आज फिर घर में सुबह से ही अफ़रा-तफ़री मची हुई थीं घर की साफ-सफाई पर्दे सोफे के कवर सब बदले जा रहे थे रसोई में नाश्ते खाने की तैयारियों में स्नेहा की मां और बड़ी बहन लगी हुई थीं। यह सब देखकर स्नेहा मन-ही-मन दुखी हो रही थी उसके मन की उदासी उसके चेहरे पर भी दिखाई दे रही
थी तभी स्नेहा की मां ने आकर कहा “बेटा जा तैयार हो जा वो लोग आने ही वाले होंगे”
” मां ये सब क्या है? हर महीने आप मेरी नुमाइश लगा देती हैं लड़के वाले आते हैं मुझे किसी वस्तु की तरह परखते हैं फिर ये कहकर चले जाते हैं की लड़की सांवली है, लम्बाई कम है ,कोई कहता है मेरा
बेटा अफ़सर है उसे तो दहेज़ में कार चाहिए वो भी उसकी पसंद की, मां हर बार लोग आपकी बेटी को उसके सांवले रंग के कारण और ज्यादा दहेज़ न मिलने के कारण नापसंद कर देते हैं। ये बात आप अच्छी तरह जानती हैं तो इस बार आप वही गलती फिर क्यों कर रहीं हैं!? मां मैं नुमाइश की वस्तु बनते-बनते थक गई हूं।
आप लोग मेरे लिए सरकारी अफसर ल़डका ही क्यों ढूंढ रहे हैं कोई क्लर्क क्यों नहीं ढूंढते जब आप को पता है कि, सरकारी अफसरों की दहेज़ की मांग और उनकी गोरी लड़की की चाहत आप और आपकी बेटी पूरी नहीं कर सकते तो आप मेरे लिए इतने ऊंचे ख्बाव क्यों देखते हैं” स्नेहा ने उदास लहज़े में पूछा,
“बेटा हर मां-बाप का सपना होता है कि, उनके बच्चे उनसे अच्छा जीवन जिए इसलिए हम तेरे लिए अफ़सर लड़का ढूंढ रहे हैं जिससे तेरा जीवन अभावों में न बीते” स्नेहा की मां ने कहा
“मां जब लड़के वाले इंकार करके चले जाते हैं तो आपके दिल पर क्या गुजरती है मैं अच्छी तरह से जानती हूं मुझे अपने अपमानित होने का उतना दुःख नहीं होता जितना आपके अपमानित होने पर होता है। ये लड़का भी तो सरकारी अफसर है और वो भी इकलौता लड़के की मां बहुत पढ़ी-लिखी हैं
उन्होंने पीएचडी किया है आपने उन लोगों को घर बुलाया है वो लोग भी आपका और मेरा अपमान करके चले जाएंगे आप उन्हें मनाकर दीजिए वो यहां न आए यहां आकर भी उन्हें इंकार ही करना है” स्नेहा ने गम्भीर लहज़े में कहा।
“नहीं बेटा जिन्होंने यह रिश्ता बताया है वो लोग कह रहे थे , ये बहुत अच्छे लोग हैं इनकी दहेज़ की कोई मांग नहीं है इन्हें सुशील संस्कारी बहू चाहिए जो उन्हें मान-सम्मान दें और उनके बेटे के जीवन को खुशियों से भर दे यह गुण तुम में है इसीलिए हमने सोचा जहां इतनी बार हमने लोगों का इंकार
सहा है वहीं एक बार और सही हो सकता है कि,इस बार ईश्वर हमारी प्रार्थना सुन ले बेटा मेरी खातिर एक बार और मेरी बात मान जाओ अगर आज उन लोगों को तुम पसंद नहीं आई तो हम दोबारा तुमसे कुछ नहीं कहेंगे” स्नेहा की मां ने प्यार से समझाते हुए कहा।
अपनी मां की बात सुनकर स्नेहा अपने कपड़े बदलने चली गई थोड़ी देर बाद ही लड़के वाले आ गए स्नेहा के माता-पिता और बहन लड़के की मां, पिता और लड़के की खातिरदारी में लग गए। तभी लड़के की मां ने कहा “भाभी जी मेरी होने वाली बहू को बुलाइए” थोड़ी देर बाद स्नेहा कमरे में दाखिल
हुए उसने पीले रंग का चिकन का सूट पहना हुआ था बालों की लम्बी चोटी कमर के नीचे झूल रही थी माथे पर मैरून रंग की बिंदी और होंठों पर हल्के मैरून रंग की लिपस्टिक लगाई थी।वह बहुत ही मासूम लग रही थी लेकिन चेहरे पर उदासी छाई हुई थी। स्नेहा को उसकी होने वाली सास ने अपने
पास बैठाया उससे उसकी पढ़ाई के विषय में पूछने लगी जब स्नेहा ने ये कहा “वो आगे और पढ़ना चाहती है वो पीएचडी करके कालेज में पढ़ाना चाहती है। स्नेहा की बात सुनकर उसकी सास ससुर के
चेहरे पर मुस्कान फ़ैल गई उन्होंने हंसते हुए कहा “तो ठीक है शादी के बाद तुम अपनी ये इच्छा पूरी कर लेना” अपने होने वाले सास ससुर की बात सुनकर स्नेहा ने चौंककर उन्हें देखा तभी स्नेहा की मां ने डरते हुए धीरे से पूछा, “भाभीजी,भाई साहब क्या आपको मेरी बेटी पसंद है?”
“हां मुझे मेरी होने वाली बहू पसंद है मेरी बहू बहुत सुंदर है मुझे अपने बेटे के लिए ऐसी ही लड़की की तलाश थी जो पढ़ी-लिखी खुले विचारों वाली हो परन्तु संस्कारों और परम्पराओं को मानती हो जिसका मन बहुत सुन्दर हो जो लोगों को प्यार और सम्मान दे यह सभी गुण आपकी बेटी में हैं तन का गोरा
व्यक्ति यदि मन का काला हुआ तो घर-परिवार को बर्बाद होने में समय नहीं लगता मैं तन की नहीं मन की सुन्दरता को महत्व देती हूं दिखावे से जिंदगी नहीं चलती बल्कि जिंदगी नर्क बन जाती है।अब आज से स्नेहा मेरी अमानत है और हां एक बात और कान खोलकर आप लोग सुन लीजिए आप लोगों
को शादी खुशी-खुशी करनी है कर्ज़ लेकर नहीं जितना आपका बजट है उससे भी कम में आप लोगों को शादी में खर्च करना है मैं नहीं चाहती कि, शादी के बाद हमारे समधी समधन को शादी में लिया क़र्ज़ उतारने की चिंता सताने लगे ईश्वर का दिया हमारे पास सब कुछ है इसलिए हमारी कोई मांग
नहीं है बस आप मुझे मेरी बहू दे दीजिए” स्नेहा की सास ने हंसते हुए कहा फिर वो अपने बेटे से बोली
“आलोक मुझे और तुम्हारे पापा को स्नेहा पसंद है तुम क्या कहते हो जो कहना है इसी समय बता दो बाद में मेरी बहू को कुछ कहा तो ठीक नहीं होगा”
” मां आपकी पसंद कभी गलत हो ही नहीं सकती मुझे स्नेहा जी पसंद हैं मुझे पत्नी चाहिए जो मेरे सुख-दुख में मेरे साथ खड़ी रहें नुमाइश की वस्तु नहीं एक अच्छी पत्नी के सभी गुण स्नेहा जी में होंगे मुझे इसका पूरा विश्वास है” आलोक ने मुस्कुराते हुए स्नेहा को देखते हुए कहा
अपनी सास और अपने होने वाले पति की बात सुनकर स्नेहा की आंखों में आसूं आ गए स्नेहा की आंखों में आसूं देखकर उसकी सास ने बहुत प्यार से उसे गले लगा लिया।अपनी सास के गले लगते ही स्नेहा फूट-फूटकर रो पड़ी लेकिन आज उसकी आंखों से बहते आंसू अपमान के नहीं आत्मसम्मान के
थे। स्नेहा के माता-पिता को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि, दुनिया में ऐसे अच्छे लोग भी हैं लेकिन आज उन्हें ईश्वर की शक्ति पर विश्वास हो गया की अच्छे लोगों की सहायता ईश्वर स्वयं किसी न किसी रूप में जरूर करते हैं आज ईश्वर की कृपा से उनके घर में भी खुशियों की बरसात हो रही थी।
डॉ कंचन शुक्ला
स्वरचित मौलिक सर्वाधिकार सुरक्षित अयोध्या उत्तर प्रदेश