बदलती ऋतु – प्रतिमा श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi

गर्मियां जा रहीं थीं और सर्द हवाओं ने लोगों को राहत दिया था। हल्की-हल्की फुहार मन के किसी कोने में दबे जज़्बातों को कुरेदने को बेकरार थी। आरुषि चाय की प्याली लेकर बरमादे में जमीन पर

ही बैठ गई थी।आज उसके अतीत ने उसे झकझोर दिया था। मृदुल की यादों ने उसे एक पल भी चैन से जीने नहीं दिया था।रात आंसूओं से तकिए भीगोती और सुबह तो लगता क्यों आई है क्योंकि आरुषि को अंधेरे में रहने की जैसे आदत पड़ गई थी। उजाले उसे रास ही नहीं आते थे।

कल ही की बात है जब उसने परिवार के खिलाफ जा कर मृदुल से शादी किया था। दोनों बचपन से एक दूसरे को जानते थे और जवानी ने दोस्ती को प्यार में ना जाने कब बदल दिया वो दोनों भी नहीं

समझ पाए थे।एक शाम जब आरुषि ने मृदुल को बताया की उसको लड़के वाले देखने आ रहें हैं तो मृदुल बेचैन सा हो गया था।उसको अहसास होने लगा की उससे उसकी जिंदगी ही छीनने वाली है जैसे।उस शाम दोनों को सबसे पहले समझ में आया था की वो एक दूसरे से प्यार करने लगे हैं और वो जीवनसाथी बन कर पूरी जिंदगी साथ में गुजारना चाहते हैं।

आरुषि ने मृदुल के बारे में घर में बताया तो हंगामा हो गया और घरवालों ने उसके ऊपर पाबंदी लगाना शुरू कर दिया। घर का कोई भी सदस्य उस के साथ नहीं था। पहले तो उसने सबको बहुत समझाया लेकिन जब कोई भी व्यक्ति मानने को तैयार नहीं था तो आरुषि ने मृदुल को बताया। मृदुल ने उससे वादा किया की वो उससे तुरंत ही शादी करने को तैयार है और वो रात को घर छोड़कर निकल गई। दूसरे ही दिन दोनों ने शादी कर लिया था।

परिवार वालों ने हमेशा के लिए आरुषि को अपने घर और जिंदगी से बेदखल कर दिया था।

सबकुछ अच्छा चल रहा था। दोनों बहुत खुश थे लेकिन वक्त को भी सब कुछ अच्छा चले कब मंजूर होता है। अचानक से एक खबर ने आरुषि की जिंदगी इतनी बड़ी सुनामी लाई की सबकुछ बर्बाद हो गया। मृदुल की सड़क दुघर्टना में जान चली गई। आरुषि को ना तो मायके का साथ था ना ससुराल का क्योंकि दोनों परिवारों के खिलाफ जा कर दोनों ने अपना घर बसाया था।

आज वो बरामदे में बैठकर उन लम्हों को याद कर रही थी जो उसने मृदुल के साथ गुजारे थे और अपने पेट पर हांथ रखकर वो रो पड़ी थी कि कितना अभागा होगा वो बच्चा जिसने अपने पिता को देखा ही नहीं। ऋतु कैसे बदल गई थी अचानक ही। मृदुल कितना खुश था और रोज कुछ ना कुछ बातें करता की वो एक अच्छा पिता कैसे बनेगा।

उसकी आंखें अक्सर नम हो जाती ये सोच कर की वो एक अच्छा बेटा तो नहीं बन सका था।अब उसे अपने पिता के दर्द का अहसास सताने लगा था। आरुषि भी मां बनने वाली थी तो वो भी अक्सर मृदुल से घर वालों की ही बातें करती और हमेशा अफसोस जताया करती की हमें परिवार वालों को और भी

मनना चाहिए था।सब से अलग रह कर वो दोनों भी खुश नहीं थे। उस समय का जुनून अलग था कुछ भी सोचने समझने की क्षमता नहीं थी पर बाद में दोनों अक्सर उदास हो जाते कि काश हमारे साथ हमारा परिवार भी होता।जब आरुषि को पता चला था कि वो मां बनने वाली है तो सबसे पहले यही लगा की हमारे माता-पिता आज साथ होते तो वो कितने खुश होते और कितना ख्याल रखते हमारा। कोई बड़ा बुजुर्ग ही नहीं है साथ जो सही गलत का भेद बताता।

एक साथी था जो वो भी बिछड़ गया। भगवान ने ना जाने क्या लिखा है नसीब में। इतना अकेलापन महसूस हो रहा था उसे। ऐसा लग रहा था भाग कर घर जाए और मां की गोद में सिर रखकर जी भरकर रो ले क्योंकि उसके आंखों के आंसू सूख गए थे।

सातवां महीना चल रहा था और वो अब बेचैन सी रहने लगी थी। दोस्तों ने बहुत साथ दिया और बहुत ही ख्याल रखते भी थे लेकिन जिसके मन के अंदर इतना तूफान मचा हो उसे बाहर से चैन कहां हो सकता था। आरुषि की  सहेली ऋचा ने उससे कहा कि,” तुम अपने घर वालों को एक बार फोन कर लो।वो तुम्हें माफ कर देंगे क्योंकि कोई भी मां – बाप इस हाल में अपनी बेटी को अकेला कभी नहीं छोड़ेंगे। आरुषि आने वाले समय में तुम्हें परिवार की जरूरत पड़ेगी।”

ऋचा,” मैं किस मुंह से बात करूं? सचमुच में मुझे घरवालों की जरूरत है पर मैं हर रात सोचतीं हूं कि सुबह बात करूंगी पर हिम्मत ही नहीं पड़ती है मेरी।अब तो सोचतीं हूं कि मैंने सबका दिल दुखाया था इसलिए ईश्वर ने मुझे सजा दी है” ऋचा की गोद में सिर रखकर रो पड़ी थी।

ऋचा ने बिना बताए उसके घर वालों से मिलने का फैसला लिया और वो आरुषि के घर पहुंच गई थी। पहले तो सभी ने बहुत बुरा भला सुनाया। ऋचा ने चुपचाप सब कुछ सुना क्योंकि वो चाहती थी कि सबके मन की भड़ास एक बार निकल जाएगी तब लोग उसकी बात को जरूर समझेंगे और वैसा ही हुआ। कौन से परिवार वाले इतना नाराज़ हो सकतें हैं कि अपनी बेटी को इस हालत में छोड़ देंगे। मां बहुत रोई थी और सभी ऋचा के साथ चल पड़े थे आरुषि से मिलने।

अचानक दरवाजे की घंटी ने आरुषि को अतीत से वर्तमान में खींच लिया था।” कौन हो सकता है इस समय? ” बुदबुदाते हुए वो दरवाजा खोलने के लिए आगे बढ़ी।

सामने परिवार वालों को देख कर उसके पांव जमीन में जम से गए उसको खुली आंखों से सबकुछ सपने जैसा लग रहा था।वो कुछ देर के लिए पत्थर सी हो गई थी तभी मां ने उसको गले से लगाते हुए कहा,” इतनी दूर कैसे हो गई बेटी की अकेली ही सबकुछ झेलती रही हमें बताया तक नहीं। इतना पराया कर दिया अपने घरवालों को तुमने।”आरुषि दहाड़ मार कर रो पड़ी थी।कितने दिनों से अपने अंदर दर्द सैलाब को दबा कर बैठी थी जो आज बह निकला था अपनों से मिलकर।

आरुषि की हालत देखकर पापा एक कोने में जाकर आंसूओं को छिपाने की कोशिश कर रहे थे। मां ने अपने आपको किसी तरह संभाला था और आरुषि का सिर गोद में रखकर सहला रहीं थीं।ना जाने कितनी रातों के बाद आज आरुषि को जैसे सुकून सा मिला था। अकेलापन और मन में ग्लानि ने उसे तोड़ दिया था बुरी तरह से।

किसी ने भी आरुषि से कोई भी सवाल जबाव नहीं किया था। थोड़े दिनों में सभी घर वापस चले गए थे मम्मी – पापा ने आरुषि के साथ रुकने का फैसला लिया था। मम्मी सुबह से डांट – डांट कर खिलाती – पिलातीं और पापा उसे हमेशा खुश रखने की कोशिश करते रहते।

ऋतु फिर से बदलने लगी थी और बाहर ही नहीं सर्दी ने दस्तक दी थी बल्कि घर के वातावरण में  भी गमों और चिंताओं के बादल छंटने लगे थे । आरुषि अब धीरे-धीरे सामान्य होने लगी थी।अब बच्चे के जन्म के बाद की चिंताओं से मुक्त हो रही थी क्योंकि मम्मी पापा और परिवार का साथ मिला था।उसे लगा ही नहीं था कि मम्मी पापा ने उसे कैसे माफ कर दिया था।

औलाद हजार गलतियां भले ही करे किंतु मां – बाप अपने बच्चों को तकलीफ़ में नहीं देख सकते हैं।

वो दिन भी आ गया था आरुषि ने एक बेटे को जन्म दिया था जो हुबहू मृदुल जैसा था ऐसा लग रहा था कि मृदुल उसकी जिंदगी में लौट आया था बेटे के रूप में। आरुषि बहुत रोई थी बेटे को गले लगा कर की आज मृदुल होता तो वो खुशी से नाच रहा होता अपने बेटे को गोद में लेकर।

हम क्या सोचते हैं और ऊपर वाला कुछ और।किसका साथ कब तक है कहां किसे पता होता है। मृदुल का साथ वहीं तक था लेकिन उसकी निशानी के रुप में उसका बेटा अब उसकी गोद में था।

वक्त के साथ-साथ सब कुछ सामान्य होने लगता है। यादों का क्या वो तो हमेशा दिल में दफन रहतीं हीं हैं। जाने वाला तो इस दुनिया से मुक्त हो जाता है पर जो पीछे रह जाता है उसे तो हर हाल में जीना पड़ता ही है क्योंकि जीवन और मृत्यु पर किसका जोर है।

बेटे का नाम मृदुल ही रखा था सभी ने। मृदुल भले ही इस दुनिया में नहीं था लेकिन सबकी यादों में और अपनी परछाई अपने बेटे के रुप में सबके बीच था।

                                 प्रतिमा श्रीवास्तव

                               नोएडा यूपी

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