बेटे के घर रहने का मन नहीं करता – अर्चना खण्डेलवाल : Moral Stories in Hindi

चल,  माधुरी जल्दी से तैयार हो जा, आज हम बाहर खाना खाने चलेंगे, मेरा घर पर खाने का मूड नहीं है, 

कमल जी चहकते हुए बोले।

हां, वो तो ठीक है, पर आज अचानक कैसे? मैंने तो रात के खाने के लिए सब्जी भी काट कर रख ली है, कोई ना फ्रिज में रख देती हूं, अब आपका मन है तो चलते हैं, हम भी अपनी जिन्दगी अपने हिसाब से जी लेते हैं, मैं वो नया वाला सूट पहन लेती हूं जो आपने मुझे जन्मदिन पर उपहार में दिया था, माधुरी जी चहकते हुए बोली।

मेरी भी वो वाली टी-शर्ट निकाल दो, जो तुमने मुझे यूं ही बिना जन्मदिन के उपहार में दी थी, कमल जी खुश होते हुए बोले।

दोनों कार से गये, समुद्र किनारे सैर की, चौपाटी पर खाया-पीया, थोड़ी देर घूमे और रात तक घर वापस आ गये।

बहुत ही अच्छा लगा, माधुरी हमारे जीने के दिन तो अब आये है, विवाह के बाद तो बस जिम्मेदारियां ही निभाते चले गये।

हम तो हमेशा ही ऐसे ही इच्छाओं को मारकर और जिम्मेदारी को निभाकर चले हैं, हम कब अपनी मर्जी से जीये है? अब दिन मिले हैं, समय मिला है।

लोग कहते हैं, आप अपने बेटे के साथ क्यों नहीं रहते हैं? बस इसलिए मेरा मन वहां रहने का नहीं करता है क्योंकि वहां सब कुछ है, लेकिन मर्जी से जीने की आजादी नहीं है, बेटे के साथ रहने से माता- पिता को बुढ़ापा जल्दी आ जाता है।

कुछ भी करो तो बेटे-बहू को अखर जाता है, उन्हें लगता है, मम्मी -पापा अब इस उम्र में ये सब कर रहे हैं? तुझे मेंहदी लगवाने का शौक है, जब पिछली साल हम तीज पर वहां थे और तूने अपने चारों हाथ-पैरों में मेहंदी वाले को बुलाकर मेहंदी लगवाई थी तो बहू ने कैसे ताना दे दिया था, इन्हें देखो कुछ काम तो है नहीं, और चारों हाथ-पैरों में मेहंदी लगवाकर बैठ गई है, एक हम हैं जो बच्चों में और घर के कामों में लगे रहते हैं।’

हां, अच्छी तरह से याद है, माधुरी जी की आंखे नम हो गई, बहू ने तो ऐसे कह दिया जैसे कि मैंने कभी कोई जिम्मेदारी निभाई ही नहीं, इतने बड़े परिवार को निभाया, सबका ख्याल रखा, सास-ससुर जी की सेवा की, तीन बेटियों और एक बेटे को पाला, इन सबके बीच कभी तसल्ली से हाथ-पैरों में मेहन्दी नहीं लगवा पाई, रात को आधी नींद में रहती और बस उंगलियों और हाथों में गोले बना लेती थी, अब समय मिला है तो अपने ही ताना देते हैं।

आपको पता है आपको लम्बी दूरी की ड्राइव पर जाने का कितना शौक है, आपने जब विनीत से कहा तो बोला, पापा अब इस उम्र में भी आपको घूमने की पड़ी है, फालतू ही कार का पेट्रोल जलेगा, आजकल पेट्रोल की कीमतें आसमान को छू रही है, ये बात अलग है कि उसकी पत्नी और बच्चों की खुशी के लिए वो कभी कार का पेट्रोल की कीमत नहीं देखता है।

हां, माधुरी यही तो फर्क है, बच्चे माता-पिता के घर में राजा जी बनकर रहते हैं, माता-पिता उन पर जान लुटाते हैं, अपनी इच्छाओं को मारकर उनकी हर इच्छा को पहले पूरा करते हैं, और बच्चों के घर जब माता-पिता रहने जाते हैं तो वो उन्हें बोझ लगने लगते हैं, दो रोटी का भी अहसान जताते हैं, कभी कुछ लाने या खाने को बोल दें तो टालमटोल करते हैं, अपने खर्च और मंहगाई का रोना रोते हैं, ये बात अलग है कि सारी मंहगाई माता-पिता पर पैसे खर्च करने हो तभी याद आती है, वरना पत्नी और बच्चों पर अनाप-शनाप खर्च कर ही देते हैं, कमल जी बोले।

एक साल हम बेटे- बहू के यहां दीपावली मनाने गये थे तो हमने काम वालों को कुछ देना चाहा तो उन्होंने हमारा हाथ रोक दिया, पापा आप बहुत फालतू खर्च करते हो, ये पैसा अपने बुढ़ापे के लिए बचाइये, और हमें मना कर दिया।

मुझे याद है, पर हमारी यही परम्परा रही है कि त्यौहार पर अपने यहां काम करने वालों को उपहार और मिठाई देते हैं, लेकिन हमारी कमाई और हमारे ही हाथ बांध दिये, मुझे भी वहां रहना पसंद नहीं है, दोनों मूवी जायें, क्लब डिस्को जायें, शराब और पार्टी में पैसा लुटायें तो वो क्या फालतू खर्च नहीं होता है? माधुरी जी भावुक होकर बोली।

जब मेरे तीनों बेटियां जन्मी तो सबने कितने ताने दिये थे कि तीन-तीन बेटियां हो गई है, ये तो बोझ बनकर आ गई, पर अब समझ आया कि बेटियां बोझ नहीं होती है, बेटियां तो माता-पिता का बोझ हल्का करती है, उनके मन की सुनती है, उन्हें समझती है।

जब हमारा बेटा विनीत हुआ था तो सबने बहुत बधाईयां दी थी, अब तो कुलदीपक आ गया है, ये परिवार का बोझ हल्का करेगा, माता-पिता का सहारा बनेगा, हमने उसकी परवरिश बड़े प्यार से की और वही आज हमें आंखें दिखाता है, हमारी सामान्य छोटी-छोटी इच्छाओं पर रोक लगाता है।

कभी चाय पर टोका-टोकी, कभी अखबार समेट कर नहीं रखा तो उसके ताने, कभी कुछ खाने के लिए बोल दिया तो आपको इस उम्र में जीभ पर लगाम लगाकर रखनी चाहिए ये सुनने को मिलता है, हम

अपनी मर्जी से बनवाकर खा भी नहीं सकते हैं, कभी टीवी देख लो तो आवाज कम करो, सोफे पर करीने से बैठो, ज्यादा हंसो मत, बोलो मत, ऐसा पहनों वैसा मत पहनों, यहां जाओ वहां मत जाओ, इससे बात करो उससे बात मत करो, कितनी रोक-टोक लगाते हैं।

ऐसा लगता है हम बेटे के हाथों की कठपुतली बनकर रह गये है, जैसा भी जितना है, अपने ही घर में सुखी है, और मुझे तो अपने पति के  साथ ही अपने ही घर में मरते दम तक रहना है, अच्छा हुआ हम अपने घर में ही वापस आ गये, विनीत के घर में एक साल बड़ी मुश्किल से निकला था।

जो सुख पति के साथ रहने में है वो बेटे के घर में नहीं है। कल रविवार है, हम कल क्या खास करेंगे?

आपके लिए तो रोज ही रविवार है, अब आप रिटायर हो गये हो, बार-बार याद दिलाना पड़ता है, माधुरी जी ने चुटकी ली।

क्यों याद दिलाती हो? मेरे सारे रविवार गृहस्थी की चिंता और घर चलाने में निकल गये, अब मैं रविवार को भी जीना चाहता हूं, कल रविवार है और हम 

कल मूवी देखने जा रहे हैं, माधुरी जी ने भी हामी भरी।

जो चेहरे बेटे के घर में उदास रहते थे, वो ही चेहरे अपने घर में चहक रहे थे। माधुरी जी कमल जी के कांधे पर सिर रखकर बैठ गई, इतनी फुर्सत मुश्किल से मिलती है।

धन्यवाद 

लेखिका 

अर्चना खण्डेलवाल 

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