कमरे में चारों ओर बैठी औरतें और ख़ासतौर पर युवतियाँ नीरजा की बातों को सुनकर सम्मोहित हो गई थी । उम्र भले ही ढलान पर थी पर दिल कभी बूढ़ा नहीं होता । अधेडावस्था को पार करती हुई पार्वती बोल पड़ी—-
हाय! जीणा तो सहर की लुगाइयों का , यहाँ तो सारा दिन खाओ ना पिओ , कोई पूछन वाला भी ना । तेरी माँ भी जावे के कलब में?
हाँ-हाँ, क्यों नहीं ? मेरी मम्मी तो एवेरी फ़्राइडे जाती हैं । जब अगली बार आऊँगी तो शादी की मूवी दिखाऊँगी आप सभी को। लोग तो अक्सर मुझे और मॉम को सिस्टर्स समझ लेते हैं।मेरी मम्मी तो….. दस-दस हज़ार एक दिन……
कमरे में बैठा माधव अपने पुराने परिचितों से ज़रूर घिरा था पर उसके कान बाहर नीरजा की बातों पर ही लगे थे , जो बेचारी गाँव की स्त्रियों को ऐसी- ऐसी बातें चटकारे ले कर सुना रही थी कि मानो वह किसी जादू नगरी से आई हो । इससे पहले कि नीरजा ओर कोई झूठी डींग हाँकें, माधव ने भाभी को हल्का सा इशारा किया और ममता नीरजा के पास आकर बोली——
सुनो नीरजा ! ज़रा अंदर तो आओ ।
नीरजा जेठानी की बात को अनसुना कर बातें बनाने में लगी रही। इतने में फिर माधव ने भाभी की तरफ़ देखा तो ममता फिर कह उठी—- नीरजा , सुनो तो ज़रा ।
ओह ! क्या है , क्या सुनूँ … आप क्यूँ जली जा रही है , यह देखकर कि सब औरतें मेरी बातें सुन रही है, मेरी प्रेज कर रही है इसलिए आप बार-बार अंदर बुला रही हैं …. ज़रा भी एटिकेटस नहीं…. इन्हीं बातों से ही तो घटियापन का पता चलता है……
बंद करो अपना ये नाटक … आज माधव के मन का ग़ुबार होंठों पर आ ही गया ।
और घर की नई बहु से मिलने आई पड़ोस की औरतें तथा लड़कियाँ माधव के इस रूप को देखकर चुपचाप उठ खड़ी हुई।
माधव और नीरजा की शादी तक़रीबन दो महीने पहले हुई थी । और वे अपने पैतृक गाँव में देव- पूजा के लिए आए थे । नीरजा और माधव का रिश्ता एक विज्ञापन के माध्यम से तय हुआ था । माधव का साधारण परिवार उत्तर प्रदेश के दूरदराज़ इलाक़े से बरसों पहले मुंबई आ बसा था । नीरजा का परिवार भी मूल रूप से मध्य प्रदेश का था पर अब खुद को मध्य प्रदेश के कहने में झिझकने लगा था । अपने परिवार की तरह माधव ज़मीनी हक़ीक़त से जुड़ा लड़का था और नीरजा इसके एकदम उल्टी ।
पर कहते हैं ना कि जोड़े स्वर्ग में ही बनाए जाते हैं- ठीक ऐसा ही हुआ जब माधव और नीरजा का रिश्ता पक्का हुआ । तेज तर्रार और मुँहफट नीरजा में पता नहीं, माधव ने क्या देखा कि माँ , बहन और यहाँ तक कि कभी दख़लंदाज़ी न करने वाली भाभी ममता ने भी माधव को नीरजा से विवाह करने के फ़ैसले को लेकर दुबारा सोचने को कह दिया ।
माँ और बहन ने तो साफ़ कह दिया था—
माधव , लड़की हमारे परिवार में घुलने-मिलने वाली नहीं है । ऐसी बोलीचल- नौटंकीबाज़ , तुम्हें कैसे पसंद आ गई ।
पर ना-नुकर के बाद भी विवाह हो गया । सबसे पहले नमूना उस समय दिखा जब नीरजा को शादी का लहंगा पसंद करवाने ममता और माधव गए । वहाँ दुकानदार के सामने नीरजा बोली— भइया ! सिर्फ जडाऊ महीन काम का लहँगा दिखाए , दो लाख से ऊपर के दिखाए, उस रेंज के हैं या नहीं….. समय बर्बाद मत करना ….
ओ नो …भइया…. बहुत हल्की क्वालिटी रखी है आपने….. न जाने कितने लहँगे देखने के बाद भी नीरजा को कोई पसंद नहीं आया ….
मैडम…. आप कैसा चाहती है? …. हमारे शोरूम से ज़्यादा वैराइटी …आपको पूरे एरिया में नहीं मिलेंगी….
आपके पास रितु कुमार या मनीष मल्होत्रा के क्लेकशन हैं ?
माधव, ममता और दुकानदार भी अवाक रह गए । … सॉरी मैडम…. कहीं ओर देख लीजिए ।
पहले ही बता देते …. कितना टाइम वेस्ट कर दिया ।
इस तरह शाम हो गई पर नीरजा को कोई लहँगा पसंद नहीं आया । दिन ढलता देख ममता बोली—-
माधव , ऐसा करें … कल/परसों देख लेंगे ।मम्मी जी भी गुड़िया के साथ थक गई होंगी ।
हाँ…यार…माधव … पहले … कहीं थोड़ा खा-पी लेते हैं फिर चलें। नीरजा ही एक रेस्टोरेंट में ले गई और अपने लिए आर्डर देकर माधव तथा ममता को मेन्यू थमा दिया । ममता तो यही सोचती रह गई कि चलो नीरजा के बहाने वो भी नई- नई डिशेज को देख तो लेगी ।
अगले हफ़्ते शॉपिंग का ज़िक्र आते ही ममता ने तो हाथ खड़े कर दिए—- ना माधव … तुम्हीं जाओ । वैसे भी नीरजा को पसंद करना है ।
बहन तो पहले ही इस विवाह में कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रही थी । अकेले माधव को ही जाना पड़ा ।
शाम को माँ ने माधव के कमरे की मेज़ पर रखे बिल को देखकर कहा—- माधव ! दस…. लाख का केवल एक लहँगा…. अक़्ल पर पत्थर पड़ गए क्या..? ऐसा क्या … देख लिया तूने… इसमें … अरे , दो/ चार महीने बाद रिश्ता मिल जाता … … लुटवा देगी ये लड़की तुझे …
आज माधव चुप रहा क्योंकि वह ही जानता था कि दस लाख रुपये उसने किस तरह जोड़े थे । अंत में तय किया गया कि अब से नीरजा की कोई पसंद नहीं करवाई जाएगी ।
माधव की मम्मी ने बरी में देने के लिए सात जोड़े कर दिए , अपनी पसंद और हैसियत से । जब नीरजा के मायके से आया सामान खोला गया तो सबके मुँह देखने वाले थे क्योंकि एक भी जोडा ऐसा नहीं था , जो बरता जा सके । हाँ, माधव के कपड़े ज़रूर अच्छे थे पहनने लायक़ । माधव को भी यह देखकर अच्छा नहीं लगा कि ऊँची-ऊँची बातें करने वाली नीरजा और उसके परिवार ने घरवालों को इतना घटिया स्तर का समझ लिया । हालाँकि मम्मी ने नीरजा के भाई- बहन के कपड़े भी महँगे ना सही पर बहुत अच्छे पहनने लायक़ दिए थे ।
बहन – बहनोई और बच्चों के लिए तो माधव ही कपड़े ख़रीदकर लाया और बोला—
मम्मी! नीरजा के घर से आए कपड़ों की जगह , जो मैं लाया हूँ वो दे देना । आप तो जीजू का स्वभाव जानती है, ताना मारेंगे ।
उसके बाद तो हर रोज़ नीरजा की नौटंकी शुरू हो गई ।
मम्मी…. हमारे यहाँ तो राशन का हिसाब ही नहीं रहता … क्या आ रहा है… कितना आ रहा है… मेरी मम्मी तो रसोई में ज़्यादा ताकाझांकी नहीं….. हमारी कामवाली है ना माया आँटी .. सब वो ही देखती है…..
पर बहू …. कैसे करती हैं ये सब समधिनजी , खुद भी नौकरी नहीं करती ? तुम्हारे पापा तो कोई इतने बड़े ओहदे पर भी नहीं है… ..
मम्मीजी , ये सब टेस्ट की बात है, सबका तरीक़ा होता है…
ऐसे मौक़े पर अक्सर ममता अपनी सास का ध्यान दूसरी तरफ़ खींचती क्योंकि वह जानती थी कि बड़बोली नीरजा अपनी बात ही ऊपर रखेगी और माधव की अच्छी सैलरी के बिना इस घर का गुज़ारा मुश्किल है । चाहकर भी ममता के अच्छे पढ़े-लिखे पति को कोई बड़ी नौकरी नहीं मिल पाई थी और ममता ने घर में ही एक छोटा सा सामान्य ब्यूटी पार्लर खोला हुआ था पर मोहल्ले में कम ही आमदनी होती थी ।
शादी के बाद से ही मम्मी जी लगातार कहती आ रही थी—
माधव , गाँव जाकर देवता पर दीया जलाकर आना है, छुट्टी का बंदोबस्त कर ले चार/ पाँच दिन की । अब होली की छुट्टी मिलाकर दोनों भाइयों ने दस दिन का इंतज़ाम कर लिया और पूरा परिवार गाँव आ गया । जब माधव ने देखा कि माता-पिता का मन है कि अपने गाँव परिवार के लिए एक प्रीतिभोज का आयोजन करना चाहिए तो उसने सहर्ष स्वीकार कर लिया । इसी मौक़े पर छोटे से गाँव के सभी लोग उनसे मिलने आए । विशेष रूप से छोटी बहू की अनोखी बातों ने औरतों को बहुत प्रभावित किया ।
आज माधव के नए रूप को देखकर नीरजा एक क्षण के लिए तो चुप हो गई पर तुरंत बोली—-
तुम जानते हो कि किससे बात कर रहे हो ? ये जिनके दम पर इतना बोल रहे हो, ये काम नहीं आएँगे । शर्म नहीं आती इस ममता को … मेरे पति को भी अपनी मुट्ठी में….. गँवार कहीं की … घटिया औरत ….
नीरजा…. मुँह सँभाल कर बोलना । ये ठीक है कि हम तुम्हारी तरह पैसे वाले नहीं पर मेरी ममता बहू हीरा है , तुम तो उसके पैर की धूल बराबर भी नहीं । और ये जो तुम्हारा पति है , इसे मैंने ही पैदा किया है….. माधव … देख लिया , इसलिए मैं इस बड़बोली लड़की से तुझे शादी के लिए मना कर रही थी ।
तो ना करते ….. मैं कौन सा मरी जा रही थी…. मेरी तो क़िस्मत ही ख़राब थी …. इतने अच्छे रिश्ते आ रहे थे…. जाने क्यूँ…. मेरी क़िस्मत में ये कंगाल लिखे थे । अभी अपनी मम्मी को फ़ोन करती हूँ….. यह कहकर नीरजा ने फ़ोन मिलाया….. मम्मी … ये घटिया इंसान….
पर उधर से आवाज़ आई, …. पापा बोल रहा हूँ । देख नीरजा! जीवन कोई फ़िल्मी कहानी नहीं है । यथार्थ में रहना सीख…..अभी तेरी बहन की भी शादी करनी है । क्या तुझे नहीं पता कि मैं कैसे- कैसे करके घर चला रहा हूँ । दो साल बाद रिटायरमेंट है। कितनी बार समझाया कि ज़्यादा मत फेंका कर……
पा..पा.. मम्मी से बात कराइए । मैं इस घर में नहीं रहूँगी…
हाँ… नीरजा… मम्मी बोल रही हूँ….. अरे बेटा! आने को तो आ जा पर यहाँ भी कौन सा बैठकर जीवन काट लेगी …..
मम्मी के इतना कहते ही नीरजा ने ग़ुस्से में फ़ोन काट दिया और ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी । घर के सदस्य बिना बताए ही सारी बात समझ गए । पर माधव की मम्मी ने ऐलान कर दिया कि
—- नीरजा को केवल एक शर्त पर दूसरा मौक़ा दिया जाएगा कि या तो उसे ममता से हाथ जोड़कर अपने घटिया शब्दों के लिए माफ़ी माँगनी पड़ेगी या हमेशा के लिए हमारे पास से जाना पड़ेगा ।
साथ ही माधव की तरफ़ देखकर बोली—
माधव, मैं ये हरगिज़ नहीं कहती कि तू नीरजा को छोड़ दें । पर नीरजा और हम में से , एक को चुनना पड़ेगा ।
माधव ने खुद आगे बढ़कर अपने हाथ जोड़कर ममता से कहा—
भाभी! मैं नीरजा की तरफ़ से , उसके एक-एक शब्द के लिए माफ़ी माँगता हूँ….
अपनी छोटी बहन समझकर माफ़ कर दीजिए मुझे…. आगे आकर हाथ जोड़ते हुए आँखों में आँसू भरते हुए नीरजा बोली।
ममता ने सिर्फ़ देवर-देवरानी के हाथों को अपने हाथों में लेकर गर्दन हिलाई क्योंकि कुछ ज़ख़्मों को समय ही भरता है ।
करुणा मलिक