बेचारी नहीं हैं हम – विभा गुप्ता 

        आज सुबह से ही किशोरी के छोटे-से घर में लोगों का आना-जाना लगा हुआ था।सभी आकर उसे बधाई देते और कहते,” वाह किशोरी! तेरी बेटी ने तो कमाल कर दिया।” जवाब में वो सिर्फ़ मुस्कुरा देती क्योंकि वो जानती थी कि कल तक यही लोग तो मेरी बेटी को मर जाने की बद्दुआ देते रहे … Read more

सीनियर लगते नहीं

   ” ये क्या आप मुझे हर वक्त सीनियर-सीनियर कहते रहते हैं..मेरा नाम लेते हुए क्या आपका गला दुखता है।” नीरू अपने पति महेश जी पर चिल्लाई।जवाब में वो मुस्कुराते हुए बोले,” अब बच्चे तुम्हारे सयाने हो गये हैं और तुम्हारे बालों पर भी चाँदी चमकने लगी है तो हो गई ना तुम सीनियर..इसमें चिढ़ने वाली … Read more

 बद्दुआ दुआ बन जाती है – विभा गुप्ता

 ” बस दीदी..आप बहुत बोल चुकीं..मैं जब से इस घर में आई हूँ, आप मुझमें कोई न कोई कमी निकालती ही रहीं हैं।फिर मेरी बेटी को..।ये भी नहीं सोचती कि वो आपके ही देवर की बेटी है।और आज तो आपने श्रद्धा को..।” कहते हुए आनंदी का गला भर आया।   ” तो फिर यहाँ से चली … Read more

साक्षात् दुर्गा – विभा गुप्ता

       ” ये क्या चंदा..आज फिर से…तू एक बार उसका हाथ पकड़कर ऐंठ क्यों नहीं देती।तेरी कमाई खाता है और तुझ पर ही हाथ…।खाली ‘दुर्गा मईया सब ठीक कर देंगी’ कहने से नहीं होता है..दुर्गा बनना भी पड़ता है..।” अपनी कामवाली के चेहरे और हाथ पर चोट के निशान देखकर आरती गुस्से-से उस पर चिल्लाई।       ” … Read more

अनजाना भय – विभा गुप्ता

          ‘ शांति पार्क ‘ की बेंच पर बैठे सुदर्शन जी अपने दो मित्र- श्रीकांत दुबे और जमनालाल से बातें करते हुए सुबह की धूप का आनंद ले रहें थे कि अचानक कलाई पर बँधी घड़ी पर उनकी नज़र पड़ी तो वो उठकर जाने लगे।      ” इतनी ज़ल्दी चल दिये..आज तो संडे है..क्या आज भी दफ़्तर..।” … Read more

कन्या-विदाई – विभा गुप्ता

महाअष्टमी के दिन कन्या-पूजन की खरीदारी के लिये रश्मि मार्केट के लिए निकली तो उसे याद आया कि  कंजिकाओं को विदाई में क्या उपहार दे, इसके बारे में तो तो सोचा ही नहीं।फिर उसे याद आया कि उसकी सहेली नीतू भी कंजिकाओं को बुला रही है, उसका घर रास्ते में ही तो है, उसी से … Read more

इतनी-सी बात – विभा गुप्ता

      ” अम्मा जी..जब दिखता नहीं है तो चुपचाप अपने कमरे में ही क्यों नहीं बैठी रहतीं।इतना मंहगा कप तोड़ दिया आपने..मेरा भाई कनाडा से लाया था..आपके बेटे की तो औकात है नहीं कि इतना मंहगा…। ” प्रमिला अपनी बूढ़ी सास पर बरस रही थी कि तभी उसका देवर निशांत आ गया।माँ पर बरसते अपनी भाभी … Read more

ग्रहण – विभा गुप्ता

      ” धरा! तू ये क्या अनर्थ करने जा रही थी..इतनी समझदार होकर भी..।” कहते हुए शेखर ने अपनी बहन के हाथ से रस्सी छीन कर फेंक दी तो धरा उसके गले लगकर फूट-फूट कर रोने लगी,” भईया..मुझे मर जाने देते..इतना अपमान अब मुझसे सहा नहीं जाता..मेरी वजह से आपको, माँ को लोगों की बातें सुननी … Read more

हिन्दी पर प्रहार -विभा गुप्ता : Moral Stories in Hindi

   रोज की तरह अपने सारे निपटाकर मानसी अपने बच्चों के पैरों में मालिश करने लगी।उसने पहले छोटे मनु की मालिश की और फिर बड़े अंकित के पास आई।पैरों की मालिश करने के बाद उसने हाथों में तेल लगाना चाहा तो हथेली लाल लकीरें देखकर वो चौंक उठी। उसने सोए हुए अंकित के गालों पर आँसू … Read more

अपनी मर्ज़ी से – विभा गुप्ता : Moral Stories in Hindi

  सात साल पहले गंगाराम काम की तलाश में अपने गाँव से मुंबई आया था।महीनों इधर-उधर भटका..भूखा-प्यासा फुटपाथ भी सोया, तब जाकर उसे फ़र्नीचर बनाने के एक कारखाने में काम मिला।धीरे-धीरे उसने अपने रहने के लिये जगह भी ले ली और अपने परिवार को भी ले आया।      सब कुछ अच्छा चल रहा था कि एक दिन … Read more

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