अम्मा ! भाभी से बात कर ली क्या आपने ?
कौन सी बात …. और उससे मैं क्यों बात करुँगी किसी भी बारे में? मैं क्या उसकी धौंस में रहती हूँ ।
अरे अम्मा, बताया तो था कि मेरी बड़ी ननद की देवरानी की बेटी की कोई ट्रेनिंग है , एक महीने की …. तो बस इसलिए दीदी कह रही थी कि वो लड़की भैया के घर में ही रह लेगी …. एक बार भाभी के कानों में ज़रूर डाल देना । वैसे तो मुझे पता है कि भाभी को कोई एतराज़ नहीं होगा पर फिर भी….. पहले बताना ठीक रहता है । ….. अगर कहो तो मैं बात कर लूँ ?
नहीं…. वैसे तो उसकी इजाज़त लेने की ज़रूरत नहीं पर सच्ची बात ये है कि उस लड़की का कोई ओर ही इंतज़ाम ठीक रहेगा।
ये क्या कह रही है अम्मा ? बड़ी दीदी के ससुराल वाले क्या सोचेंगे मेरे और मेरे मायके वालों के बारे में ? एक महीने की तो बात है….और फिर सुबह से शाम तक तो वो बेचारी ट्रेनिंग सेंटर पर रहेगी दरअसल ट्रेनिंग सेंटर भैया के घर के आसपास ही है ।
सास और पति के चार फुलके सेंकने में तो इसकी जान निकली रहती है…. रिश्तेदारी तो क्या ख़ाक निभाएगी ? बेकार में तेरी भी थू- थू होगी । घर के सारे भेद खुल जाएँगे…. दबी बात को दबी ही रहने दे …. चल फिर फ़ोन कर लेना । वो तेरी गजरौला वाली चाची का बड़ी देर से फ़ोन आ रहा है, ज़रा उसकी भी सुनूँ ।
इतना कहकर अम्मा ने फ़ोन रख दिया और अरुणा ठगी सी रह गई । उसे आज तक यह बात समझ नहीं आई थी कि अम्मा रात- दिन कविता भाभी को क्यों कोसती रहती हैं? आख़िर कैसी बहू चाहती थी वो ? साल के दस महीने अम्मा मुंबई में ही रहती है, फिर भी दिन- रात भाभी की बुराई करती रहती है । भाभी की शादी को चार साल हो गए । अरुणा भी दो बार उनके पास गई पर उसे तो भाभी में कोई कमी नहीं लगी थी जबकि अम्मा का कहना था कि भाभी नौटंकीबाज़ है ।
पर फ़िलहाल अरुणा को यह चिंता थी कि ननद की ससुराल में कैसे इज़्ज़त बचाई जाए ? किससे बात करे ? पति को बताएगी तो बेकार में उसकी ही ….यह कहकर खिल्ली उड़ाई जाएगी कि तुमने क्यों हामी भरी थी । जब बहुत सोचने पर भी अरुणा के दिमाग़ ने काम नहीं किया तो उसने सोचा कि क्यों ना , एक बार भाभी से ही बात कर लूँ ….. मना तो करेंगी ही पर क्या पता , हाँ कह दें ।
फ़ोन मिलाते- मिलाते अरुणा के हाथ रुक गए । वह सोचने लगी—-
अम्मा को तो टके से जवाब पकड़ाती है ही …. हमारी शर्म है , अगर साफ़ इंकार कर दिया तो हमारे सामने हमेशा के लिए उसका मुँह खुल जाएगा । अब अरुणा को अपनी ननद पर ग़ुस्सा आ रहा था । ये बड़ी दीदी भी ना … क्या ज़रूरत थी उन्हें बीच में चौधराइन बनने की । वैसे तो देवरानी से एक मिनट नहीं बनती और लड़की के रहने की व्यवस्था मेरे ज़िम्मे थोप दी । अरे भई ! आजकल कौन इस तरह किसी रिश्तेदारी में जाता है? जगह- जगह गर्ल्स होस्टल हैं , पी० जी० हैं … छोड़ देते कहीं भी । न जाने कैसी लड़की है, किसी अपरिचित के घर एक महीने जाकर रहने को मान गई? मेरे बच्चे तो नानी के घर दो / तीन दिन से ज़्यादा कभी नहीं रुकते ।
मन ही मन बड़बड़ाने के बाद अरुणा को अहसास हुआ कि ये सब बातें किसे सुना रही है…. जो समस्या है वो तो ज्यों की त्यों है, उसके बारे में सोचना चाहिए ।
काफ़ी माथापच्ची करने पर भी कोई रास्ता नहीं मिला तो उसने सोच लिया कि एक बार कविता भाभी से बात ज़रूर करेगी जो होगा , देखा जाएगा । हाँ…. अम्मा को सबसे ज़्यादा ज़रूर दुख होगा , अगर कविता ने उनकी बेटी का मान नहीं रखा ।
हैलो भाभी…. मैं अरुणा… बिजनौर से …. पहचाना ?
नमस्ते दीदी…. हाँ- हाँ दीदी, ऐसा क्यों कह रही है । क्या कोई अपनों को नहीं पहचानता ? असल में जब भी दो चार दफ़ा हाय- हैलो हुई, आपके भाई के फ़ोन पर ही हुई तो इसलिए….अम्मा फ़ोन नहीं उठा रही क्या , देखती हूँ ।
नहीं- नहीं भाभी, मैंने आपके पास ही फ़ोन किया है । असल में ……
और अरुणा ने अपनी सारी बात कविता को बता दी ।
दीदी, आप इस तरह क्यों बात कर रही है जैसे इजाज़त ले रही हो , और क्या आपके भाई- भाभी का घर आपका मायका नहीं है ? वो आपकी ननद की ससुराल वाले हैं तो उनका मान- सम्मान हमारा कर्तव्य है । बस एक निवेदन है….
क्या…?
एक बार अम्मा से बता देना ।
अब अरुणा का दिमाग़ घूम गया । बहू सास की आज्ञाकारी बन रही है और सास बहू में कमी निकाल रही है । उसने थोड़ा झल्लाते हुए कहा—
भाभी, क्या मामला है? अम्मा तो बेचारी खुद आप पर आश्रित हैं और आप खुद अच्छी बनकर अम्मा के नाम की आड़ में मना कर रही है , रहने दो …. मुझे तो पहले ही सब पता था । और सुनो ये जो थोड़ी देर पहले आप पूछ रही थी ना कि मैं क्यों आपके साथ औपचारिक रहती हूँ तो उसका जवाब ये है कि हाथी के दाँत दिखाने के ओर है और खाने के और …. पता नहीं, मेरी माँ आपके साथ कैसे गुज़ारा करती है । ठीक कहती हैं वे , तक़दीर ही फूट गई उनकी तो …. बताओ, ऐसी भी कहीं बहू होती हैं ।
इतना कहकर अरुणा ने फ़ोन रख दिया । उसे बार-बार रोना आ रहा था कि जब अम्मा ने बता दिया था कविता के बारे में तो उसने अम्मा की इस बात पर विश्वास क्यों नहीं किया कि आदमी का पता उसे ही चलता है जो उसके साथ रहता है ।
अरुणा ने अम्मा को भी फ़ोन नहीं किया । रात के नौ बजे वह पति के साथ बैठी टेलीविजन देख रही थी और बच्चे अपने कमरे में पढ़ाई कर रहे थे । तभी अरुणा के भाई की वीडियो कॉल आ गई । अरुणा ने देखा कि भाई- भाभी के साथ अम्मा भी है और उनका चेहरा लटका हुआ था ।
क्या हुआ अम्मा! भाभी ने आपको कुछ कहा क्या ? डरने की ज़रूरत नहीं है आपको । मुझे लगता था कि आप बात को बढ़ा चढ़ाकर बताती हैं पर आज इनका असली रूप सामने आ गया ।
अरुणा! तुम्हारी भाभी ने मुझे तुम्हारे फ़ोन के बारे में बता दिया था इसलिए आज बात आमने- सामने हो जानी चाहिए । ये कई बार मुझसे कहती थी कि आपकी बहन मुझसे क्यों कटी-कटी सी रहती है… कभी बात नहीं करती ….
ना छुट्टियों में खुद आती ना हमें बुलाती पर मैं इसे हमेशा यह कहकर टाल देता कि तुम बड़े परिवार में रहती हो , बच्चों में उलझी रहती हो …. पर आज पता चला कि शायद अम्मा ने तुम्हारे दिमाग़ में कविता की ग़लत छवि बना रखी थी….. बोलिए अम्मा…. क्या मैं या कविता आपकी मर्ज़ी के बिना एक पत्ता भी हिलाते हैं ? हाँ…. बस इसकी एक गलती है कि ये अम्मा की पसंद नहीं थी ।
अम्मा…. ये भइया क्या कह रहे हैं ? आपने ये भी नहीं सोचा कि आपके बाद तो मेरा मायका ही ख़त्म हो जाएगा । मुझमें और भाभी में दूरियाँ बढ़ाकर आपको क्या मिलता था?
तभी अम्मा गरजती हुई बोली—-
हाय राम ! मेरी तो तक़दीर ही फूट गई जो ऐसी बहू आई ….. लड़वा दिया ना हम सबको …. ये तो तुम दोनों भाई- बहन को बेचकर खा जाएगी । अगर मैं अपने रिश्तेदारों को बुलाऊँगी तो इसका पूरा कुनबा यहीं आकर पड़ जाएगा …..
अम्मा…. आप अमर होकर नहीं आई जो इस दुनिया से नहीं जाओगी । भाभी को अगर अपने मायके से किसी को बुलाना होगा तो आपके बाद बुला लेंगी ….. पर हमारा रिश्ता आपके बाद हमेशा के लिए ख़त्म हो जाएगा ।
दामाद के मुँह से इतना सुनते ही अम्मा ने रोना- धोना शुरू कर दिया । तभी अरुणा के भाई ने कहा—-
अरुणा, तुम अपनी ननद को कह देना कि उनकी बेटी हमारे पास जितने दिन चाहे आराम से रह सकती है । बाक़ी दो महीने बाद हम भी गाँव आ रहे हैं, बैठकर आराम से बातें करेंगे ।
जब एक महीने की ट्रेनिंग ख़त्म करके ननद के देवर की बेटी वापस अपने घर पहुँची और उसने मुंबई का अपना अनुभव अपने घरवालों के साथ साझा किया तो अरुणा की ननद का सीना ख़ुशी से फूल उठा । उसने उसी दिन अरुणा को फ़ोन करके कहा—-
भाभी! रिया का तो मन ही नहीं लग रहा ….. कह रही है कि मामा- मामी और नानी इतने अच्छे हैं कि उसे एक भी दिन नहीं लगा कि वह अपने घर से दूर है । और ख़ासतौर पर रिया अपनी दादी को चिढ़ाते हुए कह रही थी कि अरुणा मामी की भाभी और माँ से रहना सीखो …. कोई नहीं कह सकता कि वे सास- बहू हैं । भई , हमारी रिया तो उन्हें बेस्ट सास- बहू जोड़ी कहती हैं ।
अपनी ननद की बातों से अरुणा की आँखें भर आई और उसने मन ही मन में कहा—-
भगवान जी ! बेस्ट सास- बहू की जोड़ी हमेशा सलामत रहे।
करुणा मलिक
# हाय राम! हमारी तो तक़दीर ही फूट गई जो ऐसी बहू आई