जादुई दर्पण – नीरज श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi

रजनी के किच-किच से तो मैं परेशान हो चुका हूँ। जब देखो लड़ती रहती है। आज तो घर जाऊँगा ही नहीं, चाहे कुछ भी हो जाये।”   मन में बुदबुदाता हुआ, मनोज पार्क में आकर बैठा ही था कि हवाओं ने बहना शुरू कर दिया। जैसे हवाओं को उसके आने का एहसास हो गया हो। मनोज … Read more

अपनो की पहचान – नीरज श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi

कभी-कभी जीवन में परिस्थितियाँ एक सी नहीं होती। कभी उतार तो कभी चढ़ाव लगा ही रहता है। जीवन के इसी उतार चढ़ाव ने आज नीरज को एक नई सीख दे डाली थी। कौन अपना, कौन पराया की परिभाषा नीरज नहीं बल्कि वक्त लिख रहा था।              नीरज पिछले दस सालों से एक ही हॉस्पिटल में काम … Read more

काकी – नीरज श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi

“अरे अब हमारा पिंड क्यों नहीं छोड़ती। ना जाने ये बुढ़िया कब मरेगी? यमराज भी न जाने कहाँ जाकर बैठ गये हैं? रोज़ किसी ना किसी को तो लेकर जाते हैं। अगर इस बुढ़िया को ही लेकर चले जाते तो उनका क्या बिगड़ जाता? इसके रोज-रोज के नखरे से तो मैं तंग आ चुका हूँ। … Read more

साथ – नीरज श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi

कभी-कभी न चाहते हुए भी हम उस पल के साक्षी बन जाते हैं। जिसकी कल्पना हमने गलती से भी ना की हो। आज ऐसे ही पल के साक्षी नीरज और सुषमा बन चुके थे।           दर्द और वेदना की तूफानी लहरों ने आज सुषमा की आँखों में एक भयावह शैलाब को जन्म दे दिया था। रात्रि … Read more

टूटती साँसे – नीरज श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi

बूढ़े कदम मंजिल को ओर बढ़ रहे थे। दोनों हाथों से साइकिल की हैंडिल संभाले सुदेश मन ही मन कुछ सोच रहा था। साइकिल पर हर प्रकार के खिलौने लदे हुए थे। देखते ही देखते सुदेश अचानक एक चौराहे पर रुक गया और एक तरफ खिलौनों को नीचे उतारने लगा। शायद उसकी मंजिल आ चुकी … Read more

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