‘‘ ये लोग जो चुपचाप बैठे है ये लोग कौन हैं गरिमा तू जानती है इनको?’’ रसोई में पूरी तलती सुरभि ने गरिमा से पूछा
‘‘ जानती तो मैं भी नहीं… लगता है कोई बाहर वाले होंगे, तभी तो मेहमान बनकर बैठे हैं।’’ गरिमा ने अपनी सोच की गाड़ी को एक कदम आगे बढ़ा कर कहा
तभी कृतिका रसोई घर में आई और बोली,‘‘ यार तुम लोग नही होती तो मेरा क्या होता…. नहीं तो आज की तैयारी करने में मेरी तो नानी माँ याद आ जाती….चलो अब बाकी की पूरियां बाद में तल लेंगे अभी केक कट करवा लेते हैं।”
आज कृतिका के बेटे का पाँचवाँ जन्मदिन है और सारी तैयारियां उसने घर में ही की …. मेहमानों के नाम पर ससुराल से सास , जेठ, जेठानी और उनके दो बच्चे आए साथ ही इकलौती ननद जो इसी शहर में रहती हैं तो वो भी आमंत्रित थी। कृतिका अभी साल भर पहले ही इस सोसायटी में रहने आई थी और अपने मिलनसार स्वभाव की वजह उसकी कुछ अच्छी सहेलियां बन गई थी जो जरूरत पड़ने पर हमेशा एक दूसरे की मदद को तैयार रहती थी।
कुल मिलाकर तीस लोग आमंत्रित किए गए थे। पहले तो बाहर जन्मदिन मनाने का सोचा गया पर कृतिका की सास ने कहा बाहर जाकर क्या मनाना घर का खाना खाओ , बाहर का खाना हजम नहीं होता।
‘‘ अब अकेले इतने लोगों के लिए कौन बनाएगा , सासू माँ का क्या है वो तो बस बोलना जानती है .. करना तो सब मुझे ही पड़ेगा…। ’’ कृतिका मन ही मन सोचने लगी थी
शाम को हर दिन की तरह वॉक पर निकली तो उतरे चेहरे देख सहेलियों ने माजरा पूछा।
कृतिका ने सास के साथ हुई बातचीत बता दी।
‘‘ क्या यार हम है ना … जब हमें जरूरत होती तो तुम मदद नहीं करती हो क्या? फिर हम क्यों नहीं कर सकते। वैसे तेरे मायके और ससुराल से लोग आ रहे हैं ना फिर मिलजुल कर सब हो ही जाएगा तू इतनी चिन्ता क्यों कर रही है।” सुरभि ने कहा था
‘‘ मायके से कोई नहीं आ पाएगा….पापा की तबियत ठीक नहीं है… माँ बोल रही थी कोई जाएगा तो छोटे भाई को ही भेज दूँगी हाँ ससुराल से सास , जेठ, जेठानी और उनके बच्चे आएँगे साथ ही यहाँ जो ननद रहती है वो भी परिवार सहित आएगी….अभी घर में ज्यादा लोगों के लिए व्यवस्था करना मुश्किल है पर अपना ग्रुप तो बिना बुलाए आमंत्रित हैं समझ रही हो ना…।”कृतिका ने कहा था
आज सच में दोस्तो ने आकर अपनी बात रख ली थी और कृतिका की पूरी मदद भी कर दी ये एहसास करवा दिया कि अपनों की पहचान क्या होती है ।
केक की मेज भी दोस्तो ने तैयार करवा दिया था। सब कुछ मिला जुला कर ठीक ही चल रहा था।
‘‘ आइए माँ आप लोग, सृजन का केक कटवाते हैं।’’ कृतिका ने सब को बुलाया
सुरभि और गरिमा उन मेहमानों को देखकर दंग रह गई जिनकी चर्चा वो कर रही थी वो तो कृतिका के ससुराल वाले थे। दोनों सहेलियाँ एक दूसरे को देख कर आँखो में ही सवाल करने लगी,”ये कमाल के अपने लोग है यार जो देख रहे हैं कि कृतिका एक पैर पर खड़ी होकर सब कुछ कर रही हैं पर वो तो तैयार हो कर चुपचाप बैठे हुए थे….मदद करना तो दूर ऐसा लग रहा था जैसे किसी रिश्तेदार के घर रिश्तेदारी निभाने आए हो।”
केक काटने के बाद कृतिका ने अपने ससुराल वालों को सबसे पहले खाने पर बिठा दिया।
गरिमा और सुरभि ये सब देख कर आश्चर्य कर रही थी।
दो दिन तक ससुराल वालों के रहने की वजह से कृतिका घर में ही बंद रही… नीचे जाकर सहेलियों से मिलना भी नहीं हो पा रहा था।फोन पर भी कम ही बात हो रही थी।
दो दिन बाद जब वो चले गए तो कृतिका पहले की तरह नीचे जाकर सहेलियों से मिली।
‘‘ यार कृतिका तेरे ससुराल वाले तो कमाल हैं… मैं तो सोच रही थी कोई दूर के मेहमान आए हुए हैं….ऐसा कौन करता है यार हाथ पर हाथ रख कर बैठ जाए…थोड़ी मदद कर देती तो तुझे भी अच्छा लगता..अब तू भी वहां जाएगी तो ऐसे ही बैठ जाना…. ये कैसे अपने लोग है जो अपने ही लोगों की मदद करना नहीं चाहते… अपनों की पहचान तो तभी होती है जब आप परेशान हो तो वो मदद को हाथ बढ़ाए ।’’ गरिमा ने कहा और सुरभि के साथ हँस दी
“ यार जब मैं शादी कर के ससुराल गई तो हमेशा वहाँ मदद करती रहती थी…मुझे तो आदत ही हो गई है कही भी जाती हूँ तो चुपचाप बैठ ही नहीं सकती पर मेरी सास जेठानी की आदत अलग है वो बस अपने घर में ही काम करती है….किसी के घर भी जाए वो मेहमान बन जाती है… मेरे पास जब कभी भी आई कोई भी पूजा और पार्टी घर में ही क्यों ना हो वो सब मेहमान की तरह बैठ जाती ऐसे में चाह कर भी मैं उनको बोल नहीं पाती कि आप ये कर दो और वो कर दो… तुमने जैसे अपना समझ कर मेरी मदद की मैं उनसे अगले जन्म में ही उम्मीद कर सकती हूँ….इस जन्म में वो मेरे अपने नहीं यार मेहमान जैसे ही हैं हाँ ये ज़रूर कह सकती हूँ मेरे अपने की पहचान में तुम लोग शामिल हो।”कृतिका के स्वर में थोड़ी उदासी झलक रही थी
“फिर भी कृतिका परिवार का मतलब ही यही होता है कि वो जरूरत पर काम आये…. नहीं तो ऐसे अपनों से दूर की राम राम भली….मेरे तो ससुराल वाले हमेशा मदद करते है। कभी एहसास ही नहीं होता हम देवरानी जेठानी होंगे…हम तो बहनों की तरह रहते, मस्ती में बातें करते काम निपटा लेते है।’’ गरिमा ने कहा
‘‘ हाँ मेरी देवरानी भी बहुत अच्छी है, हम दोनों तो एक दूसरे से हर बात शेयर करते है….पर कृतिका तेरे जैसे ससुराल वालों से हम ही अच्छे है यार ….कम से कम हम एक दूसरे की परेशानी तो समझ रहे थे…वो लोग तो बस बैठ कर सब देखने में लगे थे… कैसे क्या हो रहा….एक बार भी तेरी जेठानी तक रसोई में झांकने ना आई….तुम बुरा मत मानना कृतिका पर ऐसे अपनों से तो पराए ही भले ।” सुरभि ने भी गरिमा के सुर में सुर मिलाते हुए कहा
‘‘चल छोड़ यार अब तो मुझे आदत हो गई है अब तो मैं भी कभी-कभी उनके साथ मेहमानों जैसे ही रहती जैसा उनको पसंद वैसे ही उनके साथ करती…कम से कम मुझे उनसे कोई उम्मीद रखकर तकलीफ़ तो नहीं होती….वैसे भी जब तुम सब साथ हो तो मुझे कुछ सोचने की जरूरत नहीं…।’’ कृतिका दोनों दोस्तों के गले लगती हुई बोली
‘‘ ये सब तेरे व्यवहार का ही नतीजा है यार तू भी तो ऐसे हमारे किसी भी जरूरत पर हमेशा मदद को तैयार जो रहती।”गरिमा और सुरभि समवेत स्वर में बोली
वॉक के बाद कृतिका जब घर आई तो दोस्तों की बातें याद कर सोचने लगी,” सच में मेरे अपने तो हमेशा से गैर सरीखे ही रहते आए हैं…. कम से कम दोस्त मदद कर मेजबान की भूमिका निभा देती… सच ही तो कह रही वो ऐसे अपनों से तो पराए भले।’’
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रश्मि प्रकाश
#अपनों की पहचान