भले घर की बहु – सुनील शर्मा : Moral Stories in Hindi

जब कलम लेकर लिखने बैठता हूं तो अपने आस पास बिखरी सैंकडों कहानियां पाता हूं जिनके किरदार आगे आ आकर कहते हैं कि उन पर भी कुछ लिखूं. आज यादों में ऐसा ही एक किरदार उभर कर आया, हमारी गली के नुक्कड़ पर बैठा मोची…रामलाल

जबसे होश संभाला, रामलाल को मैंने हर रोज़ बिना नागा उसी जगह जूता चप्पल गांठते पाया. सुबह सवेरे ही वह तारपोलिन लगाकर अपना बक्सा खोलता और ग्राहक का इंतजार करने लगता. काफी चलने वाली गली थी इसलिए रामलाल के पास काम की कमी न थी. रबड़ की हवाई चप्पल में पैबंद

लगाना हो या चमड़े के जूते का सोल, रामलाल अपना काम उसी लग्न से एक कलाकार की तरह करता था. गर्मी-सर्दी हो या  बरसात, रामलाल वहीं बैठा मिलेगा. कभी कभी जूता रख कर आना पड़ता था कि अगले दिन देगा. कभी पैसों के मामले में मैंने उसे किसी से झगड़ते नहीं देखा.

मैं अक्सर छोटे मोटे काम लेकर उसके पास जाता था. इतनी उम्र में भी उसे काम करते देख मुझे आश्चर्य भी होता. उत्सुकतावश एक दिन मैंने उसके परिवार के बारे में पूछा. एक ही लड़का था. उसे जी जान से पढ़ाया लिखाया. पढ़ाई में अच्छा था. बी कॉम करने के बाद बैंक की परीक्षा में पास हो गया.

सरकारी बैंक में क असिस्टेंट मैनेजर के पद पर है. अच्छे वेतन पर है. वहीं बैंक में ही कार्यरत किसी लड़की से शादी भी कर ली. हमें नहीं बताया क्योंकि वह किसी को ज़ाहिर नहीं होने देना चाहता था कि उसका बाप मोची है. इसी शहर में अलग घर लेकर रह रहा है. माता पिता से कोई वास्ता नहीं रखता. बहु को भी शायद उनके बारे में कुछ नहीं पता. अपना सिक्का ही खोटा हो तो…कहते हुए रामलाल का गला रुंध गया.

बुढ़ापे में यदि बच्चे मुंह मोड़ लें तो जीवन कितना कष्टदाई हो सकता है यह रामलाल की आंखों में झलकता था. मां बाप क्या नहीं करते बच्चों को पढ़ाने लिखाने तथा बड़ा करने में. परंतु बच्चे यदि मां बाप की मौजूदगी से ही शर्मिंदगी महसूस करने लगें तो इससे तो बेऔलाद ही भले. फिर भी बिना कोई शिकायत किए रामलाल अपने कार्य को दक्षता से करता था. ग्राहकों से मुस्कुरा कर ही बात करता. जीवन ऐसे ही चल रहा था. 

कुछ दिन हुए अचानक पत्नी की तबीयत बिगड़ गई. घबराया हुआ मेरे पास आया. मुझसे जो बन पड़ा, किया. चिकित्सालय में कई दिन भर्ती रहीं. 

फिर एक दिन रामलाल दौड़ता हुआ मेरे पास आया.  चेहरा खुशी से चमक रहा था. जैसे कोई ख़जाना मिल गया हो. बहु को किसी तरह रामलाल और उसकी पत्नी के बारे में पता चला. भले घर की लड़की है. एक दिन अचानक ही हमारे दरवाज़े पर आ गई. अपने बारे में बताया. वहीं से फोन करके हमारे बेटे को आने को कहा. शायद काफी बहस हुई, लेकिन बेटा आ ही गया.  वह भी शर्मिंदा था. ज़िद

करके हमारा सामान बंधवाया और अपने घर ले गए. अब सब साथ ही रह रहे हैं. उन्हें मेरे व्यवसाय से भी कोई एतराज़ नहीं. हां, लोन लेकर मेरे लिए जूते बनाकर बेचने की दुकान खुलवाने की बात भी कह रहे हैं. ऐसी बहु भगवान सबको दे.

आज ” रामलाल शूमेकर कंपनी ” दुकान का उद्घाटन था. मुझे भी बुलाया. शहर के मार्केट में ही दुकान ली थी. साजो सामान से सुसज्जित. गेंदे की लड़ियों से झालरें जैसे रामलाल के बदलते दिनों की गवाही दे रही थीं. बेटे के ऑफिस के साथियों के अलावा बहु के माता पिता भी थे. जब रामलाल और उसकी पत्नी ने मिलकर कैंची से रिबन काटा तो मेरी भी आंखें भर आईं. बिखरा हुआ परिवार फिर से एक हो गया. समय रहते अपनों की पहचान हो गई. 

– सुनील शर्मा 

गुरुग्राम, हरियाणा

 #अपनों की पहचान 

Leave a Comment

error: Content is protected !!