नया नया बंदूक का लाइसेंस बनवाया था। अब पूरे गांव में वो पहला और इकलौता शख्स था जिसके पास दोनाली बंदूक थी। भैंस चराने जंगल जाता तो बंदूक चंबल के डकैतों की तरह कंधे पे रखकर निकलता था। बार बार हाथ अनायास ही मूछों पे चला जाता चाल भी पहले से बदल गई थी।
एक आध बार किसी जंगली मुर्गी का शिकार क्या कर लिया साहब खुद को शिकारी समझने लगा था। अब जंगल मे गांव के लड़कों से वो ये कहकर गाय चरा लेते की तुम्हे बंदूक चलानी सिखाऊंगा। बच्चे इसी लालच में उसके कई काम कर देते थे।
कहानी है जिबली गांव के एक जमींदार की नाम था मलकीत सिंह उसके पास काफी जमीन थी जिसके चलते उसे बंदूक का लाइसेंस आसानी से मिल गया था।
उसके परिवार में उसकी पत्नी बेटा और एक बेटी थे। संपन्न परिवार था किसी तरह की कोई परेशानी नही थी। उनके पड़ोस में प्रीतो नाम की एक बुढ़िया रहती थी जो काफी बुजुर्ग थी। उसका पति अंग्रेजो के समय आर्मी में सैनिक था। उनकी कोई औलाद नही थी कुछ समय पहले उसका पति भी गुजर गया अब वो बुजुर्ग औरत अकेली ही रहती थी।
गांव के बच्चे अम्मा का छोटा मोटा काम कर दिया करते थे बदले में अम्मा उन्हें कभी टॉफी कभी गुड़ खिला दिया करती। गांव में एक लाबारिस कुतिया थी जिसको सभी बिल्लो के नाम से पुकारते थे। बिल्लो पूरे गांव में घूमती कोई न कोई उसे कुछ न कुछ खाने को डाल देता था।
बिल्लो रात के समय अम्मा के दरबाजे के बाहर ही बैठा करती थी मानो उसे पता था कि अम्मा अकेली रहती तो एक तरह से उसकी पहरेदारी ही करती थी। अम्मा भी उसे कभी निराश नही करती थी बैसे भी अम्मा के पास दिल बहलाने के लिए वो ही तो थी उसी को डांट लेती उसी से प्यार कर लेती कभी कभी उसी से बातें करके अपना समय पास कर लेती।
अम्मा की एक आवाज पे वो भागी चली आती थी। दोनों गहरी दोस्ती थी औरदोनो ही एक दूसरे का सहारा भी थी। बिल्लो अब पेट से थी तो अम्मा ने उसका ख्याल रखना दोगुना कर दिया था अब वो उसे समय से रोटी पानी दे देती और बैठने के लिए भी मोटी बोरियां बिछा दी थीं क्योंकि सर्दियों का मौसम शुरू हो चुका था।
कभी कभी तो उसके ऊपर एक कंबल भी डाल देती थी मगर वो कुत्तिया ज्यादा देर कंबल में नही रहती थी थोड़ी से कहीं आवाज होती तो भागकर जाकर भोंकने लगती थी। गर्भावस्था में कुछ ज्यादा ही खूंखार हो गई थी शायद उसे अपनी फ़िकर पहले से ज्यादा हो गई थी क्योंकि उसे पता था कि उसके अंदर कई जिंदगियां पल रही हैं।
एक रात की बात है कि मलकीत अपनी बंदूक लेकर शिकार के लिए निकल पड़ा क्योंकिं सर्दियों में खेतों में जंगली सूयर बहुत आते थे। मलकीत को जाते देख कुत्तिया ने भौंकना शुरू किया
जैसे ही मलकीत ने उसे बिल्लो कहकर बुलाया तो बिल्लो पूंछ हिलाते हुए उसके पास चली मानो वो उससे अपने किए की माफी मांग रही हो। मलकीत आगे बढ़ा तो बिल्लो भी उसके पीछे पीछे खेतों की तरफ चल पड़ी। मलकीत खेत मे एक पेड़ की ओट में बैठ गया। एक दो घण्टे तक कोई जानवर नही आया मगर बिल्लो को न जाने क्या दिखा की वो भागकर झाड़ियों की तरफ चली गई।
झाड़ियों से सूखे पत्तों की आवाज आने लगी मलकीत को लगा कि शायद सूयर है और उसने बिना देर किए झाड़ियों में गोली चला दी। गोली बिल्लो को लगी उसके चुंहचुहाने की आवाज सुनकर मलकीत उस तरफ भाग तो देखा बिल्लो खून से लथपथ पड़ी तड़प रही थी। मलकीत को अपने किये का पछतावा तो था मगर अब कुछ किया नही जा सकता था वो चुपचाप घर को लौट आया और आकर सो गया।
सुबह गांव वालों ने जब एक दिल दहला देने वाला मंजर देखा तो पूरा गांव इकट्ठा हो गया। बिल्लो के पास आठ बच्चे पड़े हुए थे जिनमें से कुछ गोली लगने से मर चुके थे कुछ जिंदा भूख से तड़प रहे थे। गांव वालों ने दूध की बोतल से दूध पिलाने की कोशिश तो की मगर बिना मां के वो बच्चे दो तीन दिन के अंदर ही तड़प तड़प के मर गए।
बिल्लो और उसके बच्चों को देखकर अम्मा के मुहँ से यही निकाला था कि तेरा कक्ख न रहे जिस तरह तुमने इन्हें मारा है तेरा बेड़ा भी ऐसे ही गर्क हो। अब न जाने किस दिल की गहराई से उसने ये बद्दुआ दे दी कि भगवान ने भी नजदीक होकर सुन ली। एक महीने के अंदर अंदर ही उसका बेटा सांप के डँसने से मर गया बेटे की मौत का माँ को ऐसा सदमा लगा कि वो चारपाई से उठ न पाई और दो तीन महीने बाद वो भी गुजर गई अब मलकीत और उसकी बेटी ही घर मे रह गए थे।
अभी तीन महीने ही गुजरे थे कि मलकीत के गले मे दर्द की शिकायत हुई कुछ दिन इधर उधर से दवाई ली थोड़ा आराम मिला मगर दर्द फिर से होने लगा तो डॉक्टर ने उसे टेस्ट करवाने की सलाह दी। टेस्ट करवाये तो पता चला कि उसे गले का कैंसर है और वो भी आखिरी स्टेज पर पहुंच चुका था बीमारी का पता लगते ही मलकीत अंदर से एकदम टूट गया और जल्द ही वो हर मानकर चारपाई पर पहुंच गया अब उसने खाना पीना छोड़ दिया था
कुछ भी गले से अंदर नही जाता था हॉस्पिटल में उसे पाइप के साथ जूस बगैरह दिया जाता। उसकी आवाज बन्द हो गई कोशिश करता तो बिल्कुल पतली सी आवाज निकलती बिल्कुल बैसि जैसे वो पिल्ले भूख से चुं चुं करते थे। कुछ दिन हॉस्पिटल में रहने के बाद मलकीत एक मौत हो गई मगर मौत बहुत ही दर्दनाक थी वो तड़प तड़प कर मरा था।
उसकी मौत के बाद गांव वाले यही कहते थे कि नरक और स्वर्ग यहीं धरती पर ही है आसमान में नही। आदमी जो कर्म करता है वो यहीं उसके सामने आ जाते हैं हर इंसान को अपने पापों की सजा इसी जन्म में भुगतनी पड़ती है। जिंदगी दुख गरीबी में गुजरे कोई बात नही मगर मौत आसान होनी चाहिए
इसलिए हमेशा अच्छे कर्म करने चाहिए अपनी जीभ के स्वाद के लिए किसी जानवर पर जुल्म करना उसे तड़पाना उचित नही है। क्या पता कब किसके मुहँ से कोई बद्दुआ निकल जाए और ऊपरवाला पास होकर सुन ले और आपकी जिंदगी जीते जी नरक बन जाए।
के आर अमित
अम्ब ऊना हिमाचल प्रदेश