने देना…बहुत संघर्ष किया है इन्होंने।”
“हां बेटा,मैंने भी हमेशा तुम्हारी मम्मी को तुम्हारे लिए संघर्ष करते देखा है..अब तुम्हारी बारी है इनको सुख देने की।”मिस्टर शर्मा की पत्नी पति की बातों पर अपनी सहमति जताते हुए बोलीं।
मिस्टर शर्मा की बातें सुनकर एक पल को सरिता की आंखें नम हो गईं पर सबके सामने वो अपने को कमजोर नहीं साबित करना चाहती थी इसलिए अपने पल्लू से आंसू पोछकर मुस्कुराते हुए बोली -“भाई साहिब,रोहन बहुत अच्छा बेटा है..मेरा बहुत ख्याल रखता है..मुझे किसी चीज की कमी नहीं रहने देता।”
सरिता की मुंह सी अपनी तारीफ सुनकर रोहन की नजरें शर्म से झुक गईं..वो सोचने लगा,मैंने तो ऐसा कुछ खास माँ के लिए किया नहीं फिर भी वो मेरी तारीफ कर रही है और उन्होंने मेरे लिए इतनी तकलीफ उठाई जैसा कि शर्मा अंकल भी कह रहें हैं और मैंने कितनी बेरूखी से उन्हें कह दिया.. कि आपने मेरे लिए किया ही क्या है?कितना दुख हुआ होगा बेचारी को?मैं बिल्कुल अच्छा नहीं हूं मैं तो बहुत बुरा बेटा हूं।
मिस्टर शर्मा के जाने के बाद रोहन ने सरिता के पैर पकड़ लिए और बोला -“माँ,मुझे माफ कर दो..मैंने आपका बहुत दिल दुखाया है..अपकी कुर्बानियों को सिरे से नकार दिया..मैं बहुत बुरा बेटा हूं।”
सरिता ने रोहन को गले से लगाया और बोली -“ऐसा मत कह तू तो मेरा राजा बेटा है।”सारे गिले शिकवे आंसुओं में बह गए।
नेहा मूकदर्शक सी खड़ी माँ बेटे का मिलाप देख रही थी..उसे ये बात समझ आ गए थी, कि कोई साजिश मां बेटे को जुदा नहीं कर सकती।
सच दोस्तों बुजुर्गो के खिलाफ कैसी साजिश करना।उम्र के इस पड़ाव पर उन्हें अपने बच्चों से सिवा स्नेह और साथ के और क्या चाहिए होता है।
कमलेश आहूजा