भागी भगोड़ी बेटी – डॉ बीना कुण्डलिया 

बारह बर्ष पहले घर छोड़कर चली गई नमिता, आज घर लौट कर आ रही है । जिन्दगी की भागदौड़ से थककर सुकून की तलाश करती उसकी वापसी हुई। उसने देखा कितना कुछ बदल गया। उसका वो छोटा सा कस्बा कच्ची पगडंडियों की जगह सड़क बन गई। जगह जगह बस स्टॉप बन गये ।

पहले जब वो यहां थी तब कैसे बस के लिए दो किलोमीटर तक पैदल चलकर जाना पड़ता था ? नमिता को अपने पुराने दिन याद आने लगे। उसके घर में वो दो बहनें दो भाई घर में वो सबसे बड़ी बेटी, माँ सीधी-सादी महिला और पिता ठेकेदार के यहां मुनीम का काम काज देखते थे। खींचतान के घर की गृहस्थी चल ही रही थी। वो भी अक्सर अड़ोस-पड़ोस के बच्चों को पढ़ा लिखा कुछ धन अर्जित कर मदद कर देती थी।

उसकी खूब पड़ने की इच्छा और लग्न देखकर पिता भी उसको पढ़ा लिखा काबिल बनाना चाहते थे। इसलिए मेरे कहे अनुसार मुझे इंजीनियरिंग की पढ़ाई करवा रहे ताकि मैं पढ़-लिख कर अच्छी नौकरी कर छोटे भाई बहनों की भी पढ़ाई में मदद कर सकूं वो भी लायक बन सकें अपने पैरो पर खड़े हो सकें। यह आखिरी साल और मेरा प्लेसमेंट्स एक अच्छी कम्पनी में हो गया था ।

 मैंने नौकरी ज्वाइन कर ली इसी बीच मेरी दोस्ती साथ के गांव के सरस एक लड़के से हो गई और कब ये दोस्ती मौहब्बत में बदल गई मुझे इसका अहसास तब हुआ जब मैं उसके कहेनुसार ही चलने लगी थी । वो अभी नौकरी की तलाश कर ही रहा था। मैं नौकरी पर जाती यह देखकर मेरी माँ बहुत खुश होती कि मैं लायक बन गई अब छोटे भाई बहनों की देख भाल भी कर सकती हूँ । 

सरस मुझसे विवाह के लिए जोर डालने लगा । उसका कहना अगर उसने अभी विवाह नहीं किया तो, घर वाले उसका विवाह दूसरी जगह तय कर रहे हैं। और जहां तक तुम्हारे घर वाले वो तुम्हारी शादी अभी नहीं होने देंगे वो चाहेंगे तुम अभी अपने छोटे भाई बहनों की मदद करती रहो । तुम अपने बारे में सोचों नमिता केवल अपने बारे में। सरस के प्यार में… मैं , इतनी पागल हो चुकी थी… अपना भला बुरा तक समझने की मुझमें ताकत ही नही थी । 

वो जो भी कहता मुझे वही सही लगने लगा मैं स्वार्थी बन कर रह गई ।केवल अपना ही भला सोचने लगी भूल गई मेरे माता-पिता ने कितनी मेहनत से मुझे यहां तक पहुंचाया, उनके कितने अरमान है मुझसे, मैंने उनके अरमानों पर आखिर पानी फेर ही दिया। एक दिन ऑफिस के लिए घर से निकली तो फिर कभी वापस ही नहीं गई घर में बाहर की ही होकर रह गई।

सरस के साथ मन्दिर में विवाह कर ऑफिस के ही पास मकान किराए पर ले रहने लगी। मैंने सरस से कोर्ट मैरिज का जोर डाला वो जल्दी ही अर्जी देगा कहकर टालता गया कभी वकील उपलब्ध नहीं है । कभी कुछ और ही बहाने लगा मै भी अपनी नौकरी में अधिक व्यस्त हो गई । कुछ बर्ष आराम से गुजर गये। सरस टैम्परेरी काम करता रहता मगर एक दिन सरस ने बताया उसको एक कम्पनी में पक्की नौकरी मिल गई है। वो कुछ महिनों के लिए विदेश टूर पर जा रहा है। वापस आते ही वो उसको अपने घर ले जायेगा क्योंकि घर वाले उनके विवाह को स्वीकार कर रहे हैं। मै बहुत खुश हो गई ससुराल वालों के स्वीकार करने की कल्पना में ही डूबकर रह गई। 

सरस विदेश जा रहा कहकर जो गया फिर उसका कुछ अता पता नहीं माह दो माह एक बर्ष बीत गया सरस नहीं लौटा… नमिता ने ढूंढने की बहुत कोशिश की मगर नाकामयाब रही वो समझ गई उसका बेवकूफ बनाया गया। उसको धोखा दे वो भाग गया है।

 तभी मेरी कम्पनी मुझे विदेश भेज देती है जहां मेरे पद में उन्नति और बहुत पैसे का ऑफ़र मिलता है उसे वह स्वीकार कर लेती हूँ और विदेश चली जाती हूँ । वहां मुझे बहुत अच्छा लगने लगता है। वो सब भूल जाती है। वो बहुत उन्नति करती है । ढेरों दौलत कमाती है। नाम भी बहुत हो जाता है उसका, बाइस बर्ष की थी जब घर छोडा था उसने आज बारह बर्ष बाद यानि आज वो चौतिस बर्ष की हो गई उसको अपने देश वापसी होना है ।

 वापस होना है हमेशा हमेशा के लिए, वो देश आकर सबसे पहले अपने घर की तरफ चलती है क्योंकि विदेश में रहकर और ज़िन्दगी में उसने अथाह घन सम्पत्ति कमाई नाम शौहरत पैसा कमाया लेकिन ज़िन्दगी में उम्र के इस पड़ाव में आकर न उसके पास पति है न बच्चे न घर परिवार का साथ जहां वो सुकून के दो पल बिता सके चैंन की सांस ले सके आज ज़िन्दगी में अकेलापन उसको काटने दौड़ने लगा।

 सबसे पहले उसे अपने घर की याद आई और वो निकल पड़ी अपनी जानी पहचानी गलियों पंखड़ियों बाग बगीचे नदी तालाबों के किनारे अपने खोये दिनों को दुबारा तलाशने ‌। उसकी गाड़ी उसके कस्बे की तरफ दौड़ी जा रही और वो खिड़की से झांकते यादों को ताजा कर रही तभी गाड़ी के सामने सड़क पार कर रही एक अधेड़ महिला को देखकर ड्राइवर ने ब्रेक लगा दिया।  नमिता चौक पड़ी जैसे गहरी नींद से जाग गई हो। उसकी तन्द्रा टूटती है।

गाड़ी से उतर उस अधेड़ महिला की तरफ बढती है देखते ही चिल्ला उठती है “माँ, माँ 

 वो अधेड़ महिला एक दम जर्जर फटे पुराने कपड़ों में अस्थी पंजर का ढांचा सी काया ने आंखें खोलकर नमिता को देखा उसके आँखों में आँसू बहने लगे। बिटिया नमिता मेरी बच्ची कहां चली गई थी तू हमको छोड़कर देख चलकर घर की क्या हालत हो गई सबकी कहकर वो फूट-फूट कर रोने लगी ?

नमिता ने माँ को गले लगाया उनको उठा गाड़ी में बैठा पानी पिलाया फिर पूछा आप कहां जा रहीं थी। 

वो बोली बेटा बुखार से शरीर तप रहा सरकारी अस्पताल दवा लेने जा रही है। नमिता सबसे पहले उनको सीधे अच्छे डाक्टर के पास ले जाकर इलाज करवाती है । तभी बातचीत में वो बताती है बेटा तुम घर छोड़कर क्यों गई ?  तुमको शादी ही करनी थी तो हमको बताया होता हम तुम्हारी शादी करवा देते । 

तुम्हारे घर छोड़ने के बाद गांव में हमारी कितनी बदनामी हुई हम कुछ समय तो सबको टालते रहे तुम नौकरी पर गई हो मगर बाद में सबको पता चल गया जिस लडके के साथ तुम गई थी वो पास के गांव का उसके माता-पिता ने पंचायत में सभी को बता दिया और कुछ बर्ष पहले उसका विवाह भी करवा दिया। हमारी कितनी बदनामी हुई तेरे पिताजी को भागी भगोड़ी बेटी का पिता कह ताने मारे गये वो तो तुमको बेटे समान मानते सभी को कहते थे नमिता मेरी बेटी नहीं बेटा है । 

तुम्हारी बुराई, लोगों के ताने वो नहीं झेल सके और हृदय आघात से चल बसे।  कुछ समय बाद तेरे बाद का तीन साल छोटा भाई भी बीमारी से चल बसा । इलाज के लिए पैसे नहीं गांव में किसी ने मदद नहीं की अब छोटा बेटा मेहनत मजदूरी करता है । मैं और तेरी छोटी बहन आसपास काम धाम करके गुजारा चला रहे ।पढ़ाई-लिखाई तो सभी छुट गई उनकी गांव वाले ताने देते सुनाते हमको, क्या होगा ? पढ़ा लिखा कर भाग जायेंगे ये भी, एक लड़की को पढ़ा-लिखा देख ही लिया ? 

नमिता सारी बातें जानकर बहुत दुखी होती है वो कहती हैं माँ मैं बहक गई थी। पता नहीं कैसे मै स्वार्थी बन गई अपने ही बारे में सोचा आप लोगों को भूला बैठी। माँ मैंने उस लड़के के चक्कर में जो मुझे कुछ समय से ही जानता था अपने जन्म दाताओं परवरिश कर्ताओं अपने खून के रिश्ते भाई बहन को मैंने भूला दिया ।जिसका परिणाम मुझे ऊपर वाले ने दे दिया मेरे पास अथाह धन दौलत है। गाड़ी घर सब है। मगर पलभर भी सुकून नहीं है मेरे जीवन में, मैंने सब कुछ खो दिया पिता का प्यार विश्वास माँ मुझे क्षमा कर देना कहकर माँ से लिपटकर नमिता रोने लगी। माँ की आँखे भी मिश्रित प्रवाह से व्याकुल बीते दिनों पर आँसू बहा रही और बेटी के लौटने की खुशी में छलक रही थी।

 नमिता मां के साथ घर में प्रवेश करती है वही घर वही दीवारें वहीं आंगन वही नीम का पेड़ जिसके नीचे बैठकर वो घन्टों पढ़ा करती थी । और सामने बिछी वही चारपाई जिस पर बैठ पिता उसको निहारते रहते । सब है बस चारपाई पर बैठे वो पिता नहीं जिन्होंने उसे यहां तक पहुंचाया पढ़ाया लिखाया लायक बनाया। वो पेड़ के नीचे बैठ जाती हैं। और बिछी चारपाई को एकटक निहारने लगती है उसे महसूस होता है उसके पिता उस में बैठे उसको ही निहार रहे हैं।

 तभी उसके भाई बहन बाहर आकर उसको देख उससे लिपट जाते हैं। दीदी आप हमें छोड़कर क्यों चली गई थी ? आप गई तो पिता जी भाई भी हमें छोड़कर चले गए हम अकेले रह गये थे दीदी सभी गांव वाले हमसे नफरत करने लगे हमें भागी भगोड़ी बेटी का बहन भाई कहा जाने लगा। माँ तो कई सालों तक बाहर नहीं निकली लोगों के ताने सुन सुनकर घुट घुट कर जीती रहीं कहकर भाई बहन फूट-फूट कर रोने लगे ।

नमिता ने भाई बहन को गले लगाया बोली अब चिन्ता मत करो मैं आ गई हूँ… घर वापस, आ गई है. ‌ तुम्हारी दीदी, भागी भगोड़ी बेटी वापस आ गई है।अब तुम पर कोई भी ऊंगली नहीं उठा पायेगा । मुझे तुम सब माफ कर दो, मेरे कारण तुम सभी को बहुत कष्ट उठाने पड़े। लेकिन अब मैं उसकी भरपाई कर अब तुम लोगों के साथ ही रहूंगी । क्योंकि मैंने जिंदगी में बहुत भाग कर देख लिया ज़िन्दगी भागने में नहीं ठहराव में है। उसी में सुकून है। इज्जत से घर से विदा होने में ही सम्मान है वरना तो लड़की को जिंदगी में कहीं भी कभी भी पल भर भी चैंन नसीब नहीं होता।

लेखिका डॉ बीना कुण्डलिया 

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