रामपाल यादव जी, प्रतिदिन पार्क में टहलने के लिए जाते हैं वहीं पर उनके कुछ हमउम्र मित्र भी मिल गए जो कुछ सेवानिवृत हो चुके हैं या कुछ होने वाले हैं, सभी लोगों का एक समूह बन गया है और सब एक दूसरे से परिचित हो गए हैं ,हंसी -मजाक करने के साथ -साथ कॉलोनी के बगीचे में टहलने जाते हैं और प्रतिदिन के समाचारों पर चर्चा करते हैं। एक दूसरे के घर आना-जाना भी हो जाता है। सभी के परिवारों में कुछ ना कुछ परेशानियां रहती ही हैं, किंतु रामपाल यादव जी हमेशा प्रसन्नचित रहते हैं।
उनके परिवार में उनके दो बेटे हैं और एक बेटी है, उनकी बेटी और बेटों का विवाह हो चुका है सब अपनी -अपनी गृहस्थी में व्यस्त हैं। रामपाल जी , बगीचे में प्रतिदिन टहलने आते और अपने दोस्तों से हंसी- मजाक करते और घर लौट जाते। उन्होंने कभी भी अपने दोस्तों से यह नहीं कहा कि कभी मेरे घर चाय पीने आया करो ! एक दिन उनके पड़ोसी मित्र ने कहा – रामपाल जी ! कभी चाय पर नहीं बुलाते हैं।
अरे! आपने इतनी छोटी सी बात कह दी, चाय पर क्यों नहीं बुलाएंगे ? चलिए ! आज ही चलते है , कहते हुए रामपाल जी अपने सभी मित्रों को साथ लेकर घर पहुंच गए और अंदर जाकर अपनी पत्नी से आठ -दस कप चाय बनाने के लिए कहा। सभी ने देखा, रामपाल जी का घर बड़ा होने के साथ -साथ सुंदर व्यवस्थित भी है।
क्या आपके बेटा – बहू कभी नहीं आते ?उन्हें कभी देखा नहीं।
रामपाल जी हंसी के मूड में बोले – पूछ रहे हैं. तो बता देता हूं, मेरे दोनों बेटे अच्छी-अच्छी नौकरियों पर हैं। उन्हें किसी चीज की कोई कमी नहीं है। कभी माता -पिता से मिलने की इच्छा होती है ,तो तीज – त्यौहार पर आ जाते हैं।
अच्छा रामपाल जी !आपको कभी बेटों के पास जाते नहीं सुना , क्या आप कभी अपने बेटों के पास नहीं जाते हैं ?हम लोग तो यहाँ अपने व्यापार और काम में इतने उलझे हुए हैं ,बाहर जाना ही नहीं होता।
मेरे बेटे मेरे साथ ही रहते हैं किन्तु आप तो सेवानिवृत्त हो चुके हैं ,अब तो आप जाइये !घूमिये मौज -मस्ती कीजिये !
उनकी इस बात पर रामपाल जी थोड़ा चुप हो गए और बोले -उनका अपना-अपना परिवार है वह अपनी-अपनी ज़िंदगी में रमे हुए हैं उन्हें क्यों परेशान करना ?
यह क्या बात हुई बेटे- बहु को,आपको बुलाना चाहिए, पापा !अब हमारे साथ रहिए ! अभी तिवारी जी अपने बेटे के पास एक महीना रहकर आए हैं।
हां,बच्चे कहते तो रहते हैं, किंतु मुझे वहां जाना पसंद नहीं है। जब हमारी गृहस्थी थी तब हमने अपनी गृहस्थी को स्वयं संभाला था, किसी ने सहयोग नहीं किया था। अब बच्चों की गृहस्थी हो गई है तो उन्हें भी स्वयं संभालने दीजिए,माता -पिता के महत्व को समझने दीजिए ,यदि हम उसके साथ जाकर रहने लगेंगे ! तो वो हम पर ही निश्चिन्त हो जायेंगे ,सोचेंगे -मम्मी -पापा दिनभर क्या करते रहते हैं ?थोड़ी सहायता करा देंगे तो क्या हो जायेगा ?
ये बात तो आप सही कह रहे हैं ,तिवारीजी बता रहे थे ,सारा दिन पोते को साथ रखना उसकी देखभाल करना बस यही उनका काम रह गया था।
वही तो मैं कह रहा हूँ -हम उनकी गृहस्थी में” कबाब में हड्डी ”क्यों बने ?यदि उन्हें हमारी आवश्यकता महसूस होती है तो हम अवश्य जाएंगे, हम उनकी जरूरत के लिए नहीं जाएंगे। जब वह महसूस करेंगे कि हमारे माता-पिता को हमारे साथ रहना चाहिए। तब हम जाएंगे, वैसे अभी हमें भी कोई जरूरत नहीं है। हम दोनों मियां- बीवी मजे से रह रहे हैं , तुम लोगों को पता नहीं, क्यों खुजली हो रही है ?हमारी ख़ुशी देखकर , कहते हुए हंसने लगे।
हमारी धर्मपत्नी जी और हम तमाम उम्र कमाने में और बच्चों के पालन -पोषण में लगे रहे, कभी हमें अपने लिए समय नहीं मिल पाया। सारा दिन ये घर में और मैं कमाने में ,ऐसे ही लगे रहते थे अब हमें थोड़ा समय मिला है साथ रहने का, एक दूसरे को फिर से जानने का, वह मौका तुम हमसे क्यों छीन लेना चाहते हो ? जब हमें जाना होगा तो चले जाएंगे। हमारा अपना मकान है. हम यहां सम्मान के साथ जीते हैं, तब क्यों हम किसी की विवशता या फिर बोझ बन जाएँ ?
उन लोगों के चले जाने के पश्चात ,रामपाल यादव जी, अपनी गीली हुई आँखों को अच्छे से साफ करते हुए अपनी पत्नी को आवाज लगाते हैं ,दया !आज चलो ‘लॉन्ग ड्राइव’ पर चलते हैं अभी हम इतने बूढ़े भी नहीं हुए ,जो बच्चों का मुँह देखना पड़े।
दया !रामपाल जी के मन का दर्द समझती हैं ,वे वैसे ही हिम्मत दिखलाते हैं किन्तु अंदर ही अंदर टूट रहे हैं ,डरते हैं ,कल को मुझे कुछ हो गया तो इसकी[दया ] देखभाल कौन करेगा ?एक बार दोनों पति -पत्नी बड़े बेटे के पास घूमने गए थे ,हमें देखते ही ,उसका चेहरा उतर गया और बोला -बाऊजी !आने से पहले बता तो देते कि आप आ रहे हैं ,हम भी आज घूमने जाने वाले थे।
कोई बात नहीं बेटा !हम यहीं रह जायेंगे ,तुम लोग चले जाओ !
नहीं ,बाऊजी !आप छोटे के पास चले जाइये !आप यहां अकेले नहीं रह पाएंगे। बेटे ने इतना भी नहीं सोचा -इस समय मेरे माता -पिता वापस कैसे जायेंगे ? आठ घंटे का सफ़र तय करके आये हैं ,थके होंगे ,भूख लगी होगी। तभी उन्होंने अपने बेटे से कहा -कोई बात नहीं, हम चले जाएंगे! कम से कम चाय तो पिला दे और नाश्ता तो करवा दे !
हम लोग अपनी पैकिंग कर रहे हैं , आप जाएंगे तो, रास्ते में ही कुछ खा लीजिएगा। अभी श्रेया ,आपके लिए कुछ बनाने वाली नहीं है, उसने स्पष्ट ऐसे जवाब दिया जो सीधे सीने को छलनी करता हुआ चला गया।
ठीक है, तुम अपनी पैकिंग करो !हम चलते हैं। बाहर ही कुछ खा लेंगे, कहकर हम लोग बाहर निकल आए किसी बेंच पर बैठकर हमने, खाना खाया। मन हमसे प्रश्न पूछ रहा था -क्या इस दिन के लिए हमने इन्हें पढ़ा लिखाकर इस क़ाबिल बनाया था कि कल को ये हमें दो रोटी के लिए भी न पूछ सकें।
हम पहले से ही थके हुए थे , भोजन करने के पश्चात,और आलस्य आ गया ,इच्छा हो रही थी कि आराम करें ! तब ये बोले – एक बार छोटे को फोन कर लेता हूं , हो सकता है ,वह भी कहीं व्यस्त हो, कभी वहाँ पहुंचने पर पता चले कि वह भी कहीं जा रहा है , इन्होंने व्यंग्य किया और पीसीओ से फोन किया। रोहित बेटा ! हम आ रहे हैं।
पहले तो उसने फोन ही नहीं उठाया , जब उठाया, तो पूछा -क्यों, क्या कोई खास बात है ? अरे हमारी इतनी बड़ी कोठी है ,क्या आपका वहां मन नहीं लग रहा है ? यहां आकर क्या करेंगे ? दो कमरों का फ्लैट है, भीड़ हो जाएगी। अबकि दीपावली पर हम वहीं आ जाएंगे। उसने यह तक नहीं पूछा -आप कहाँ हैं ?
अपने पति का चेहरा देख, दया जी अपनी बेटे से कहना चाह रही थीं – कि बेटे हम तो तुम्हारे शहर के नजदीक ही हैं ज्यादा दूर नहीं है, सिर्फ 2 घंटे का रास्ता है किंतु रामपाल जी ने कहने ही नहीं दिया और फोन काट दिया।
अब हम क्या करेंगे ? दया ने पूछा।
करना क्या है? अपने महल वापस चलेंगे। बेटा !सच ही तो कह रहा था -हमारा इतना बड़ा मकान है और हम यहां इधर-उधर खुशियां ढूंढ रहे हैं ,हमारे जीवन भर की पूंजी तो वही है जो हमें सुकून से रहने देगा। तब हम वापस लौट आए। कभी बच्चों ने फोन किया तो इन्होंने उठाने ही नहीं दिया, न ही उठाया। अक्सर यह कहते हैं – जब वे हमारे बगैर जी सकते हैं तो हम क्यों नहीं ? जब इंसान मर जाता है, तब भी तो जीवन चलता रहता है, लोग जीते हैं। कम से कम हमें यह तो संतुष्टि है , कि हमारे अपने बेटों ने साथ नहीं रखा तो क्या ? हम निसंतान नहीं हैं।
अरे क्या सोच रही हो ? मैं गाड़ी बाहर निकाल चुका हूं।
अभी आई, कहते हुए दया आगे बढ़ गई , और झट से गाड़ी का दरवाजा खोलकर, रामपाल जी के बराबर में बैठ गई, ठीक से तैयार भी नहीं होने देते, इतनी जल्दबाजी करते हैं,दया जी मुँह बनाते हुए बोलीं।
तुम तो सदाबहार हो, ऐसे ही अच्छी लग रही हो और क्या’ सजना’ है ? जब तुम्हारे पास अपना ‘सजना’ है कहते हुए उन्होंने गाड़ी आगे बढ़ा दी। अब वे इस बात के लिए परेशान नहीं रहते, कि हम अपने बेटों के पास क्यों नहीं रहते ? हमारी अपनी इच्छा है,जीवन में कोई बंधन नहीं ,खुलकर जियो और जीने दो ! रामपाल जी ने सड़क पर गाड़ी दौड़ा दी और गाना चला दिया-” जिंदगी एक सफर है सुहाना !यहां कल क्या हो ? किसने जाना ?
✍🏻 लक्ष्मी त्यागी