नाक का सवाल – लतिका श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi

देखिए जी कहे देती हूं गृहप्रवेश की पार्टी में जूलियस कैटरर को ही बुक करेंगे मेघा जी ने प्रसून जी से दृढ़ स्वर में कहा। जूलियस कैटरर !!हाईएस्ट प्राइज है उनकी मेघा।क्यों उतना खर्चीला लेना जब उससे बहुत कम में ही दूसरे काम करने को तैयार हैं प्रसून जी ने समझाने के स्वर में कहा। … Read more

तमाशा – लतिका श्रीवास्तव :

Short Story in Hind शहर का व्यस्ततम चौराहा….शाम का समय। भारी भीड़,आवा जाही का शोर,एक के बाद एक वाहनों का पैदल यात्रियों का अनवरत तांता लगा था। वहीं फुटपाथ पर एक स्त्री बेहद अव्यवस्थित वेशभूषा जीर्ण वस्त्रों से अपने तन को ढंक पाने में पूर्ण अक्षम हालात की मारी निढाल पड़ी थी।आती जाती  छिद्रान्वेषण करती … Read more

ताजा खाना – लतिका श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi

मां आज लंच बहुत स्वादिष्ट बना था ।मेरे सहकर्मी पूरा खा गए मुझे थोड़ा सा चखने को ही मिल पाया बचा कर रखना मै शाम को खाऊंगी नीति ने ऑफिस से फोन कर मां को बताया। ये क्या मां ये तो तुमने अभी बनाया है।सुबह वाला कहां है नीति ने ऑफिस से आते ही मां … Read more

कहीं ये वो तो नहीं पार्ट – 2 :लतिका श्रीवास्तव 

अहा यही तो है मेरा पर्स मेरा लकी पर्स खुशी से चीख पड़ी रचना।झपट कर पर्स को दोनों हाथों में उठा गले से लगा लिया। पर्स पर ही पूरा प्यार लुटा दीजिएगा या पर्स आपको देने वाले के लिए भी कुछ बचाएगा तल्लीनता से आनंदित होती रचना को देख वह युवक मुखर हो उठा। खुशी … Read more

कहीं ये वो तो नहीं भाग -1 लतिका श्रीवास्तव

रात्रि की कालिमा विदा ले रही थी ।रात भर चांद के साथ गुफ्तगू होती रही । चांद विनम्रता से कालिमा को दूर जाने और रात्रि को आलोकित करने का आग्रह करता रहा ।कालिमा की हठधर्मिता ने कई बार चांद को भी अपना शिकार बनाने का क्रम निरंतर गतिमान रहा तभी सूरज के आने की आहट … Read more

जुग जुग जियो बेटा – लतिका श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi

अब ये पुरानी आराम कुर्सी भी लेकर जाएंगे क्या आप!! यहीं पड़े रहने दीजिए इसे। इसका एक हत्था भी अलग हो गया है ।इसकी लकड़ी भी बैठते समय चुभने लगी है। नए मकान में नया फर्नीचर रहेगा इस कबाड़ का क्या काम वहां सुजाता जी अपनी पुरानी साड़ियों का गट्ठर बांधते हुए पति कैलाश जी … Read more

पता है…. – लतिका श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi

ऑफिस की सीढियां चढ़ ही रहा था कि पीछे दौड़ती आती पदचापों से थम सा गया मुड़ कर देखा तो अश्विनी था। थोड़ा ठहर तो अविनाश  तेरे पैदल चलने में भी वही रफ्तार है जो  तेरे ऑफिस काम करने के तरीके में है अरे इतनी जल्दी है तो लिफ्ट से आया जाया कर  तुझे पता … Read more

भीख नहीं दुआ – लतिका श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi

गली और सड़क का वह दोराहा ।संकरी गली से बेहद कठिनाई से जब मैं अपनी कार निकाल कर सड़क के उस दोराहे पर पहुंचता वह स्त्री झट से अपना आंचल पसार कर खड़ी हो जाती।बेहद चिढ़ से मै कार का शीशा उपेक्षा से चढ़ाकर तेजी से आगे बढ़ जाता था। अक्सर वह मुझे वहीं खड़ी … Read more

सच्ची डोरियां – लतिका श्रीवास्तव

बस काठ की पुतली की तरह नाचते रहना कभी पिता तो कभी पति के इशारों पर।मुझे ऐसी जिंदगी नहीं चाहिए मां मै तो यहीं चाहती हूं मेरे इशारों पर कोई नाचे  मेरी डोर मेरे हाथों में ही रहे । प्राची की मिनमिन सुन कर मां मुस्कुरा उठी। बेटा ये नाचना और नचाना दोनों जीवन के … Read more

घूंघट के पट खोल – लतिका श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi

जब से नए पड़ोसी आए थे लोगों की जिंदगी में झांकने की मेरी दिलचस्पी को जैसे नए पंख लग गए थे।वैसे तो कुल पांच जने थे उनके घर में लेकिन चार कहना ज्यादा उचित होगा क्योंकि घर की लक्ष्मी  मतलब उनके घर की बहू लक्ष्मी अदिति  हमेशा अदृश्य अवस्था में ही रहती थी।नहीं नहीं नई … Read more

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