रिटायरमें – रश्मि झा मिश्रा 

“.…चलिए ना हम भी कहीं चलते हैं घूमने… शादी के दस साल हो गए… अभी तक हम कहीं भी घूमने नहीं गए…!” ” घूमने नहीं गए… उसके पीछे की वजह भी तो देखो… कितनी जिम्मेदारियां हैं हमारे सर पर… और घूमना क्या मुफ्त में होता है…!” ” अरे… मैं कहां कह रही मुफ्त में होता … Read more

लोग क्या कहेंगे… रश्मि झा मिश्रा

.…सीधे पल्ले की साड़ी पहने… सर पर पल्लू संभालती… जानकी काकी बड़े से शॉपिंग मॉल के दरवाजे पर आकर ठिठक गई… उन्हें कुछ अच्छी साड़ियां लेनी थी… इसलिए टैक्सी वाले ने उन्हें यहीं उतार दिया… अब इतने बड़े मॉल में अकेले घुसते उनके कदम हिचकिचा रहे थे…  वह हिम्मत कर आगे बढ़ी… लोग आ जा … Read more

अपनों की पहचान – रश्मि झा मिश्रा : Moral Stories in Hindi

लता दी के दूर के रिश्ते के भाई का बेटा था मानव… जब पहली बार मानव लता दी के घर आया, उसे देखते ही लता दी का मन… एक अनजाने अपनत्व से भर उठा…   लता दी कि अपनी भरी पूरी गृहस्थी थी… उनके पति की अच्छी नौकरी थी… दो बेटियां थीं… कमी तो कोई नहीं … Read more

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